होली के तरही मुशायरे मे आद पंकज सुबीर जी के ब्लाग http://subeerin.blogspot.in/
देखिये मुहब्बत ने ज़िन्दगी छ्ली जैसे
लुट गया चमन गुल की लुट गयी हंसी जैसे
अक्स हर जगह उसका ही नजर मुझे आया
हर घडी तसव्वुर मे घूमता वही जैसे
कोई तो जफा से खुश और कोई वफा में दुखी
सोचिये वफा को भी बद्दुआ मिली जैसे
वो चमन में आए हैं, जश्न सा हर इक सू है
झूम झूम नाचे हर फूल हर कली जैसे
खुश हुयी धरा देखी रौशनी लगा उसको
चांदनी उसी के लिये मुस्कुरा रही जैसे
बन्दिशे इबारत में शायरी बड़ी मुश्किल
काफिये रदीफों से आज मै लड़ी जैसे
उम्र भर सहे हैं गम दर्द मुश्किलें इतनी
हो न हो किसी की है बद्दुआ लगी जैसे
पाप जब किये थे तब कुछ नहीं था सोचा पर
आखिरी समय निर्मल आँख हो खुली जैसे
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