शब्दजाल (कहानी )
पति का व्यक्तित्व कितना ही सश्क्त हो़- वो कितना ही कर्तव्य़ निष्ठ हो- मगर पत्नि सुलभ मन फिर भी कुछ लुभावने- आपेक्षित शब्दों का मेहताज़ रहता है।और फिर सम्बन्धों को मजबूत बनाने के लिये ये शब्द सेतु का काम करते हैं-जिन्हें गुनगुनते हुये- दिन भर याद करते- हुये पत्नि एक नई उंमँग से भरी रहती है। आज मेरा मन भी इसी शब्दजाल के मोह मे उलझ गया था----। दस दिन हो गये थे बैंगलोर आये हुये--- आई तो घूमने फिरने और बच्चों से मिलने थी मगर मन पीछे घर मे था -उपर से कुछ अन्दर ही अन्दर मन को सताये जा रहा था ।---
कई दिन से मन उदास सा था ।बेटी का फोन आया था---हम दोनो को बैंगलोर आने के लिये कह रही थी । तभी ये आ गये और मैने जवाब देने की बजाये फोन इन्हें पकडा दिया और आप बाहर चली गयी । बच्चों के इस आग्रह को ठुकराना मेरे बस मे नहीं था-- फिर मैं बच्चों के पास जाना भी चाहती थी पर इनसे कहने की हिम्मत नहीं होती। मुझे पता था कि इन्हें घूमने फिरने का शौक नहीं था और घर को इतने दिन सूना छोड कर जायेंगे भी नहीं।
पता नहीं बच्चों से क्या बात हुई- पूछना मेरी आदत् नहीं थी और बताना इनकी फितरत नहीं थी।मैं जानती थी कि आदमी सोच समझ कर उपयुक्त समय पर बात करते हैं और औरत एक दम कहने सुनने को उतावली हो जाती है।ये कहने सुनने के समय का शून्य भी तो शब्दों का मोहताज ही तो होता है---। पत्नि यूँ भी पति से प्यार -सहानुभूति और प्रशंसा के दो शब्द सुनने के लिये लालायित रहती है। दिन भर के गिले शिकवे उन दो शब्दों की फुहार मे घुल कर बह जाते हैं।
इनसे कभी कुछ पूछो या राय माँगो तो कभी भी उसी समय जवाब नहीं देते---कुछ घन्टों य दिनो बाद इनका जवाब मिलता है तब तक उस बात का क्या औचित्य रह जाता है----++!
रात का खाना खाने के बाद मैने काम निपटाया । ये अखबार ले कर बैठ गये और मैं किताब ले कर -- दोनो मौन थे ------।
**कृ्ष्णा ! आज कल तुम भी कुछ उदास रहती हो। बच्चे आने के लिये कह रहे हैं तो कुछ दिन के लिये हो आओ़**----।
*क्या अकेले ही \**---मन मे एक सँतोष सा हुया कि इन्हें पता है कि आजकल मैं उदास रहती हूँ----।
**हाँ आज कल मुझे छुट्टी मिलना मुश्किल है फिर घर भी सूना रहेगा। तुम हो आओ** ।
**आपका खाना-घर का काम ये सब कैसे चलेगा \ मैने इनकी तरफ देखा** ।
**तुम चिन्ता मत करो काम वाली से बनवा लिया करूँगा** ।
मैने भी सोचा कि चलो ठीक है---इनकी मर्जी । इन्हें भी पता चलेगा कि मेरे बिना घर कैसे चलता है ।जनाब को चार दिन मे नानी याद आ जायेगी---- पता नहीं बच्चों से मिलने को उतावली थी या इन्हें ये दिखाने को कि मेरे बिना घर नहीं चल सकता ---क़ि मैने हाँ कर दी---
अगले दिन ये चंडीगढ चले गये कि कुछ काम है मैने पूछा नहीं कि क्या काम है और इन्होने बताया नहीं । रात को वापिस आये तो मेरे हाथ मे एक कागज़ पकडाते हुये बोले * कि ये तुम्हारा टिकेट है---- लो तुम्हारे जाने का प्रबन्ध हो गया है(* ।
**ये क्या ये तो एयर्वेज़ का टिकेट हैं**\--मैने टिकेट को देख कर हैरानी से कहा **मैने ट्रेन से ही चले जाना था इसकी क्या जरूरत थी**\मैने इनकी तरफ देखा ।
**नहीं तीन दिन का सफर म्रे मुझे यहाँ चिन्ता रहती कि तुम ठीक ठाक पहुँच गयी हो कि नहीं** ।-
फिर वही शब्द जाल ------मन फिर इनमे फंस गया ----तो अपनी चिन्ता मिटाने के लिये हवाई यात्रा का टिकेट ले कर आये हैं\---क्या इतना नहीं कह सकते थे कि आने जाने मे इस तरह छ दिन बच जाते और तुम जल्दी आ जाओगी---- तुम्हारे बिना इतने दिन कैसे रहूँगा----। जानती भी थी कि इन्हें बातें बनानी नही आती--- ना भी रह सकेंगे तो भी कहेंगे नहीं---बस यही बात मुझे चुभती---पत्नि मन इन शब्दों के बिना रीता स रह जाता है।इसी शब्दजाल मे कई बार अच्छे पल भी अच्छे नहीं लगते ।
