आखिरी पडाव पर
डोली से अर्थी तक के सफर मे
अग्नि के समक्ष लिये
सात वचनो को हमने निभाया
ज़िन्दगी के तीन पडाव तक
सात वचनो को पूरा करते हुये
आज हम जीवन के आखिरी पडाव पर हैं
मगर जब देखती हूँ तुम्हें
उधडी दीवारों के पलस्तर
पर आढी तिरछी आकृतियों को
सूनी आँखों से निहारते
विचलित हो जाती हूँ
तुम्हें दर्द सहते हुये देखना
मेरे दर्द को दोगुना कर देता है
हमने जिन्हें पाँव पर खडे होना सिखाया
उसी ने खींच लिये पाँव
हमने जिसे खुशियाँ दी
उसी ने छीन ली हमारी खुशियाँ
जिसे अपना हाथ पकडाया
उसी ने मिटा दी हमारे हाथ की लकीरें
लेकिन आखिरी पडाव पर
आओ एक वचन और लें
चलें फिर से उस मोड पर
जहाँ से शुरू किया था जीवन
अब चलेंगे विपरीत दिशा मे
सिखायेंगे सिर्फ एक दूसरे को
अपने पाँव पर खडे होना
कदमे से कदम मिला कर चलना
एक दूसरे का हाथ पकड कर
उकेरेंगे एक दूसरे के हाथ पर
कुछ नई लकीरें
खुशियों की प्यार की
जीयेंगे सिर्फ अपने लिये
इस लिये नही कि
इसमे मेरा अपना कुछ स्वार्थ है
या दुनिया से शिकवा है
बल्कि इस लिये कि
कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है
इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर
डोली से अर्थी तक के सफर मे
अग्नि के समक्ष लिये
सात वचनो को हमने निभाया
ज़िन्दगी के तीन पडाव तक
सात वचनो को पूरा करते हुये
आज हम जीवन के आखिरी पडाव पर हैं
मगर जब देखती हूँ तुम्हें
उधडी दीवारों के पलस्तर
पर आढी तिरछी आकृतियों को
सूनी आँखों से निहारते
विचलित हो जाती हूँ
तुम्हें दर्द सहते हुये देखना
मेरे दर्द को दोगुना कर देता है
हमने जिन्हें पाँव पर खडे होना सिखाया
उसी ने खींच लिये पाँव
हमने जिसे खुशियाँ दी
उसी ने छीन ली हमारी खुशियाँ
जिसे अपना हाथ पकडाया
उसी ने मिटा दी हमारे हाथ की लकीरें
लेकिन आखिरी पडाव पर
आओ एक वचन और लें
चलें फिर से उस मोड पर
जहाँ से शुरू किया था जीवन
अब चलेंगे विपरीत दिशा मे
सिखायेंगे सिर्फ एक दूसरे को
अपने पाँव पर खडे होना
कदमे से कदम मिला कर चलना
एक दूसरे का हाथ पकड कर
उकेरेंगे एक दूसरे के हाथ पर
कुछ नई लकीरें
खुशियों की प्यार की
जीयेंगे सिर्फ अपने लिये
इस लिये नही कि
इसमे मेरा अपना कुछ स्वार्थ है
या दुनिया से शिकवा है
बल्कि इस लिये कि
कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है
इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर
46 comments:
सार्थक, हौसला परक सन्देश
के साथ आँखें नाम करने वाली रचना ...
यही है आज के दौर का सच.....
कुछ वचन अपने निभाये जाने का कर माँगते हैं, देना ही पड़ेगा। सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति।
डोली से अर्थी तक का सफ़र.......क्या कहें बस पढ़ते ही रह गये ....
regards
बेहद संवेदनशील और भावनात्मक..
नम पलकों से बस पढ़ लिया ..
भावुक , संवेदनशील कविता ...!
बहुत सुंदर!
