कुछ खट्टा कुछ मीठा ---
।।।।।।दिल्ली जाना तो पहले केवल ब्लाग समारोह के लिये ही हुया था लेकिन 4-5 दिनों मे कुछ घटनाये ऐसी हुयी किदुख और खुशी दोनो तरह के अनुभव रहे।29 को मेरे दामद के भाई की बरसी थी 30 को नातिन के मुन्डन लेकिन 29 रात को दामाद के फूफा जी की मौत हो गयी जिससे मुन्डन स्थगित करने पडे। मूड खराब सा हो गया। इस लिये हम लोग पहली तारीख को वापिस आ गये। फिर भी ब्लागोत्सव समारोह सब दुखों पर भारी रहा। सब से मिलना एक सुखद अनुभूति हुई खास कर जिन लोगों से मिलने की कभी कल्पना भी नही की थी। उनमे बहुत से नाम हैं जैसे दिनेशराइ दुवेदी जी ,अवधिया जी, पावला जी ,अर्विन्द मिश्र जी, रश्मि जी ,संगीता जी शास्त्री जी , साहित्य शिल्पी[[ उम्र के लिहज से माफ करें नाम भूल गयी}और भी कई नाम हैं कुछ की मुझे जानकारी थी ,संगीता पुरी जी, डाक्टर दराल और सिरफिरा जी{ रमेश जी]} वन्दनाजी रेखा श्रीवास्तव। , खुशदीप , शहनवाज अजय जी ललित जी संजय, भास्कर केवल राम नीरज जाट। ,खुशी हुयी और कुछ से मिल कर हैरानी भी। हैरानी ब्लागप्रहरी के कनिष्क कश्यप को देख कर, लगा ये तो अभी छोटा सा बच्चा है, इतनी छोटी सी उम्र , प्रतीक महेशवरी। मै इन्हें उम्र मे कुछ बदा समझती थी। कनिष्क जी कई बार ब्लाग पर समस्या का हल भी बता देते हैं। और एक दो नाम भूल गयी क्षमा चाहती हूँ।खैर आपसब की शुभकामनाओं से जो पुरुस्कार मिला उसके लिये आपसब का धन्यवाद करना चाहूँगी। आज रिपोर्ट्स पढती हूँ।
वापिस आते समय गाडी मे जो कटु अनुभव हुया वो आपसे साझा करना चाहती हूँ। रोज़ कितने जोर शोर से हम लोग भ्र्ष्टाव्चार आदि के बारे मे बडे बडे आलेख लिखते पढते हैं। मुझे कभी नही लगा कि हमारे समाज से ये कोढ कभी खत्म हो सकेगा। लेकिन आशा ाउर विश्वास से अगर कुछ किया जायेगा तो शायद कुछ होगा। शायद अन्ना हजारे दुआरा जगायी गयी एक लौ हो। मुझे लगता है अब हम सब को मिल कर ही कुछ करना होगा। जब तक हम स्वंय नहीं उठेंगे तब तक कुछ नही हो सकता उसके लिये जहाँ भी हमे व्यवस्था मे कुछ खामी दिखे उसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलन्द करनी पडेगी। हुया यूँ कि हमने हिमाचल एक्सप्रेस मे टू टायर मे सीटें बुक करवाई थी जब डिब्बे मे चढे तो गन्दगी और बदबू देख कर मन खराब होने लगा औए सीट के सामने पर्दे भी नही थी उसी डिब्बे मे एक आर्मी के कर्नल साहिब भी अपने परिवार समेत यात्रा कर रहे थे । आपस मे सब लोग इस बारे मे बात करने लगे। मैने कहा कि ऐसा करते हैं कि इनकी कम्पलेन्ट बुक पर कम्पलेन्ट लिखते हैं कर्नल साहिन ने टी टी कोआवाज़ दी और उसे सारी समस्या बताई। लेकिन टी टी ने असमर्थता जताई कि इस समय कुछ नही हो सकता। सभी लोग डिब्बे मे इकट्ठे हो गये। कर्नल साहिब ने कहा कि तब तक गाडी नही चलेगी जब तक हमारी समस्या हल नही होती देखते देखते्रेलवे के बाकी कर्मचारी भी आ गये लोगों ने उन्को खूब खरी खोटी सुनाई