यही नसीब है------------कहानी
पता नहीं क्यों---अज किसी कन्धे की जरूरत महसूस हो रही है----- एक ऐसे कन्धे की जो मेरे कुछ गम अपने कन्धे पर उठा सके---------- मेरे आँसूओं की नमी अपनी आँखों मे समेट सके-------- मेरी टीस को अपने दिल की गहराईयों मे महसूस कर सके --- अकेली कब तक इस बोझ को ऊठाऊँगी--------- कितना असहाय हो जाता है कई बार आदमी------- कितना भी जीवट हो मगर किसी ना किसी समय और किसी ना किसी बात पर किच्चर किच्चर बिखर जाता है------- मगर मै भी कितनी नादान हूँ जब मै अपना ही बोझ नहीं उठा पा रही हूँ तो कोई कैसे मेरा बोझ उठा सकता है----वो भी आज की दुनिया मे-------- सभी रिश्तों की तरफ नज़र दौडाती हूँ------- जिनके आँसूओं की नमी ही नहींपूरे के पूरे दरिया को अपनी आँखों से बहाया है----- जिनकी टीस को खुद जीया है-------- जिनको किसी दुख तकलीफ का एहसास नहीं होने दिया-------उनको सिर्फ अपना कन्धा ही नही दिया बल्कि अपने जीवन का हर सुख सौँप् दिया-------- वो भी आज मेरे दुख को महसूस नहीं कर सकते ------ क्यों करें----- मेरे दुख से उनका नाता भी क्या है -------- और---- तुम ------- जो सारी उम्र मेरे लिये ही जीने का दम भरते रहे------ और मुझे सुख देने की बजाये दुख दे गये----- ये कैसा प्यार था------ शायद ये तुम्हारा प्रतिशोध था------- या शायद ये तुम्हारी आखिरी कोशिश कि तुम मुझे अपने प्यार का एहसास करवा सको-------- विश्वास दिला सको------- या शायद तुम भी थक गये थे मुझे विश्वास दिलाते दिलाते-------- तुम्हें भी तो कई बार तलाश रही होगी किसी न किसी कन्धे की ------- किसी ने तुम्हारी नहीं सुनी----- मैने भी नहीं तो फिर अब मैं क्यों रो रही हूँ-------- वैसे भी हर कन्धा इतना सश्क्त तो नहीं होता ना कि उस पर अपना सिर रख दिया जाये-------- शायद हम दोनो के लिये कोई कन्धा बना ही नहीं-------- तुम ने झूठ कहा था कि तुम मुझ से प्यार करते हो---- अगर ऐसा होता तो तुम मुझे छोड कर नहीं जाते------- कम से कम मरते नहीं चाहे कहीं दूर चले जाते----------मुझे ये अपराधबोध दे कर नहीं जाते कि तुम्हारी मौत का कारण मैं हूँ-------- मेरे कारण तुम ने अपनी दुनिया नहीं बसाई----- मैने कोई बेवफाई नहीं की थी--------- मैने तो तुमसे प्यार नहीं किया था ------- तुम ने समय पर एक बार कहा होता------- मुझे सुना होता ------ मैने तो वही किया जो बचपन से सुना देखा और समझा------ और तुम ही तो सिखाया करते थे ये बडी बडी बातें------ तुम भी तो महान बनने का मोह नहीं त्याग पाये----
कभी कभी ऐसा क्यों होता है कि इन्सान को अपनी मान्यतायें संस्कार जिन से उम्र भर नाता जोडे् रखता है------ वो झूठे लगने लगते हैं------- वो उन के खिलाफ वगावत करने पर आमदा हो जाता है-------शायद यही मेरे साथ हो रहा है------- आज सोचती हूँ कि मैने अपनी ज़िन्दगी को क्यों रुस्वा किया----- क्यों इसे इतने दुख सहने दिये----- इसके लिये कुछ तो खुशियाँ तलाशनी चाहिये थीं------- फिर से एक बार उन गलियों मे लौट जाना चाहिये था जहॉ---रिश्तों के बन्धन नहीं होते ----बस होता है बचपन ----- मन एक आज़ाद पँछी की तरह उडता है अपनी अपनी उडान ----- निश्छल प्रेम ---- उमँग ---- कोई दुख नहीं कोई दर्द नहीं------- अगर समय नहीं भी ठहरा तो भी----- जब तुमने मेरे दिल को छूने की कोशिश की थी---- मुझे अपने दिल के कवाड खोल लेने चाहिये थे------तब भी शायद ज़िन्दगी को कुछ ऐसे पल मिल जाते जो आज मेरे जख्मों को सहलाने के काम आते------- शायद अब इन सब बातों का कोई फायदा नहीं है-------- मुझे तो ये भी समझ नहीं आ रहा कि मेरे दुख का कारण क्या है जब तुम से प्यार ही नहीं किया तो दर्द क्यों------- यही तो वजह है कि काश तुम्हीं से किया होता ----- हां यही वजह है------- और अब जब तुम दुनिया से चले गये हो तो मुझे तुम्हारी याद आ रही है----- यही तो दुनिया का दस्तूर है और मै दुनिया की भीड का एक हिस्सा हूँ----- तुम्हारी तरह भीड से हट कर नहीं-----
फिर भी आज एक बार तुम्हारा दर्द महसूस करना चाहती हूँ------- क्यों कि आसमान मे तारों के बीच आज तुम्हारा पहला दिन है------ बाहर लान मे आ कर बैठ जाती हूँ-------तारे निकलने का इन्तज़ार है-----मगर ये क्या देखते ही देखते घटायें छाने लगी हैं-------जान जाती हूँ-----तुम्हारा दिल वहाँ नहीं लग रहा -----जरूर तुम्हारी आँखों मे उदासी के साये लहराये होंगे-------मुझे देख लिया होगा आसमान की ओर देखते------ कि मैं कितनी दुखी हूँ बेचैन हूँ------ दूर बादलों मे तुम्हारा साया देख रही हूँ-------- तुम्हारी बडी बडी आँखें------अज भी बादलों मे बनी तुम्हारी तस्वीर मे वैसी ही दिखाई पड रही हैं------- कुछ बून्दें टपकने लगी हैं------- शायद आज तुम खुद को रोक नहीं पा रहे हो कितनी देर रोके इन्सान पूरी ज़िन्दगी ----एक शून्य मे जीते रहे---- हाँ आज रोकना भी मत---- बहने दो ये आँसू------- वहाँ तो दुनिया का डर नहीं है----- कम से कम अपनी मर्ज़ी से रो तो सकते हो--------अज मैं भी तुम्हें निराश नहीं करूँगी मैने वो बून्दें हाथ पर सहेज ली हैं-------इन को पी भी लिया------ ओह इतनी जलन ----कितना दर्द हुया पीते पीते------ कैसे सहा होगा तुमने पूरा बादल --- मै तो एक टुकडा भी सह नहीं पा रही हूँ----- शायद अब तुम भी सह नहीं पा रहे थे तभी तो चल दिये------- बस इससे अधिक मै तुम्हारा साथ नहीं दे सकती----- अब लगता है कि मैं तुम से प्यार करने लगी हूँ------ और तुम्हारे प्रतिशोध की सजा काट कर ही आऊँगी तुम्हारी तरह तिल तिल कर मरूँगी----- मगर मिल तो फिर भी ना सकेंगे------- किसी के साथ सात जन्म के वचन जो लिये हैं अग्निपथ पर ------ मगर ये अग्निपथ के रिश्ते बहुत बेरहम होते हैं वो तुम्हारे लिये मुझे कभी कन्धा नहीं देंगे----- तुम ने चाहे उन की मर्यादा के लिये अपना जीवन दे दिया मगर वो रिश्ते क्यों कि शरतों पर टिके होते हैं----- आत्मा तो शर्तों पर प्यार नहीं करती इस लिये वो रिशते प्यार का अर्थ नहीं जानते------ असंवेदनशील हो जाते हैं भावनाओं के प्रति------ अब तुम जाओ------रहना तो होगा वही----- जैसे यहाँ रहते थे------- और मुझे भी जीने दो----- कभी मत आना मेरी यादों मे------- यही तो नसीब होता है जिसे हम चाह कर भी बदल नहीं सकते--------
20 comments:
कहानी पढ़ते ऐसा आभास होता है जैसे फ़िल्म देख रहे हों !
