टिप्पणी व्यथा{ क्या व्यर्थ जा रहे हैं तारीफ मे लिखे कमेंन्ट}
इस से पहली पोस्ट मे मैने ज़ाकिर अली रजनीश जी का टिप्पणियों के बारे मे आलेख पोस्ट किया था और सब के कमेन्ट पढ कर iइस नतीजे पर पहुँची कि एक तो सब ने एक स्वर मे कहा कि टिप्पणियाँ तो होनी चाहिये ।इससे लेखन क्षमता बढती है और उत्साह मिलता है। कुछ ने कहा कि अलोचना भी होनी चाहिये--- गलत को गलत और सही को सही। बात सही है लेकिन क्या हम समीक्षक हैं ---क्या क्या हम मे खुद मे इतनी प्रतिभा है कि हम उसकी गलतियाँ निकाल सकें? ये काम समीक्षकों का या आलोचकों का है। दूसरा अगर बहुत लोगों के ब्लाग पर जाना है तो संक्षिप्त टिप्पणी ही का जा सकती है। अब अपना पक्ष रखना चाहती हूँ
मैने जब अपनी पहली पोस्ट लिखी थी तो उसमे कई गलतियाँ थी। आज जब वो पोस्ट पढ्ती हूँ तो खुद पर शर्म सी महसूस होती है जब्कि सभी ने प्रशंसात्मक टिप्पणियाँ ही दी थी। सब से पहली टिप्पणी श्री गिरिजेश राव जी ने की थी और मेरा उत्साह वर्द्धन किया था। उसके बाद नीरज जी प्रकाश सिंह अर्श डा. अनुराग अदि कई टिप्पणियाँ आयी तो मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा। फिर धीरे धीरे सब के ब्लाग पर जाना शुरू किया तोसब की टिप्पणियाँ प्रशंसा भरी ही होती{ लगभग} ऐसा नही है कि मै किसी की पोस्ट बिना पढे टिप्पणी देती हूँ। अगर मुझे कुछ लगे तो बजाये ब्लाग पर टिप्पणी देने के उसे मेल कर देती हूँ ताकि वो निरुत्साहित न हो। दिव्या जी ने सही कहा कई लोग केवल अपनी भडास निकालने के लिये या खुद को सर्वश्रेष्ट दिखाने के लिये बिना बजह बहस करने लगते हैं इसका कटु अनुभव हो चुका है। लेकिन कुछ ऐसे उदार लोग भी हैं जो मेल दुआरा अपनी बात या विरोध करते हैं।
ब्लाग पढना भी मै जरूरी समझती हूँ क्यों कि इसी ब्लाग जग्त से मैने बहुत कुछ सीखा है। जब पढ ही लिया तो कमेन्ट देने मे क्या हर्ज़ है?ये भी जरूरी नही कि सब लोग टिप्पणियाँ जरूर करें।क्यों कि सब के पास इतना समय भी नही होता। लेकिन कुछ लोग खुद को वरिष्ट या श्रेष्ठ समझ कर ही टिप्पणी नही करते जब कि इनका मार्ग दर्शन नये लेखकों के लिये बहुत जरूरी व उत्साहवर्द्धक होता है। एक बात ये भी है कि कुछ लोग अच्छे साहित्यकार हैं अच्छे ब्लागर हैं जो श्रम पूर्वक साहित्य साधना मे लगे हुये हैं उनके पास समय नही होता ब्लाग पढने का} लेकिन वो अपने मार्ग दर्शन से बहुत से नये साहित्यकारों को जन्म दे रहे हैं ऐसे लोगों के आगे नतमस्तक हूँ। इसके लिये एक उदाहरण दूँगी-------
सुबीर संवाद सेवा एक ऐसा ब्लाग है जिसके स्वामी श्री पंकज सुबीर जी हैं ।वो अपना व्यवसाय , घर चलाने के अतिरिक्त एक गुरूकुल चलाते हैं जिसमे गज़लें सिखाई जाती हैं मुशायरे करवाये जाते हैं फिर फिर उन्हें अपने शिष्यों की गज़लों को दुरुस्त करना होता है। मैं हैरान हूँ कि वो अपना काम कब करते होंगे इसके अतिरिक साहित्य लेखन , काव्य मंचों मे उपस्थिती और पता नही कितने काम होते हैं। इनका समझ आता है कि वो टिप्पणी नही कर सकते ।ये सच्ची साहित्य साधना और साहित्य धर्म का का निर्वाह करते हुये सब का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। कुछ मेरे जैसे केवल टाइम पास होते हैं जो सिर्फ अपनी सुविधा के लिये ही लिखते है। अगर मैं सब ब्लाग्ज़ पर न जाती होती तो कैसे सब से परिचय होता?
