सुखान्त दुखान्त --2
कल आपने पढा शुची ने अपने मन की बात अपनी बाजी से करने के लिये जैसे ही भूमिका बाँधनी चाही तो बाजी की शादी की बात जानने के लिये उसकी उत्सुकता बढ गयी। और बाजी उसे अपने अतीत मे ले चली थी- उस अतीत मे जहाँ उसके अमीरी के लिये देखे गये सब सपने बिखर गये थे। ----- अब आगे पढें-0-" हमारे पडोस मे एक शादी थी। उस शादी मे मेरे ससुराल वालों ने मुझे देखा तो मै उनको भा गयी। उन्होंने अपने इसी पडोसी के दुआरा मेरे रिश्ते की बात चलाई। मेरा हाथ माँगते हुये उन्होंने कहा था कि उनके पास धन दौलत की कमी नही है, बस उन्हें सुन्दर और सुशील कन्या चाहिये।माँ और मेरे जीजा जी ने इस शादी का विरोध भी किया ये कह कर कि अभी इसकी उम्र 16 साल हुयी है-- इसे आगे पढाना चाहिये। मगर पिता जी का मानना था कि घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता आ रहा है तो हाथ से क्यों जाने दें।फिर पढ कर ये कौन सी लाट साहिब बन जायेगी? सच कहूँ तो इस रिश्ते की बात सुन कर मैं भी खुश हो गयी थी। मेरे सपने भी ऐसे ही थे जैसे आज तुम्हारे हैं।एक मध्यम परिवार की लडकी किसी रईस खानदान की बहु बन जाये तो और क्या चाहिये उसे। पति सुन्दर और खानदानी रईस थे-- मै तो जैसे आसमान पर उडने को आतुर थी। मुझे लगा मुझ जैसा खुशनसीब इन्सान इस दुनिया मे नही।
" शुची एक बात बताऊँ? इस रईसी की दहलीज के बाहर जितनी रोशनी होती है, अन्दर उतना ही अन्धेरा होता है।मेरे पिता ने भी दहलीज ही देखी थी। अन्दर जा कर पता चला कि कि मैं एक घनघोर अन्धेरे मे आ गयी हूँ।जहाँ न तो संवेदनायें थी न प्यार न रिश्तों की गरिमा थी। शादी के दो चार दिन की गहिमा गहिमी के बाद जब सभी महमान चले गये तो मै दिन भर अकेली दीवारों का मुँह ताका करती। मेरे पति सुबह घर से जाते तो रात को देर गये घर आते। बाकी लोग अपने अपने कमरों मे अपनी अपनी ज़िन्दगी मे मस्त रहते। रातों मे अपने सपनो का आसमां ढूँढती और दिन मे खुद को यथार्थ की कठोर, पथरीली जमींन पर खडे पाती। मेरे सपने किसी रैन के कोठे की रौनक थे और मेरा यथार्थ लाचार आँसू बहाने के लिये। किस से कहती और क्या कहती? मेरे सपनों का राज कुमार तो शराब और शबाब मे मस्त था। रात को देर से शराब के नशे मे आना कई बार तो किसी कोठे पर ही रात कटती थी।ऊपर से जूए की लत। मुझे शादी के कुछ दिन बाद ही पता चला कि उनकी पहले भी शादी हो चुकी थी पर एक साल बाद ही पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी।मेरे पति की माँ सौतेली थी। इनकी पहली शादी के बाद इनके पिता भी चल बसे थे। उनके बाद सौतेली माँ का व्यवहार भी इनके साथ अच्छा नही था । उसके अपने भी दो बेटे थे।
" मैं धीरे धीरे महसूस कर रही थी कि वो इनकी ऎयाशी को और भी हवा देती थी। सारा कारोबार इनके अपने बेटों ने सम्भाल रखा था ये तो बस नाममात्र ही वहां जाते थे। मेरे कई बार कहने पर भी वो इन्हें कभी समझाती नही थी बल्कि उलटा कहती कि" किसी से माँग कर ऎयाशी नही करता, ये रईसी शौक ऐसे ही होते हैं। उसे क्या कमी है?"
