09 January, 2010

गज़ल 
इस गज़ल को भीादरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है। उनकी अति धन्यवादी हूँ।
गज़ल
हमारे नसीबां अगर साथ होते
बुरे वक़्त के यूँ न आघात होते.

गया वक़्त भी अपना होता सुहाना
सुहाने हमारे भी दिन रात  होते

जलाते न हम आशियाँ अपने हाथों
सफ़र जिंदगानी के सौगात होते

कभी वो जरा देखते हमको मुड़कर
न बर्बाद होने के हालात  होते

गरूर-ए-जबां यूँ न बेकाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते

चली आंधियां,फासले बढ़ गये हैं
मेरे मौला  ऐसे न  हालात होते

तमन्ना अभी तक वो जिंदा है मुझमें
मुझे  थामते  हाथ में हाथ  होते

47 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

पूरी गजल बहुत उम्दा है.

Khushdeep Sehgal said...

आपको हमसे बिछड़े हुए,
एक ज़माना बीत गया,
अपना मुकद्दर बिगड़े हुए,
एक ज़माना बीत गया,
इस वीराने को उजड़े हुए,
एक ज़माना बीत गया...

जय हिंद...

Randhir Singh Suman said...

nice

Kulwant Happy said...

अद्भुत गजल,

अर्ज है
अगर मगर में कट गई जिन्दगी
मगर अगर का खेल समझ न आया

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह...!
निर्मला बहिन जी!
बढ़िया रचना लिखी है!
छन्द में बँधी कविता का तो मजाही अलग है।
आखिर आ ही गयीं ना हमारे रंग में।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ये बिना बात के ही झगड़े हैं जो ऐसे हालात बना देते हैं.....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...

Mithilesh dubey said...

माँ जी चरण स्पर्श

बेहद उम्दा गजल ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

ग़ज़ल बहुत सुंदर है, मन के संघर्ष को उड़ेल दिया है आप ने। बस पांचवे शेर के पहले मिसरे में बेकाबू का वजन अखर रहा है।

निर्झर'नीर said...

ग़ज़ल बहुत सुंदर है,
आपको और प्राण जी को इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बंधाई

Udan Tashtari said...

एक बेहतरीन गज़ल, बधाई.

seema gupta said...

बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
regarsd

seema gupta said...

बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
regarsd

vandana gupta said...

bahut hi sundar gazal........badhayi.

Razi Shahab said...

sundar gazal

अमिताभ मीत said...

Bahut khoob.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत बेहरतीन शेर हैं ग़ज़ल में ....... हक़ीकत बयान करते हुवे ........

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल... MOM....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! गजल वाकई बहुत बढिया लगी.....
लाजवाब्!!

Apanatva said...

bahut sunder bhavo walee gazal ! Badhai

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह गजल.
धन्यवाद

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल निर्मला जी, बधाई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत बढिया.वन्स मोर कह कर खुद ही दोबार पढ़ ली.

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखा है आपने!

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन ग़ज़ल...गुरुदेव प्राण साहब के छू लेने से ग़ज़ल कुंदन सी दमक रही है...दाद कबूल करें...
नीरज

मनोज कुमार said...

ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।

शोभना चौरे said...

bahut achhi gjal sachhai se roobru krvati umda rachna .
dhnywad

अमिताभ मीत said...

Behtareen.

Yogesh Verma Swapn said...

GAZAL TO BEHATAREEN HAI NIRMALA JI, BADHAAI.

Anonymous said...

प्रशंसनीय और वन्दनीय.
तमन्ना अभी तक वो जिन्दा है मुझमें
मुझे थमाते हाथ में हाथ होते.

daanish said...

बहुत बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है
हर शेर अपनी कहानी खुद बयान कर रहा है
और ये....
नसीबाँ का खूब इस्तेमाल किया है
आजकल इस तरह का प्रचलन
लगभग ख़त्म हो चुका है
आपने बहुत समझदारी से
'नसीबाँ' और ' आघात' को मिलाया है

"गुरूर-ए-ज़बां यूं न बेक़ाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते "
ये शेर कहना भी मायने रखता है ...मुबारकबाद

saari ग़ज़ल
बार-बार पढनेकोमनकरताहै . . .

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut he badhiya hai aunty ji..

likhte rahiye...

हर्षिता said...

बेहद खुबसूरत ग़ज़ल

"अर्श" said...

गुरुर-ए-जबां...यह शे'र बेहद खूबसूरती से कही गयी है , वेसे ग़ज़ल तो सुबह ही पढ़ सुखा था मगर शाम तक इंतज़ार करता रहा ताकि कुछ कह पाऊं ... हर शे'र कामयाब हैं... अछि ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करें...

अर्श

अनामिका की सदायें ...... said...

last ka sher sari baato ki ek baat ;man ki baat; keh gaya...khoobsurat lafzo me dhali ye man ki baate bahut khoobsurat gazel ka roop dikha rahi hai.bahut khoob.

बवाल said...

आदरणीय निर्मला जी,
बहुत बहुत बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने और प्राण साहब का आभार इसमें शिरकत करने के लिए।
गरूर-ए-जबां कहने में कुछ जैण्डर का ऐब समझ में आ रहा है आप एक बार फिर कभी देखिएगा।
प्रणाम।

Dr. Sudha Om Dhingra said...

एक अच्छी ग़ज़ल बधाई.

रश्मि प्रभा... said...

तमन्ना अब तक जिंदा है,
ये एहसास भी ज़िंदा है........
सार्थक पहल के रूप में ये ग़ज़ल
गुनगुनाने को बाध्य करता है...........

Anonymous said...

beutifully written expressions

अजय कुमार said...

उम्दा रचना ,बधाई

रावेंद्रकुमार रवि said...

तुम हमारे साथ होते, हम तुम्हारे साथ होते!
मुस्कुराते तब हमारे साथ ये दिन-रात होते!

ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर जज्‍बात, बहुत ही बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Murari Pareek said...

कब कोई जहां में छुटता है गम से !
दिल आखिरकार टूटता है गमसे !
सदमात से खुलती हैं "बसर" की आंखें !
फोड़ा गफलत का फूटता है गम से !!
sundar abhiwyakti!!!

Pawan Kumar said...

निर्मला जी

"गुरूर-ए-ज़बां यूं न बेक़ाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते "

कुछ पुराने शब्दों को नयी जान दे दी आपने....!
अच्छी ग़ज़ल...इस्लाह के लिए प्राण साहब को भी बधाई.

रंजना said...

WAAH !!!! BAHUT HI SUNDAR !!! SABHI SHER DIL KO CHOO LENE WAALE HAIN...

विनोद कुमार पांडेय said...

माता जी थोड़ी देर से पहुँच पाया इस सुंदर ग़ज़ल तक क्षमा करें.. ग़ज़ल में निहित भाव ही ग़ज़ल की सबसे बड़ी खूबसूरती होती है मैं तो इतना ज्ञानी नही ग़ज़ल के बारे में.... पर जो भाव आपने पिरोए है मुझे बहुत अच्छे लगे..गुनगुनाता हुआ मन आपको इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद कहता है..सादर प्रणाम

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपकी इस गजल ने सचमुच दिल को छू लिया। बहुत बहुत बधाई।
--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।

संजय भास्‍कर said...

बेहद खुबसूरत ग़ज़ल

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