पिछले अंक मे घटना का जिक्र किया था कि कैसे लगता है किसी को अपने आस पास के वातावरण के प्रति संवेदनहीन होते देख कर । मैं तो इतनी पत्थर दिल नहीं हो सकती कि पास मे तीन लाशें पडी हों और मै उनके सामने चाय पी लू। मगर् दीदी कहती कि देखना तुम भी असिएए ही हो जाओगी। और उनकी ये बात मैं हमेशा याद करती रहती ताकि मैं भी उस तरह की ना बन जाऊँ। आब बात करती हूँ अपनी नैकरी के पहले दिन से तभी वो सब कह पाऊँगी जो कि मैं कहना चाहती हूँ कि कैसे धीरे धीरेिआदमी मे परिवर्तन आता है अगर वो समय समय पर आत्मचिन्तन ना करे या फिर उसके अपने साथ कोई घटना ना घटे तो वो संवेदनहीन हो जाता है। पहला दिन तो दफ्तर की फारमैलितीज़ पूरी करते हुये बीत गया । उसमे दीदी सारा दिन मेरे साथ रही ।मैने कहा भी कि दीदी मैं करवा लूँगी काम आप अपना काम करें तो उन्होंने कहा --*मुन्नी तुम्हें नहीं पता कि ये कलर्क लोग कितने खराब हैं मैं तुम्हें अकेले दफ्तर मे नहीं भेजूँगी।* उनकी आत्मीयता देख कर मन मे उनके प्रति आदर भाव और बढ गया।
जब मैने डिप्लोमा के बाद 3 माह की practical training उनके पास ली थी तब भी उनके प्रति बहुत आदर था वो सख्ती से जरूर पेश आती मगर हमारे फायदे के लिये ही । वैसे भी उनक रोब पूरी OPD ही नहीं पूरे अस्पताल मे था। इमानदारी,. अपने काम के प्रति निष्ठा ,साफ आचरण बहुत सी ऐसी बातें थी जिन से मैं बहुत प्रभावित थी। मुझे अपनी बेटी की तरह ही समझा और प्यार दिया।उन से सब डरते थे । दफ्तर के बाद हम लोग OPD मे आ गये। उस दिन दीदी ने मुझे काफी काम समझा दिया। उनकी डयूटी दवा के मैन counter पर थी साथ मे एक जुनीयर फार्मासिस्ट थी क्यों कि दीदी को emergency भी देखेनी होती सब फार्मा सिस्ट्ज़ की डयूटी भी लगानी होती थी। पूरी OPD सफाई आदि भी देखनी होती थी।उस समय वहाँ कुल 18 फार्मासिस्ट थे जो कि आम अस्पताल से 3 गुना अधिक थे। female हम तीन थी। उस समय भाखडा डैम् का काम बहुत जोरों पर चल रहा था । अस्पताल भी बहुत बडा था। इसे आज भी मिनी पी जी आई कहा जाता है । क्यों कि इसका खर्च भाखडा बोर्ड ही वहन करता था और दवा और साधनों की कमी नहीं थी। खैर अब पिछली बात पर आती हूँ।
अस्पताल मे आज दूसरा दिन था। पहले दिन तो दीदी के साथ काम समझती रही। अगले दिन मेरी डयूटी एमर्जेन्सी विभाग मे लग गयी ।कुछ दिन के लिये दीदी की डयूटी भी मेरे साथ ही लगी ताकि मैं काम सीख जाऊँ। वैसे मैने प्रेक्टीकल टरेनिन्ग भी यहीं ली थी इस लिये काम तो जानती ही थी। उस टरेनिन्ग के दौरान तो देखा बहुत कुछ था मगर जब ऐसे केस आते तो मैं अकसर दूसरे कमरे मे चली जाती। रोने चीखने की आवाज़ सुन कर बाहर नहीं आती दूसरे कमरे मे ही रोने लगती। मुझे लगता था कि मैं अस्पताल मे नौकरी नहीं कर पाऊँगी। दुख कभी देखा ही नहीं था। खुशहाल बचपन से सीधी इस जगह पर आ गयी थी।
आठ बजे डय़ूटी शुरू ही हुई थी कि एक केस आ गया। सभी उस मरीज के इलाज मे जुट गयी मगर उसे बचा नहीं पाये। मरीज की मौत हो गयी उम्र कोई 40 साल थी ।पहली बार किसी को सामने मरते देखा था। समझ नहीं पा रही थी कि ऐसे कैसे आदमी मर जाता है। उसके साथ उसकी दो बेटियाँ और पत्नि थी। उनकी चीख पुकार सुन कर मैं भी रोने लगी। वहाँ अपने अस्पताल के सब से बजुर्ग डाकटर की डयूटी थी। मुझे रोते देख उन्हों ने मुझे डाँट दिया---* ये क्या तमाशा है तुम डयूटी पर हो । जाओ दूसरे कमरे मे और यहां किसी और को भेज दो।* फिर बाद मे जब सारा काम हो गया और सब लोग उस मृतक को ले कर चले गयी तो डाक्टर साहिब ने मुझे बुलाय और समझाया कि इतने संवेदनशील नहीं होना चाहिये। मैं उनकी बातें सुन कर फिर OPD मे चली गयी वहां जाते ही मेरी फिर रुलाई फूट पडी। इस आदमी की बेटी और पत्नि का चेहरा बार बार आँखों के सामने घूम जाता।
फिर दीदी ने समझाया कि देखो पहले पहले सब के साथ ऐसे ही होता है फिर धीरे धीरे आदत पड जाती है और कह कर वो जोर से हँस पडती---- मुझे मन से अच्छा नहीं लगता क्या धीरे धीरे हमारी संवेदनायें मर जाती हैं? किसी का दुख देख कर हमारी आँखें नम क्यों नहीं होती। तभी तो सभी कहते हैं कि अस्पताल वाले रूखे स्वभाव के होते हैं। उन मे रहम कम होता है आदि आदि। मगर मैं ऐसी नहीं हो सकती। मैं इनकी तरह पत्थर नहीं बन सकती। मुझे लगता है जब मैने ये संस्मरण लिखना शुरू किया था तो बात छोटी सी लगी अब लगता है जब तक इसे पूरी तरह कुछ और दिनों की बातें नहीं कहूँगी तब तक जिन संवेदनाओं की मैं बात करना चाहती हूँ नहीं कर पाऊँगी। इस लिये आपको इसे अभी 1--2 भागों मे और झेलना पडेगा।-----अभी तो शायद भूमिका ही बाँध पाई हूँ अपने असली मुद्दे की।
क्रमश:
25 comments:
"आपको इसे अभी 1--2 भागों मे और झेलना पडेगा।-----अभी तो शायद भूमिका ही बाँध पाई हूँ अपने असली मुद्दे की। क्रमश:"
प्रभावित करने वाला बढ़िया संस्मरण है।
अगली कड़ी का इन्तजार है।
झेल लूंगी .. अगली कडी का इंतजार है !!
