निष्ठा
माँग
******
माँ अक्सर कहती
अपने बालों मे
इतनी लम्बी माँग मत निकाला करो
ससुराल का सफर लम्बा होता है
बाद मे जाना कि
इसका अर्थ् तुम तक पहुँचने मे
एक कठिन और लम्बा रास्ता
तय करना है
बस मैने इस राह को सजा लिया
लाल् सिन्दूर से
ताकि इस पर चलने मे
मेरी ऊर्जा बनी रहे
और तुम भी इस रंगोली पर
चाव से अपने पाँव बढा सको
और तब से मैने माँग मे
सिन्दूर लगाना नहीं छोडा
बिन्दी
******
शादी के बाद
जान गयी थी कि मेरे माथे
पर तुम्हारा नाम लिखा है
तुम ही मेरी तकदीर लिखोगे
और माथे पर
तुम्हारे हर आदेश के लिये
पहले ही मोहर लगा दी
बिन्दी के रूप मे
स्वीकार कर लिया
अपने भाग्य विधाता का हर आदेश
मंगल सूत्र
**********
जब तुम ने
मेरे गले मे डाला था
मंगल सूत्र जान गयी थी
कि मुझे तुम्हारे खूँटे से
बाँध दिया गया है
अब कभी ये बन्धन नहीं तोड सकती
तुम्हे हर पल सीने पर सजाये
अपनेजीवन पथ पर बढना होगा
और तुम्हारी उलीकी गयी परिधी मे
आज तक घूम रही हूँ
तुम्हारे नाम का मंगल सूत्र पहन कर
मेहंदी
******
तुम्हारे साथ चलते
जब कभी हाथ की लकीरें
कुछ धुँधली पडने लगतीं
मैं रंग लेती मेहंदी से अपने हाथ
ताकि लोगों से छुपा सकूँ
इन फीकी पडती लकीरों को
और इस मेहंदी से
फूल और तरह तरह के चित्र
बना लेती
उन मे खो कर भूल जाती
तुम्हारी अवहेलना तुम्हारी हर बात
जो मुझे अच्छी नहीं लगती
मेहंदी नहीं मरने देती
मेरा उत्साह मेरा प्यार
चूडियाँ
*******
जानते हो ये चूडियाँ
किस लिये पहनती हूँ
ताकि इनकी खनखनाहट मे
याद रखूँ सात फेरों के वक्त
किये गये सात वचन
अपने कर्तव्य निभाते हुये
जब ये खनकती हैं
तो मैं भाग भाग कर
तुम्हारे आदेशों का पालन करती हूँ
और घर की रोनक
और खुशियों को कभी
कम नहीं होने देती।
पायल
*******
ये पायल ही है एक
जिसे मैने अपने लिये नहीं
तुम्हारे लिये ही पहना है
ताकि तुम कभी भूल जाओ
अपनी चौखट का दरवाज़ा
तो इसकी झँकार तुम्हें याद दिला दे
कि कोई है जो हर वक्त जी रही है
सिर्फ तुम्हारे लिये
और खीँच लाये तुम्हें मेरे पास
सजा लेती हूँ
अपने पाँव भी मेहंदी से
रंगोली की तरह
तुम्हारे घर आने की राह मे स्वागत हेतु
करवा चौथ
***********
ये भी जान लो कि मैं ये व्रत
किस लिये रखती हूँ
कि तुम मेरे इस प्रण का
यकीन करो कि
मैं तुम्हारे लिये कुछ भी कर सकती हूँ
सात जन्म का तो नहीं कह सकती
मगर इस जन्म मे
तुम्हारा साथ निभाने का प्रण लेती हूँ
और छू लेती हूँ तुम्हारे पाँव
इस आशा मे कि
तुम मुझे तन से नहीं मन से
स्वीकार करो और कुछ मोहलत दो
कि मैं अपने लिये भी
कुछ अपनी मर्जी के
आदेश पारित कर सकूँ
और तुम?
बस एक घूँट पानी पिला कर
अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हो
आज व्रत तोडने से पहले
एक सवाल करना चाहती हूँ
क्या तुम भी मेरे लिये
इतने निष्ठावान हो
जिन्दगी मेरी है
और फैसले तुम लेते हो
क्या मुझे अपनी जिन्दगी के फैसले
खुद लेने का हक दे सकते हो?
क्या मैं अपनी तकदीर
अपने हाथ से लिख सकती हूँ?