आनन फानन मे उनलोगों परदे लगा दिये । फिर कर्नल साहिब ने बता कि हर सीट प धुले हुये हैंड टावल होते हैं आपके टावल कहाँ हैं। हमे हैरानी हुयी की हम लोग सैंकडों बार इसी कम्पार्टमेन्ट मे यात्रा कर चुके हैं लेकिन हमने कभी भी टावल नही देखे। फिर क्या था टावल भी आ गये बाथरूम भी साफ हो गये अय्र मच्छर के लिये दवा भी छिडक दी टायलेट मे साबुन भी रखवा दिया गया। । इसका अर्थ ये हुया कि सरकार ने सब कुछ मुहैया करवाया हुया है लेकिन कर्मचारी ही काम नही करना चाहते।सब कुछ होता है, सरकार देती है ,लेकिन् सब आपस मे मिल बाँट कर खा जाते हैं। आप सोचिये सालों से कितने टावल खरीदे गये होंगे वो सब कहाँ गये? या केवल मिली भगत से बिल ही बने होंगे। सब के मिल कर बोलने से फर्क तो पडता ही है। लेकिन लोग व्यवस्था के आगे हार मान कर चुप रह जाते हैं जिस से इनके मन मे किसी का डर नही रहता। दो डिब्बों मे लगभग 10 करमचारी थे लेकिन जब काम ही नही करना तो सब कुछ कैसे सही चलेगा। टी टी कुछ बोल नही सकता उसने अपने नोट बनाने होते हैं। सब कुछ होने के बाद भी हमने कम्पलेन्ट बुक मे शिकायत दर्ज की उससे पहले भी अधी से अधिक कम्पलेन्ट बुक शिकायतों से भर चुकी थीऔर लोगों ने इतने तीखे कमेन्टस किये थे । शायद ये कम्पलेन्ट बुक भी बोगस हो ऊपर तक जाती ही न हो और दूसरी कोई मेन्टेन कर रखी हो जिसमे कुछ हल्का फुल्का खुद ही लिख लेते हों। काम न करने और सरकारी वस्तूयें जो यात्रियों की सुव्धा के लिये होती हैं उनकी चोरी के चलते लोगों को कितनी असुविधा होती है। जिसे नौकरी मिल जाती है वो इन सब बातों से बेफिक्र हो जाता है।शायद ये भ्रष्टाचार हमारी रग रग मे समा चुका है और जो नही करते वो बेबस चुप हैं अब ये चुपी तोडनी होगी तभी कुछ हो सकता है। जहाँ भी व्यवस्था मे कुछ गलत लगे अपनी आवाज़ जरूर बुलन्द करें, कुछ तो असर होगा।
58 comments:
हमें भी आपसे मिलना बहुत अच्छा लगा, हालाँकि व्यस्तता के चलते अधिक बात नहीं हो पाई... सभी लोगो से मिलना एक सुखद एहसास कराता है... खुदा करे यह खुशियाँ यूँ ही कायम रहे...
कम्प्लेंट बुक में शिकायत दर्ज करने के साथ ही शिकायत एक पोस्टकार्ड पर लिख कर रेल मंत्री को अवश्य भेजें।
एकता में बड़ा बल होता है ...सबने मिलकर आवाज़ उठाई तो बिगडा काम बनता चला गया...ऐसा ही पूरे देश में होना चाहिए...आपसे पुन: मिलकर बहुत अच्छा लगा
ब्लॉगर मीट में चाहकर भी नहीं जा सका लेकिन उसके संस्मरण और रिपोर्ट पढ़कर मानसिक रूप से उसमें शामिल हो गया. ट्रेन में आपके अनुभव मौजूदा व्यवस्था की तल्ख़ हकीकत हैं. गलत चीजों के खिलाफ आवाज़ तो उठानी ही चाहिए. यह व्यवस्था पूरी तरह सड़ चुकी है. आप व्यवस्था में सुधार की गुंजाईश देख रही हैं. लेकिन मुझे लगता है इसमें आमूल परिवर्तन की ज़रूरत है. चाहे यह जिस मंच से जिस शैली में हो. यह मर्ज़ दवा से ठीक होने का नहीं. शल्य चिकित्सा की दरकार है.