बढ़िया संस्मरण है. अगली कडी का इंतजार है !
हिन्दीकुंज
आप लिखते रहिए..हम पढ़ रहे है..अब भूमिका ही इतनी अच्छी है की अगली कड़ी के लिए हम बेताब हो जाते है.
संस्मरण बेहद संवेदनशील है,भाव से भरा सुंदर रचना
बधाई!!
अब तो आगे का इंतजार रहेगा....
लाजवाब निर्मला जी, अगली कङी का इन्तजार है।
झेलने की बात न करें, इतने सुन्दर शब्दों में व्यक्त आपका यह संस्मरण यूं लगता है जैसे सामने आप खुद कह रही हों और हम सुन रहे हैं, अगली कड़ी की प्रतीक्षा में, आभार्
आगे का पढने को मुझे इतंजार रहेगा
निर्मला जी, जब भूमिका ही इतनी शानदार है तो बाकी संस्मरण कैसा होगा!!!!!
प्रतीक्षारत....
इंसानी ज़ज्बे के लिए ,आपके लिए इसे झेलना नहीं कहते ................क्रमशः ..............वो पता हैं न आपको .....अपने भाई को पीठ पर उठाकर पहाड़ चढ़ती बहना के लिए भाई कभी भोझ नहीं था .......................प्रणाम!
AAPKA SANSMARAN BAHOOT HI MAARMIK SEEDHE DIL MEI UTARNE WAALE ADAAZ MEIN CHAL RAHA HAI ..... AAPKI LEKHNI KA ASAR NAZRON SE SEDHE DIL ME JAATA HAI ..... AAPSE BAAT KAR KE BAHOOT HI ACHHAA LAGA US DIN .... BHAGWAAN AAPKO LAMBI UMR AUR NAYE NAYE KHUSHIYAAN DE .........
पहली बार मैंने भी जब एक मौत को बहुत निकट से देखा था तो चक्कर खाकर गिर पड़ी थी...कई महीने लग गए सदमे से उबरने में...हालाँकि मृतक मात्र हमारे परिचित भर थे...
बड़ा ही अच्छा लगा आपका यह संस्मरण..बहुत सी बातें बिलकुल अपनी सी लगीं..
अगली कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी.
हालात, वक्त ओर लोग हम सब की संवेदन से इस कदर खेलते है की हम संवेदनशील बनना भी चाहे तो बने नही रह सकते...
आप का लेख बहुत अच्छा लगा, अगली कडी की इंतजार है
agli kadi ka besabri se intzaar hai.....jyada kuch abhi nhi kah paungi.
अब आगे इंतजार करते हैं.
रामराम.
झेलना क्या जी..बह रहे हैं..आप तो जारी रहें. आनन्द वर्षा करती रहें. शुभकामनाऐं अगली कड़ियों के लिए.
बढ़िया संस्मरण,अगली कडी का मुझे भी इंतजार हॆ,निर्मला जी
Nirmala ji
aage kee intejaar main abhee bas
saadar !!
बहुत ही बढ़िया संस्मरण आगे की कड़ी का इन्तजार रहेगा ..
लिखते रहिये
प्रतिक्च्छा है
महिलाविमर्श पर एक सशक्त कवियत्री को पढिये
link
kundajoglekar.blogspot.com
संस्मरण की अगली कड़ी का इन्तजार है...
यदि ये शुरूआत या भूमिका है तो भी चलेगा, क्योंकि अच्छी शुरूआत है। अगली कड़ी आने के इंतजार में।
बहुत अच्छा संस्मरण है। शुरुउ से अंत तक प्रभावी है। अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।
बहुत बढ़िया लगा आपकी लिखी हुई संस्मरण पढ़कर! अब तो अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है!
वक़्त मिलने से मेरी कवितायें भी पढियेगा !
आप बहुत ही संवेदनशील हैं ऐसे में मेडिकल प्रोफेशन मे कैसा गुजारा किया । आगे का हाल जानने के लिये उत्सुक ।
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