23 August, 2014

दिव्य अनुभूति-- कविता

दिव्य अनुभूति

 ये कैसी है अनुभूति
 कैसा है अनुराग
 मेरे अंतस मे
 तेरे सौरभ की
 रजत किरणों का आभास
 मुझे लिये जाता है
 अनन्त आकाश की ओर
 जहां मै तू है
 और तू मै हू
 सब एक हो जाता है
हां यही है दिव्य अनुभूती
 दिव्य अनुराग
 तेरे सौरभ की
 रजत किरणों का आभास

19 comments:

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर अध्यात्म भरी रचना ...

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 24/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

रश्मि प्रभा... said...

यही है एकाकार स्थिति

Unknown said...

वाह आदरणीय क्या शब्दों का संयोजन है
क्या धारा है और क्या प्रवाह। बस पढ़के मन से निकली वाह
बहुत सुन्दर बातों का उल्लेख किया है आपने इस कृति में।
वाक़ई जब आत्मबोध होता है, और हम आत्मज्ञान की तरफ झुकते हैं, तो फिर अंतस में दिव्य ज्योत और मन न जाने कहाँ शांत वन में विचरता है।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुंदर अध्यात्मिक रचना

वाणी गीत said...

जहाँ मैं और तू एक हो जाता है , वहां दिव्य अनुभूति संभव है !
अच्छी रचना !

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर है और सत्य है ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अद्भुत भाव

Onkar said...

सुंदर

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

रश्मि शर्मा said...

Bahut khoob

अरुण चन्द्र रॉय said...

उत्कृष्ट

Unknown said...

वाह

Vinay said...

अति सुंदर उत्कृष्ट प्रस्तुति...

संजय भास्‍कर said...

सुंदर है और सत्य है अध्यात्मिक रचना

महेन्‍द्र वर्मा said...

इस सत्य की अनुभूति ही आत्मबोध है !
बहुत सुंदर !

Kailash Sharma said...

मैं और तुम का समायोजन ही मार्ग है दिव्यानुभूति का...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

प्यारी सी अनुभूति .......

Govt Jobs said...

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