----देवेंद्र गौतम
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आपस में ब्लोगर्स का मिलना निश्चाद ही सुखद लगता है । मेरी भी ख्वाहिश है एक बार आपसे मिल सकूँ । सम्मान के लिए आपको ढेरों बधाई।
जहाँ विसंगतियां दिखें , आवाज़ ज़रूर उठानी चाहिए । अपने यहाँ चोरी और कामचोरी ज्यादा दिखती है । सुविधायें तो मुहैय्या कराती है सरकार लेकिन बीच में हड़प करने वाले बहुत हैं।
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आदरणीय निर्मला जी,
आपने मेरा नाम क्यूँ नहीं लिखा.मै भी आपके पीछे खुशदीप भाई के साथ मय पत्नी के बैठा था.पर आपने भूल जाने के लिए स्वयं खेद प्रकट किया है,तो मै कुछ नहीं कह सकता सिवाय इसके की २ मई के बाद आपने मेरे ब्लॉग पर तसल्ली से आने का वादा किया था.अब आप अपने वादे को निभाएं और मेरी पोस्टों पर अपने बहुमूल्य सुविचार का दान भी दें .
आपका संस्मरण हम सब की आँखें खोलनेवाला है और प्रेरित करता है कि हम सब मिल कर अपनी आवाज बुलंद करें. बहुत बहुत आभार आपका.
सभी ब्लॉगरों को बधाई। शिकायत अवश्य करें तभी पता चलता है सबको।
आदरणीया निर्मला जी रेलवे की शिकायत पुस्तिका के बारे में आप ने सही लिखा| शायद ये बोगस ही होती है|
निर्मला जी, कठिनाई यही है कि हम चुपचाप सहन करते हैं। यदि आप शिकायत करते हैं तो सफाई भी होती है और बेड-रोल भी मिलते हैं। मैं हमेशा नेपकीन मांगती हूँ और वह देता है। एक बार बेड-रोल गन्दे थे, कम्पेण्ट बुक मांगी, आखिर तक नहीं मिली लेकिन बन्दे के पैनल्टी लग गयी। इसलिए जागरूक तो जनता को ही होना पड़ेगा।
मेरी भी मौजूदगी थी वहां,पर आपसे मिलने का सुयोग न बन सका। शायद,थोड़ी देर से पहुंचना हुआ था- इसलिए।
sahan karne ki seema ab samaapt hui ja rahi hai ji.........
nice post
samman ke liye aapko dili badhaai !
आभासी दुनिया के वास्तविक होने की बढ़ायी :)
सही कहा अपने की विरोध दर्ज करना चाहिए , मगर विसंगतियां हर स्थान पर इतनी हैं कि कई बार चुप रह जाने को मन करता है यह सोचकर की अकेले किस- किस से लड़ा जाए ! हाँ , लडाई में साथ देने वाले हों तो फिर भी हौसला बना रहता है !
आदरणीय सुश्रीनिर्मलाजी,
आपकी बात सही है। अन्याय सहना भी एक गुनाह होता है।
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा।
शुक्रिया।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
बहुत अच्छा कदम उठाया आप लोगों ने। थोडा-थोडा करके ही सही, जागृति से ही परिवर्तन आयेगा।
निर्मला कपिला जी!
आपका संस्मरण पढ़कर दुख भी हुआ और खुशी भी कि आपके साक्षात् दर्शन हो गये।
अफसोस यह रहा कि आपसे भेंट नहीं हो पाई!
सम्मान की बहुत-बहुत बधाई!
निर्मला जी ,
आपसे मिलना सुखद अनुभूति रही ...अफ़सोस यही रहा कि और ज्यादा बात करने का मौका नहीं मिला ...
यह याटा वृतांत अच्छा लगा ..सही है आवाज़ उठानी चाहिए कम से कम स्वयं मलाल नहीं रहेगा कि हमने कुछ किया नहीं ..
सम्मान के लिए बधाई स्वीकार करें !
समस्या नें आम रिति की तरह पांव पसार दिये है।
जागरूकता,जरूरी है। पर हम अक्सर समय का बहाना कर जाने देते है। जागरूकता भी लहर की तरह प्रसार पाती है।
___________
सुज्ञ: ईश्वर सबके अपने अपने रहने दो
आपको सम्मान प्राप्ति की बहुत-बहुत बधाई ... यात्रा वृतान्त से यही कहा जा सकता है ..आपका कथन बिल्कुल सही है कुछ लोग हर तरह से समझौता कर लेते हैं और कुछ बेहद जागरूक होते हैं ..अभाव है तो अभी जागरूकता का ..जो है... जैसा है.. ठीक है .. कुछ समय की बात है के चलते समस्याएं बलवती हो जाती है ... आपके लेखन के लिये आभार ।
chalo vadiyaa keeta tusi!
