02 July, 2012

gazal


54 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

behtreen gazal

अजित गुप्ता का कोना said...

निर्मलाजी बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली। अच्‍छी रचना है। अब स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है?

Shah Nawaz said...

वाह.... दिल को छू गयी आपकी यह गज़ल.... हर एक अश`आर मायनेखेज़ है...

बहुत दिनों के बाद आपकी लिखी कोई गज़ल पढ़ने को मिली....

प्रवीण पाण्डेय said...

मन को द्रवित कर गयी यह रचना। बच्चों की यह कृतघ्नता अक्षम्य होती है..

Rakesh Kumar said...

वाह! जिंदगी की शाम के दर्द को
अभिव्यक्त करती सशक्त रचना.

आपकी कविता सरल निर्मल हृदय का उदगार हैं.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार,निर्मला जी.

समय मिलने पर मेरी नई पोस्ट पर आईएगा.

Bharat Bhushan said...

इस ग़ज़ल ने दिल को दर्द से भर दिया. ज़िंदगी की शाम पता नहीं कब सरक आती है और पहाड़ बन कर खड़ी हो जाती है. शायद यही समय है जब व्यक्ति स्वयं को किसी अज्ञात विधाता के सम्मुख समर्पित कर देता है.
विषय की गंभीरता इस ग़जल की महानता है.

रविकर said...

नादानी बच्चों की देखी
बघारते रहते हैं शेखी
खलल हरदम डालते हैं
उम्मीद फिर भी पालते हैं -जिंदगी की शाम में |
अक्ल कोई तो सिखाये -
आइना इनको दिखाए
मजबूरियों से भेंट होगी-जिंदगी की शाम में |

सदा said...

गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें

डॉ टी एस दराल said...

हिन्दुस्तानी मां बाप अक्सर बस बच्चों के लिए ही जीते हैं . लेकिन बच्चे कहाँ उनकी परवाह करते हैं . इसीलिए ज़रूरी है -समय रहते अपने लिए भी जीना चाहिए .
मार्मिक प्रस्तुति .

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

जिदगी की हकीकत को बयां करती
बहुत सुंदर गजल
क्या कहने

संध्या शर्मा said...

बहुत दिनों बाद आपकी गज़ल पढने मिली बहुत अच्छा लगा. सचमुच बहुत मुश्किल होती है, यह जिन्दगी की शाम.भावपूर्ण रचना के लिए आपका आभार निर्मला जी

PAWAN VIJAY said...

सुन्दर बिम्बो का अनुप्रयोग
सादर्

रेखा श्रीवास्तव said...

दिल को छू गयी ये ग़ज़ल , जिन्दगी के हर रंग को दिखा गयी है और वाकई यही रंग जिन्दगी की शाम में शेष रह गए हें और रह जाते हें क्योंकि अब इन्द्रधनुष के रंग भी तो बदल गए हें फिर जिन्दगी पर उसकी छाया क्यों न पड़ेगी?

VIJAY KUMAR VERMA said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मारक गज़ल।
....'ज़िंदगी की शाम में।'.. यह तो कहर ढा रही है हर शेर में। बहुत बधाई।

kshama said...

दोष किसका है जो बदतर जिंदगी है मौत से
Lagta hai mano mere moohse alfaaz chhin gaye hon....

Pallavi saxena said...

बेहतरीन प्रस्तुति बहुत ही मार्मिक गजल "भूषण अंकल"की बात से पूर्णतः सहमत हूँ।

शूरवीर रावत said...

निर्मला दी, सर्वप्रथम मेरा प्रणाम स्वीकारें।....... लम्बे अरसे बाद आपकी रचना से रू-ब-रू हो रहा हूँ। बहुत प्रसन्नता हो रही है
किन्तु यह क्या ? ग़ज़ल में आपका दर्द झलक रहा है। हकीकत बयां कर दी आपने। गला भर आया।
कल हमें भी इस हकीकत से दो चार होना है। क्या किया जा सकता है। इश्वर हमें इस दर्द को झेलने की क्षमता दे बस !
शुभकामनायें !!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आदमी के पास कोई पल तो हो आराम का
अब भी हैं चप्पू चलाते जिंदगी की शाम में

Waah.....Behtreen Gazal

rashmi ravija said...

बड़े दिनों बाद वापस आयीं....सुस्वागतम
उम्दा ग़ज़ल

Arvind Jangid said...

बेटी घर में मौज करती, फर्ज लादे है बहु....बहुत सुन्दर

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

beautiful composition.

वाणी गीत said...

क्या नहीं करते हैं बच्चो के लिए माँ बाप , मगर जीवन की शाम ही फैसला करती है बच्चों के प्रेम का !
अच्छी ग़ज़ल !

Asha Lata Saxena said...

निर्मला जी बहुत अरसे के बाद आपकी बेहतरीन रचना पढने को मिली बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
अब आपका स्वास्थ्य कैसा है |
आशा

Saras said...

मर्मस्पर्शी रचना ...!

निर्मला कपिला said...

