व्यंग -- बुढापे की चिन्ता समाप्त
आज कल मुझे अपने भविष्य की चिन्ता फिर से सताने लगी है। पहले 20 के बाद माँ बाप ने कहा अब जाओ ससुराल। हम आ गये। फिर 58 साल के हुये तो सरकार ने कहा अब जाओ अपने घर । हम फिर आ गये। फिर दामाद जी ने सोचा सासू मां अकेले मे हमे पुकारती रहेगी तो पहुँचा दिया ब्लागवुड मे। हम फिर आ गये। अब लगता है आँखें ,कमर ,बाजू अधिक दिन तक यहाँ भी साथ नही देंगे तो कहाँ जायेंगे? मगर भगवान हमेशा अपनी सुनता है जब पता चला कि महिला आरक्षण विधेयक पास हो रहा है तो अपनी तो बाँछें खिल गयी। बडी बेसब्री से आठ मार्च के एतिहासिक दिन का इन्तज़ार किया। क्यों कि हम जानते हैं नकारा,बिमार आदमी और कहीं चले न चले मगर राजनिती मे खूब चलता है। चलता ही नही भागता है< आस पास चमचे, विदेश मे बिमारी का ईलाज क्या क्या सहुलतें नही मिलती और फिर पैसा?___ उसे अभी राज़ ही रखेंगे और हम ने सोच लिया था कि जैसे तैसे इस बार जिस किसी भी पार्टी का टिकेट मिले ले लेंगे।पार्टी न भी हो आज़ाद खडे हो जायेंगे। मगर आठ तारीख ऐसी मनहूस निकली कि संसद मे हंगामा हो गया उस दिन तो आलू टमाटर ही हाथ लगे। अब देखिये न अगर औरत ही औरत के खिलाफ खडी न हो तो किसी भी काम का क्या मज़ा रह जायेगा । ये अपनी ममत दी अपनी ही बहनों के खिलाफ खडी हो गयी। अब इन्हें कौन समझाये कि अभी रोटी हाथ मे तो आने दो बाद मे छीनाझपटी कर लेने फिर चाहे हमारी चोटी ही हाथ मे पकड कर घुमा देना। मगर नही। धडकते दिल से अगले दिन यानी 9 मार्च का इन्तज़ार किया था मगर दी के तेवर देख कर दिल और धडक गया।,-- शाम होते होते अपना तो हाल बेहाल था-- डर था कि कहीं बिल पास होते होते रह गया तो अपना भविष्य तो चौपट हो जायेगा। भगवान ने सुन ली सारा दिन पता नही कितने देवी देवताओं को मनाया। जैसे ही बिल पास होने की घोषणा हुयी अपनी तो मारे खुशी के जमीं पर पाँव नही पड रहे थी । बेशक अभी रोटी तवे पर है पता नही कहीं लोक सभा मे पकते पकते जल गयी तो क्या होगा? मगर अपने हौसले बुलन्दी पर हैं---- बार बार अपनी एक गज़ल का शेर मन मे घूम रहा था--
जमीँ पर पाँव रखती हूँ ,नज़र पर आसमा उपर
नही रोके रुकूँगी अब कि ठोकर पर जमाना है
कहाँ अबला रही औरत कहाँ बेबस ही लगती है
पहुँची है वो संसद तक सभी को ये दिखाना है
रात को खूब लज़ीज़ खाना बनाया और पति को खिलाया। आखिर मुर्गा हलाल करने से पहले पेट भर खिलाना तो चाहिये ही। बस फिर क्या सो गये। तो क्या देखते हैं कि जो टिकेट हमारे पति को मिली थी वो कट कर हमे मिल गयी। पहले तो घर मे ही विरोधी दल खडा हो गया। मायके वाले मेरे साथ और ससुराल वाले इनके साथ मगर जीत तो अपनी होनी ही थी। पार्टी को इस बिल को भुनाने का अवसर तो नही खो सकती थी। पतिदेव सिर पीट रहे थे कि क्यों उन्होंने इस बिल के