प्यार रिश्तों का मोहताज़ नहीं होता। अन्तर्ज़ाल जैसी आभासी दुनिया मे भी रिश्ते कैसे फलते फूलते हैं ये महसूस कर अभिभूत हूँ।24 दि. रात 9 बजे अचानक फोन आया *मासी जी मैं दीपक बोल रहा हूँ, मै कल सुबह सात बजे आपसे मिलने आ रहा हूँ।* सुन कर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दीपक और कोई नहीं आपका दीपक मशाल है जिसे आप रोज़ ब्लाग पर पढते हैं। बाकी जानकारी फिर से अलग पोस्ट मे दूँगी। अभी एक गज़ल पढिये------
गज़ल
बेवज़ह बातों ही बातों में सुनाना क्या सही है
भूला-बिसरा याद अफसाना दिलाना क्या सही है
कुछ न कुछ तो काम लें संजींदगी से हम ए जानम
पल ही पल में रूठ जाना और मनाना क्या सही है
मुस्करा ऐसे कि जैसे मुस्कराती हैं बहारें
चार दिन की ज़िन्दगी घुट कर बिताना क्या सही है
ख्वाब में आकर मुझे आवाज़ कोई दे रहा है
बेरुखी दिखला के उसका दिल दुखाना क्या सही है
तुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोचें दिल दुखाना क्या सही है
अब बड़े अनजान बनते हो हमारी ज़िन्दगी से
फूल जैसी ज़िन्दगी को यूँ सताना क्या सही है
ज़िन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ अब
सोचती हूँ ,तुम बिना महफ़िल सजाना क्या सही है
गज़ल
बेवज़ह बातों ही बातों में सुनाना क्या सही है
भूला-बिसरा याद अफसाना दिलाना क्या सही है
कुछ न कुछ तो काम लें संजींदगी से हम ए जानम
पल ही पल में रूठ जाना और मनाना क्या सही है
मुस्करा ऐसे कि जैसे मुस्कराती हैं बहारें
चार दिन की ज़िन्दगी घुट कर बिताना क्या सही है
ख्वाब में आकर मुझे आवाज़ कोई दे रहा है
बेरुखी दिखला के उसका दिल दुखाना क्या सही है
तुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोचें दिल दुखाना क्या सही है
अब बड़े अनजान बनते हो हमारी ज़िन्दगी से
फूल जैसी ज़िन्दगी को यूँ सताना क्या सही है
ज़िन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ अब
सोचती हूँ ,तुम बिना महफ़िल सजाना क्या सही है
53 comments:
निर्मला जी,
आपकी ममता का ख़ज़ाना इतना बड़ा है कि हर कोई इन मोतियों से खुद को धन्य बनाना चाहता है...दीपक के साथ मैं भी आना चाहता था लेकिन साल का आखिर होने की वजह से काम की व्यस्तता ज़्यादा है...इसलिए अभी तो माफ़ी
मांगता हूं लेकिन किसी न किसी दिन आपका आशीर्वाद लेने आऊंगा ज़रूर...हां, कविता हमेशा की तरह गज़ब है....
जय हिंद...
jaan kar prasannta hui.........
dipakji ka swaagat hai.........
sachmuch aapki lekhni me mamatva bharaa hua hai toh aashaa hai aapki vaani aur aapki sangat bhi itni hi vaatsalyapoorna hogi...
main bhi aapke darshan karna chahta hoon ...
aapke liye dheron mangalkaamnaayen
सीख देती आपकी ये गज़ल बहुत भली लगी
लाजवाब, शुक्रिया!
सुन्दर और प्रेरणा देने वाली अभिव्यक्ति!
माँ जी चरण स्पर्श
आपके गजल के तो क्या कहने , लाजवाब । दीपक भाई को मेरा नमस्ते बलियेगा ।
namaste aunty ji...
bahut he badhiya baat kahi hai aapne...
naman aapko...
cheers!
surender!
http://shayarichawla.blogspot.com/
बहुत सुन्दर व प्रेरणा देती हुई गजल है।बधाई।
आपका प्यार भी आपकी तरह निर्मल है तभी सब खींचे चले आते हैं :) रचना बहुत पसंद आई ..
वाह जी बहुत सुंदर.
"मुस्कुरा ऐसे कि जैसे मुस्कुराती हैं बहारें
चार दिन की जिन्दगी घुटकर बिताना क्या सही है"
इस खूबसूरत गजल के लिये धन्यवाद
हां सचमुच प्यार रिश्तों का मोहताज नही होता
बाकी जानकारी वाली पोस्ट का इंतजार रहेगा
प्रणाम स्वीकार करें
bahut sundar abhivyakti.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ने को मिली.
आनंद आया
तुम इन्हें सहला नहीं पाये मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोंचें दिल दुखाना क्या सही है
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है । बहुत सारी शुभकामनायें और अभिनंदन । नया वर्ष आप सभी के लिये मंगलमय हो यही कामना है ।
http://sudhinama.blogspot.com
mom.... यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.....
मैंने भी एक ग़ज़ल लिखी है पहली बार..... देखिएगा...
ग़ज़ल पे आपकी पकड़ अब देखते ही बनती है, मैम!