आज देखना चाहती हूँ
तुम्हारी निष्ठा मेरे प्रति
मगर सदियों से ये सवाल
ज्यों का त्यों पडा है
तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा मे
41 comments:
क्या खूब हर निशानी को बयाँ किया है आपने
वाह !!
निर्मला जी!
वाह...बहुत खूब!!
आपके सातों चित्र-गीत बहुत बढ़िया हैं।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
क्या बात है आपका जवाब नहीं। आपने बड़ी ही खूबसूरती से भारतीय परम्पराओ के प्रतिक माँग, बिन्दी, मंगल सुत्र , मेहंदी चूड़िया पायल, और करवा चौथ की उपयोगीता और मायनो का वर्णन किया। बहुत-बहुत बधाई आपको
क्या मैं अपनी तकदीर
अपने हाथ से लिख सकती हूँ?
आज देखना चाहती हूँ
तुम्हारी निष्ठा मेरे प्रति
मगर सदियों से ये सवाल
ज्यों का त्यों पडा है
तुम्हारे आदेश की
प्रतीक्षा मे
निर्मला जी आपने सुहाग के इन प्रतीकों को बहुत ही खुबसुरत ढंग से अपने विचारों के माध्यम से संजोया है,आपको शुभकामनाएं
कुछ मोहलत दो कि
मैं अपने लिये भी कुछ
अपनी मर्जी के आदेश
पारित कर सकूँ
क्या खूब आपने सुहाग चिह्नो को नए सन्दर्भ बिन्दु दिये है.
बहुत सुन्दर
निर्मला दी,
शास्त्री जी से पूर्णतः सहमत...बड़े सुन्दर चित्र-गीत हैं...हर श्रृंगार को जीवंत कर दिया है...
पहले के चंद छंद पढ़कर लगा कि जीवनसाथी को साथी न मानकर समर्पण भावः से लिखी हैं (थोडी उदास भी लगीं) किन्तु करवाचौथ वाला छंद आते ही काव्य का श्रृंगार उभर कर और निकल आया और मुख से सिर्फ वाह ही निकला...
साथ ही पायल वाली पंक्तियाँ भी भा गयी...
ये पायल ही है एक
जिसे मैने अपने लिये नहीं
तुम्हारे लिये ही पहना है
ताकि तुम कभी भूल जाओ
अपनी चौखट का दरवाज़ा
तो इसकी झँकार
तुम्हें याद दिला दे
कि कोई है
जो हर वक्त
जी रही है सिर्फ तुम्हारे लिये
और खीँच लाये तुम्हें मेरे पास
निर्मला दी,
शास्त्री जी से पूर्णतः सहमत...बड़े सुन्दर चित्र-गीत हैं...हर श्रृंगार को जीवंत कर दिया है...
पहले के चंद छंद पढ़कर लगा कि जीवनसाथी को साथी न मानकर समर्पण भावः से लिखी हैं (थोडी उदास भी लगीं) किन्तु करवाचौथ वाला छंद आते ही काव्य का श्रृंगार उभर कर और निकल आया और मुख से सिर्फ वाह ही निकला...
साथ ही पायल वाली पंक्तियाँ भी भा गयी...
ये पायल ही है एक
जिसे मैने अपने लिये नहीं
तुम्हारे लिये ही पहना है
ताकि तुम कभी भूल जाओ
अपनी चौखट का दरवाज़ा
तो इसकी झँकार
तुम्हें याद दिला दे
कि कोई है
जो हर वक्त
जी रही है सिर्फ तुम्हारे लिये
और खीँच लाये तुम्हें मेरे पास
बिल्कुल मौलिक चिंतन. यही आपकी विशेषता सबको आपसे जोडती है.
जाने क्यों किसी उदास संध्या घर की चौखट पर अकेली बैठी तुलसी को अगोरती रत्नावली याद आ गई।
मन भीग गया। बस ऐसे ही ...
क्या बात हाई आज तो आपने कई रहस्मय बातें बता दी अपने इस कविता के माध्यम से
निर्मला जी,सभी बहुत सुन्दर रचनाएं हैं बधाई स्वीकारें।
भारतीय नारी के अंतर्मन का बहुत खूबसूरत चित्रण किया है आपने.
अंतिम पंक्तियों में समय के साथ बदलते नारी के स्वतंत्र अहसासों का सुन्दर बखान.