हमें भी आपसे मिलना बहुत अच्छा लगा, हालाँकि व्यस्तता के चलते अधिक बात नहीं हो पाई... सभी लोगो से मिलना एक सुखद एहसास कराता है... खुदा करे यह खुशियाँ यूँ ही कायम रहे...
nirmala kapilaji aapko sammn prapti ki bahut bahut badhai...aapne aawaz utha kar bahut achchha kiya..ise aage bhi reil mantri tak preshit kare..
सबसे पहले आपको सम्मान प्राप्ति की बहुत-बहुत बधाई ... निर्मला जी, परेशानी तो तब होती है जब हम चुपचाप अन्याय सहन करते हैं। इसलिए हमें ही जागरूक होना पड़ेगा.. यात्रा वृतान्त बहुत ही अच्छा लगा.
सच्ची बात है फंड हर चीज़ का आता है पर सही जगह तक पहुँचता नहीं.
ब्लोगोत्सव की रिपोर्ट्स तो हम भी पढ़ रहे हैं.
Aapkee kewal ek jhalak bhar milee,lekin wo bhee achha laga!
Sach hai...ekta me bahut bal hota hai....hamne nidar hoke apne haq maang lene chahiyen.
भ्रष्टाचार तो मानो अब हमारे जीवन का हिस्सा है और इसका भुक्तभोगी बनना हमारी नियति!
प्रेरणादायक घटना ।
दिल्ली में आपसे मिलकर अच्छा लगा । हालाँकि अब पता चला कि आप थोड़ी सबड्यूड क्यों थी ।
बिल्कुल सही है । व्यवस्थित शिकायत तो होना ही चाहिये । कहा भी गया है कि बच्चा रोए नहीं तब तक तो मां भी उसे दूध नहीं देती । आपके सामूहिक प्रयासों को साधुवाद...
बहुत अच्छा कदम उठाया आप लोगों ने। थोडा-थोडा करके ही सही, जागृति से ही परिवर्तन आयेगा।
आपको सम्मान प्राप्ति की बहुत-बहुत बधाई|
जो जिसका काम है वह वही काम नहीं करता..
दिल्ली में ब्लागिंग पर एक कार्यक्रम क्या हुआ लगा तमाम नालायक लोग पो पो करने लगे हिंदी
चिट्ठाकारिता करना ठग्गू के लड्डू जैसा हो गया खाओ तो पछताओ न खाओ तो पछताओ. एक महाशय को गम हो गया बच्चों जैसे मचलते हुए हिंदी ब्लागिंग से कूच कर गए (वैसे संभावनाओं के द्वार खोल कर गए है जैसे किसी कोटेवाली का अड्डा हो की कभी भी आओ और मन करे तो फूट लो ). अनवर जमाल को मजा आ गया धडाधड पोस्ट फेच्कुरिया कर (ऐसी पोस्टें दो चार लाइन में ही दम तोड़ जाती है) हाफ हाफ कर अपने को बड़ा ब्लागर मनवाने पर तुला है यहाँ तक कि वह टट्टी कैसे करता है इसको भी ब्लागिंग से जोड़ कर बता रहा
है.
दूसरी और यह रवीन्द्र प्रभात और अविनाश वाचस्पति को बढ़ाई देता है हद हो गयी दोगलेपन की.
खत्री अलबेला छिला हुआ केला कि तरह या यूं कहे नंगलाल कि तरह पुंगी बजाने में रत है. अरे इन खब्तियों को कौन बताये की ये शुरू के छोटे छोटे कार्यक्रम आगे वृहद रूप धारण करेगी. कार्यक्रम में खामिया होगी पर उसमे सकारात्मकता देखने से ही सकारात्मक ब्लागिंग हो सकती है.
गिरते है मैदाने जंग में शाह सवार ही
वो तिल्फ़ क्या गिरेगे जो घुटनों पे चलते है.
कार्य्रकम के आयोजको को बधाई
दिल्ली में ब्लागिंग पर एक कार्यक्रम क्या हुआ लगा तमाम नालायक लोग पो पो करने लगे हिंदी
चिट्ठाकारिता करना ठग्गू के लड्डू जैसा हो गया खाओ तो पछताओ न खाओ तो पछताओ. एक महाशय को गम हो गया बच्चों जैसे मचलते हुए हिंदी ब्लागिंग से कूच कर गए (वैसे संभावनाओं के द्वार खोल कर गए है जैसे किसी कोटेवाली का अड्डा हो की कभी भी आओ और मन करे तो फूट लो ). अनवर जमाल को मजा आ गया धडाधड पोस्ट फेच्कुरिया कर (ऐसी पोस्टें दो चार लाइन में ही दम तोड़ जाती है) हाफ हाफ कर अपने को बड़ा ब्लागर मनवाने पर तुला है यहाँ तक कि वह टट्टी कैसे करता है इसको भी ब्लागिंग से जोड़ कर बता रहा
है.
