14 December, 2009

  गज़ल
अपना इतिहास पुराना भूल गये
लोग विरासत का खज़ाना भूल गये
रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
लोग बसंतों का जमाना भूल गये
दौलत की अँधी दौड मे उलझे वो
मानवता को ही निभाना भूल गये
भूल गये  आज़ादी की वो गरिमा
कर्ज़ शहीदों का चुकाना भूल गये
वो बन बैठे ठेकेदार जु धर्म के
वो अपना धर्म निभाना भूल गये
बीवी  के आँचल मे ऐसे उलझे
माँ का ही ठौर ठिकाना भूल गये
परयावरण बचाओ,  देते भाषण
पर खुद वो पेड लगाना भूल गये
भूल गये सब प्यार मुहब्बत की बात्
अब वो हसना हंसाना भूल गये


37 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen. nirmala ji, badhaai sweekaren.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यथार्थवादी रचना के लिए शुभकामनाएँ!

वाणी गीत said...

पर्यावरण पर भाषण देते पेड़ लगाना भूल गये ..
बीबी के आँचल मे मा को भूल गये ...

क्या क्या भूल गये ...!!

Unknown said...

"भूल गये सब प्यार मुहब्बत की बात
अब वो हँसना हँसाना भूल गये"


बहुत खूब!

Abhishek said...

बहुत सुन्दर !

सदा said...

पर खुद वो पेड़ लगाना भूल गये, बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति, सत्‍यता के बेहद निकट,आभार ।

Mithilesh dubey said...

बेहद उम्दा गजल लगी ,। बधाई

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

mom ..... बहुत सुंदर लगी यह ग़ज़ल.....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

भूल गये आज़ादी की वो गरिमा
कर्ज़ शहीदों का चुकाना भूल गये

बहुत अच्छी और सच्ची ग़ज़ल

Bhawna Kukreti said...

sab kuchh samet liya ....bahut sundar!!

अजय कुमार said...

बदलते दौर का एहसास

Unknown said...

waah !

bahut hi umdaa gazal.........

रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
लोग बसंतों का जमाना भूल गये

kyaa baat hai !

दिगम्बर नासवा said...

यथार्थवादी शेरों के साथ आपकी ग़ज़ल बहुत ही लाजवाब बन पड़ी है ......... उम्दा लिखा ........

संगीता पुरी said...

यथार्थ कां चित्रित कर दिया आपने !!

Kulwant Happy said...

आपकी विचार भरपूर रचना बहुत अच्छी लगी।

भूल गए आजादी वो गरिमा,
कर्ज शहीदों का चुकाना भूल गए

इसकी जगह अगर आपको अच्छा लगे तो

आजादी के नशे में हुए धुत्त ऐसे
कर्ज शहीदों का चुकाना भूल गए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज की परिस्थिति पर लिखी सटीक रचना...बधाई

rashmi ravija said...

बेहतरीन ग़ज़ल है,बिलकुल यथार्थपरक ...सबकी आँखें खोलती हुई

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उम्दा रचना.

vandana gupta said...

bahut hi sundar aur yatharthparak gazal.

ताऊ रामपुरिया said...

वाह बहुत लाजवाब.

रामराम.

डॉ टी एस दराल said...

अच्छी फटकार लगाई है , निर्मला जी।
सामयिक और सार्थक।

रंजू भाटिया said...

बेहद खूबसुरत गजल लिखी है आपने

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल है। याद दिलाती है उन लक्ष्यों की जिन्हें हमने खुद आजादी के आंदोलन के दौरान तय किया था। लेकिन आजादी को केवल कुछ लोगों ने अपना बना कर बाकी सब को धता बता दी।

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत बढ़िया रचना ...आभार

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छे खयाल

Smart Indian said...

कुर्सी से चिपके इस तरह, कहीं आना-जाना भूल गए.

बहुत सुन्दर!

mehek said...

satya ke bahut kareeb,hum kitne ehsaan bhul gayi,sunder rachana.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

"भूल गये आज़ादी की वो गरिमा
कर्ज़ शहीदों का चुकाना भूल गये"

वाह! लाजवाब गजल्!
जिसका हर शेर वास्तविकता को चित्रित कर रहा है....
आभार्!

Pratik Maheshwari said...

इस भुलक्कड़ स्वभाव के कारण ही हम कई भूल कर रहे हैं... अफ़सोस..
पर बहुत ही सुन्दर कृति..

आभार..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut bahut badhiya rachna...

जोगी said...

bahut si cheejein yaad aa jayengi ji..bahut hi achhi rachna :)

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Sadhana Vaid said...

अति सुन्दर ! अपनी भूलों का अहसास कराने के लिये आपका जितना आभार माना जाये कम होगा । आपने अपना दायित्व बखूबी निभाया है । आपका कोटिश: धन्यवाद !

kshama said...

Sahi kaha...log rishton kee patjhad me basant bhool jate hain....harek pankti marmik hai!

दर्पण साह said...

Khoob gaye pardesh ki apne deewar-o-dar bhool gaye,
Sheesh mahal ne aisa ghera,
Mitti ke ghar blhol gaye.

विनोद कुमार पांडेय said...

पता नही कैसे एस बेहतरीन रचना तक इतना देर से पहुँच पाया..बहुत बढ़िया रचना..बधाई

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