बैंगलोर आये हुये मुझे 4--5 दिन हो गये थे । पहुँच कर इन्हें फोन कर दिया था । कि ठीक ठाक पहुँच गयी हूँ-----क्रमश
27 comments:
मुझे मेरी कहानी मेरी नज़र से देखो पर दिनेश राय दिवेदी जी सलाह दी थी कि मै कहानी मे कहीं पूर्ण्विराम चिन्ह या inverted coma आदि नहीं लगाती जिस के कारण कहानी समझ नहीं आती वैसे जिस शैली मे मैं लिखती हूँ वो भावनात्मक रचनाओं के लिये मुझे अच्छी लगती है मगर पठकों की पसंद और सलाह मेरे लिये सर्वोपरि है वो भी अगर दिनेश राय जी जैसे सुलझे हुये लेखक की तरफ से हो इस लिये मैने इस कहानी को उस तरह लिखने की कोशिश की है जैसे मेरी किताब मे ये छपी है मगर कम्प्यूटर पर अभी भी मुझे कुछ मुश्किल आ रही है जहाँ मैinverted coma का सही इस्तेमाल नहीं कर पाई हूँ क्या कोई इसमे मेरी सहायता कर सकता है? मै cafe hindi पर टाईप करती हूँ मुझे मिल रहे सहयोग से सब की आभारी हूँ और दिनेश रइ दिवेदी जी की भी जिन्हों ने मुझे अपनी गलती सुधरने के लिये प्रेरित किया अभी मुझे दिवेदी जी मे द के पै मे उ की मात्रा डालना भी नहीं आया कृप्या कोई बताने का कष्ट करे आभार
हमें तो पूर्ण प्रवाह में लगी इस बार...धीरे धीरे दिनेश जी की महत्वपूर्ण सलाह अनुसार बाकी बातें भी पूरी हो लेंगी किन्तु अभी भाव निश्चित ही उजागर हो रहे हैं और अपनी पकड़ बनायें हैं..आप जारी रहिये..अगली कड़ी का इन्तजार है.
ek aurbhawanpurn kahani,aage ka intazar hai...
aap chinta mat karo ji ,
qoma voma hum khud lagaa lenge..........
vaise bhi mahilaayen bolte samay qoma aur viram kahaan lagaati hain ...
in sab ka dhyaan toh gareeb purush hi rakhta hai
bahut khoob likha aapne......
aanand aagaya..
lekin aapki shiqayat vajib nahin.........
kyonki purush yadi kam bolta hai to samajhna chahiye ki vah bolne se zyada karne me ytaqeen rakhta hai.........
bahut bahut badhaai
abhinandan !
आपसे प्रेरणा लेकर एक लघु कहानी लिखी है नज़रे इनायत इज मोस्ट वाण्टेड !
कहानी बहुत सुंदर चल रही है। पूरी हुए बिना तो टिप्पणी करना ठीक नहीं। पूर्ण विराम लगने से कहानी पढ़ने में आसान और सुंदर हो गई है।
अच्छी लगी .. आगे का इंतजार रहेगा !!
kahani shabdon se shabdon ko bandhati hui itani tej aage badati jati hai ki koi viraam ka dhyan hi nahi rahata hai..
ham to bina viraam hi pad jate hai.
sanvedan sheel aur badhiya kahani..
badhayi..
pranam,
"जानती भी थी कि इन्हें बातें बनानी नही आती--- ना भी रह सकेंगे तो भी कहेंगे नहीं---बस यही बात मुझे चुभती---पत्नि मन इन शब्दों के बिना रीता स रह जाता है।इसी शब्दजाल मे कई बार अच्छे पल भी अच्छे नहीं लगते ।".......
aapki kahan ke shesh bhag ka intzaar rahega.
yadi post prakashit karne main kisibhi prakar ki dikkat ho to aap mujhe apni post e mail kar diya karein , main usmein sudhar karke (aapki iccha ke anuroop) use wapas kar doonga....