लेकिन हम जैसे लोगों को टिप्पणी जरूर करनी चाहिये मेरा तो यही मानना है। सब से परिचय होने से उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जब मै ब्लागजगत मे आयी थी तो मुझे कविता, गज़ल या नज़्म मे फर्क पता नही था। लेकिन सुबीर जी से गज़ल सीखी नवीन जी से परिचय हुया तो दोहे सीखे, श्री रामेश्वर कम्बोज हिमाँशू जी से परिचय हुया तो हाईकु और आजकल ताँका गीत सीख रही हूँ। । इतनी लम्बी चौडी बात का अर्थ यही निकला कि टिप्पणी जरूर करनी चाहिये । जो गलती निकालने की सामर्थ्य रखते हैं जरूर संतुलित शब्दों मे निकालें, \ कम से कम मै आलोचक या समीक्षक नही हूँ। हाँ अगर लगे तो मेल जरूर करती हूँ। समयाभाव के कारण संक्षिप्त टिप्पणी ही हो पाती है। समीर लाल जी की तरह । वो सब को कमेन्ट देते हैं उत्साह वर्द्धन करते हैं तो अच्छा लगता है। वैसे भी बुढापे मे , बेटिओं के चले जाने से व्यस्त रहने का ये जरिया है समय बिताने के लिये। । कमेन्ट करती हूँ धर्म राजनिती बहस से दूर रहती हूँ हाँ कई बार रोचक बहस हो तो हिस्सा भी बन जाती हूँ। मुझे मेल दुआरा प्रप्त पोस्ट पर टिप्पणी करने से गुरेज होता है जिन को सबस्क्राईब किया है उन्ही मेल वाली पोस्ट पर जाती हूँ या एक दो बार किसी की मेल मिले तो देख लेती हूँ लेकिन हर बार वो मेल करके ही कमेन्ट लें ये अच्छा नही लगता। मेल करने का ये तरीका कमेन्ट के लिये मुझे इसलिये अच्छा नही लगता कि कितना समय तो मेल बाक्स क्लीयर करने मे लग जाता है। ब्लाग का काम ब्लाग पर ही होना चाहिये। बेशक टिप्पणी लेन देन ही हो लेकिन ये दुनिया के किस रिश्ते या व्यवसाय मे नही होता? हम किसी के घर 4 बार जाते हैं लेकिन वो एक बार भी न आये तो कब तक आप जाते रहेंगी?टिप्पणी की परंपरा जीवित रहेगी तभी हम सब को समझ और पढ पायेंगे ।
डा, नलिन चक्रधर महोपाध्याय[ लखनऊ, उन्होंने मुझे कहानियाँ लिखने के लिये उत्साहित किया था। पत्रिका मे मेरा पता देख कर मुझे पत्र लिखा जब कि मै उन्हें जानती नही थी। जब मैने उन्हें धन्यवाद दिया [पत्र मे] तो उनका जवाब आया कि मै अपनी साहित्य धर्मिता का निर्वाह कर रहा हूँ। । उनकी वो बात आज भी मेरे जहन मे है\ इस लिये
टिप्पणी कीजिये लेकिन उत्साहवर्द्ध, अगर गलती निकालनी है तो बेहतर है मेल करें, नही तो विनम्र शब्दों मे गलत को गलत कहें और सही को सही।मेरा मानना है कि तारीफ मे लिखे कमेन्ट कभी व्यर्थ नही जाते बल्कि उत्साहित करते हैं और उत्साह ही आगे बढने के लिये प्रेरित करता है।जब आप खुद टिप्पणी का मोह रखते हैं तो फिर खुद टिप्पणी करने से परहेज क्यों? दूसरे भी आपसे यहीआअपेक्षा करें तो गलत क्या है?
