क्या कहूँ (कविता )
मेरे प्यार मे ना रही होगी कशिश
जो वो करीब आ ना सके
हम रोते रहे तमाम उम्र
वो इक अश्क बहा ना सके
पत्थर की इबादत तो बहुत की
पर उसे पिघला ना सके
जो उन्हें भी दे सकूँ जीने के लिये
वो एहसास दिला ना सके
बहुत किये यत्न हमने
पर उनको करीब ला ना सके
पिला के जाम कर दो मदहोश मुझे
उस बेदर्दी की याद सता ना सके
21 comments:
badee hee rumaanee panktiyaan....mohabbat ke kashish se bhari huee...achha laga...
अत्यधिक खूबसूरत. एक पुराणी कविता याद आ गयी "विरह वेदना गले लगायी"
अति सुन्दर
सादर
आपके इस कविता पे कितने भावः है ये कहना मुश्किल है मेरे लिए ... दर्द खुद बा खुद टूट के सामने आते चले गए...
बस एक शे'र याद या गया के ..
अब तो एहतियातन उस तरफ से कम गुजरता हूँ...
मेरे लिए कोई मासूम क्यूँ बदनाम हो जाये....
आपका
अर्श
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
Great! Very sentimental! Very beautiful!
आपने इतना सुन्दर लिखा कि बार-बार पढने को जी चाहे.
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विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
kya khoob likha hai........patthar kab pighalte hain ..........dard se sarabore rachna hai.........har koshish ko darshati rachna aur gahre zakhm khati rachna
याद से बचने के लिए आदमी क्या क्या नहीं करता। इससे पता चलता है कि प्यार कितना सच्चा है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपका नया अंदाज़ अच्छा लगा!
यादें दिल से नहीं जाती............ भूना चाहो तो भी याद आती.......सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी
मुंह से वाह वाह निकल रहा है
बस दिल से इक आह निकली ओर इस फ़िजाम मै खो गई. बहुत सुंदर कविता है
achchhee rachana hai......
पत्थर की इअबदत तो बहुत की
पर हम उसे पिघला न सके...
वाह निर्मला जी वाह....बहुत अच्छी रचना...बधाई...
नीरज
पिला के जाम कर दो मदहोश मुझे
उस बेदर्दी की याद सता ना सके
....wah !! wah !!
"pee ke gum kum krna hai ya ye bhi peene ka bahana hai?"
nirmala ji itni rumaani rachna padh kar phir madhosh hone laga tha. phir sambhal gaya.
aapko dheron badhai.
Waah !!
Bahut hi sundar bhaavpoorn rachna...
बेहतरीन रचना।
बढ़िया........
साभार
हमसफ़र यादों का.......
दिल को छु गयी आपकी ये कविता
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