पा ती अडिये बाजरे दी मुट्ठ[पंजाबी पुस्तक लेखक श्री गुरप्रीत गरेवाल} का हिन्दी अनुवाद---- भाग दो
पहला भाग जिसने नही पढा वो यहाँ पढ सकते हैं--- www.veeranchalgatha.blogspot.com
आपकी फुरसत का अर्थ हमारी फुरसत नहीं
पटियाला से एक प्रेमी सज्जन का फोन आया। उसने एक ही साँस मे अपनी बात कह डाली--- "परसों आ रहे हैं हम --- डैम शैंम देखेंगे-- दो दिन रहेंगे भी---- कतला मछली देख लेना अगर आचार डल जाये तो।"
सज्जन ने एक बार भी नही पूछा कि आपके पास फुरसत है या नही। मैं भी एक बार मुँह से नही फूटा कि भाई रुक ---अभी बहुत व्यस्ततायें हैं। खैर्! प्रेमी सज्जन की मेज़बानी करनी पडी। मैं अक्सर पढे लिखे लोगों के व्यवहार के बारे मे सोच कर बहुत हैरान होता हूँ। अच्छे भले इन्सान मन मे ये भ्रम पाल लेते हैं कि जब उनकी फुरसत होती है तो सभी लोग फुरसत मे होते हैं। एक सज्जन रात 9-10 बजे बिना बताये ही आ गये। मस्ती मे सोफे पर पसर कर बोले--" खाना खा कर सैर करने निकले थे सोचा महांपुरुषों के दर्शन ही करते चलें।" अगर आपके घर आया कोई आदमी आपको महांपुरुष कहे तो आप क्या करेंगे? न तो गुस्सा कर सकते हैं और न ही उसे जाने के लिये कह सकते हैं। आप गेस्टहाऊस मे बैठे जैसे बन जाते हो। आपका खाने का समय है और आप चाय पानी तैयार करने मे लग जाते हैं। आये गये के साथ चाय तो पीनी ही पडती है। 9-10 बजे चाय और फिर खाना मेजबान तो माथे पर हाथ मार कर ही बिस्तर मे घुसता है। कितना अच्छा हो अगर आने वाला आने से पहले एक फोन ही कर ले।
जब से भारत सरकार निगम लिमि. ने 311 रुपये का फोन दिया है मेरे लिये तो मुसीबत ही बन गयी है। ये सकीम तो अच्छी है कि 311 रुपये दो और महीने भर जितनी मर्जी बातें करो।इस सहुलियत का दुरुपयोग कोई अच्छी बात नही। कई लोग तो बात ही यहाँ से शुरू करते हैं--" निट्ठले बैठे थे सोचा आपको फोन ही कर ले।" मोबाईल तो बहुत बडी सिरदर्दी है। जब से मैने मोबाइल फोन लिया है मुझे ये लगने लागा है कि मैं पत्रकार नहीं बल्कि फायर ब्रिगेड का मुलाजिम हूँ। सज्जन ठाह सोटा मारते हैं---"फटा फट चंद मिन्ट लगाओ --- आ जाओ--- आ जाओ--- आ जाओ--"\कोई कोई मोबाईल फोन करते समय पूछता है---"बहुत बिज़ी तो नहीं--- किसी-- संसकार मे तो नही खडे? ---- बाथरूम मे तो नही हो---- ड्राईविन्ग तो नही कर रहे?"
एक अखबार मे काम करते बहुत ही सूझवान उप सम्पादक मेरे जानकार है।एक बजे दफ्तर मे आते ही वो अपना मोबाईल बन्द कर्के दराज मे रख देते हैं। मैने इसका कारण पूछा तो बोले---" बताओ अब दफ्तर का काम करें या मोबाईल सुने।"
उपसम्पादक मोबाईल पर लम्बी पीँघ डालने वालों से बहुत ही तंग थे।उन्हों ने बतायअ कि अच्छे अच्छे डाक्टर,लेखक, प्रोफेसर ,बुद्धीजीवी सरकारी फोन ही घुमाते रहते है।ये बुद्धेजीवी इतना भी नही समझते कि हमारा काम का समय है--- काम की कोई बात हो तो सुन भी लें --- बस ऐसे ही पूछते रहेंगे--- और फिर---- और फिर ---।
प्रवासी भारती दोस्त भी कई बार लोटे मे सिर ही फसा देते हैं
सीधा ही कहेंगे---" आज हो गयी 27, 29 को आ रहे हैं हम ---- सीधे दिल्ली एयरपोर्ट पहुँच जाना।" भाई रब के बन्दे दस बीस दिन पहले बता दो। इस बन्दे का भी कोई प्रोग्राम होता है। अब किस किस से माथा पच्ची करें। कोई नही सुनता यहाँ।कई बार सोचा बर्फ सोडा मंगवाया करूँ और दो पैग लगाया करूँ और सोने से पहले गाया करूँ------ किस किस को रोईये,---- आराम बडी चीज़ है---- मुंह ढांप के सोईये। मैने ये आज तक सोचा तो है मगर किया नहीं। पर ये भी झगडे की जड है
व्यवस्था और निट्ठले पन सभ्याचार को बदलने के लिये होश मे रह कर ही प्रयत्न करने की जरूरत है।
आपकी फुरसत का अर्थ हमारी फुरसत नहीं