अगली कड़ी का इंतज़ार है.
बहुत अच्छी लिखी गयी है....प्रवाहपूर्ण भी
"जानती भी थी कि इन्हें बातें बनानी नही आती--- ना भी रह सकेंगे तो भी कहेंगे नहीं---बस यही बात मुझे चुभती---पत्नि मन इन शब्दों के बिना रीता स रह जाता है।इसी शब्दजाल मे कई बार अच्छे पल भी अच्छे नहीं लगते । "
कहानी बहुत अच्छी है।
अगली कड़ी का इन्तजार है।
चाची जी चाचा जी आपको कितना .....................हैं । इस कहानी से हमें भी कुछ कुछ ...............होता है । मेरे मन में एक जिज्ञासा हो रही है कि क्या चाचा जी कहीं पुरातत्वशास्त्री तो नहीं हैं । क्योंकि एक वाकया ऐसा हुआ कि एक पुतत्वशास्त्री की पत्नी से सेमिनार में कुछ पत्रकार बन्धुओं ने पूछा कि आप एक पुरातत्वशास्त्री से शादी करना क्यों पसन्द की ंतो उन्होंने जबाब दिया कि ये पुरानी चीजों से प्यार करते हैं और मेैं जितनी पुरानी होती जाउगी ये उतना ही हमें चाहेगें । आगे के वृतान्त का इन्तजार ..............। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है । धन्यबाद !
बहुत अच्छी कहानी!
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चाँद, बादल और शाम
Bahut achcha likha
nirmala ji
aap to bas kahaani kahte rahiye aur hum sunte rahein..........aur kisi chakkar mein padne ki jaroorat nhi kyunki jab hum padhte hain na to coma ya interted coma ya pornviram nhi lagaya ye nhi dekhte ..........dekhte hain to sirf itna ki kahaani kya kah rahi hai aur usmein hum doob jate hain itni pravaahmayi hoti hai aapki kahani wahaan shayad in sabke liye koi jagah vaise bhi nhi bachti.
आपकी कहानी की दौर चलता रहे ......और हम उन कहानियो मे डुबते रहे .....यही हमारी ख्वाहिश है .....अतिसुन्दर ......इंतजार रहेगा
बहुत प्रवाहपुर्ण कहानी है. आगे का इंतजार करते हैं.
रामराम.
"द के पै मे उ की मात्रा डालना"
निर्मला जी, पहले द् लिखें फिर shift tab + U लिखें। बस इसी प्रकार से किसी भी अक्षर के साथ बडे ऊ की मात्रा का प्रयोग करते समय करें।
वैसे निर्मला जी हम भी आप जैसे ही हैं। हमें भी अभी तक "ज्ञ" शब्द लिखना नहीं आया। कापी-पेस्ट का ही प्रयोग करते हैं।
कहानी आपने बहुत ही सुन्दर लिखी है। अब तो आगामी कडी की प्रतीक्षा करनी पडेगी।
apbiti lgti hui kahani aadhe me hi rh gai .besbri se intjar rhega .
abhar
F12 'की' दबाने से कीबोर्ड हिन्दी से अंग्रेजी में बदल जाता है....इनवर्टेड कामा यूं भी लगाया जा सकेगा.
बहुत अच्छी लिखी गयी है.अगली कड़ी का इन्तजार है.
हिन्दीकुंज
bahut sundar lagi kahani. badhai!
kahani me jo dhara pravaah hona chahiye vo to he, shbdo ka sanyojan bhi behatr, fir jab lage ki kahaani apani ho rahi he to kahani ki safalta kahi jaayegi.aap maahir he/
intjaar agali kadi kaa
बढियां लिख रही हैं,प्रतीक्षा रहेगी.
Agle bhag ki pratiksha hai.
अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है....द्विवेदी जी की सलाह पे वाक्य सचमुच में स्पष्ट और समझ में आने लगी है आसानी से......
उत्सुकता जगाये रखी है शैली ने...
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