दूसरी और यह रवीन्द्र प्रभात और अविनाश वाचस्पति को बढ़ाई देता है हद हो गयी दोगलेपन की.
खत्री अलबेला छिला हुआ केला कि तरह या यूं कहे नंगलाल कि तरह पुंगी बजाने में रत है. अरे इन खब्तियों को कौन बताये की ये शुरू के छोटे छोटे कार्यक्रम आगे वृहद रूप धारण करेगी. कार्यक्रम में खामिया होगी पर उसमे सकारात्मकता देखने से ही सकारात्मक ब्लागिंग हो सकती है.
गिरते है मैदाने जंग में शाह सवार ही
वो तिल्फ़ क्या गिरेगे जो घुटनों पे चलते है.
कार्य्रकम के आयोजको को बधाई
अभी महीने भर पहले मैंने भी रेल में यात्रा की थी रेलवे के कर्मचारी बोतल का पानी बेच रहे थे वो रेलवे का अपना बोतल बंद पानी न हो कर कोई फालतू सा पानी मुझे देने लगा मैंने कहा रेलवे ये कब से बेचने लगी जबकि उसका अपना पानी का बोतल है मैंने कहा मुझे रेल नीर ही चाहिए ये नहीं लुंगी तो वो बेचारा बताने लगा की ठेकेदार क्या करेगा इसको बेचने में उसका ५०% का मुनाफा है जबकि रेल नीर में उसे ज्यादा कुछ नहीं मिलता सो ट्रेन में यही मिलता है मैंने लेने से इंकार कर दिया पास बैठे कुछ लड़को पेंटी कार में जा कर जब उन सब को हड़काया तब उन्होंने रेल नीर की बोतल दी | आप ने सही कहा हम सब भ्रष्टाचार में गले तक डूबे है |
ये तो आम बात है कि हम पहला काम करते हैं कि सरकार को और व्यवस्था को दोष देते हैं लेकिन अगर हम अपनी भी ज़िम्मेदारी समझें तो ्शायद हालात बेहतर हों
अरे आप मुझे भूल गईं... कोइ बात नहीं.. जिस शख्स ने अपना परिचय खुद दिया और आपको निम्मो दी कहकर आपके पैर छुए, आपके पास बैठा रहा, यह भी पूछा आपसे कि बच्चे कब नोएडा शिफ्ट कर रहे हैं और कौन से सेक्टर में.. वो मैं था.
खैर मेरा नाम याद रखने लायक नहीं था क्योंकि मैं तो वैसे भी छोटा मोटा ब्लोगर हूँ.. हाँ मैं बहुत खुश था निम्मो दी के पैर छूकर और अपने दोस्त को फोन पर बताकर!!
बाद वाली दुर्दशा तो मैंने भी झेली है एक बार वो भी राजधानी एक्सप्रेस के सफर में...
निर्मला कपिला जी! आप का रेल यात्रा का विवरण बहुत अच्छा लगा, अजी मै तो गले पड जाता हुं, वो भी अकेला कोई बोले या ना बोले...
दिल्ली एयर पोर्ट पर हमारी फ़लाईट ५ घंटे लेट थी, बच्चे छोटे थे, तब पुरे जहाज मे सिर्फ़ एक मै ही बोला ओर लडा, तो मुझे उन्होने मुझे ऊपर सेरेटान लांज मे आराम करने ओर नाश्ते के लिये जगह दी, बच्चो को दुध मिला, उस समय मुझे वहां के मेनेजर ने बताया कि इस पुरे जहाज के यात्रियो के लिये यहां बुकिंग आई हे, अब कोई नही आया आप के सिवा तो यह सब आपस मे बांट लेते हे, ओर यहां दिखायेगे कि यहां सभी यात्री आये थे?
सम्मानित किये जाने पर बधाई की हकदार तो आप हैं ही, बधाई हो।
सलिल भैया ने रविवार को फ़ोन पर बताया था और वाकई बहुत प्रसन्न थे कि आपसे आशीर्वाद लिया उन्होंने।
भ्रष्टाचार पर आपका संस्मरण प्रेरक है, हमें सिर्फ़ आलोचना करने की बजाय सामूहिक रूप से आवाज उठानी चाहिये।
एक बार तो मैं इतना त्रस्त हो गया था और इतना गुस्से में था की सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पे जाकर बहुत बहस भी किया और शिकायत भी दर्ज करवाई..कभी इस बारे में भी लिखूंगा अपने ब्लॉग में..