पटियाला से एक प्रेमी सज्जन का फोन आया। उसने एक ही साँस मे अपनी बात कह डाली--- "परसों आ रहे हैं हम --- डैम शैंम देखेंगे-- दो दिन रहेंगे भी---- कतला मछली देख लेना अगर आचार डल जाये तो।"
सज्जन ने एक बार भी नही पूछा कि आपके पास फुरसत है या नही। मैं भी एक बार मुँह से नही फूटा कि भाई रुक ---अभी बहुत व्यस्ततायें हैं। खैर्! प्रेमी सज्जन की मेज़बानी करनी पडी। मैं अक्सर पढे लिखे लोगों के व्यवहार के बारे मे सोच कर बहुत हैरान होता हूँ। अच्छे भले इन्सान मन मे ये भ्रम पाल लेते हैं कि जब उनकी फुरसत होती है तो सभी लोग फुरसत मे होते हैं। एक सज्जन रात 9-10 बजे बिना बताये ही आ गये। मस्ती मे सोफे पर पसर कर बोले--" खाना खा कर सैर करने निकले थे सोचा महांपुरुषों के दर्शन ही करते चलें।" अगर आपके घर आया कोई आदमी आपको महांपुरुष कहे तो आप क्या करेंगे? न तो गुस्सा कर सकते हैं और न ही उसे जाने के लिये कह सकते हैं। आप गेस्टहाऊस मे बैठे जैसे बन जाते हो। आपका खाने का समय है और आप चाय पानी तैयार करने मे लग जाते हैं। आये गये के साथ चाय तो पीनी ही पडती है। 9-10 बजे चाय और फिर खाना मेजबान तो माथे पर हाथ मार कर ही बिस्तर मे घुसता है। कितना अच्छा हो अगर आने वाला आने से पहले एक फोन ही कर ले।
जब से भारत सरकार निगम लिमि. ने 311 रुपये का फोन दिया है मेरे लिये तो मुसीबत ही बन गयी है। ये सकीम तो अच्छी है कि 311 रुपये दो और महीने भर जितनी मर्जी बातें करो।इस सहुलियत का दुरुपयोग कोई अच्छी बात नही। कई लोग तो बात ही यहाँ से शुरू करते हैं--" निट्ठले बैठे थे सोचा आपको फोन ही कर ले।" मोबाईल तो बहुत बडी सिरदर्दी है। जब से मैने मोबाइल फोन लिया है मुझे ये लगने लागा है कि मैं पत्रकार नहीं बल्कि फायर ब्रिगेड का मुलाजिम हूँ। सज्जन ठाह सोटा मारते हैं---"फटा फट चंद मिन्ट लगाओ --- आ जाओ--- आ जाओ--- आ जाओ--"\कोई कोई मोबाईल फोन करते समय पूछता है---"बहुत बिज़ी तो नहीं--- किसी-- संसकार मे तो नही खडे? ---- बाथरूम मे तो नही हो---- ड्राईविन्ग तो नही कर रहे?"
एक अखबार मे काम करते बहुत ही सूझवान उप सम्पादक मेरे जानकार है।एक बजे दफ्तर मे आते ही वो अपना मोबाईल बन्द कर्के दराज मे रख देते हैं। मैने इसका कारण पूछा तो बोले---" बताओ अब दफ्तर का काम करें या मोबाईल सुने।"
उपसम्पादक मोबाईल पर लम्बी पीँघ डालने वालों से बहुत ही तंग थे।उन्हों ने बतायअ कि अच्छे अच्छे डाक्टर,लेखक, प्रोफेसर ,बुद्धीजीवी सरकारी फोन ही घुमाते रहते है।ये बुद्धेजीवी इतना भी नही समझते कि हमारा काम का समय है--- काम की कोई बात हो तो सुन भी लें --- बस ऐसे ही पूछते रहेंगे--- और फिर---- और फिर ---।
प्रवासी भारती दोस्त भी कई बार लोटे मे सिर ही फसा देते हैं
सीधा ही कहेंगे---" आज हो गयी 27, 29 को आ रहे हैं हम ---- सीधे दिल्ली एयरपोर्ट पहुँच जाना।" भाई रब के बन्दे दस बीस दिन पहले बता दो। इस बन्दे का भी कोई प्रोग्राम होता है। अब किस किस से माथा पच्ची करें। कोई नही सुनता यहाँ।कई बार सोचा बर्फ सोडा मंगवाया करूँ और दो पैग लगाया करूँ और सोने से पहले गाया करूँ------ किस किस को रोईये,---- आराम बडी चीज़ है---- मुंह ढांप के सोईये। मैने ये आज तक सोचा तो है मगर किया नहीं। पर ये भी झगडे की जड है
व्यवस्था और निट्ठले पन सभ्याचार को बदलने के लिये होश मे रह कर ही प्रयत्न करने की जरूरत है।
33 comments:
सुन्दर पोस्ट.. बिन बुलाये मेहमान और बेबक्त के , लेकिन आव भगत तो करनी ही पड़ेगी.. बड़े सुन्दर ढंग से आपने मन की छटपटाहट कलम से ब्यान की
अतिथि लोग अक्सर अपनी फ़ुर्सत में मेजबान का ख्याल करना भूल जाते है....पर क्या कीजिएगा माता जी मेजबान को तो अपना फ़र्ज़ निभाना ही पड़ेगा..बढ़िया चर्चा की आपने...आज कल की सच्चाई है..प्रणाम
अच्छा चल रहा है, जारी रखिये ...