चंद पंक्तियों में पूरी ज़िंदगी समेट कर रख दी आप ने
आप के इस हौसले को नमन
behad samvedanshil rachna!!
aapke sato vachano ko pura karne ki ikshhha achchhi lagi...:)
आपकी कविता तो पहली बार पढ़ रहे है.. बहुत उम्दा बनी है.. जारी रखिये .....
लम्बी है ग़म की शाम , मगर शाम ही तो है ......
5/10
संवेदना और संबल प्रदान करती सार्थक पोस्ट.
आज यह भी स्पष्ट हुआ कि फ़िल्म बागबान की स्क्रिप्ट को कहाँ से प्रेरणा मिली थी.
मानवीय संवेदनाओं और परिवर्तनशील मानवीय मूल्यों के द्वंद्व को बहुत अच्छी तरह आपने अभिव्यक्त किया है.
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर...
कुछ कहते नहीं बन रहा है...
भाव विभोर कर दिया आपने.
सुन्दर रचना!
--
मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत गंभीर भाव लिए सुंदर रचना |बहुत अच्छी बन पड़ी है |बधाई |आपकी कलम में जादू है ,
आशा
निर्मला जी , आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है, आप में इतनी जीवन्तता है, रचना में कहीं शिकायत का स्वर, दोनों का तालमेल नहीं बैठता, फिर भी आशा की किरण फूट रही है, भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है .
आज तो कहने के लिए शब्द भी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं. अच्छा तो इस पोस्ट में सब कुछ है पर लाजवाब है सकारात्मकता. मेरा तो यही सोचना है की हर बात पर या तो दूसरों को दोष दें या अपने को और अपनी किस्मत को??? अच्छा तो ये है चलो हर मुश्किल का कोई दूसरा ही हल ढूंढे
कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है
इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
और
डोली से अर्थी तक का सफर
ज़िन्दगी और सात फ़ेरों के बंधन के सही मायने बता दिये………………इससे बेहतरीन कुछ नही हो सकता……………आपने आज सच एक नये मुकाम को छुआ है।
dil ko jhakajhoratee hui gahare bhaav liye sundar rachna...aabhaar
आपकी इस रचना को पढ़ने के बाद की स्थिति ऐसी है कि कुछ कह पाना कठिन हो गया ............दिल के आर पार निकल गई आपकी यह भाव विभोर करने वाली रचना ....!!
जीवन का सफ़र है ये ... उतार चढ़ाव तो आते ही हैं ... कई बार आँखें नाम कर गयी आपकी रचना ...
उत्कृष्ट रचना है। वयोवृद्ध माता-पिता के इस जीवट को देख बच्चों में शर्मिंदगी पैदा होनी चाहिए। आखिर,एक दिन वे भी इस पड़ाव पर होंगे।
इन्सानियत को
शर्मिन्दा नही करना चाहती
इसलिये आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन...
निर्मला जी,
बहुत ही सुन्दर और प्रेरनादायी पंक्तियाँ ।
.
ओह...मन में उतर गयी आपकी यह अद्वितीय कविता...
जीवन और रिश्तों का सच भी है इसमें और चौथेपन के लिए प्रेरणा भी...
सच है...जीवन का यह अंतिम चरण यदि एक दुसरे को चलना सिखाने ,लड़खड़ाते कदमो को सम्हालने में लगा दिए जाएँ,तो न शिकते की गुंजाईश बचेगी न सूनेपन की सम्भावना....
वैसे इससे अधिक कुछ करने को हाथ में रहता भी कहाँ है...
डोली से अर्थी तक का सफर....
गहरी बातें....
आँखे नम हो गईं !!
निर्मला जी निशब्द कर दिया आज आपने.एक एक पंक्ति कितना कुछ कहती है.बेहतरीन ...
आज तो बड़ी मार्मिक रचना कर डाली ..
एकदम भीग आया मन...कुछ कहते नहीं बन रहा.