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61 comments:
AAPNE EK EK BAAT SACH KAHI HAI,
MAIN AAPSE POORI TARAH SAHMAT HOON
टिप्पणी करें मगर सकारात्मक , उत्साहवर्धक , और पूरी रचना पढने के बाद ...
निर्मला जी,
आपकी बात बिल्कुल सही है और इन बातों को लोग मन ही मन मानते भी हैं मगर बात सबकी दुनिया उनके अनुसार ही होती है। बहुत लोगोंके पास वाकई समय नहीं होता है, बहुत से लोगोंके लिये ब्लॉग एक जनसम्पर्क अभियान से अधिक कुछ नहीं है, ऐसे लोग टिप्पणी क्यों करेंगे। इसी प्रकार प्रशंसात्मक टिप्पणी से खुश होने और आलोचना से निराश होने वाली बात भी अधिकांश स्थितियों में सामान्य ही लगती है लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग में टिप्पणियों को ओवररेट किया जा रहा है। अगर किसी को पोस्ट अच्छी भी लगी हो तो टिप्पणी दे यह ज़रूरी नहीं है। कितने लोग कम ही बात कर पाते हैं, उनकी पोस्ट भी सारगर्भित और कम शब्दों की होती हैं। दूसरे कितने ही लोग काम के बोझ से दबे हो सकते हैं। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जिनकी बडी गलती को इंगित करने के बाद से उन्होंने खफा होकर व्यवहार बन्द कर दिया। लेकिन ऐसे अपरिपक्व व्यवहार से चिंतित होने की क्या आवश्यकता है? ऐसा व्यक्ति आज नहीं तो कल खफा होता ही। बाकी परिचय हो जाता है तो जय राम जी की भी होती है और स्माल टाक भी। मिलती जुलती प्रकृति, रुचि, व्यवसाय, वय आदि के आधार पर समूह बनते हैं और स्वार्थ या विचारधारा का टकराव होने पर टूटते भी हैं।
और हाँ यह भी ज़रूरी नहीं है कि सब को टिप्पणी अपेक्षित हो। ऐसे ब्लॉग भी हैं जिन पर टिप्पणी बक्से कभी खुले ही नहीं।
आपने सुन्दर विश्लेषण द्वारा यह साबित किया की टिपण्णी उत्साहवर्धन हेतू जरूर की जानी चाहिये.टिपण्णी यदि पोस्ट पर पढकर मुक्तभाव से की गई हों तो अच्छा लगता है.एक रिश्ता कायम कर देती है यह टिपण्णी अच्छे संवाद के द्वारा.
जो टिपण्णी पोस्ट को बिना पढ़े,समझे भी की जाती है ,भले ही औपचारिक तौर पर ,वे भी इसीलिए अच्छी लगती हैं की उपस्तिथि का भास तो कराती हीं हैं.परन्तु,अच्छा तो यही है कि पढकर,समझकर ही टिपण्णी की जाये.
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर सुन्दर टिपण्णी देकर मुझे अभिभूत कर दिया.बहुत बहुत आभार आपका.पर मन अभी भरा नहीं,ये दिल मांगे 'मोर'.आपके शब्दों में जादू ही ऐसा है.
bahut hee umdaa baat kahee aapne aunty, waaki mein tippaniyo ka bahut mahatv hota hai so hum sabhi ko soch samajh ke uska upyog karna chahiye!
