क्या व्यर्थ जा रहे हैं तारीफ में लिखे कमेण्ट ?
आप सब कया सोचते हैं इसके बारे मे। अपने विचार जरूर दें ये आलेख श्री ज़ाकिर अली रजनीश जी के ब्लाग से लिया है। कमेन्ट्स को ले कर ब्लाग जगत मे दुविधा और खींच तान बनी रहती है। कुछ दिन से बार बार इसके बारे मे विचार उठते है। ब्लागजग्त मे सभी साहित्यकार नही हैं लेकिन इन्हीं मे से कभी अच्छे साहित्यकार बनेंगे, इसके बारे मे श्री रवि रतलामी जी का आलेख अगर मिलेगा तो जरूर लगाऊँगी।
12 March 2011
चाहे किसी ब्लॉग पर आने वाली टिप्पणियों की संख्या चाहे 01 हो अथवा 111, उनमें से 99 प्रतिशत टिप्पणियों में सिर्फ और सिर्फ तारीफ लिखी जाती है। टिप्पणीकर्ताओं के इस रवैये को लेकर जहां अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है, वहीं बहुत से लोग इसीलिए ब्लॉगिंग को पसंद भी नहीं करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ये टिप्पणियां व्यर्थ ही जा रही हैं ?
जो लोग मानव व्यवहार में रूचि रखते हैं, उन्हें पता है कि अपने समान्य जीवन में व्यक्ति कितने भी अच्छे काम क्यों न कर ले, लोग उसकी प्रशंसा करने में शर्म सी महसूस करते हैं। यही कारण है कि समाज में सकारात्मक प्रवृत्तियों का लगातार क्षरण हो रहा है और नकारात्मक प्रवृत्तियां परवान चढ़ रही हैं। यदि इसे मेरी सोच की अतिरेकता न माना जाए तो मैं ऐसे पचासों लोगों के उदाहरण दे सकता हूँ, जिनमें लेखन के पर्याप्त गुण थे, किन्तु तारीफ की दो बूंदे न मिल पाने के कारण उनका सृजन रूपी अंकुर असमय ही काल कलवित हो गया।
पता नहीं हमारे समाज का यह कौन का प्रभव है कि हम दूसरों की छोड़ें अपने सगे-सम्बंधियों की भी तारीफ करना गुनाह समझते हैं। अगर हम अपने घर के भीतर ही झांकें, तो अक्सर ऐसा होता है कि घर पर रहने वाली ज्यादातर स्त्रियों में कोई न कोई ऐसा टैलेण्ट अवश्य पाया जाता है, जिसके बल पर वे समाज में अच्छा खासा नाम कमा सकती हैं। ज्यादातर पुरूषों को अपनी पत्नियों के उस गुण के बारे में पता भी होता है, पर बावजूद इसके वे उसकी तरफ से ऑंख मूंदे रहते हैं। अगर किसी भी महिला में कोई विशेष गुण न भी हो, तो इतना तो तय है कि वह कोई न कोई खाना तो अवश्य ही अच्छा बनाती होगी। लेकिन याद कीजिए आपने आखिरी बार अपनी पत्नी के बने खाने की तारीफ कब की थी? माफ कीजिए, शायद आपको वह तिथि, वह महीना अथवा वह साल याद नहीं आ रहा होगा।
पत्नी ही नहीं, हमारे बच्चे, माता-पिता और भाई बहन अक्सर ऐसे काम करते हैं, जो प्रशंसा के योग्य होते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे मुँह से तारीफ से दो शब्द नहीं निकलते। हॉं, उनसे ज़रा सी गल्ती होने पर उन्हें लानत-मलामत भेजना हम अपना पहला अधिकार जरूर समझते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि हमारे सम्बंधों की मधुरता धीरे-धीरे समाप्त होती चली जाती है। यही कारण है कि हमारे सामाजिक सम्बंध बेहद जर्जर हो जाते हैं और जरा सा झटका लगने पर वे टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं।