मेल दुअरा श्री मनोज जयसवाल जी की टिप्पणी----
सब से अपने गम छुपाते ज़िन्दगी की शाम में चुपके से आँसू बहाते ज़िन्दगी की शाम में दोष किसका है जो बदतर जिंदगी है मौत से वक्त का मातम मनाते ज़िन्दगी की शाम में ख्वाब सारे टूट जायें, साथ छोड़े जिस्म भी आँखें अपने ही चुराते ज़िन्दगी की शाम में बेटी घर मे मौज करती फर्ज लादे है बहू आसिया माफिक घुमाते ज़िन्दगी की शाम में आदमी के पास कोई पल तो हो आराम का अब भी हैं चप्पू चलाते जिंदगी की शाम में आग उगले शह्र की आबोहवा है आजकल साँप डर के फन उठाते ज़िन्दगी की शाम में टाँग कर खूँटी पे सारे ख़्वाब सोया मीठी नींद दर्द पर दिल के जलाते ज़िन्दगी की शाम में क्या नही करते हैं बच्चों के लिये माँ बाप पर हैं अनादर वो दिखाते ज़िन्दगी की शाम में.
बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

Smart Indian said...

मर्मस्पर्शी सच्चाई!

अनामिका की सदायें ...... said...

harek ki jindgi ki shaam par ek marmik sacchayi jo shaneh shaneh sabke samaksh aani hai.

bahut bahut prabhaavshali abhivyakti.

P.N. Subramanian said...

ज़िन्दगी की शाम क्या ऐसी ही होती है. शायद. सुन्दर रचना.

संजय भास्‍कर said...

बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली।

संजय भास्‍कर said...

उम्दा ग़ज़ल

Satish Saxena said...

जब जब थक कर चूर हुए थे ,
खुद ही झाड बिछौना सोये
सारे दिन, कट गए भागते
तुमको गुरुकुल में पंहुचाते
अब पैरों पर खड़े सुयोधन!सोंचों मत,ऊपर से निकलो !
वृद्ध पिता की भी शिक्षा में, एक नया अध्याय चाहिए !


सारा जीवन कटा भागते
तुमको नर्म बिछौना लाते
नींद तुम्हारी ना खुल जाए
पंखा झलते थे , सिरहाने
आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

Maheshwari kaneri said...

.सच्चाई बयान करती मर्मस्पर्शी ...आभार..

Dr.Uma Shankar Chaturvedi said...

आप की टिप्पड़ी से मन उत्साहित हुआ .

'करते अनादर जिन्दगी की शाम में '

यह कटु सत्य है काश ! ऐसा न होता ..

S.N SHUKLA said...

सुन्दर रचना, सार्थक पोस्ट, बधाई.
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .

virendra sharma said...

यार मत बोलो ये सच ,तुम ज़िन्दगी की शाम में ....
वक्त था ,जो कट गया सब ,क्या बचा है शाम में .

virendra sharma said...

क्या गिला शिकवा किसी से ज़िन्दगी की शाम में ,

यार मत बोलों भला सच, ज़िन्दगी की शाम में .

क्या गिला शिकवा किसी से ज़िन्दगी की शाम में .

क्यों रहें रुसवा किसी से ज़िन्दगी की शाम में .बढिया प्रस्तुति भाव विरेचन करती हुई .

सुज्ञ said...

मन को छू जाती गजल!!

virendra sharma said...

नेकी कर दरिया में डाल .सभी संतानें यकसां होती हैं ,दुनिया किस्मत पे रोती है .शुक्रिया आपके ब्लॉग पे आने का ,टिपियाके हौसला बढाने का ...

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
बहुत सुन्दर गज़ल....
मन को छू गयी..

सादर
अनु

कुमार राधारमण said...

लिखा तो अच्छा है। मगर जीवन ऐसा तो नहीं है। और,अगर है तो कसूर हमारा ही होगा। हर पीढ़ी का यही रोना है,हम सीखते क्यों नहीं कुछ दूसरों के अनुभव से?

Dr.NISHA MAHARANA said...

sundar gazal...

Asha Joglekar said...

जिंदगी की शाम में हो जाता है आने वाली रात का आभास ।

Hiteshita Rikhi said...

Mummy,such a beautiful poem...very true,who else can describe life better than you my dearest mom...love u lots..

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत दिनों बाद मिली ये ग़ज़ल पढ़ाने को - जिन्दगी शाम में ही तो सारी बातें याद आती हैं क्योंकि जिन्दगी भर तो दिन के उजले में सब जी जान से जुटे रहते हैं अपने सामर्थ्य के अनुरुप अपने आशियाँ को सजाने और परिवार को बनाने में और जब शाम आती है तो थक जाते हैं और तब ऐसी हकीकत देख कर कलम चलने लगती है और जिन्दगी की शाम के इस असली रूप को समझने लगती है.
एक यथार्थ को दिखती सुंदर सी ग़ज़ल के लिए आभार.
.

Sadhana Vaid said...

मन को छू लेनेवाली प्रसार बेहतरीन गज़ल ! इतनी देर से पढ़ पाई इसके लिये अफ़सोस हूँ ! उम्मीद है आप माफ ज़रूर कर देंगी ! नुक्सान भी तो मेरा ही हुआ है ! है ना ?

Asha Joglekar said...

वाह, कितनी यथार्थवादी गज़ल पेश की है ।

सुधाकल्प said...

एक बहुत सुन्दर गजल पढी व दूसरी सुनी |दोनों ही दिल को छूने वाली |

अंजना said...

बहुत सुन्दर गजल...

Asha Joglekar said...

कैसी हैं आप । ब्लॉग पर आपकी कमी खलती है ।

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर |

Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Admin said...

Bahut hi shandar Ghazal kahi hai aapne. Hardik Badhayi.
Kutty thevangu & Hoolock gibbon iucn

Mavis said...

man ko jhoo lene waali gazal h apko badhai.

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