आप लोगों ने सही किया.
........
सलिल , आपका गुस्सा जायज़ है लेकिन आपको पता है कि जो अपना हो उसे नाम ले कर कुछ कहने की जरूरत नही होती। फिर मुझे सच मे पता नही था कि आपका नाम सलिल है आप कहते कि बिहारी बाबू हूँ तो जरूर समझ जाती ओह राम मेरे पास आये लेकिन ये हतभागी उसे पहचान न सकी?????????? । सच कहने मे हिचक नही मुझे ये कमेन्ट पढ कर सप्श्ट हुया। तो क्या अब दी को माफ नही करोगे? उम्र का तकाजा है या लापरवाही कि आपका नाम आज पता चला।
ब्लोग्गेर्स के सुखद मिलन का सुंदर संस्मरण अच्छा लगा
ओह,मैं चूक गया आपसे मिलने से!
निर्मला जी,
आपको सम्मान के लिए बहुत बहुत बधाई. हम मिले कम समय के लिए लेकिन आपके सानिंध्य में अच्छा लगा . घर से बाहर किसी अच्छे उद्देश्य के लिए निकलिये यात्रा अनुभव सुखद कम ही मिलते हैं. आशा करती हूँ की फिर मिलेंगे
अच्छा लगा,जान...आप सबसे मिल पायीं....
और कम्प्लेन तो जरूर करनी चाहिए....सब लोग चुप रहेंगे तो इनलोगों के हौसले ऐसे ही बढ़ते जायेंगे.
बिल्कुल सही कहा है आपने .. आवाज़ ज़रूर बुलंद करनी चाहिए ... कभी कभी एक चिंगारी भी काम कर जाती है ...
rochak sansmaran.
अपने देश में हर तरफ यही हाल मिलेगा.
कमोबेस बुरे हालात है।
जाग्रति प्रेरक प्रस्तुति
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निरामिष: अहिंसा का शुभारंभ आहार से, अहिंसक आहार शाकाहार से
वाह हैट्स आफ -क्या जोरदार काम किया आपने !
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ऐसा ही जीरो टालरेंस जरुरी है !
अरविन्द मिश्र से मुलाक़ात हुई ?
बहुत सुन्दर, लाजवाब और रोचक संस्मरण! उम्दा पोस्ट!
आपको बहुत बहुत बधाई निर्मला दी ! रेल यात्रा का संस्मरण मन दुखा गया ! हर आम आदमी इन परेशानियों के साथ ही सफर करता है ! भ्रष्टाचारी और बेईमान महकमा जनता के पैसे से जनता के लिये जुटाई गयी सारी सुविधाओं को हजम कर जाता है ! विरोध करना और आवाज़ उठाना ही सही दिशा में पहला कदम होगा !
शायद इसीलिए भगवती चरण वर्मा ने अपने उपन्यास में लिखा है कि आदमी परिस्थितियों का दास है।
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समीरलाल की उड़नतश्तरी।
अंधविश्वास की शिकार महिलाऍं।
रेलवे के स्टाफ़ को दो ही बातें समझ आती हैं या तो ओहदा या डेली-पैसेंजर. ये दोनों से ही पंगा नहीं लेते.
बहुत कटु अनुभव होते हैं ट्रेन में, पर कौन सुनता है, मंत्री को तो ट्रेन में चलना नहीं है.......
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
sabhi ko badhai...
निर्मला जी नमस्कार,
कहते है कि अंत भला तो सब भला उस फ़ौजी का भी अहसान है आप पर, तथा आपने खुद भी कोशिश की तभी तो जो चाहा वो हो पाया।
मैंने भी आपके दर्शन किए थे।
मुझे भी आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई....समय बहुत कम था और सब व्यस्त थे मगर फिर भी वह दिन बहुत ही अच्छा रहा..
बाकी माता जी मैं तो बहुत छोटा हूँ फिर भी यही कहूँगा जब आदमी का बस नही चलता तो कुछ नही करना चाहिए दुख तो बहुत होती है पर धीरे धीरे उसे भूलना पड़ता है और सामने की खुशियों में डुबना पड़ता है..मुश्किल है पर करना पड़ता है...
एक बार फिर से आप से उस दिन आशीर्वाद मिला बहुत अच्छा लगा..प्रणाम
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