इस गज़ल को भी प्राण भाई साहिब ने संवारा है।उनके आशीर्वाद के लिये धन्यवादी हूँ। इसे होली के दिन पोस्ट नही कर सकी। सोचा होली का महौल कुछ दिन और चलता रहे तो अच्छा है।
गज़ल
आज होली के बहाने से बुलाया था मुझे
गाल छू मेरा गुलाबी सा बनाया था मुझे
भाभियाँ क्या सालियाँ सब ढूँढती इनको फिरें
रंग मेरे साजना ने पर लगाया था मुझे
खूब खेले रंग होली के हमारे सामने
देख सखियाँ शोख मेरी फिर भुलाया था मुझे
काश होली पे न जाते उस गली हम शान से
उस फरेबी ने वहाँ जोकर बनाया था मुझे
उड रहे थे लाल पीले रंग चारों ओर ही
दिन ये खुशियों से भरा उसने दिखाया था मुझे
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे
गाल छू मेरा गुलाबी सा बनाया था मुझे
भाभियाँ क्या सालियाँ सब ढूँढती इनको फिरें
रंग मेरे साजना ने पर लगाया था मुझे
खूब खेले रंग होली के हमारे सामने
देख सखियाँ शोख मेरी फिर भुलाया था मुझे
काश होली पे न जाते उस गली हम शान से
उस फरेबी ने वहाँ जोकर बनाया था मुझे
उड रहे थे लाल पीले रंग चारों ओर ही
दिन ये खुशियों से भरा उसने दिखाया था मुझे
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे
46 comments:
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे
बुतों की बुतपरस्ती देखिये
मिटा दी मेरी हस्ती देखिये
बहुत सुन्दर रचना।
रंगपंचमी तक तो होली का माहौल चलेगा ही और यह रंग मे डूबी गज़ल भी ।
बहुत बढियां होली गजल
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है. वाह !
वाह लाजवाब होली गजल. बहुत शुभकामनाएं.
होली रंगपंचमी तक तो आफ़िशियल चलती ही है. और बाद मे भी किसने रोका है?
रामराम.
जब तक मन रमा रहे फाग-रंग में होली है !
रचना सुन्दर है । आभार ।
are nirmala jee bahut badiya gazal hai mazaa aagaya..
are dua hai aapkee har holi aisee yadgar nikle aur hame bhee sunder sunder gazal padane ko mile.......
चाहते थे रंग में अपने रंगना उसे ...नजरों के फेर ने बुत बना दिया ...
क्या बात है ....बहुत बढ़िया ...
आपको भी बीत चुकी होली की बहुत शुभकामनायें ..देर से ही सही ...:)
निर्मला जी, क्या बात है? होली का रंग चढा है अभी तक? हमारे त्योहार होते ही ऐसे हैं कि हर उम्र में सरोबार कर जाते हैं।
Achchhi lagi Maasi.. par agar main galat nahin to ise nazm nahin kahenge kya??? saare sher ek hi sandarbh me hain.. kripya, marg darshan karen..
aur aapke samman(Ru-ba-ru) ke bare me jaan kar man khush ho gaya.. :)
bahut he badhiyaa aunty ji...
बहुत बढियां गजल !
जी बहुत सुंदर.
Holi ke rang aur rumamiyat se bharpoor !!
आपकी ये होली तो बहुत खूब रही....सुन्दर ग़ज़ल..
हर पंक्ति अपने आप में बहुत कुछ कहती हुई, बेहतरीन प्रस्तुति, होली की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
होली तो हो ली...लेकिन इस रंग भरी फुहार ने एक बार फिर तन-मन भिजो दिया...
जय हिंद...
हां मजा आ गया गजन पढ़कर
धन्यवाद
http://chokhat.blogspot.com/
"गज़ल बहुत ज़्यादा पसन्द नहीं आती क्योंकि इसमे कोमल भावनाएँ होती हैं और वैसे ही शब्द । मुझे सख्त शब्द बेहद अच्छे लगते हैं इसीलिये इस गज़ल में भी जोकर" शब्द ज़्यादा पसन्द आया बाकि गज़ल तो खैर अच्छी थी ही........"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
बहुत बढ़िया लगी यह गजल ..
अच्छी प्रस्तुती. ऊपर से तो सभी रंगते हैं पर आपकी ग़ज़ल ने तो अन्दर से भी रंग दिया प्यार के रंग में .
bhetreen rachna ....
कोमल एहसास ... कुछ मधुर हास्य, कुछ मनुहार, कुछ खुशियों का इज़हार .... बहुत कुछ है इस प्यारी सी ग़ज़ल में ....
बहुत बढ़िया लगी यह गजल ..
बहुत बढियां गजल!!! chahe aap kahani likhe ya kavita dono vidha me behtareen rachanaye hoti hai..mata ji prnaam...
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे .
...........बहुत बढियां
रंगों के त्यौहार पर ये रंगीन गज़ल, निर्मला जी मजा आ गया ।
बहुत उम्दा गज़ल...और फिर प्राण भाई साहब की नज़र से गुजरी गज़लोम के तो क्या कहने!!
कोमल एहसास .
...बेहतरीन गजल,बधाई !!!
waah .........bahut hi shandar gazal.......holi ke rangon mein bheegi huyi.
मजेदार और मनोरंजक भी ।
कहीं इसी को तो हज़ल नहीं कहते निर्मला जी।
होलीमय गजल शानदार है
वाह वाह क्या बात है! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
मम्मा... बहुत सुंदर ग़ज़ल....
वाह्! होली के रंगों से सजी बहुत ही बढिया गजल....आखिर की दो पंक्तियाँ तो कमाल की लगी।
आभार्!
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे..
बेहद खूबसूरत.
अरे वाह क्या बात मम्मी , आज तो कुछ अलग ही अन्दाज दिखा , बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ।
उड रहे थे लाल पीले रंग चारों ओर ही
दिन ये खुशियों से भरा उसने दिखाया था मुझे
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे
Nishabd kar diya aapne!
और ब्लोगर का कमेन्ट हो रहा है मेरा नहीं ......:(
वाह जी जब कमेन्ट करना चाहा तब नहीं हुआ अपना दुखडा गाया तो पब्लिश हो गया :)
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे
होली की खुमारी अभी ठीक से नहीं उतारी है और आपकी गजल ने नशा और बढ़ा दिया
बहुत ख़ूबसूरत गजल
Waah! wakai Gazal behad khubsurat hai ..aur ye baat to ek dum sahi hai ki Rangpanchami tak to abhi holi ki dhoom hai hi......Dhanywaad!!
होली और रंगपंचमी की अशेष शुभकामनाओं के साथ इस बेहतरीन होली गज़ल के लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करें ! आपकी रचना ने तन मन को प्रफुल्लता के रंग से सराबोर कर दिया !
चाहते थे रंगना हम रंग मे अपने उसे
फेंक कर तीरे नज़र पर बुत बनाया था मुझे
bahut sundar rachna ,happy holi
चाहते थे रंगना हम रंग में अपने उसे,
फेंक कर तीरे नजर पर बुत बनाया था मुझे
।
अद्भुत। माँ निर्मल ने शब्दों की रूह डाली, और प्राण जी ने श्रंगार किया होगा है। शब्दों की दुल्हन खूब तैयार हुई है।
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