फिलबदीह 80- काव्योदय से हासिल गज़ल
बह्र --फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
काफिया आ रदीफ कौन है
गज़ल निर्मला कपिला
अब मुहब्बत यहां जानता कौन है
रूह की वो जुबां आंकता कौन है
मंजिलों का पता कागज़ों ने दिया
नाम से तो मुझे जानता कौन है
वक्त का हर सफा खोल कर देखती
कौन देता खुशी सालता कौन है
अब खुदा है या भगवान बोलो उसे
एक ही बात है मानता कौन है
ज़िन्दगी बोझ हो तो भी चलते रहो
रुक के मंज़िल पे पहुंचा भला कौन है --- ये अशार विजय स्वरणकार जी को समर्पित
झूठ की भी शिनाख्त किसे है यहां
चोर को चोर पहचानता कौन है
आंख कोई दिखाये तो डरते नही
गर चुनैती मिले भागता कौन है
हादसा हो गया लोग इकट्ठे हुये
चोट लगती जिसे देखता कौन है
लापता कितने बच्चे हुये हैं यहां
सच कहूँ तो उन्हे ढूंढ्ता कौन है
वक्त बेवक्त वो काम आया मेरे
किसको मांनूं जहां मे खुदा कौन है
बह्र --फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
काफिया आ रदीफ कौन है
गज़ल निर्मला कपिला
अब मुहब्बत यहां जानता कौन है
रूह की वो जुबां आंकता कौन है
मंजिलों का पता कागज़ों ने दिया
नाम से तो मुझे जानता कौन है
वक्त का हर सफा खोल कर देखती
कौन देता खुशी सालता कौन है
अब खुदा है या भगवान बोलो उसे
एक ही बात है मानता कौन है
ज़िन्दगी बोझ हो तो भी चलते रहो
रुक के मंज़िल पे पहुंचा भला कौन है --- ये अशार विजय स्वरणकार जी को समर्पित
झूठ की भी शिनाख्त किसे है यहां
चोर को चोर पहचानता कौन है
आंख कोई दिखाये तो डरते नही
गर चुनैती मिले भागता कौन है
हादसा हो गया लोग इकट्ठे हुये
चोट लगती जिसे देखता कौन है
लापता कितने बच्चे हुये हैं यहां
सच कहूँ तो उन्हे ढूंढ्ता कौन है
वक्त बेवक्त वो काम आया मेरे
किसको मांनूं जहां मे खुदा कौन है