23 November, 2009


गज़ल
ज़िन्दगी से मैने कहा कि मैं गज़ल सीखना चाहती हूँ तो उसने कहा कि तुम्हारे पास क्या है जो गज़ल लिखोगी? मैने कहा देखो इस मे काफिया भी है रदीफ भी है तो वो हंसी और बोली अरे! मूर्ख ये बहर मे नहीं है। और मैं इसे गज़ल न बना पाई। तो आप भी इस बेबहरी को ऐसे ही सुन लीजिये। आज पोस्ट करने के लिये और कुछ नहीं है न ।


चाहता हूँ खुद तेरी तकदीर लिख दूँ
खामोश होठौं पर एक तहरीर लिख दूँ

तू मिले या ना मिले कभी ज़ालिम्
दिल पर तेरे अपनी तस्वीर लिख दू

क्या दूँ तुझे इश्क मे इस के सिवा कि
तेरे नाम दिल की जागीर लिख दूँ

आओगी कभी तो कोई दुआ मांगने गर
खुद को इश्क ए फकीर लिख दूँ

मैं जानता हूँ अपनी हस्ती को ------
आ तेरे माथे की लकीर लिख दूँ

29 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

तू मिले या न मिले कभी जालिम
दिल पर तेरी तस्वीर लिख दूं !
क्या बात है , बहुत बढ़िया, दिल की बात निर्मला जी !

Mithilesh dubey said...

माँ जी चरण स्पर्श

क्या बात है माँ जी , हर एक पंक्ति में गजब की समर्पण दिखी ,हर एक पंक्ति ने दिल को छु लिया । और आप है की कहती है कि कुछ और था नहीं लिखने को,आपके नजर में ये कुछ नहीं तो मैं चाहुँगा की ऐसे आप रोज ही लिखें।

दिनेशराय द्विवेदी said...

ग़ज़ल बहर में ही हो सकती है, तभी वह ग़ज़ल होती है। लेकिन बात बहर की मोहताज नहीं है। जब वह एक रूप मे नहीं समाती है तो अपने लिए नए रूप तलाशती है। इसी लिए अनेक काव्य रूप बने हैं और जब तक कविता है तब तक नए नए रूप बनते रहेंगे। बात को कभी रूप का मोहताज नहीं होना चाहिए। आप ने बहुत सुंदर बात कही है इस रचना में।

Unknown said...

मैं जानता हूँ अपनी हस्ती को .....
आ तेरे माथे की लकीर लिख दूँ

सुन्दर!

vandana gupta said...

bahut hi sundarta se dil ke jazbaaton ko bayan kar diya.........ek ajeeb si kasak liye huye hai.........badhayi

प्रकाश गोविंद said...

काफिया...रदीफ़ ....बहर को फिर कभी फुर्सत में देखा जाएगा
अभी इन सबका जिक्र करके
मजा न खराब कीजिये !
मुझे तो बहुत बढ़िया लगी !
एकदम पाकीजगी भरी सच्ची ग़ज़ल ! जो बिना दस्तक दिए दिल में घर कर जाती है !

क्या दूँ तुझे इश्क मे इस के सिवा कि
तेरे नाम दिल की जागीर लिख दूँ

आओगी कभी तो कोई दुआ मांगने
गर खुद को इश्क ए फकीर लिख दूँ

सदा said...

क्या दूँ तुझे इश्क मे इस के सिवा कि
तेरे नाम दिल की जागीर लिख दूँ !



बहुत सुंदर बात कही है !

वाणी गीत said...

रदीफ़ काफिया की समझ तो यूँ भी नहीं हमें ...बात दिल तक पहुँचने से है हम अज्ञानियों के लिए ...
तेरे नाम दिल की जागीर लिख दू ...निहाल कौन ना हुआ होगा ...ऐसी पाकीजा दिल की इबारत से ...!!

नीरज गोस्वामी said...