मै बेबस न तो अपने माँ बाप को दुखी करना चाहती थी और न इस घर मे मेरी कोई सुनने वाला था। घर मे बेशक नौकर चाकर थे मगर मन लगाने के लिये किचन का काफी काम मै उनके साथ कर लेती। माँ तो सीधे मुंह बात नही करती थी देवरानियाँ भी अपनी अमीरी के दर्प मे मुझे सुना कर ताने से कसती रहती। हर बात के लिये मुझे ये एहसास करवाया जाता कि जैसे मैने जिन्दगी मे अच्छा खाया पहना ही नही। गरीब घर से जो आयी थी। मगर अब सहन करने के सिवा कोई चारा नही था।
"मुझे नही लगता कि शादी के कुछ दिन छोड कर मैने उन्हें दिन के उजाले मे कभी देखा हो।देर रात गये घर आना कभी दिल किया तो पति का हक जता कर शरीर से खेल लेना--- बस इतना ही सम्बन्ध था हमारा। शादी के बाद 5--6 साल बाद ही शराब और शबाब ने इन्हें खोखला कर दिया। बुखार खाँसी रहने लगा। डाक्टर ने जाँच कर के बताया कि इन्हें टी.बी. है, इन्हें घर मे रखना ठीक नही। किसी सेनिटोरियम मे भेज दें। माँ और भाईयों के चेहरों पर एक सकून सा था कि चलो बला टली। लेकिन मेरा तो कलेजा मुँह को आ गया? अगर इन्हें भी कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा? जो लोग इनके जीते जी ही मेरी इतनी अवहेलना कर रहे हैं वो बाद मे मेरे साथ क्या करेंगे? क्रमश:
49 comments:
दर्द भरी अतीत की यादें।
रईशों के दहलीज के बाहर जितनी रोशनी होती है भीतर उतना ही अंधेरा होता है।
..अच्छी पंक्ति।
आपके ब्लॉग में कट-पेस्ट का विकल्प नहीं है। जो अच्छा लगता है उसे दिखा नहीं पाता।
कैसे कैसे मोड़ आ जाते हैं...
एक वास्तविक अनुभव से ग़ुज़ारती कहानी....प्रतीक्षा रहेगी.
रईसी कभी ऐसी ही होती है :(
अगला पार्ट का इन्तेज़ार है.
बहुत ही मार्मिक और दिलचस्प कथा/ संस्मरण है. प्रतीक्षा रहेगी अगले भाग की.
marmik sachchaii.......aankhen nam kar detee hai Nirmala ji aapkee kalam .
ताने सुनने की बात और पति का व्यवहार ... दर्दभरी हकीकत....आगे के भाग की प्रतीक्षा ....
बहुत अच्छी चल रही है कहानी .. अगले भाग की प्रतीक्षा में ..
ओह! बेहद मार्मिक कहानी चल रही है ……………ये किस मोड पर क्रमश: आ गया।
आप की यह कहानी पढकर मुझे कई चेहरे याद आ गये, वास्तविका के बहुत नजदीक लगी आप की यह कहानी, धन्यवाद अगली कडी का इंतजार
raisi ke baahar ki raushni aur andar ke sach me badaa fark hota hai...
Emotional.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
ये वही कहानी है जो समाज के कई घरों में दोहराई जाती है। लोग सब कुछ देख-पढ़-समझ के भी ग़लत राह ही चुनते हैं बस इसी बात का अफ़सोस है निर्मलाजी ।
जीवन की कथायें भी विचित्र मोड़ लिये होती हैं।
बहुत ही कटु सत्य है, और वेदनात्मक भी.
रामराम.
बहुत ही कटु सत्य है, और वेदनात्मक भी.
रामराम.
"देहलीज के बाहर जितनी रौशनी होती है, अन्दर उतना ही अँधेरा रहता है." बाजी की आत्मकथा बड़ी मार्मिक है.
बड़ी खूबसूरती के साथ संवेदनाओं को जगा कर पाठकों की आँखें गीली करने में सक्षम है कहानी ! 'दीया तले अँधेरा' की कहावत को चरितार्थ करती बाजी की जीवन यात्रा पाठकों की सहानुभूति सहज ही बटोर लेती है ! अगली कड़ी की अधीरता से प्रतीक्षा है !