एक प्रश्न मन में आ रहा है कि किसी ने अपनी पोस्ट में एक गजल लिखी, और वह गजल तकनीकी रूप से खामियां लिए थी तो गजल के जानकार क्या करेंगे? क्या वे प्रशंसा ही करेंगे या उसकी गलती को सुधारने के लिए उसकी खामियां बताएंगे? आपने लिखा कि अलग से मेल कर दें, तो जो लोग टिप्पणी करके उसे वाह वाह कर रहे हैं, उन्हें कैसे पता लगेगा कि वे किसे वाह वाह कर रहे हैं? जहाँ तक गद्य का सवाल है वहाँ अनेक विचार आएंगे ही, हम ब्लाग पर लिख ही इसलिए रहे हैं कि हमें अनेक पहलुओं का ज्ञान हो सके। इसलिए विचारों का आदान-प्रदान तो होगा ही। वह अलग बात है कि सभी को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। ऐसा भी नहीं कि किसी को कोई गलती इंगित कर दी तो वह गुस्से मे उसके साथ अमर्यादित हो जाए। यह सार्वजनिक मंच हैं, अपनी रचना सार्वजनिक करने पर आलोचना तो होगी ही और उसे सुधारात्मक दृष्टिकोण से ही लेना चाहिए। ऐसा नहीं है कि ब्लाग जगत में कोई आलोचक या समीक्षक नहीं है, बहुत लोग हैं जो अपने विषय के विशेषज्ञ हैं, उनकी टिप्पणी या समीक्षा को आदर देना ही चाहिए। आशा है मेरी बात को आप सही अर्थों में लेंगी, क्योंकि मै भी आलोचक नहीं हूँ।
टिप्पणियों से उत्साहवर्धन होता है
टिप्पणी करें मगर सकारात्मक , उत्साहवर्धक , और पूरी रचना पढने के बाद
@ सुनील कुमार की इस बात से हम भी सहमत
टिप्पणियों में संवाद के बोल भी हैं और प्रेरक स्वर भी।
आलोचनात्मक विचार के लिए एक ख़ास ब्लॉग ही हो तो सही है ... क्योंकि हम सब खुद अपना स्थान बना रहे , किसी को सिखाने की क्षमता नहीं , हाँ प्रशंसा में अद्भुत शक्ति होती है और इससे प्रगाढ़ता भी बढती है . पहले की रचनाओं में कई रचनाएँ अति साधारण लगती हैं - पर ऐसा सबके साथ होता है . कवि पन्त की जिस रचना को हर बार अस्वीकृत किया गया - आज वह उनकी श्रेष्ठ रचना है. पहले तो लिखते के साथ लोगों की वाहवाही भी नहीं मिलती थी . टिप्पणियों का सार्थक असर होता तो है, पर उसके लिए गिनती की आवश्यकता नहीं
सुंदर विश्लेषण ....उत्साहवर्धन के लेखन में सुधार के सूत्र भी मिलें तो पढने वालों और लिखने वालों दोनों के लिए अच्छा रहेगा......
विचारणीय आलेख. आभार.
आप बहुत उपयोगी साधना में लगीं हैं!
सीखने की कोई उम्र नही होती!
शुभकामनाएँ!
main ap ki bat se pooree tarah sahmat hoon comments zaroor hone chahiye is se oorjaa aur protsaahan milta hai, aur agar kahin ghalti hai to us ke liye mail hi hona chahiye,
sab se badhkar agar hamari kisi ghalati ki ore kisi ne ishara kiya ho to use khule man se sweekaar karen agar sahi ho to warna vinamrata se apni bat samjha di jaae ,kahin koi niji comment n ho ,vyangy n ho ,bahut sahi aur achchha mudda uthaya hai zakir sahab ne aur aap ne ,
ek bat aur kahna chahoongi ki mahatvpoorn ye nahin ki comments kitne aae kisi post par,mahatvpoorn ye hai ki kitne logon ne dhyan se padh kar to the point comments kiye ,is saarthak post ke liye
dhanyvad .
