19 January, 2009



जब उनके जीने का हम मकसद हुआ करते थे
हर खुशी के मेरे दर पे दस्तक हुआ करते थे
लोग देते थे मिसाल हमारी दोस्ती की अक्सर
हमारी दोस्ती लोगों के सबक हुआ करते थे
पीने का कोइ ना कोइ सबब आ ही जाता था
जब सीधे मयखानेमे हमकदम हुआ करते थे
कितनी सहज हो जाती थी राहें अपनी
उनकी उल्झन का हम हल हुआ करते थे
वो दिन भी क्या दिन थे बहारें ही बहारें थी
उनके साथ गली कूचे गुलशन हुआ करते थे
फिर उन वफाओं को किस की नजर लग गयी
क्यों दुश्मन बन गये जो दोस्त हुआ करते थे
मुझे सामने देख कर भी अजनबी बने रहते हैं
जो लाखों मे मुझ से हमनजर हुआ करते थे
इन बादलों के बरसने अर भी नजर नहींेआते
जो बहक जते थे जैसे बादल हुआ करते थे
पाक दोस्ती का तकाज़ा है वो आयेंगे कभी जरूर
अभी सितारे गर्दिश मे हैं जो रहमते नजर हुआ करते थे !!

14 comments:

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर रचना

---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र

seema gupta said...

कितनी सहज हो जाती थी राहें अपनी
उनकी उल्झन का हम हल हुआ करते थे
" वाह कितने सुकून भरी हैं ये पंक्तियाँ....किसी की उलझन का हल बन जाना सच मे कितना मुश्किल भी है मगर कितना दिलकश भी है.."

Regards

Alpana Verma said...

इन बादलों के बरसने अर भी नजर नहींेआते
जो बहक जते थे जैसे बादल हुआ करते थे

bahut hi khubsurat panktiyan hain.
poori rachna pasand aayi-

[kripya word verification hata lijeeye..comment post karne mein bahut tang karta hai]

जितेन्द़ भगत said...

अच्‍छे उपमानों से सजी हुई गजल। आभार।

रंजू भाटिया said...

मुझे सामने देख कर भी अजनबी बने रहते हैं
जो लाखों मे मुझ से हमनजर हुआ करते थे

बहुत सुंदर लगी यह पंक्तियाँ

Jimmy said...

bouth he aache gazal the good going


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mamta said...

गजल का अंदाजे बयां बहुत खूबसूरत है ।

नीरज गोस्वामी said...

आप की रचना में बहुत खूबसूरत भावः पिरोये गए हैं लेकिन इसे ग़ज़ल कहना ठीक नहीं क्यूँ की ग़ज़ल के लिए जरूरी काफिये का इसमें अभाव है आपने रदीफ़ तो "हुआ करते थे" चुना है लेकिन काफिये ग़लत हो गए हैं... रदीफ़ से पहले काफिया आता है जो की एक तुक में शब्द होने चाहियें...लिखती रहें ये सब धीरे धीरे आ जाएगा...मेरी बात बुरी लगी हो तो क्षमा करें...
नीरज

विधुल्लता said...

कितनी सहज हो जाती थी राहें अपनी
उनकी उल्झन का हम हल हुआ करते थे
वो दिन भी क्या दिन थे बहारें ही बहारें थी
उनके साथ गली कूचे गुलशन हुआ करते थे
bas achchi lagi .badhai

vikram7 said...

सुन्दर रचना बधाई

mehek said...

behad khubsurat gazal tarashi hai alfazon se sundar

Tapashwani Kumar Anand said...

फिर उन वफाओं को किस की नजर लग गयी
क्यों दुश्मन बन गये जो दोस्त हुआ करते थे

bahut hi sundar gazal hai..
bahut-2 badhayi........

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर रचना

पूनम श्रीवास्तव said...

Respected Nirmala ji,
Bahut bhav poorna rachna ke liye badhai sveekar karen.
Poonam

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