हक मे वोट डाला। मगर अब बात हाथ से निकल चुकी थी। खैर मानमनौवत से विरोधियों को शान्त किया। टिकेट तो मुझे मिलना ही था मिल गया। अब एलेक्शन कम्पेन मे देख रही हूँ बेचारे पति घर मे इलेक्शन आफिस सम्भाल रहे हैं और मै बाहर गलियों मे घूम रही हूँ। जैसे तैसे इलेशन हो गया और मै जीत गयी। क्या देखती हूँ कि लोगों की भीड मुझे हार डालने के लिये उतावली हो रही है। इनके दोस्त तो और भी उतावले बडी मुश्किल से मुझे हार डालने का उन्हे अवसर मिला था तो कैसे हाथ से जाने देते? जिन्हों ने नही भी वोट डाला वो भी मेरे मुँह मे काजू की कतली डालना चाह रहे थे और मेरी नजरें इन्हें ढूँढ रही थी--- दूर गेट के पास ये भीड मे उलझ्गे हुये नज़र आये--- शायद दोस्तों ने ही शरारत से वहाँ उलझा रखा था इन्हें भीड मे से निकलने ही नही दिया और जब सभी हार डाल कर चले गये तो बेचारे पतिदेव हार ले कर आये। सारे फूल भीड मे झड चुके थे, हमने अवसर की नज़ाकत को समझ कर सभी हार अपने गले से उतार कर इनके गले मे डाल दिये -- और मुस्कुरा कर इनकी तरफ देखा बेचारे मेरे हार डालना ही भूल गये। चलो अच्छा हुया एक बार का डाला हार आज तक गले से नही उतर है।आधी रात तक जश्न चलता रहा।
अगले दिन से घर का इतिहास,भुगोल,गणित सब बदल चुका था। आज इनके दफ्तर मे मेरा राज था । इन्हें मैने रसोई का दरवाजा दिखा दिया था। आने जाने वालों के लिये चाय-नाश्ता,खाना जैसे मै बना कर देती थी अब इनके जिम्मे हो गया। फिर देखती हूँ । रात को जैसे ही फारिग हुयी पतिदेव भोजन की थाली ले कर खडे हैं। मैने थाली के लिये हाथ बढाया ही था कि जोर जोर से मेरा हाथ हिला--- ये क्या--- ये सपना था?--- मेरे पति जोर से मेरा हाथ पकड कर हिला रहे थी * आज क्या सोती रहोगी? सुबह के 7 बज गये? नाश्ता पानी मिलेगा कि नही? वाह रे किस्मत! क्या बदला? एक दिन सपना भी नही लेने दिया। खैर अब भी आशा की किरण बची है--टिकेट तो हम ही लेंगे। बस दुख इस बात का है कि तब आप लोगों से दूर जाना पडेगा । या फिर राज निती मे रह कर अमर सिन्ह की तरह कुछ लिख पाऊँ। मगर एक बात की आप सब से उमीद करती हूँ मेरे ईलेक्शन कम्पेन मे बढ चढ कर हिस्सा लें। धन्यवाद {अग्रिम}। जय नारी जय भारत ।
जमीँ पर पाँव रखती हूँ ,नज़र पर आसमा उपर
नही रोके रुकूँगी अब कि ठोकर पर जमाना है
कहाँ अबला रही औरत कहाँ बेबस ही लगती है
पहुँची है वो संसद तक सभी को ये दिखाना है