चलो दिल्ली दोस्तों अब वक्त अग्या हे कुछ करने का भारत के लिए अपनी मात्र भूमि के लिए दोस्तों 4 जून से बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ रहे हें हम सभी को उनका साथ देना चाहिए में तो 4 जून को दिल्ली जा रहा हु आप भी उनका साथ दें अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को देखें
http://www.bharatyogi.net/2011/04/4-2011.html
आपकी बातों से सहमत हूँ !
आपकी बात से सहमत हूं, बहुत ही गहन एवं सार्थक प्रस्तुति ।
अजित जी ये तो टिप्पणी करने वाले को ही देखना चाहिये कि वो क्या कर रहे हैं। हाँ जो गलती मै खुद करती रही हूँ उसके लिये किसी दूसरे को हतोत्साहित कैसे कर सकती हूँ। मैने उसे मेल इसी लिये की थी कि अपनी गलती सुधार ले। बाकी मैने अपनी पोस्ट मे सब लिख दिया है। धन्यवाद।
aapki baat bahut achchi lagi.
आपकी एक एक बात से पूर्णत: सहमत.
आपकी बात से सहमत हूँ मैं ... मुझे भी शुरू में ग़ज़लों और नज़्म में फ़र्क नही पता था ... बाहर का ज्ञान नही त ... पर इसी ब्लॉग जगत ने बहुत कुछ सिखाया ... और टिप्पणियों ने उत्साहित किया ...
hame aapke comment ka intzaar rahta hai ...nirmala di..:)
yaad hai bloggers meet me mile the..
Achchhi lagi aapki charcha.
............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
निर्मला जी,
आपकी बात से पूरी तरह से सहमत , वरिष्ठ लोग ही नए आने वालों को प्रोत्साहित कर सकते हैं और मेल से ही उनको गलत और सही का भान करा दें तो बहुत ही अच्छा है अपने से छोटों के लिए समय निकाल लेना चाहिए. टिप्पणी उत्साहवर्धन तो करती ही है.
आलोचना यदि समझाने के अंदाज़ में की जाए तो बुरी नहीं लगती ...मैंने भी बहुत कुछ सीखा है यहाँ और रोज सीख रही हूँ ...कही मात्राओं की गलती हो तो इंगित कर देती हूँ यह कहते हुए कि मैं भी बहुत गलतियाँ करती हूं , जो सच भी है !
आभार !
आपकी बात से पूर्ण सहमति है...
मेरे विचार से न ही अंध प्रशंसा करनी चाहिए न ही अनावश्यक छिद्रान्वेष ... प्रशंसा करनी हो तो मुक्त ह्रदय कीजिये...गलती बताना/मार्गदर्शन करना हो तो व्यक्तिगत (ईमेल द्वारा) रूप से कीजिये.....सदैव ध्यान में रखिये कि सामने वाले का भला हो..यह ध्यान में रखा जाय तो गलती की सम्भावना न्यूनतम रहेगी...
हाँ,यह भी है कि जहाँ कहीं यह लगे कि सामने वाला कूड़ा फैला रहा है,उसे किसी भी भांति समझाने पर वह समझने वाला nahi ,तो बेहतर है वहां से चुपचाप निकल जाया जाय,बजाय लड़ाई झगडा छीछालेदर करने के...
निर्मला जी, आपने टिप्पणियों की आवश्यकता और मर्यादा पर बहुत संतुलित शब्दों में अपनी बात कही है जिससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ.
nice
आपकी हर बात से पूर्णत: सहमत हूँ ! सुन्दर आलेख के लिये बधाई !