आदरणीया निर्मला जी हमें अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी|
एक बार में छापा करें
किश्तों में न बांटा करें
अविनाश मूर्ख है
दोनों कड़ियों को एक साथ पढ़ा। रोचकता बनी हुई है। अगली कड़ियों का इंतज़ार रहेगा।
यथार्थ के क़रीब की कथा, रोचक लगी।
आगे का इंतज़ार।
Bade bhayawah mod pe kahanee pahunchee hai!
आगे जानने की आतुरता...
कहानी पढ़ते पढ़ते राज कपूर की फिल्म प्रेम रोग याद आ गई...
वाकई जितनी बाहर चमक दमक, ऊंची हवेलियों के अंदर उतना ही अंधेरा...
जय हिंद...
रईसी की दहलीज वाली बात gist of life है। खूबसूरत फ़ोटो के पीछे मकड़ी के कितने जाले हैं, हर कोई कहां जान पाता है।
कसी हुई कथा है, अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।
आभार आपका।
कई घरों में ऐसा होता है ... आगे का इंतज़ार रहेगा ..
आपकी कहानी सुखांत दुखांत के दोनों भाग आज पढ़े. अच्छी जा रही है कहानी और एक वास्तविकता भी उजागर कर रही है.
निर्मला जी,
कहानी आम आदमी की संवेदना को स्पंदित करती हुई ,मन के भावों को छूती हुई आगे बढ़ रही है ! अगली कड़ी का इंतज़ार है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
निर्मला जी,
कहानी आम आदमी की संवेदना को स्पंदित करती हुई ,मन के भावों को छूती हुई आगे बढ़ रही है ! अगली कड़ी का इंतज़ार है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
दोनो अंक एक साथ पढ़ गया .. बहुत ही मार्मिक .. दर्दनाक ... कहानी कुछ कड़वी सच्चाइयों से भरी है ... आपकी हर कहानी में भावनात्मक पक्ष ... रिश्तों की छाप पहली कुछ पंक्तियों से ही बनने लगती है ....
आगे की प्रतीक्षा रहेगी ...
बहुत ही सुन्दरता से हर भाव को सामने करती हुई कहानी ...अगली कड़ी की प्रतीक्षा है ...
Dukh bhari kahani
Waiting for next.....
बहुत ही दिलचस्प लग रही है,कहानी..अगली कड़ी की प्रतीक्षा
बहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना"at http://satyamshivam95.blogspot.com/ साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।
A very realistic story. Waiting for the next part.
कहानी पूरी तरह से मन को छू रही है...अगले भाग की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
इन सबको देखकर,प्रेम विवाह के बढ़ते मामले ठीक ही प्रतीत होते हैं। परम्परा के नाम पर घुटन से तो मुक्ति मिलती है। सुख भी अपना,दुख में भी किसी से शिकायत नहीं।
मन भारी हो गया...
सही चल रही है कथा अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी..
कथा हो कविता हो या ग़ज़ल आपकी रचनाओं में जो प्रेरणा और सीख छुपी होती है,देखकर नतमस्तक हो जाता है मन..
cute.
कहानी में
कुछ अपने आस-पास ही
घटित हुआ लगता है
कथानक ka चयन
आपकी सशक्त सोच को दर्शाता है
'दानिश' 09872211411 .
आज दोनों कडिया एकसाथ ही पढी, अच्छी लगी। आगे की कडी का इंतजार रहेगा।
दोनों कड़ियाँ आज ही पढ़ीं. कभी-कभी लगता है जैसे दुनियाँ में ह्युमन सफरिंग्स के अलावा कुछ नहीं है.
आपकी कहानियों में अपने आस-पास के लोग मिलते हैं. यही कारण है कि लेखन बहुत आकर्षित करता है.
अगली कड़ी का इंतजार रहेगा.
kitnee aur pratiksha.....?
agalee kadee kee........
संजय भाई से सहमत, जारी रखिये ...
पति का अभद्र व्यवहार सहना ही क्या उसकी नीयति थी?....आगे की पोस्ट पर जा रही हू!
पूरी निष्ठां के साथ दोनों भाग पढ़े , विस्मयविमुग्ध आगे का इंतज़ार है
So nice story, I just remembered my old days when I visit to Hospital and got medicine from you.
you are writing so good please keep it up.
Regards
Post a Comment