मुश्किल रदीफ़ को बड़ी सहजता से निभाया है आपने।
वाकई फूल जैसी जिन्दगी को सताना उचित नही है
बहुत सुन्दर भाव और सादगी भरे प्रश्न
सुन्दर गज़ल
बहुत उम्दा खयालात.
बहुत सुन्दर भाव।
अच्छी ग़ज़ल। आभार।
बहुत ही सुंदर गजल, धन्यवाद
Sundar gazal. Mulakat ke details ka intezar rahega.
--------
क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
बहुत ही प्रेरक रचना।
घाव को सहला नहीं पाए हमदर्द साथी तो काम से काम खरोचों तो नहीं ....
बेवजह बातों में सुनना , भुला बिसरा अफसाना याद दिलाना क्या सही है ...
ग़ज़ल का एक एक शेर दिल में उतर रहा है ....!!
निर्मला जी,
रोज रोज इतनी उम्दा ग़ज़ल पढाना क्या सही है :):)
बेहद्द खूबसूरत है सभी के सभी शेर....
मुस्कुरा ऐसे कि जैसे मुस्कुराती हैं बहारें
चार दिन की जिन्दगी घुटकर बिताना क्या सही है"
Maaji! bahut hi sundar gajal. Dil ko chhu gayee...
Haardik Shubhkamnayen.
मुस्कुरा ऐसे कि जैसे मुस्कुराती हैं बहारें
चार दिन की जिन्दगी घुटकर बिताना क्या सही है"
Maaji! bahut hi sundar gajal. Dil ko chhu gayee...
Haardik Shubhkamnayen.
जिसके पास ममता का खजाना होता है वो तो लुटाता है ..... बस खुली झोली से लेने वाला होना चाहिए ........ बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट ....
जहाँ तक ग़ज़ल की बात है ......एक और लाजवाब गुँछा खिला है आपके ब्लॉग पर .......... बहुत खूब लिखा है आपने .........
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
nirmala ji , sabhi sher to badhia hain kiski tareef karun kiski nahin. badhaai.
खूबसूरत रचना..
बहुत ही उम्दा गजल की रचना की है....
लाजवाब्!
आभार्!
... bahut hee prabhaavashaali va prasanshaneey gajal !!!!
हर लाइन में एक सवाल जो जिंदगी के खूबसूरत लम्हों से जुड़े है..इस बार की ग़ज़ल और भी बेहतरीन..होते है जिंदगी में कुछ ऐसे पल जिसे छोड़ कर हम जी ही नही सकते सुंदर भावनाओं को समेटती एक सुंदर ग़ज़ल..बहुत बहुत धन्यवाद निर्मला जी..
बढियां लगे ये उदगार !
बहुत बढ़िया ग़ज़ल ...
मुस्कुरा ऐसे कि जैसे मुस्कुराती हैं बहारें
वाह ! बहुत खूब !
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल .
हिन्दीकुंज
bahut sunder rachana meree sonch se 100 % male khatee rachana . bahut bahut badhai !
आदरणीय निर्मला जी
बहुत ही मार्मिक रचना..........कभी अवसर मिला तो हम भी दर्शन करेंगे आपके.
तुम इन्हें सहला नहीं पाये मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोंचें दिल दुखाना क्या सही है
वाह .....बहुत खूब .....!!
निर्मला जी गज़ब के शे'र हैं सभी .....आने में देर हुई वयस्तता है .....!!
जिन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ अब
सोचती हूँ तुम बिन महफिल सजाना क्या सही है
पूरी कविता की एक एक शब्द कुछ कह रहा है । बहुत ही सुन्दर अपन से बात करने की अभिव्यक्ति है ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ..... सन्देश देती
हुई .
नव वर्ष की शुभकामनाये
मुस्कुरा ऐसे कि जैसे मुस्कराती है बहारें
चार दिन की ज़िंदगी घुटकर बिताना क्या सही है।
बहुत उत्तम विचारों से भरी रचना । आप के पास अनुभूति और अभिव्यक्ति का खजाना है।
:) deepak ke baare me sun achha lagaa ..
arsh
bahut khoobsurat gazel. last k 3 sher bahut bahut acchhe lage.
सीख देती प्रवाहमयी ग़ज़ल है ये.
आपके आशीर्वाद के हैं हम सभी अभिलाषी.
- सुलभ
अच्छी गज़ल
यह शेर बहुत अच्छा लगा-
तुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोंचे दिल दुखाना क्या सही है.
गजल बहुत पसंद आई। आखिरी शेर तो दिल में उतर गया।
तुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोंचे दिल दुखाना क्या सही है.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार ।
मुस्कुरा ऐसे की जेसे मुस्कुराती हैं बहारें ....वाह..बहुत खूब मैडम जी ...बहुत सुंदर लगी आपकी रचना ...मेरी नमश्कार कबूल करें साथ में आपका बहुत बहुत आभार ....आपका आशीर्वाद और प्रोत्साहन .....यूँ ही मिलता रहे ......आप को और आपकी कलम को बार बार नमन
aap ki kalam to har vidha mein kamaal ka likhti hai.
kahaniyan/kavitayen to aap bahut achchee likhti hi hain..yah gazal bhi khoob likhi hai!
aakhiri sher bahut khoob kahaa hai!waah!
bahut sundar hai kavita
deepakji ki mulakat ke smachar ke liye vyakul hai .
abhar
नववर्ष की शुभकामनाएं...!!!
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