पढ़कर आनंद आ गया.
har nishani ka mahtva batati sath hi ek aurat ke tyag aur samrpan ko darshati har rachna andar tak jhakjhor jati hai...........bahut hi khoobsoorti se nari ke man upje bhavon ko darshaya hai.........badhayi
बहुत बहुत सुन्दर .हर पंक्ति हर निशानी ज़िन्दगी के एक अटूट सत्य से जुडी है आपने बखूबी इसका शब्द चित्रण किया ..
saari kavitaye bahut pyari hai amma...
प्रणाम आप ने औरत के प्रतीक चिह्नों के माध्यम से सुच में स्त्री जाति की की संवेदनाओं और भावनाओं को ही शब्द दिए है ,, एक एक शव्द ह्रदय में दवी किसी तीव्र अनुभूति और प्रेरणा की की ही प्रतिध्वनी है ,एक सकरात्मक भाव प्रधान रचना तो है ही उस पर शब्द सौस्थ्ब्ताने चार चाँद लगा दिए मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
997196908
जीवन के saty हैं ये सब paksh और आपने इतनी sahaj rachnaaon, इतनी positive tarike से inko saheja है की maza aa गया पढ़ कर ......
कमाल के शब्च-चित्र!! इतने सुन्दर और अर्थपूर्ण...सम्पूर्ण महिला जाति के मन की बात.
क्या तुम भी मेरे लिये
इतने निष्ठावान हो
जिन्दगी मेरी है और
फैसले तुम लेते हो
क्या मुझे अपनी जिन्दगी के
फैसलेखुद लेने का हक दे सकते हो?
क्या मैं अपनी तकदीर
अपने हाथ से लिख सकती हूँ?
आज देखना चाहती हूँ तुम्हारी निष्ठा मेरे प्रति
मगर सदियों से ये सवाल
ज्यों का त्यों पडा है
तुम्हारे आदेश कीप्रतीक्षा मे
कितना स्वाभाविक ...
वाह वाह क्या बात है सभी कविताये एक से बढ कर एक, अति सुंदर भाव.
धन्यवाद
बड़ी खूबसूरती से इन सुहाग चिन्हों को परिभाषित किया है.....और अंतिम पंक्तियों में सारे स्त्रियों के मन की व्यथा भी उभर कर आ गयी....क्या उसने इन सबका मोल समझा....जिसके लिए ये सारे सुहाग चिन्ह धारण किये??
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
हैपी ब्लॉगिंग
EK AISI RACHANA JISAME HAMARI PARAMPARA OUR OURAT KE MAN KA BHAW SNNIHIT HAI ........EK BEHAD KOMAL BHAW SE SUSAJJIT RACHANA......
बेहद बेहद खूबसूरत. हम नमन करते हैं.
क्या तुम भी मेरे लिये
इतने निष्ठावान हो
जिन्दगी मेरी है और
फैसले तुम लेते हो
क्या मुझे अपनी जिन्दगी के
फैसलेखुद लेने का हक दे सकते हो?
क्या मैं अपनी तकदीर
अपने हाथ से लिख सकती हूँ?
आज देखना चाहती हूँ तुम्हारी निष्ठा मेरे प्रति
मगर सदियों से ये सवाल
ज्यों का त्यों पडा है
तुम्हारे आदेश कीप्रतीक्षा मे
Nirmala ji,
aapki is kriti ke liye main shabdon se khaali ho gayi hun..
nirmala ji, aaj ki post mujhe aapki sarvashreshth post lagi, iski jitni bhi tareef karun kam. har ek cheej ko behatareen bhav aur shabdon se sajaya, aaoki bataun maine apni patni ko bulakar aapki saari post padhai hai, wo senti ho gai, agar kisi mahila/purush blogger ne ye post nahin padhi usne bahut kuchh kho diya.kash main aapko kuchh inaam de sakta, bas yahi kahoonga anupam, anoothi,behatareen rachna ke liye dheron shubh kaamnaayen.
ek baat aur aapse mafi chahunga ki samayabhaav ke kaaran main aapki gadya rachnayen/kahaniyan aadi nahin padh pata, lekin kavita nahin chhodta. dhanyawaad.
सम्पूर्ण स्त्री को, उसकी गरिमा को ,बहुत ही सुन्दरता से चित्रित कर दिया है आपने \अति अति सुन्दर श्रंगारिक वर्णन |नतमस्तक hoo आपकी लेखनी पर \
आभार
निर्मला जी,
आपको पढ़ता हूं तो मुझे अमृता प्रीतम जी की क्यों याद आती है...अब इससे आगे कुछ कहने को रह जाता है क्या...