कुछ नई लकीरें
खुशियों की प्यार की
जीयेंगे सिर्फ अपने लिये
इस लिये नही कि
इसमे मेरा अपना कुछ स्वार्थ है
या दुनिया से शिकवा है
बल्कि इस लिये कि
कहीं हमारे आँसू और दर्द देख कर
लोग ये न मान बैठें
कि कर्तव्यनिष्ठा और सच का फल
हमेशा दुखदायी होता है
बहुत ही ज्यादा भावुक कर देने वाली रचना.
बहुत भावभीनी रचना.
RACHNA DIL MEIN UTAR GAYEE HAI.
कविता दिल को छू गई. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा..........
जीवन की कडवी सच्चाई को दर्शाती , एक सकारात्मक सोच लिए प्रेरणादायक रचना । बहुत सुन्दर जी ।
बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।
बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।
बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।
बहुत ही मार्मिक। मगर हौसले के साथ कविता जिस ऊंचाई को छूती है, वह बेमिसाल है।
ज़िन्दगी की सच्चाई से पिरोई हुई आपकी यह कविता दिल को छू गई । सुन्दर भावुक रचना ।
निर्मला जी,
जीवन की सच्चाई को इतनी गहराई से उकेरा है और फिर उसके समाधान के साथ वो साहस दिखाया है कि जीवन इसी का नाम है और अब उसके मायने ऐसे ही हो गए हैं. प्रेरणा देती हुई रचाना.बधाई.
आखिरी पडाव पर
चलो जीयें जीवट से
आँसू पोंछ कर
तभी पू्रे होंगे
सात्त फेरों के सात वचन
... nihshabd mahsoos ker rahi hun ehsaason ko
संवेदनाओं को इस कविता के माध्यम से बहुत अच्छे से उकेरा आपने...
बहुत खूब्!
आपकी कविता प्रासंगिक है और पाठक को हकीकत से रूबरू कराती है. ................सुन्दर रचना.
देख तेरा साथ हमको दो जहां से प्यारा है,
न मिले संसार, न मिले संसार तो क्या,
तेरा प्यार तो हमारा है,
देख तेरा साथ...
सात फेरों के सात वचनों की सबसे बड़ी सौगात...
जय हिंद...
डोली से अर्थी तक का सफर...
बहुत सुंदर कविता, हम दोनो ही यही चाहते हे कि हमारा सफ़र इकट्टा खत्म हो, बच्चे पढ लिख कर जब अपना अपना घर बना लेगे तो हम फ़िर अकेले हो जयेगे, मुझे बीबी की फ़िकर, ओर बीबी को मेरी, आज तक जहां गये इकट्टॆ ही गये हे, तो आखरी सफ़र भी ....क्योकि कहते हे सच्चा दोस्त मिलना कठिन हे.
namaste aunnty ji....
ekdum jhakjhor dene waali rachna likhi hai aapne!!
bhaavpoorna rachna!
नमस्कार निर्मला जी,
एक नए आयाम को जाती हुई ये कविता, अच्छी लगी. जो थक हार कर बैठने के बजाय, चलते रहने का सन्देश दे रही है.
"लेकिन आखिरी पडाव पर
आओ एक वचन और लें
चलें फिर से उस मोड पर
जहाँ से शुरू किया था जीवन
अब चलेंगे विपरीत दिशा मे
सिखायेंगे सिर्फ एक दूसरे को
अपने पाँव पर खडे होना............."
apne ird gird faili smvednhinta ko kitni smvedna ke sath prstut kiya hai aapne .isi drishtikon ki aavshykta hai apni jivntta ko bnaye rkhne ke liye .
..जीवन ऐसा ही है!...हमारे दुःख दर्द के अनुभव भी हमें प्यारे है!...क्यों कि वह हमारे अपने है!...वास्तविकता का परिचय इस रचना द्वारा मिल रहा है!....साधुवाद!
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