25 October, 2010

आखिरी पडाव -- कविता

आखिरी पडाव पर

डोली से अर्थी तक के सफर मे
अग्नि के समक्ष लिये
सात वचनो को हमने निभाया
ज़िन्दगी के तीन पडाव तक
सात वचनो को पूरा करते हुये
आज हम जीवन के आखिरी पडाव पर हैं
मगर जब देखती हूँ तुम्हें
उधडी दीवारों के पलस्तर
पर आढी तिरछी आकृतियों को
सूनी आँखों से निहारते
विचलित हो जाती हूँ
तुम्हें दर्द सहते हुये देखना
मेरे दर्द को दोगुना कर देता है
हमने जिन्हें पाँव पर खडे होना सिखाया
उसी ने खींच लिये पाँव
हमने जिसे खुशियाँ दी
उसी ने छीन ली हमारी खुशियाँ
जिसे अपना हाथ पकडाया
उसी ने मिटा दी हमारे हाथ की लकीरें
लेकिन आखिरी पडाव पर
आओ एक वचन और लें
चलें फिर से उस मोड पर
जहाँ से शुरू किया था जीवन
अब चलेंगे विपरीत दिशा मे
सिखायेंगे सिर्फ एक दूसरे को
अपने पाँव पर खडे होना
कदमे से कदम मिला कर चलना
एक दूसरे का हाथ पकड कर
उकेरेंगे एक दूसरे के हाथ पर
कुछ नई लकीरें
खुशियों की प्यार की
जीयेंगे सिर्फ अपने लिये
इस लिये नही कि
इसमे मेरा अपना कुछ स्वार्थ है
या दुनिया से शिकवा है
बल्कि इस लिये कि
कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है
इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर

46 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सार्थक, हौसला परक सन्देश
के साथ आँखें नाम करने वाली रचना ...
यही है आज के दौर का सच.....

प्रवीण पाण्डेय said...

कुछ वचन अपने निभाये जाने का कर माँगते हैं, देना ही पड़ेगा। सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति।

seema gupta said...

डोली से अर्थी तक का सफ़र.......क्या कहें बस पढ़ते ही रह गये ....

regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बेहद संवेदनशील और भावनात्मक..

वाणी गीत said...

नम पलकों से बस पढ़ लिया ..
भावुक , संवेदनशील कविता ...!

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत सुंदर!
चंद पंक्तियों में पूरी ज़िंदगी समेट कर रख दी आप ने
आप के इस हौसले को नमन

मुकेश कुमार सिन्हा said...

behad samvedanshil rachna!!

aapke sato vachano ko pura karne ki ikshhha achchhi lagi...:)

Majaal said...

आपकी कविता तो पहली बार पढ़ रहे है.. बहुत उम्दा बनी है.. जारी रखिये .....

लम्बी है ग़म की शाम , मगर शाम ही तो है ......

उस्ताद जी said...

5/10

संवेदना और संबल प्रदान करती सार्थक पोस्ट.
आज यह भी स्पष्ट हुआ कि फ़िल्म बागबान की स्क्रिप्ट को कहाँ से प्रेरणा मिली थी.

Bharat Bhushan said...

मानवीय संवेदनाओं और परिवर्तनशील मानवीय मूल्यों के द्वंद्व को बहुत अच्छी तरह आपने अभिव्यक्त किया है.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर...

कुछ कहते नहीं बन रहा है...
भाव विभोर कर दिया आपने.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर रचना!
--
मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
http://charchamanch.blogspot.com/

Asha Lata Saxena said...

बहुत गंभीर भाव लिए सुंदर रचना |बहुत अच्छी बन पड़ी है |बधाई |आपकी कलम में जादू है ,
आशा

Anita said...

निर्मला जी , आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है, आप में इतनी जीवन्तता है, रचना में कहीं शिकायत का स्वर, दोनों का तालमेल नहीं बैठता, फिर भी आशा की किरण फूट रही है, भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है .

रचना दीक्षित said...

आज तो कहने के लिए शब्द भी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं. अच्छा तो इस पोस्ट में सब कुछ है पर लाजवाब है सकारात्मकता. मेरा तो यही सोचना है की हर बात पर या तो दूसरों को दोष दें या अपने को और अपनी किस्मत को??? अच्छा तो ये है चलो हर मुश्किल का कोई दूसरा ही हल ढूंढे

vandana gupta said...

कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है
इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर

ज़िन्दगी और सात फ़ेरों के बंधन के सही मायने बता दिये………………इससे बेहतरीन कुछ नही हो सकता……………आपने आज सच एक नये मुकाम को छुआ है।

arvind said...

dil ko jhakajhoratee hui gahare bhaav liye sundar rachna...aabhaar

रानीविशाल said...

आपकी इस रचना को पढ़ने के बाद की स्थिति ऐसी है कि कुछ कह पाना कठिन हो गया ............दिल के आर पार निकल गई आपकी यह भाव विभोर करने वाली रचना ....!!

दिगम्बर नासवा said...

जीवन का सफ़र है ये ... उतार चढ़ाव तो आते ही हैं ... कई बार आँखें नाम कर गयी आपकी रचना ...

शिक्षामित्र said...