ऐसे में यदि ब्लॉग की वर्चुअल दुनिया में ही सही हम दूसरों की (भले ही झूठी सही) तारीफ करने की आदत अपने भीतर डाल रहे हैं, तो यह समाज के लिए एक शुभ संकेत है। इससे न सिर्फ ब्लॉगर्स को प्रोत्साहन मिल रहा है, वरन हमारे भीतर भी (अनजाने में ही सही्) परोक्ष रूप में सकारात्मक सोच का नजरिया पैदा हो रहा है। इसलिए यदि कोई आपकी टिप्पणियों में की गयी तारीफ को लेकर आलोचना कर रहा है, तो उससे विचलित न हों और बिना किसी संकोच के अपना काम करते रहें।
आप मानें या न मानें पर प्रशंसा (भले ही झूठी क्यों न हो) शरीर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है, प्रशंसा लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करती है। प्रशंसा हमें दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है, प्रशंसा हमारे शुभेच्छुओं की संख्या बढ़ाती है, प्रशंसा हमारे जीवन में रस लाती है, प्रशंसा हमारी सफलता को नई ऊंचाईयों की ओर ले जाती है। प्रशंसा अगर समय से की जाए, तो अपने परिणाम अवश्य लाती है। प्रशंसा अगर सलीके से की जाए तो चमत्कार सा असर दिखाती है। और सबसे बड़ी बात यह है कि भले ही हमें यह पता हो कि सामने वाला व्यक्ति हमारी झूठी तारीफ कर रहा है, प्रशंसा फिर भी हमें (कुछ क्षण के लिए ही सही) प्रसन्न कर जाती है।
50 comments:
nice
उत्साह बढ़ाने के लिये बड़ों की उपस्थिति होना भी बहुत आवश्यक है हम नवोदितों के लिये।
प्रशंसा के शब्द कभी व्यर्थ नहीं जाते ...मैं तो अपने नियमित लेखन को ब्लॉगजगत की देन ही मानती हूँ , और कोशिश करती हूँ कि अपने बाद आने वाले नए ब्लॉगर्स की हौसलाअफजाई कर सकूँ ! जिसको जो कहना है कहता रहे :)
समाज में बढती नकरात्मकता का गूढ़ विश्लेषण !
निर्मला जी सही कहा आपने । प्रशंसा उत्साहवर्धक होती है । खुले दिल से की गई तारीफ़ टोनिक का काम करती है । लेकिन चाटुकारिता से बचना चाहिए जो अक्सर संभव नहीं होता । मानव प्रवृति है ।
मुझे प्रतीत होता है
अधिकतर कमेन्ट ,कमेन्ट करना है इस लिए करे जाते हैं ,शायद पूरा पढ़ कर समझ कर नहीं होते
सुझाव कम होते हैं ,कई बार अपने ब्लॉग की जानकारी के लिए करे जातें हैं .इस लिए .सकारात्मक आलोचना या प्रशंसा का अभाव दिखता है.वही लिखने वाले ,वही कमेन्ट करने वाले .तुम मेरे ब्लॉग पर करो मैं तुम्हारे ब्लॉग पर करूँ का सा अहसास होता है .
ब्लोग्गेर्स का स्तर भी बहुत भिन्न है
बहुत परिपक्व से बिलकुल बचकाना तक .
प्रबुद्ध ब्लोगर्स का अभाव लगता है
ek prashan
kyaa blog likhna prashansa kae liyae kliyaa jaataa haen yaa kuch saarthak aur sakaratmak karnae kae liyae
jis sae samaaj mae badlaav aayae wo badlaav jo net working sae parae ho
बेशक!! प्रोत्साहन प्रसंसा का आदान प्रदान सभी के लिए आवश्यक है।
किन्तु कठीनता यह है कि एक ब्लॉगर को स्वयं लिखना, दूसरों को पढना साथ ही अपने जीवन के दैन-दिनी कार्य संपादन करना। समय ही कितना मिल पाता है?
इसीलिये जो डा.राजेंद्र तेला जी ने कहा वह सब दृष्टिगोचर होता है।
भले मानो या न मानो, पर हमारी पहली जरूरत और अपेक्षा ही यह होती है कि हमारा लिखा ज्यादा से ज्यादा लोग पढें।
बडी कठीन राह है ब्लॉगिंग की!!
