दोहे
चलिये आज कुछ पुराने दोहे लिख कर काम चला लेते हैं
कौन बिछाये बाजरा कौन चुगाये चोग
देख परिन्दा उड गया खुदगर्जी से लोग
इधर भिखारी भूख मे उधर बुतों पर भोग
कैसी है ये आस्था भूले रस्ता लोग
सबकी करनी देख कर लिखता वो तकदीर
बिना बनाये मांगता क्यों कर मीठी खीर
लुप्त हुई खग जातियां छोड गयी कुछ देश
कहां बनायें घोंसले पेड रहे ना शेष
चलिये आज कुछ पुराने दोहे लिख कर काम चला लेते हैं
कौन बिछाये बाजरा कौन चुगाये चोग
देख परिन्दा उड गया खुदगर्जी से लोग
इधर भिखारी भूख मे उधर बुतों पर भोग
कैसी है ये आस्था भूले रस्ता लोग
सबकी करनी देख कर लिखता वो तकदीर
बिना बनाये मांगता क्यों कर मीठी खीर
लुप्त हुई खग जातियां छोड गयी कुछ देश
कहां बनायें घोंसले पेड रहे ना शेष
19 comments:
wakai ped shesh nahi rahe.. achhi gazal
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
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श्रीगणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छा लगा आपको दोबारा ब्लॉग पर देखकर ! शुभकामनाएं जी ...
पुराने कहाँ हैं
आज और अभी के हैं
बहुत सुंदर ।
इंसान इंसान की भूख नहीं आस्था के नाम पर भोग उनका भोग लगाना नहीं भूलता .. विकट विडम्बना है ... सार्थक चिंतन
कल 31/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
बढ़िया दोहे
बहुत बढ़िया
सुन्दर भाव ....... बढ़िया !!
बहुत सुन्दर.
घुघूती बासूती
बेहद अपने आंच लिए जलन लिए। सन्देश लिए गीता का :
सुन्दर ... मन को छु गए सभी दोहे ...
सभी दोहे अच्छे लगे ।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!
अनुपम प्रस्तुति......आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं |
बहुत ही शानदार
http://puraneebastee.blogspot.in/
@PuraneeBastee
बहुत खूब। सुदर रचना।
बहुत बढ़िया
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