उत्कृष्ट रचना है। वयोवृद्ध माता-पिता के इस जीवट को देख बच्चों में शर्मिंदगी पैदा होनी चाहिए। आखिर,एक दिन वे भी इस पड़ाव पर होंगे।

ZEAL said...

इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन...

निर्मला जी,
बहुत ही सुन्दर और प्रेरनादायी पंक्तियाँ ।

.

रंजना said...

ओह...मन में उतर गयी आपकी यह अद्वितीय कविता...

जीवन और रिश्तों का सच भी है इसमें और चौथेपन के लिए प्रेरणा भी...

सच है...जीवन का यह अंतिम चरण यदि एक दुसरे को चलना सिखाने ,लड़खड़ाते कदमो को सम्हालने में लगा दिए जाएँ,तो न शिकते की गुंजाईश बचेगी न सूनेपन की सम्भावना....
वैसे इससे अधिक कुछ करने को हाथ में रहता भी कहाँ है...

Shabad shabad said...

डोली से अर्थी तक का सफर....
गहरी बातें....
आँखे नम हो गईं !!

shikha varshney said...

निर्मला जी निशब्द कर दिया आज आपने.एक एक पंक्ति कितना कुछ कहती है.बेहतरीन ...

rashmi ravija said...

आज तो बड़ी मार्मिक रचना कर डाली ..
एकदम भीग आया मन...कुछ कहते नहीं बन रहा.

Yashwant R. B. Mathur said...

कुछ नई लकीरें
खुशियों की प्यार की
जीयेंगे सिर्फ अपने लिये
इस लिये नही कि
इसमे मेरा अपना कुछ स्वार्थ है
या दुनिया से शिकवा है
बल्कि इस लिये कि
कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है

बहुत ही ज्यादा भावुक कर देने वाली रचना.

Udan Tashtari said...

बहुत भावभीनी रचना.

PRAN SHARMA said...

RACHNA DIL MEIN UTAR GAYEE HAI.

Harshkant tripathi"Pawan" said...

कविता दिल को छू गई. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा..........

डॉ टी एस दराल said...

जीवन की कडवी सच्चाई को दर्शाती , एक सकारात्मक सोच लिए प्रेरणादायक रचना । बहुत सुन्दर जी ।

सुधीर राघव said...

बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।

सुधीर राघव said...

बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।

सुधीर राघव said...

बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।

सुधीर राघव said...

बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।

dipayan said...

ज़िन्दगी की सच्चाई से पिरोई हुई आपकी यह कविता दिल को छू गई । सुन्दर भावुक रचना ।

रेखा श्रीवास्तव said...

निर्मला जी,

जीवन की सच्चाई को इतनी गहराई से उकेरा है और फिर उसके समाधान के साथ वो साहस दिखाया है कि जीवन इसी का नाम है और अब उसके मायने ऐसे ही हो गए हैं. प्रेरणा देती हुई रचाना.बधाई.

रश्मि प्रभा... said...

आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
... nihshabd mahsoos ker rahi hun ehsaason ko

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

संवेदनाओं को इस कविता के माध्यम से बहुत अच्छे से उकेरा आपने...
बहुत खूब्!

शूरवीर रावत said...

आपकी कविता प्रासंगिक है और पाठक को हकीकत से रूबरू कराती है. ................सुन्दर रचना.

Khushdeep Sehgal said...

देख तेरा साथ हमको दो जहां से प्यारा है,
न मिले संसार, न मिले संसार तो क्या,
तेरा प्यार तो हमारा है,
देख तेरा साथ...

सात फेरों के सात वचनों की सबसे बड़ी सौगात...

जय हिंद...

राज भाटिय़ा said...

डोली से अर्थी तक का सफर...
बहुत सुंदर कविता, हम दोनो ही यही चाहते हे कि हमारा सफ़र इकट्टा खत्म हो, बच्चे पढ लिख कर जब अपना अपना घर बना लेगे तो हम फ़िर अकेले हो जयेगे, मुझे बीबी की फ़िकर, ओर बीबी को मेरी, आज तक जहां गये इकट्टॆ ही गये हे, तो आखरी सफ़र भी ....क्योकि कहते हे सच्चा दोस्त मिलना कठिन हे.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

namaste aunnty ji....

ekdum jhakjhor dene waali rachna likhi hai aapne!!

अनुपमा पाठक said...

bhaavpoorna rachna!

Ankit said...

नमस्कार निर्मला जी,
एक नए आयाम को जाती हुई ये कविता, अच्छी लगी. जो थक हार कर बैठने के बजाय, चलते रहने का सन्देश दे रही है.

"लेकिन आखिरी पडाव पर
आओ एक वचन और लें
चलें फिर से उस मोड पर
जहाँ से शुरू किया था जीवन
अब चलेंगे विपरीत दिशा मे
सिखायेंगे सिर्फ एक दूसरे को
अपने पाँव पर खडे होना............."

RAJWANT RAJ said...

apne ird gird faili smvednhinta ko kitni smvedna ke sath prstut kiya hai aapne .isi drishtikon ki aavshykta hai apni jivntta ko bnaye rkhne ke liye .

Aruna Kapoor said...

..जीवन ऐसा ही है!...हमारे दुःख दर्द के अनुभव भी हमें प्यारे है!...क्यों कि वह हमारे अपने है!...वास्तविकता का परिचय इस रचना द्वारा मिल रहा है!....साधुवाद!

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