रात को खूब लज़ीज़ खाना बनाया और पति को खिलाया। आखिर मुर्गा हलाल करने से पहले पेट भर खिलाना तो चाहिये ही। बस फिर क्या सो गये। तो क्या देखते हैं कि जो टिकेट हमारे पति को मिली थी वो कट कर हमे मिल गयी। पहले तो घर मे ही विरोधी दल खडा हो गया। मायके वाले मेरे साथ और ससुराल वाले इनके साथ मगर जीत तो अपनी होनी ही थी। पार्टी को इस बिल को भुनाने का अवसर तो नही खो सकती थी। पतिदेव सिर पीट रहे थे कि क्यों उन्होंने इस बिल के हक मे वोट डाला। मगर अब बात हाथ से निकल चुकी थी। खैर मानमनौवत से विरोधियों को शान्त किया। टिकेट तो मुझे मिलना ही था मिल गया। अब एलेक्शन कम्पेन मे देख रही हूँ बेचारे पति घर मे इलेक्शन आफिस सम्भाल रहे हैं और मै बाहर गलियों मे घूम रही हूँ। जैसे तैसे इलेशन हो गया और मै जीत गयी। क्या देखती हूँ कि लोगों की भीड मुझे हार डालने के लिये उतावली हो रही है। इनके दोस्त तो और भी उतावले बडी मुश्किल से मुझे हार डालने का उन्हे अवसर मिला था तो कैसे हाथ से जाने देते? जिन्हों ने नही भी वोट डाला वो भी मेरे मुँह मे काजू की कतली डालना चाह रहे थे और मेरी नजरें इन्हें ढूँढ रही थी--- दूर गेट के पास ये भीड मे उलझ्गे हुये नज़र आये--- शायद दोस्तों ने ही शरारत से वहाँ उलझा रखा था इन्हें भीड मे से निकलने ही नही दिया और जब सभी हार डाल कर चले गये तो बेचारे पतिदेव हार ले कर आये। सारे फूल भीड मे झड चुके थे, हमने अवसर की नज़ाकत को समझ कर सभी हार अपने गले से उतार कर इनके गले मे डाल दिये -- और मुस्कुरा कर इनकी तरफ देखा बेचारे मेरे हार डालना ही भूल गये। चलो अच्छा हुया एक बार का डाला हार आज तक गले से नही उतर है।आधी रात तक जश्न चलता रहा।
अगले दिन से घर का इतिहास,भुगोल,गणित सब बदल चुका था। आज इनके दफ्तर मे मेरा राज था । इन्हें मैने रसोई का दरवाजा दिखा दिया था। आने जाने वालों के लिये चाय-नाश्ता,खाना जैसे मै बना कर देती थी अब इनके जिम्मे हो गया। फिर देखती हूँ । रात को जैसे ही फारिग हुयी पतिदेव भोजन की थाली ले कर खडे हैं। मैने थाली के लिये हाथ बढाया ही था कि जोर जोर से मेरा हाथ हिला--- ये क्या--- ये सपना था?--- मेरे पति जोर से मेरा हाथ पकड कर हिला रहे थी * आज क्या सोती रहोगी? सुबह के 7 बज गये? नाश्ता पानी मिलेगा कि नही? वाह रे किस्मत! क्या बदला? एक दिन सपना भी नही लेने दिया। खैर अब भी आशा की किरण बची है--टिकेट तो हम ही लेंगे। बस दुख इस बात का है कि तब आप लोगों से दूर जाना पडेगा । या फिर राज निती मे रह कर अमर सिन्ह की तरह कुछ लिख पाऊँ। मगर एक बात की आप सब से उमीद करती हूँ मेरे ईलेक्शन कम्पेन मे बढ चढ कर हिस्सा लें। धन्यवाद {अग्रिम}। जय नारी जय भारत ।
49 comments:
ज़रूर आप जीतेंगी...हम सब भी चाहते है की ब्लॉगवुड से भी कोई देश का प्रतिधिनीत्व करें...और माता जी आप को सब जिताएँगे..सादर प्रणाम...बढ़िया व्यंग...बधाई
जय मातादी !
मजेदार! व्यंग्य कम और हास्य अधिक।
बधाई! नए टेम्प्लेट में ब्लाग चमक रहा है।
पढते पढते हम तो डर ही गये थे. वो तो आपने फ़िर याद दिलाया कि सपना ही था.:) वैसे आप चुनाव लडिये हम वोट भी देंगे और कैंपेन भी संभालेंगे.
रामराम.