बहुत ही महत्वपूर्ण विषय चुना है आपने
किसी भी पोस्ट को पढ़ कर टिप्पणी ज़रूर करनी चाहिए
ऐसे करने से रचना लिखने वाले को प्रोत्साहन मिलता है
लेकिन किसी को भी अपने या किसी अन्य को ब्लॉग को
अखाड़ा नहीं बना देना चाहिए
(जैसा कि कुछ एक ब्लोग्स पर देखा गया है) अपनी हर बात विनम्रता से कह देने की आदत
बनाये रखना शिष्टाचार को बनाए रखता है ,,, टिप्पणी करते वक्त
उस रचना-विशेष के मूल-भाव को अवश्य ही मन में रखना चाहिए
विषय से हट कर बहस करना, दूसरों को इसी बात के आमंत्रित
करने जैसा ही हो जाता है ,,,
याद रक्खें.......
किसी शख्स द्वारा,
कहीं भी की गयी टिप्पणी,
उसके व्यवहार की परिचायिक भी हो सकती है...!
माँ जी! आपकी हर बात से सहमत हूँ....
मुझे तो लगता है बहुत कुछ पढने/सीखने को मिलता है ब्लोगों से ..... सभी के प्रोत्साहन और सहयोग से हम भी चल रहे हैं .. टिप्पणी से उर्जा जरुर मिलती है लिखने के लिए और तभी तो अपने मन में जो आता है ब्लॉग पर लिखने के लिए और लोग क्या कहते हैं इसकी भी उत्सुकता रहती है... ...... धीरे धीरे सीख रही हूँ आप लोगों के आशीर्वाद से ....
सादर
आपकी बातों से सहमत हूँ !
सही कहा जी । गुड़ न दें , गुड जैसी बात तो कह दें ।
बेवज़ह गलती निकाल कर किसी का दिल दुखाना सही नहीं ।
आलोचना के लिए कमियाँ निकालने से बेहतर है उत्साहवर्धन के लिए अच्छाइयाँ ढूंढी जांय लेकिन गलत की तारीफ करना भी अच्छी बात नहीं।
मुझे कविता, गजल ओर गीतो की कोई समझ नही इस लिये हमेशा वाह वाह, लेकिन कोई ऎसी बात जो समाज के विरुध हो तो मेरे से सहन नही होती , हां लेखक अगर मेरे से बडी उम्र का हो तो, चुपचाप निकल जाता हुं बराबर का या छोटी उम्र का हो तो जरु गलती पर टोक देता हुं, बाकी सब से ज्यादा अक्षरो कि गलतियां मै खुद करता हुं:) लेकिन अगर किसी को टोको भी तो प्यार ओर अपने पन से जिस का उसे बुरा ना लगे. हम भी कोई महा ग्याणी तो नही
aapkee baat se poorntah sahmat hoo .
aabhar
blog saarthak vichaaron kaa saarvjanik manch hai.
vichaar kaa aadaan pradaan to comments se hee hogaa.
आपकी बातों से सहमत हूँ
आलोचना के लिए कमियाँ निकालने से बेहतर है उत्साहवर्धन के लिए अच्छाइयाँ ढूंढी जांय ....
"ब्लॉग पर टिपण्णी" पर आपने सही लिखा है निर्मला दी. परन्तु ब्लॉग पर टिपण्णी के रूप में किसी के लेख, कविता, ग़ज़ल को शायद ही कोई मार्गदर्शक के रूप में सुधारने का प्रयास करता हो. कि अमुक पंक्ति में यह कमी है, या इसे ऐसा लिखा जाना चाहिए था, या इस पैरा को इस स्थान पर होना चाहिए था आदि आदि. प्रायः सभी औपचारिकता मात्र निभाते हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी शादी में कई दोषों से युक्त दुल्हन/दूल्हा देखकर हम कह देते हैं कि "दुल्हन/दूल्हा तो सुन्दर है" या "दुल्हन/दूल्हा तो सुशील है"........ इसका कारण यही हो सकता है कि लोगों के पास या तो समय नहीं है या फिर लोग बहस में पड़ना ही नहीं चाहते हैं......... आप यदि सहमत/असहमत हों तो टिपण्णी अवश्य करें निर्मला दी, औपचारिकता मात्र न निभाएं........ आभार. अनेकानेक शुभकामनायें!