सवाल ये है कि कौन ये है ब्लॉगर जो आज भी प्रशंसा कर रहा है ..और एक ही गलती आखिर क्यॊं कर रहा है ..जब ब्लॉगिंग में गरियाने के फ़ायदे ही फ़ायदे हैं तो फ़िर आखिर प्रशंसा करके ये घाटा क्यों उठा रहा है ..फ़ौरन पता ल्गा के उनको दस्तूर समझाया जाना चाहिए । टिप्पणी न हो तो न हो , और हो तो ऐसी कि बंदा अपने लिखने पर और उसे जैसा समझा गया उस पर अपराध बोध से ग्रस्त हो जाए ..।
जो भी हैं उन्हें समय के साथ चलना ही चाहिए ....और लास्ट में भईया जी इश्माईल करते हुए निकल लेना चाहिए
पोस्ट का फोण्ट बहुत छोटा हो गया है पढ़ने में नहीं आ रही है।
कमेन्ट करना चाहिये, लेकिन सिर्फ तारीफ में हो ये सही नहीं है. अगर हमें कुछ गलत लगता है तो हम आलोचना भी करें.
प्रशंसा उत्साहवर्धक होती है
प्रशंसा दिल खोल कर , सुझाव बड़ी नम्रता से !
पर दोनों ! दें जरूर...
शुभकामनाये!
अशोक सलूजा !
मेरा तो यही सिद्धांत है कि तारीफ कि जगह तारीफ ओर आलोचना कि जगह आलोचना ,अवश्य करनी चाहिय .......
प्रसंसा समय और सलीके के साथ की जाये तो हमेशा उपयोगी होती है.
आपकी प्रशंसा के लिए मेरी पोस्ट प्रतीक्षारत हैं.
आपने वादा किया था फुरसत से आकार पढूंगी.
क्या,मुझे निराश करेंगीं आप ?
सुन्दर टिपण्णी से सुन्दर दिल का रिश्ता भी कायम होता है.
प्रशंसा के दो शब्द भी किसी के लिए बहुत महत्व रखते हैं |
जब खुले मन से प्रशंसा की जाती है तब कोई भी सुझाव भी बुरा नहीं लगता |पर जान बूझ कर किसी का मनोबल कम करने की कोशिश यदि हो तब उसके साथ अन्याय होता है |आपने यह लेख बहुत सुंदर और अच्छे तरीके से लिख कर मन मोह लिया |बहुत बहुत बधाई
आशा
माँ जी! बहुत ही मननशील प्रस्तुति है.. प्रशंसा सच में मन में उर्जा भर देती है, नकारात्मक सोच से मन और व्यथित होता है यह मैंने भी करीब से महसूस किया है.. हाँ ये बात जरुर है की हर समय सकारात्मक भाव मन में रहें यह हर संभव नहीं हो पाता, फिर भी कोशिश मेरी यही रहती है सकारात्मक बनी रही, मैंने भी जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो यूँ ही अपने मन के दुखों के कम करने ले लिए लिख दिया करती थी, आज बहुत अच्छा तो नहीं लिख पाने में सक्षम हूँ किन्तु मन को करार जरुर मिलता है, लिखकर .. और यह आप लोगों का प्रोत्साहन और आशीर्वाद ही है की दौड़ते भागते कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रयासरत हूँ.... आपकी पोस्ट पढ़कर मन की कुछ बात कहने का मौका मिला इसके लिए आपको कोटि-कोटि प्रणाम!.
Aap bilkul sahee kah rahee hain! Aur waise yahan jhoothee tareef nahee hotee....har rachana me kuchh na kuchh to achhayee hotee hee hai!Kaheen spelling mistake ho to use bata dena koyee buree baat nahee.
यथा पोस्ट, तथा टिप्पणी...
ये सिद्धांत अपनाया जाना चाहिए...
