गज़ल
इस गज़ल को भीादरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है। उनकी अति धन्यवादी हूँ।
गज़ल
हमारे नसीबां अगर साथ होते
बुरे वक़्त के यूँ न आघात होते.
गया वक़्त भी अपना होता सुहाना
सुहाने हमारे भी दिन रात होते
जलाते न हम आशियाँ अपने हाथों
सफ़र जिंदगानी के सौगात होते
कभी वो जरा देखते हमको मुड़कर
न बर्बाद होने के हालात होते
गरूर-ए-जबां यूँ न बेकाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते
चली आंधियां,फासले बढ़ गये हैं
मेरे मौला ऐसे न हालात होते
तमन्ना अभी तक वो जिंदा है मुझमें
मुझे थामते हाथ में हाथ होते
बुरे वक़्त के यूँ न आघात होते.
गया वक़्त भी अपना होता सुहाना
सुहाने हमारे भी दिन रात होते
जलाते न हम आशियाँ अपने हाथों
सफ़र जिंदगानी के सौगात होते
कभी वो जरा देखते हमको मुड़कर
न बर्बाद होने के हालात होते
गरूर-ए-जबां यूँ न बेकाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते
चली आंधियां,फासले बढ़ गये हैं
मेरे मौला ऐसे न हालात होते
तमन्ना अभी तक वो जिंदा है मुझमें
मुझे थामते हाथ में हाथ होते
47 comments:
पूरी गजल बहुत उम्दा है.
आपको हमसे बिछड़े हुए,
एक ज़माना बीत गया,
अपना मुकद्दर बिगड़े हुए,
एक ज़माना बीत गया,
इस वीराने को उजड़े हुए,
एक ज़माना बीत गया...
जय हिंद...
nice
अद्भुत गजल,
अर्ज है
अगर मगर में कट गई जिन्दगी
मगर अगर का खेल समझ न आया
वाह...!
निर्मला बहिन जी!
बढ़िया रचना लिखी है!
छन्द में बँधी कविता का तो मजाही अलग है।
आखिर आ ही गयीं ना हमारे रंग में।
ये बिना बात के ही झगड़े हैं जो ऐसे हालात बना देते हैं.....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
माँ जी चरण स्पर्श
बेहद उम्दा गजल ।
ग़ज़ल बहुत सुंदर है, मन के संघर्ष को उड़ेल दिया है आप ने। बस पांचवे शेर के पहले मिसरे में बेकाबू का वजन अखर रहा है।
ग़ज़ल बहुत सुंदर है,
आपको और प्राण जी को इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बंधाई
एक बेहतरीन गज़ल, बधाई.
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
regarsd
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
regarsd
bahut hi sundar gazal........badhayi.
sundar gazal
Bahut khoob.
बहुत बेहरतीन शेर हैं ग़ज़ल में ....... हक़ीकत बयान करते हुवे ........
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल... MOM....
वाह्! गजल वाकई बहुत बढिया लगी.....
लाजवाब्!!
bahut sunder bhavo walee gazal ! Badhai
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह गजल.
धन्यवाद
बहुत सुन्दर ग़ज़ल निर्मला जी, बधाई।
बहुत बढिया.वन्स मोर कह कर खुद ही दोबार पढ़ ली.
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखा है आपने!
बेहतरीन ग़ज़ल...गुरुदेव प्राण साहब के छू लेने से ग़ज़ल कुंदन सी दमक रही है...दाद कबूल करें...
नीरज
ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।
bahut achhi gjal sachhai se roobru krvati umda rachna .
dhnywad
Behtareen.
GAZAL TO BEHATAREEN HAI NIRMALA JI, BADHAAI.
प्रशंसनीय और वन्दनीय.
तमन्ना अभी तक वो जिन्दा है मुझमें
मुझे थमाते हाथ में हाथ होते.
बहुत बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है
हर शेर अपनी कहानी खुद बयान कर रहा है
और ये....
नसीबाँ का खूब इस्तेमाल किया है
आजकल इस तरह का प्रचलन
लगभग ख़त्म हो चुका है
आपने बहुत समझदारी से
'नसीबाँ' और ' आघात' को मिलाया है
"गुरूर-ए-ज़बां यूं न बेक़ाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते "
ये शेर कहना भी मायने रखता है ...मुबारकबाद
saari ग़ज़ल
बार-बार पढनेकोमनकरताहै . . .
bahut he badhiya hai aunty ji..
likhte rahiye...
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
गुरुर-ए-जबां...यह शे'र बेहद खूबसूरती से कही गयी है , वेसे ग़ज़ल तो सुबह ही पढ़ सुखा था मगर शाम तक इंतज़ार करता रहा ताकि कुछ कह पाऊं ... हर शे'र कामयाब हैं... अछि ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करें...
अर्श
last ka sher sari baato ki ek baat ;man ki baat; keh gaya...khoobsurat lafzo me dhali ye man ki baate bahut khoobsurat gazel ka roop dikha rahi hai.bahut khoob.
आदरणीय निर्मला जी,
बहुत बहुत बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने और प्राण साहब का आभार इसमें शिरकत करने के लिए।
गरूर-ए-जबां कहने में कुछ जैण्डर का ऐब समझ में आ रहा है आप एक बार फिर कभी देखिएगा।
प्रणाम।
एक अच्छी ग़ज़ल बधाई.
तमन्ना अब तक जिंदा है,
ये एहसास भी ज़िंदा है........
सार्थक पहल के रूप में ये ग़ज़ल
गुनगुनाने को बाध्य करता है...........
beutifully written expressions
उम्दा रचना ,बधाई
तुम हमारे साथ होते, हम तुम्हारे साथ होते!
मुस्कुराते तब हमारे साथ ये दिन-रात होते!
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
बहुत ही सुन्दर जज्बात, बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
कब कोई जहां में छुटता है गम से !
दिल आखिरकार टूटता है गमसे !
सदमात से खुलती हैं "बसर" की आंखें !
फोड़ा गफलत का फूटता है गम से !!
sundar abhiwyakti!!!
निर्मला जी
"गुरूर-ए-ज़बां यूं न बेक़ाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते "
कुछ पुराने शब्दों को नयी जान दे दी आपने....!
अच्छी ग़ज़ल...इस्लाह के लिए प्राण साहब को भी बधाई.
WAAH !!!! BAHUT HI SUNDAR !!! SABHI SHER DIL KO CHOO LENE WAALE HAIN...
माता जी थोड़ी देर से पहुँच पाया इस सुंदर ग़ज़ल तक क्षमा करें.. ग़ज़ल में निहित भाव ही ग़ज़ल की सबसे बड़ी खूबसूरती होती है मैं तो इतना ज्ञानी नही ग़ज़ल के बारे में.... पर जो भाव आपने पिरोए है मुझे बहुत अच्छे लगे..गुनगुनाता हुआ मन आपको इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद कहता है..सादर प्रणाम
आपकी इस गजल ने सचमुच दिल को छू लिया। बहुत बहुत बधाई।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
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