बधाई !
अंत तक रोचकता लिए रही यह कहानी.
आपकी कहानी बहुत अच्छी होती है , बिलकुल जिंदगी से जुडी हुई
bahut achcha laga
जिन्दगी के बेहद करीब महसूस होती आपकी यह कहानी, बहुत ही सशक्त प्रस्तुति जिसके लिये आपका आभार् ।
रोचक व सुन्दर रचना.
kumargoutam10जिन्दगी के कितने करीब आपने यह कहानी लिखी है । यही तो नसीब है जिसे हम चाह कर भी हम बदल नहीं सकते ।
यही तो नसीब होता है जिसे हम चाह कर भी बदल नहीं सकते--------
आप की kahaaniya padh कर lagta है की जिंदगी से kitna kareeb से जुडी हुई है आप................लाजवाब hamesha की तरह
kya khoob kahaani likhi hai aur usmein hridyavedna ko bahut hi sashakt dhang se prastut kiya hai.lajawwab prastuti.
Man ko chhu gay rachna.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
-जरूर तुम्हारी आँखों मे उदासी के साये लहराये होंगे-------मुझे देख लिया होगा आसमान की ओर देखते------ कि मैं कितनी दुखी हूँ बेचैन हूँ------ दूर बादलों मे तुम्हारा साया देख रही हूँ-------- तुम्हारी बडी बडी आँखें------अज भी बादलों मे बनी तुम्हारी तस्वीर मे वैसी ही दिखाई पड रही हैं------- कुछ बून्दें टपकने लगी हैं--
prem ki annt prakashtha .
ati dundar khani .
dhnywad
kahanee ek gati ke sath dhara prawah hai .......jisame ek aurat aapana dard kaise jiti hai ur marati hai ......sirf our sirf apana nasib samajhkar..........bahut hi sundar dang se bayan kari hai ......sundar
सुंदर कथा। पर बिना अर्ध और पूर्ण विराम के पूरा पैरा? विराम चिन्हों के साथ पढ़ने की आदत होने से पढ़ने में परेशानी हुई। यह भी ठीक से समंझ नहीं आया कि बीच में रिक्त स्थानों का तात्पर्य क्या था?
भावनाओं की सतत प्रवाहित सरिता में डूबना बड़ा भला लगा.......सुन्दर लेखन के लिए बधाई...
बेहद सुंदर और अपने आसपास की लगती हैं ये कहानियां. शुभकामनाएं.
रामराम.
bheetar tak bhigo gayi aapki kahaani.........
umdaa
bahut umdaa kahaani
badhaai !
निर्मला जी।
पूरी कहानी रोचकता लिए हुए है।
बहुत बधाई!
लेखन की शैली अनूठी है....ऊपर विवेक जी की बातों से पूरी तरह सहमत!
कहानी तो सुन्दर थी. परन्तु हमें यह समझ नहीं आ रहा की जिसे हम चाहते नहीं, वो क्यों कर याद आता है
बहुत ही सुंदर भावनाओं के साथ लिखी हुई आपकी ये कहानी बहुत अच्छी लगी! आपकी हर एक कहानी मुझे बेहद पसंद है और सिर्फ़ एक बार पड़ने से मन नहीं भरता बल्कि मैं तो दो तीन बार पड़ती हूँ!
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