दरअसल ट्रेंड ही कुछ ऐसा हो गया है कि नकारात्मकता पहले सबका ध्यान खींचती है...इसके लिए मीडिया भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है...सब जानते हैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अच्छे और ईमानदार आदमी हैं...लेकिन काजल की कोठरी में रह रहे हैं तो कपड़ो पर कालिख तो लगेगी ही...हर कोई सारी गफ़लतों के लिए पीएम को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहा है...अब घर के मुखिया बने हैं तो सुननी तो पड़ेगी ही...लेकिन मेरा सवाल है कि क्या मनमोहन सिंह पॉजिटिव कुछ भी नहीं करते...सुप्रीम कोर्ट की पहल पर ही सही, ये बड़े बड़े नाम वाले एक के बाद एक कर तिहाड़ जेल जा रहे हैं तो क्या इसका ज़रा सा भी श्रेय पीएम को नहीं दिया जाना चाहिए...लेकिन नहीं, क्या मजाल कि पीएम की तारीफ़ में हमारे मुह से एक शब्द भी निकल जाए...हमें तो बस नेगेटिव ख़बरें ही चाहिएं...
अब बताता हूं आपको प्रधानमंत्री का एक सच...
मनमोहन जी आज तक कभी आदमी के चलाए जाने वाले रिक्शे पर नहीं बैठे...न ही कभी उन्होंने अपनी पत्नी को कभी ऐसा करने नहीं दिया....क्या ऐसी सोच वाले आदमी के मानवीय पहलुओं की प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए...
जय हिंद...
prashansa mein hi sambhawnayen hoti hain
prashansa sakaratmaktaka netratv kartee hai.....
प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. लेकिन इसका प्रतिफल तभी सकारात्मक होता है जब इसे नए कलमकारों को प्रोत्साहित करने तक तक सीमित रखा जाये. परिपक्व रचनाकारों की कमजोर रचनाओं की प्रशंसा उनकी प्रतिभा को कुंद करने का काम करती है. उन्हें अपना लिखा हुआ हर वाक्य ब्रह्मवाक्य प्रतीत होने लगता है और वे लेखन के नाम पर कूड़ा कचरा परोसने लगते हैं. रचनाओं का निष्पक्ष और सटीक मूल्यांकन ही रचनाशीलता को परिमार्जित करता है. ब्लॉग जगत में टिप्पणियां लिखना एक स्वस्थ परंपरा है. लेकिन उन्हें समीक्षात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिए. सिर्फ प्रशंसनात्मक या आदान-प्रदान की नीयत से की गयी औपचारिक टिप्पणियों का कोई मतलब नहीं है. ऐसी टिप्पणियों की संख्या भी कोई मायने नहीं रखती. ब्लॉग जगत में साहित्यकार या गंभीर लेखक कम हैं या यह सिर्फ नए लोगों के अभ्यास का जरिया है यह सोच बेमानी है. समृद्ध और सार्थक रचनाओं और लेखन से भरे ब्लोग्स की कमी नहीं है. प्रिंट मीडिया के लोगों का भी इस क्षेत्र की ओर आकर्षण बढ़ रहा है. यह सिर्फ फुर्सत के समय मनोरंजन के लिए लेखन का माध्यम नहीं बल्कि भविष्य के मीडिया की मुख्यधारा का अंकुर है. इसे समृद्ध करने के लिए टिप्पणियों को समीक्षात्मक और गंभीर बनाना जरूरी है. उनकी संख्या पर नहीं उनकी गुणवत्ता पर ध्यान देने की ज़रूरत है. ब्लोगिंग को समृद्ध और बेहतर रचनाओं का स्रोत बनाना इस दौर के ब्लोगरों का मुख्य कार्यभार होना चाहिए. ऐसा माहौल बनाने की ज़रूरत है की साहित्यिक पुरुस्कारों के लिए छपी हुई किताबों के साथ ई-बुक्स और ब्लोग्स की पड़ताल करना भी चयनकर्ताओं की मजबूरी बन जाये. इसके लिए समीक्षा की एक स्वस्थ और कठोर पद्यति विकसित करने और मठाधीशी से बचने की ज़रूरत है.
-----देवेंद्र गौतम
इस तरह की झूठी तारीफ़ में कोई बुरे नहीं है, इससे ही तो नए लेखकों को प्रोत्साहन मिल रहा है!
pata nahi kyon ham hindustani dusron kee prasansha ke mamle men kajus hote hain.