ज़िन्दगी की ग़ज़ल में बहर नहीं भाव होने जरूरी होते है जो आप की ग़ज़ल में हैं...बधाई.
नीरज

Dr. Shreesh K. Pathak said...

आदरणीया निर्मला जी आप बेहद विनम्र हैं..आप की लेखनी जितनी कुशल-प्रखर-सुन्दर है उस अनुपात में विनम्रता बेहद ही ज्यादा है. मुझ जैसे लोगों के लिए सीखने के लिए ढेरों कुछ उमड़ा पड़ा है आपके लेखन में..बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी ये वाली भी..कि हर पंक्ति कोट कर दूं..!!

अनिल कान्त said...

नीरज जी ने सही बात कही

डिम्पल मल्होत्रा said...

aaogee kabhi to dua mangne..agar khud ko ishqe fakeer likh dun......awesome...

अजय कुमार said...

सुन्दर , सरल , मनभावन रचना

Urmi said...

बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण ग़ज़ल लिखा है आपने! दिल को छू गई आपकी ये शानदार ग़ज़ल!

rashmi ravija said...

आओगी कभी तो कोई दुआ मांगने
गर खुद को इश्क ए फकीर लिख दूँ
बहुत ही सुन्दर लिखा है....एक एक शेर भावपूर्ण

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर गजल जी, बाकी हमे इस से ज्यदा समझ नही है गजल ओर कवितओ की

Ashutosh said...

बहुत ही सुन्दर लिखा है.
हिन्दीकुंज

डॉ टी एस दराल said...

काफिया, रदीफ़, बहर।
निर्मला जी, आज तो हम अनपढ़ सा महसूस कर रहे हैं।
वैसे ग़ज़ल तो पढने में आनंद आया।

रंजू भाटिया said...

क्या रदीफ़ क्या बहर जो दिल को भाये वही सुन्दर है सही है और यह बहुत पसंद आई है क्यों की यह सच्ची है और बहुत बहुत अच्छी है .

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said...

शेर भावपूर्ण है
तेरे नाम दिल की जागीर लिख दूँ !
आओगी कभी तो कोई दुआ मांगने
गर खुद को इश्क ए फकीर लिख दूँ

राकेश कौशिक said...

मुझे तो ग़ज़ल के मायने भी नहीं पता, केवल इतना कह सकता हूँ कि आपकी "बेबहरी" पढ़कर बहुत बहुत अच्छा लगा. मेरे लिए तो यह ग़ज़ल से भी बढ़कर है. सादर.

दिगम्बर नासवा said...

काफिया तो यूँ भी हमको कम ही समझ आता है ...........हां दिल की बात जरोर जल्दी समझ अ जाती है ........... और आपकी ये ग़ज़ल भी कमाल की है .......... दिल में उतर गयी ..........

Ria Sharma said...

मैं जानता हूँ अपनी हस्ती को
आ तेरे माथे की लकीर लिख दूँ

सुन्दर भाव मय प्रस्तुति

Ria Sharma said...

मैं जानता हूँ अपनी हस्ती को
आ तेरे माथे की लकीर लिख दूँ

सुन्दर भाव मय प्रस्तुति

Udan Tashtari said...

मैं जानता हूँ अपनी हस्ती को .....
आ तेरे माथे की लकीर लिख दूँ


-जबरदस्त जी!! क्या बात है!!

Yogesh Verma Swapn said...

bahut umda gazal . behatareen sher, badhaai sweekaren.

विनोद कुमार पांडेय said...

तारीफ़ करूँ ये कोई नई बात नही होगी एक एक लाइन सुंदर एहसास लिए हुए..बस भा गयी हर लाइन..चंद ही पंक्तियाँ पर हर एकपंक्ति लाज़वाब एक सुंदर एहसास लिए हुए..बधाई सुंदर ग़ज़ल के लिए

Apanatva said...

ek ek sher vajanee hai bahut hee sunder gazal padane ko milee . badhai .

kshama said...

Kya gazab kee rachana hai! Pata nahee meree nazarse ye kaise chhoot gayee thee!

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