"ब्लॉग पर टिपण्णी" पर आपने सही लिखा है निर्मला दी. परन्तु ब्लॉग पर टिपण्णी के रूप में किसी के लेख, कविता, ग़ज़ल को शायद ही कोई मार्गदर्शक के रूप में सुधारने का प्रयास करता हो. कि अमुक पंक्ति में यह कमी है, या इसे ऐसा लिखा जाना चाहिए था, या इस पैरा को इस स्थान पर होना चाहिए था आदि आदि. प्रायः सभी औपचारिकता मात्र निभाते हैं.
ऐसा लगता है जैसे किसी शादी में कई दोषों से युक्त दुल्हन/दूल्हा देखकर हम कह देते हैं कि "दुल्हन/दूल्हा तो सुन्दर है" या "दुल्हन/दूल्हा तो सुशील है"........
इसका कारण यही हो सकता है कि लोगों के पास या तो समय नहीं है या फिर लोग बहस में पड़ना ही नहीं चाहते हैं.........
आप यदि सहमत/असहमत हों तो टिपण्णी अवश्य करें निर्मला दी, औपचारिकता मात्र न निभाएं........
आभार. अनेकानेक शुभकामनायें!
आदरणीया निर्मला जी सादर प्रणाम|
अपने बच्चे को ज़रूरत से ज़्यादा इज़्ज़त दे रही हैं आप| मैने आप को कोई दोहे वोहे नहीं सिखलाए| ये तो आप के अंदर छुपी प्रतिभा है, आप का जीवट है, जो समय मिलते ही मार कुलाँचें बाहर निकल आया| पर कुंडली न भेज कर आपने, मुझे, आप से रूठने का मौका दे दिया है [हाहाहा]|
आपने वाकई बेहद महत्वपूर्ण विषय पर लेखनी उठाई है| मैं आप की बातों से सहमत हूँ|
किसी के लेख को पढे बिना समझे बिना केवल बहुत अच्छा , अच्छी रचना - लिख आना क्या उचित है और यदि रचना ध्यान से पढेगा उसे गम्भीरता से पढेगा तो तीन चार ब्लाग से ज्यादा नहीं पढ पायेगा जहां तक आलोचना का प्रश्न है हरेक का नजरिया प्रथक प्रथक रहता है आलोचक आज प्रेमचंदजी के भी है जो कहते है पूस की रात संसार की सबसे घटिया कहानी है। निसंदेह लेखन की सराहना की जानी चाहिये जहां तक गलती का सवाल है मुद्रण त्रुटिया तो होती है पहले हिन्दी में लिखो फिर उसे कन्वर्ट करो इसलिये ऐसी गलतियां निकाल कर शेखी नहीं बधारना चाहिये । मेरी इस टिप्पणी मे ही आपको व और ब की अशुध्दिया मिल जायेगी। यह बहुत अच्छी बात कही है कि गलतियां निकालना ही घ्येय है तो टिप्पणी न लिख कर मेल से सूचित करे।यह बात सही है कि टिप्पणी का मोह तो नहीं छूटता है हर कवि चाहता है तारीफ। गोस्वामी जी ने ही कहा है निज कवित्त केहि लाग न नीका , सरस होहु अथवा अति फीका । बहुत अच्छा आर्टीकल लिखा है आपने धन्यवाद ।
bilkul sahi kha aapne...
लेख से संबंधित आलोचना से क्यों गुरेज किया जाये? अगर तारीफ़ सुनना चाहते हैं तो आलोचना के लिये भी तैयार रहना चाहिये। आपने अपनी बात बहुत प्रभावशाली ढंग से रखी है, आभार।
बहुत ही पते की बात कही है आपने...