"रात को खूब लज़ीज़ खाना बनाया और पति को खिलाया। आखिर मुर्गा हलाल करने के पहले पेट भर खिलाना तो चाहिये ही।"
अच्छी बात है कि आपने ध्यान रखा, आजकल ऐसी बातों को कौन याद रखता है।
निर्मला जी डरिए मत कि ब्लाग छूट जाएगा। ब्लाग पर लिखने का काम भी पतिदेव ही करेंगे। आजकल के पति समझदार होते जा रहे हैं। आप कहेंगी तो मैं ऐसे एकाध पतियों में आपको मिला भी दूंगी। चिन्ता न करे। बस आप तो खड़े रहिए।
nice
aap to bas chunaav ladiye aur blogger jati ka naam roshan kijiye..........sare blogger aapke sath hain.........kam se kam koi blogger bhi to rajniti mein hona chahiye aur wo bhi mahila blogger..........aakhir sabke samman ka prashna hai..........hahahahaha.
हहाहाहाहाहाह , क्या बात है मम्मी लाजवाब व्यंग्य लिखा है आपने , कोई बात नहीं मैं अपने मम्मी के साथ रहूंगा । विधेयक पास होने की खूशी मे हमें भी पकवान खिलाईये अपने हाथों से ।
बहुत बढ़िया मज़ा आया कई बार मुस्कराए कई बार हँसॆ और ठहाके भी लगे........."
amitraghat.blogspot.com
mazaa aagaya.........
aapka sapana sakar ho ye duaa nahee dungee karan blog se chootne kee dhamakee bhee de dee hai na aapne.............
fir post karane ke liye samay nahee rahega........
ब्लॉग की साज सज्जा अच्छी लगी .. पर रंग संयोजन ठीक नहीं .. मैं कई दिनों से टेक्स्ट को नहीं पढ पा रही हूं !!
आप ही जीतेंगी ... ब्लॉग वाले सब आ कर आपके क्षेत्र में काम करेंगे ... आप तो बस अपना चुनाव चिन्ह बनवाने की तायारी करें ..... बहुत अच्छा हास्य व्यंग है ....
वाह वाह बहुत खूब! लाजवाब और मज़ेदार लगा!
बहुत ही सुन्दर लेखन, ब्लाग अच्छा लग रहा है बधाई ।
वाह वाह वाह!!!!!!!!!!!!!!बस मज़ा आ गया. मैं अपनी नौकरी पक्की समझूं.मैं तो स्लोगन लिखूंगी और ओन लाइन कन्वेसिंग करूँगीं तय हो गयी है ये बात.टिकट मिलते ही भूल मत जाईयेगा.लेख की ही तरह ब्लॉग भी खुबसूरत लग रहा है
हहाहाहाहाहाह , क्या बात है मम्मी लाजवाब व्यंग्य लिखा है आपने , कोई बात नहीं मैं अपने मम्मी के साथ रहूंगा । विधेयक पास होने की खूशी मे हमें भी पकवान खिलाईये अपने हाथों से ।
वाह वाह बहुत खूब बधाई जी बधाई खूब लिखा है आपने निर्मला जी इस हास्य व्यंग को :)
वाह....बहुत बढ़िया....बुढ़ापे में नयी जवानी आ जायेगी....बस चुनाव में शामिल हो जाइये...जीत तो निश्चित है...:):)
सपना ही सही...कभी तो हकीकत बनेगा...
अच्छे हास्य के लिए बधाई
बहुत सटीक व्यंग्य है!
टेम्प्लेट भी सुन्दर लगाया है!
बढ़िया है, लेकिन नया टेम्पलेट बहुत धीमे खुल रहा है.
अरे वाह मजे दार, शुक्र सपना ही था....
अरे वाह निर्मला जी ! आज तो दिल खुश हो गया...बहुत कम पढने को मिलता है इतना अच्छा हास्य व्यंग...अरे आप जरुर लड़िये चुनाव जी जीत निश्चित है ..हम सब आपके साथ हैं :)
कितना सुन्दर लिखा है,निर्मला दी...एकदम तस्वीर खींच दी आँखों के सामने...इतना अच्छा हास्य व्यंग..मजा आ गया,पढ़ कर
और हाँ...अपना पी.ए.. मुझे रख लीजिये प्लीज़...आवेदन पत्र मेल कर दूँ??:)
jजिस जिस ने भी कमेन्ट दिया है उन सब की नौकरी पक्की समझो। हा हा हा धन्यवाद सब का। बस ममता दी का ध्यान रखें।
अरे निर्मला जी , देखिये कोई पोस्ट हमारे लिए भी बची है की नहीं।
सच मानिये हमने तो आपके लिए कैम्पेनिंग भी शुरू कर दी है।
बढ़िया रहा यह ख्वाब।
सुबह के सपने सच होते हैं निर्मला जी । महिला दिवस की और महिला बिल पास होने की बधाई ।
यह सपना नहीं है, यह सच होगा । घर से सच्चाई प्रारम्भ कीजिये ।
ha ha ha bahut satik baat bahut hi mazedaar andaaz me kahi aapane.