जय हिंद...
निर्मला जी, चाहे कहानी हो या कविता एक बेहतरीन भावों से परिपूर्ण होती है कोई कसर नही छोड़ती है आप की हम बेजोड़ और बेहतरीन जैसे शब्दों का प्रयोग ना करें..मैं बहुत बड़ी बड़ी बात नही कहना चाहता हूँ परंतु एक बात कहूँगा शब्द और विचार से आप जो विषय वस्तु प्रस्तुत करती है अनुकरणीय होता है...
आपकी यह कविता भी बहुत अच्छी लगी हमें...बहुत बहुत धन्यवाद
आपकी सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर लगी.....लाजवाब शब्द चित्रण्!!
आभार्!
bahut sundar abhivyakti....
aap ki lekhni ko slaam
कमाल का लेखन .. आज की कविता मुझे बहुत अच्छी लगी .. क्या सोंच है .. क्या प्रस्तुति !!
adbhut rachna.......har shringaar ka mahatw bata diya,bahut hi sundar.....
....ताकि इस पर चलने से मेरी ऊर्जा बनी रहे
और तुम भी इस रंगोली पर चाऊ से पाँव बाधा सको....
बहुत सुन्दर ,निर्मला जी!
!!!
क्या कहूं, कुछ समझ नहीं आ रहा। बस मैं तो खुशी की रौशनी से भीतर ही भीतर रौशन होता जा रहा हूं, पढ़कर दिल इस तरह खिल उठा जैसे बहारों के आने से कलियां।
बहुत सुंदर.
आदरणीया निर्मला जी,
आपने तो अपने इन सुन्दर कविताओं में एक सुहागिन का खूबसूरत रेखाचित्र खींचा है। सभी रचनाओं के लिये हार्दिक बधाई।
हेमन्त कुमार
निर्मला जी ,
.......................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................करवा चौथ वाली ने भी .........................................................................................................................................................................................................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!सलाम ...................!!
दिवाली की तैयारियों की अतिरिक्त व्यस्तता में यह प्रविष्टी देर से पढ़ पाई ...खुद से नाराजगी है ..
स्त्रियों के श्रृंगार का श्रृंगारिक वर्णन ...और फिर करवा चौथ ...आदेश की प्रतीक्षा में सवाल ...अप्रतिम ...अनुपम कहना ही होगा ..!!
MAANG KE UPPAR:
Kai baar raste sunder lagte hain manzilon se....
..Pahadi hoon na ! Pahadon ka safar main manzil tak pahoonchne ka man hi nahi karta !!
:)
BINDI KE UPPAR:
kai baar jeetne se zayada haarne main sukh milta hai...
...mujhe to har baar harne main hi!!
aur ye naari sulabh bhi hai....
...apni 'usse' bhi poochoonga ki usne bindi kyun nahi lagai aaj. Hahahaha
MANGALSUTRA:
Ye khoonta hai ya prem ka dhaaga...
...ye is baat pe nirbarh karta hai ki pehnane wala apne ko kisi gau ka maalik samjhta hai ya ek premi, pati, Better Half?
MEHENDI:
Kismat ki rekhaaon ke saath mehndi ki tulna ...
...bahut hi acchi lagi(ye sabse acch paribasha thi, main ye nahi keh raha baaki sab buri thi par sabse behterin yahi thi)
CHOORIYAN:
Pata nahi kyun aapki kavitaon se sukh ke saath saath dukh aur vidroh type ka kuch...
..par iska ek doosra pehlu bhi hai !! Kabhi baat kareinge uske baare main bhi !!
PAYAL:
Isse unhein bulane ka aur unhein aakarshit karne ka accha dhang nikala hai ....
aur Phir KARVACHAUTH main aapka vahi vidroh ka baahv poorntya mukhrit ho jjaata hai....
...ye kavitaaon ya kavitaaon ki mala hetu aapko kis tarah badhai doon samajh nahi aa raha !!
BEHTERIN HAMESHA KI TARAH...
..AUR MEHENDI WALI TO KAMAL HI HAI !!
PRANAM !!
Aap bahut acha likhti he .....kese itni bhawanawo ko janam deti he utarti hain inhe sabdo ke jaal me
सुहाग के हर निशान का अर्थ करवा चौथ पर आपका जवाब नही निर्मला जी बहुत ही समयानुकूल और सार्थक रचना ।
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