उत्साहवर्धन के लिए तारीफ करने में गलत क्या है? ब्लॉग्गिंग एक नया माध्यम है. सबसे पहले तो इसे पहले फूलने का मौका दिया जाना चाहिए. गुणवत्ता स्वमेव आ जायेगी धीरे धीरे. जब काफी सामिग्री होगी आपके पास तो अच्छा तलाश ही लेंगे. क्या सारी पुस्तकें अच्छी ही होती है? नहीं न.
इसलिए सिर्फ लिखे और दूसरों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करें. अभी इतना ही काफी है.
प्रशंसा ठीक तो है परन्तु यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है वह कहीं पुदीने की फुनगी पर चढाने की चाल तो नहीं?
सच कहा .. प्रशानशा हमेशा काम करती है ... वो बस चापलूसी नही होनी चाहिए ... और एक बात अपनों की तो प्रशंसा ज़रूर करनी चाहिए ...
निर्मला जी आप की बात से सहमत हुं, हम अगर प्रशंसा ना करे तो ९९% लोगो का मुंह सुज जाता हे, बहुत कम लोग हे जो अलोचना को सही समझते हे, मै खुद कई बार आलिचना करता हुं तो कुछ समय बाद ही मुझे सजा मिल जाती हे, जब्कि आलोचना से कलम ओर निखरती हे
आप सही कह रही हैं लेकिन बिना सुर-ताल की प्रशंसा कई बार नकारात्मक प्रभाव भी छोड़ जाती है.
निम्मो दी!
अव्वल तो टिप्पणियाँ सिर्फ टिप्पणियाँ करनी हैं इसलिए की जाती हैं, और कई लोगों को कई जगह जाकर करनी होती है इसलिए दायित्वा निर्वाह जैसी ही होती हैं.. प्रशंसा की बाद तो उसके बाद आती है. सरिता दी ने बहुत व्यथित होकर एक पोस्ट अपनी सहेली की मृत्यु पर लिखी थी और एक महाशया वहां "मजेदार लेख" जैसा कुछ लिख आईं और साथ ही यह भी बता आईं कि उनके न्लोग से आप गाने डाउनलोड कर सकते हैं.. ऐसे में तारीफों की क्या बात, क्या औकात! वैसे अपनी रचना के बारे में लिखने वाले को पता होता है, इसलिए वो खुद समझता है कि तारीफ़ कितनी सच है कितनी झूठ.
एक फिल्म में जब हीरो ने कादर खान की बहुत तारीफ कर दी तो वो कहता है कि यार ये तारीफ कर रहा है कि बुराई!
विचारनीय प्रस्तुति...
हार्दिक शुभकामनायें
उत्साह बढ़ाने के लिये बड़ों की उपस्थिति होना भी बहुत आवश्यक है हम नवोदितों के लिये।
निर्मला जी आप ने इस लेख को अपने ब्लॉग पर लगाकर "रजनीश" जी की चिंता को आगे बढ़ाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है ! हालाँकि ऐसे प्रयासों की तारीफ ही की जा सकती है ! समाज में अगर किसी की तारीफ करने से उसका उत्साहवर्धन होता है और यदि ब्यक्ति कुछ सर्जनाएं करता है तो स्वयं ऐसी टिप्पणियों की सार्थकता सिद्ध हो जाती है ! मेरे ब्लॉग पर प्रशंसात्मक टिप्पणी लिखकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आभार !
अब हम क्या कहें..हम तो हमेशा से ही प्रोत्साहन के पक्षधर रहे हैं. भरसक प्रयास करते हैं कि कोई हताश हो लिखना न बंद कर दे.
no comments.
निर्मला दी, रजनीश जी की बात से सहमत हूँ ! प्रशंसा के शब्द नये लेखक का उत्साह बढ़ाते हैं और उसके अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है ! लेकिन उसकी बड़ी गलतियों के प्रति यदि प्यार के साथ संकेत किया जाये और हतोत्साहित ना करते हुए उसे एक मार्गदर्शक की तरह सही दिशा दिखा दी जाये तो यह भी उसके लेखन में उत्तरोत्तर निखार ही लाएगा ! सुझाव, मार्गदर्शन, आलोचना एवं अपमान में जो अंतर है उसका ध्यान रखना आवश्यक है ! बहुत सार्थक आलेख !