Chaliye hamara vote to pakka hi samjhiyega aap aur sahiyog bhi :)
बेहतरीन। लाजवाब। बहुत अच्छा लगा।
मेरी प्रार्थना पत्र पीए के लिए कतार में
जय हो ..... :)
अर्श
हमने तो आपकी जीत सुनिश्चित करने के लिए नवग्रह शान्ती पाठ आरम्भ कर दिया है....खैर दक्षिणा की चिन्ता न करें...वो हम बाद में वसूल कर लेंगें :-)
मजेदार व्यंग्य.
आपका सपना आप पर न सही नई पीढ़ी के साथ सच हो ..राष्ट्र की किस्मत चमके..इन्हीं शुभकामनाओं के साथ जीत की बधाई.
Maaaaaaaaaaasssi charan saparsh..
aise vyangya par balihari jaun...
aur haan mujhe pata hi nahin chala kab Samvaad samman mila 'kahani' par..
sach me ye samman sammanit kar diya aapne..
sare blogwood ko aap par garv hai..
Jai Hind...
gud satire...
congrats....
मुझे भी अपने साथ समझिये जो वोट न दे उसका कार्टून बना दूंगा :)
ha ha ha
mazaa aa gaya padh ke.
:) :) :) achchha laga....
aapko pranaam....
aapke vicharo se shayad is kshetr ko bhi kuchh fayda mile yahi umeed karte huye is naye kadam ke liye badhai deti hoon aapko .
जमीँ पर पाँव रखती हूँ ,नज़र पर आसमा उपर
नही रोके रुकूँगी अब कि ठोकर पर जमाना है
.....bahut khoob, badhaai !!!!
बस इतनी ही इल्तिजा है सांसद बने पर अपने इन बिचारे टिप्पणीकारों को पहचान जरूर जाईयेगा -लड़ किस क्षेत्र से रही हैं ?
िअरविन्द जी इन सब को तो साथ रखना ही पडेगा तभी तो मेरी भी पहचान रहेगीआऔर ब्लागर पार्टी से चुनाव लड रही हूँ हलके का नाम है मेरी रूह का शहर वीर बहुटी। आपको सलाहकार रखूँगी। निश्चिन्त रहें\ सब का सप्पोर्ट देने के लिये धन्यवाद। ब्लागवुड पार्ती जिन्दाबाद।
वाह.....शानदार जानदार लाजवाब व्यंग्य....आनंद आ गया पढ़कर....
nirmala anti ji..
kya likh dala ye...hans hans k lot-pot hui jati hu...
anti...kam se kam sapne me hi sahi vo plate pakad k ek baar khana to kha hi lena tha na....kya???had he vaha bhi aa pahuche pati maharaz...khalal dalne..
next story bhi padh rahi hu.
badhayi.
मुझे नहीं लगता कि आप कि यह इच्छा पूरी होगे इसलिये कि जब तक 70-80 साल के युवा वहाँ जगह खाली नहीं करेंगे कुछ नहीं होना है । खैर फिर भी हमारी शुभकामनाये हैं । और फिर सोचना ही तो है सोचने मे क्या जाता है । बढ़िया व्यंग्य रचना ।
हे माताश्री...
औरत को कब किसी ने नकारा है
मैंने तो हमेशा ही, कभी माँ, कभी बहन, कभी बुआ, कभी दादी, कभी नानी, तो कभी गुरू कह पुकारा है। वो रोया उम्र भर, जिसने औरत को धिधकारा है।
mazedar rachna.
बहुत मजेदार लिखा है. वैसे बढ़िया नेता बनेंगी आप.
घुघूती बासूती
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