पोस्ट में उद्धृत सारी ही बातें ध्यान देने योग्य हैं..
आजकल व्यस्तता की वजह से नियमित नहीं हो पा रही....सॉरी
Nirmala ji ..aapke adeshanusaar maine comments box on kar diya ...:)
Warm regards !
आपने बड़ी शालीनता से अपनी बात कही है.good.
Sahee kah rahee hain. galti sabke samne nahee nikalte par taeef jamane ke samne karte hain wahee suchche mitr hote hain.
बहुत अच्छी बात कही है निर्मला जी ... आप के कहे दो बोल लिखने वाले को इस तरह लगते हैं जैसे प्यासे को रेगस्थान में मिला दो बूंद पानी
बेहतरीन राय मांगी है आपने,
अगर ऐसी परेशानी ज्यादा हो तो, मोडरेशन चालू कर देना चाहिए,
नहीं तो कमेंट मिटा देना ठीक रहेगा,
आपका ये लेख, सोचने पर मजबूर कर रहा है, कि क्या ठीक है, क्या गलत,
अक्सर देखा गया है की लोग बिना पढ़े टिप्पणी दे देते हैं उससे ऐसा लगता है जैसे बच्चा समझकर खिलोने से दिल बहला दिया हो. पूर्वाग्रह से ग्रसित टिप्पणी भी हतोत्साहित करती है. टिप्पणी अगर सहृदयता से हो तो लेखन मैं सुधार होता है.
आज कल दायें हाथ मे प्रोब्लम है टाईप नही कर पा रही। बायें हाथ से अधिक लिख नही जाता इस लिये आजकल आराम ही कर रही हूँ ठीक होते य्ही हाज़िर होती हून . आभार सब का।
.
निर्मला जी ,
आपके विश्लेषण से पूरी तरह सहमत हूँ। बहुत अच्छे तरीके से आपके एक अहम् मुद्दे पर लिखा है और बहुत संतुलित तरीके से बात सभी लेखकों/टिप्पणीकारों तक पहुंचाई है। इसके लिए ह्रदय में आपके लिए आभार है।
आपको चोट लगी है , उसका ध्यान रखियेगा । शीघ ठीक हो , ऐसी कामना है।
अभिवादन स्वीकार करें।
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बहुत ही गहन एवं सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|
सटीक! मैं भी ऐसी मंशा ही रखता हूँ.. अगर टिपण्णी ही न हो तो किसके लिए लिख रहे हैं? "अच्छा है, बढ़िया था, क्या बात है" ऐसी ही अगर एक-आध टिप्पणियाँ मिल जाती हैं तो दिल खुश हो जाता है और टिप्पणियों की संख्या भी तो बढती है :) .. हाहा..
हम तो टिपण्णी करते रहेंगे.. कोई करे न करे...
और पता चला है कि आपको चोट लगी है? मेरी तरफ से पूरी दुआएं आपके लिए.. शीघ्र ही स्वस्थ हों और फिर ब्लॉगर मुलाक़ात :)
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html
आप के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ |
http;//shayaridays.blogspot.com
बहुत दिनों से आपको देखा नहीं । आप कैसी हैं ?
rashmi ji aur ismat ji ki baton se main sahmat hoon ,unhone sahi kaha .
बहुत अच्छा लगा आप का यह सार्थक लेख पढ़कर | मैं आप से पूरी तरह सहमत हूँ|प्रोत्साहन मिलने पर ही तो ज्यादा से ज्यादा सीखने की ललक पैदा होती है|आप ने एक बहुत अच्छी बात कही तारीफ में मिले कमेन्ट कभी व्यर्थ नहीं जाते बल्कि उत्साहित करते है और उत्साह ही आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है|
निर्मला जी .
नमस्कार
टिपण्णी तो बहुत जरुरी है , हम जैसे नए लेखकों के लिये तो ये अमृत का काम करती है .. और हमें कुछ और सीखने को भी मिलता है .. आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी . धन्यवाद.
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
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