प्रोत्साहन के लिए प्रशंसा के शब्द ज़रूरी हैं ..... पर इनमे सुझाव भी शमिल हों तो अच्छा रहेगा ..... प्रोत्साहन अगर लेखन के स्तर को सुधारे तो ज्यादा अच्छा है ....
प्रशंसा ज़रूरी है ...पर झूठी प्रशंसा का कोई अर्थ नहीं है ....समय की बर्बादी है -पाठक ,लेखक दोनों के लिए ...बिना प्रशंसा के भी टिपण्णी की जा सकती है ...!!
मुझे प्रशंसा करना अच्छा लगता है। और प्रशंसा को चाटुकारिता कहना बेवकूफी है। कुछ लोग आलोचना के बहाने 'भड़ास' ज्यादा निकालते हैं। ऐसे आलोचकों से हज़ार गुना बेहतर हैं 'प्रशंसक'।
विचारणीय आलेख के लिए रजनीश जी को और प्रस्तुति के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद . मुझे लगता है कि ब्लॉग-पोस्टों में टिप्पणियाँ समीक्षात्मक और संतुलित होनी चाहिए .
प्रशंसा उत्साहवर्धन का ही एक माध्यम है . होनी ही चाहिए. वैसे तो अपनी क्षमताओं का हमें पता ही होता है. अधिक टिपण्णी आने से लेखन में कान्फिडेंस बढ़ता है . सामयिक आलेख .
प्रसंसा तो वो फुल है जो चारो तरफ खुशबु फेलाता रहता है --और हम उसी खुशबु रूपी फुल से खिल जाते है ..हम यानी --हम ब्लोगर लोग !
बहुत बढिया --वेसे कोई सब्जेक्ट मुझे पसंद न ही आता है तो मै उसका विरोध भी करती हूँ ~~`धन्यवाद
tippani ka bahut mahatv hai vyaktitv ke nirmaan ke liye....
good wishes to all...
ye alag hai ki 100 tippani yaa 1 tippani ke baad ham samajh paate hain iska mahatv..
बढ़िया प्रस्तुति. परंतु Font size थोड़ा बड़ा कर दें तो वाले High resolution स्क्रीन पर भी अच्छा लगेगा
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यूँ तो सब पहले ही लिख चुके हैं और मै भी लिखूंगा तो वही लिखूंगा
लेकिन एक बात और भी है वो ये की मानव सिर्फ अपनी तारीफ सुनना चाहता है और बुराइ करे तो दुश्मन हो जाये जैसी बाते भी होती है
लेकिन ब्लागर का धर्म ही ये होना चाहिए की जो लिखे खरी खरी लिखे अगर अच्छा लगा तो खरी खरी तारीफ और बुरा लगा तो खरी खरी बुराई
बहुत सुन्दर और विचारणीय प्रस्तुती! प्रशंग्सा करने से ख़ुशी मिलती है और लिखने का उत्साह दुगना हो जाता है पर अगर कहीं गलती हो तो झूठी प्रशंग्सा करना भी ठीक नहीं!
प्रशंसकों को अपना काम करने देना चाहिए। लेखक से बस इतने विवेक की उम्मीद की जाती है कि वह "सावधान" रहे!
बिल्कुल सही कहा है आपने ... ।
इस आलेख में कहे गए बातों से शब्दशः सहमत हूँ...
प्रशंसा जहाँ एक और सकारात्मक दृष्टिकोण देती है, वहीँ प्रतिभाओं के विकास में सहायक भी होती हैं...
इसलिए किसी भी अच्छी बात की प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए...
प्रशंसा जरूरी है इससे अगली पोस्ट लिखने की ऊर्जा मिलती है । इसके साथ साथ सुझाव भी आवश्यक हैं खास कर हम जैसों के लिये ताकि हिंदी ब्लॉगिंग का दर्जा भी बढे ।
तारीफ किसी भी रुप में हो पाने वाले का उत्साह तो बढाती ही है ।
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