Great presentation . !
बहुत गंभीर मुद्दा है...
लेकिन समझते कितने हैं?
अपना एक शेर अर्ज़ है-
मेहमान बनके जब भी चलो, सोचकर चलो
हम बोझ तो नहीं हैं कहीं मेज़बान पर.
बहुत सार्थक प्रस्तुति!
--
माँ सब जग की मनोकामना पूर्ण करें!
जय माता दी!
अति सुन्दर.
एकदम सहज लग रहा है जी। बिल्कुल आपबीती सा।
और ज्यादा इंटरेस्ट बढ़ रहा है।
धन्यवाद।
main bhi nahin ker pati nirmala ji, chahti hun aaram karun , per ......... haan nithalle nahin baithti, likhti hun , khud se baaten kerti hun
हम सब पर बीती सहज तरीके से आलेखित मन को अच्छा लगा
सच कहा ...अतिथि के भी कुछ नियम हैं और उन नियमों का पालन करना चाहिए ....
ख़ास कर आज के व्यस्त समय में ... बहुत अच्छा लिखा है ...
बहुत खुब जी आप के मेहमान,मजेदार, पेट मे दर्द होने लगा.... जल्द ही आप से मिलना हो सकता हे, अगले महीने दिल्ली का प्रोगराम बना ले समय आप को मेरी अग्ली पोस्टो मे पता चल जायेगा
अतिथि देवो भवः
मेहमान ....हम सबके जीवन से जुड़ी एक आम बात .....
पर है बहुत ही खास और उसी खासियत से आपने इसे प्रस्तुत भी किया .....
4/10
ok
Lovely pics !
Nirmalaji,
Yatharth samasya per sunder saral kahani logon ko SABHYA banne ki prerna deti hai.Log amal kar len to bahaut achcha ho.
इतना साधिकार आग्रह तो केवल आत्मीयजनित हो सकता है।
...आपने बिलकुल सही फरमाया निर्मलाजी!...कुछ लोग सिर्फ अपने ही बारे में सोचते है!...ऐसे लोग समय के चलते दूसरों की नजर में जब गिर जाते ह, तब इन्हें होश आता है!...
अब अपनी बधाई के बारे में बताउ....अलबेलाजी ने एक प्रतियोगिता आयोजित की थी!...मोहोब्बत शब्द से शुरु होने वाली रचना अपेक्षित थी...प्रथम स्थान पाने वाले को रु.500 का इनाम भी उन्हों ने रखा हुआ था!...आप जितनी चाहे रचानाएं प्रेषित कर सकतें थे!...मैने एक शेर लिखकर प्रेषित किया और उसे नं.1 मिला...मै प्रतियोगिता जीत गई!....और भी प्रतियोगियों ने इस में हिस्सा लिया था!...अब बताइए, अन्य प्रतियोगियों का मुझे बधाई भेजना कंपल्सरी न सही...एक व्यवहारिकता तो है ही!...यह खेल की भावना का हिस्सा है!...आप प्रतियोगी नहीं थी फिर भीआपने मुझे बधाई दी....आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
बहुत ही अच्छा व्यंग्य.
एक अच्छी किताब का सरलतम अनुवाद पढवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
बहुत बढ़िया रहा यह .शुक्रिया इसको पढवाने के लिए
मेहमान भगवान है :)
बहुत ही सुन्दर, अक्सर यह दुविधा हो ही जाती है, बिन बुलाये मेहमान के आ जाने पर, बेहतरीन शब्दों में ढाला आपने इन्हें, आभार ।
अच्छी पोस्ट!
वाह्! बेहतरीन......
"अतिथी तुम कब जाओगे" :)
अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
तीन गो बुरबक पर टिप्पणी के लिए आभार!
बहुत अच्छा लगा लेकिन हम तो आपकी कहानी की आस मे आए थे.
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
माफी निर्मलाजी देर से आने की.....जरा उत्तराखंड यात्रा पर थी..
जारी रखियेगा ये अनुवाद ..दुरुस्त है ,सच में हाल तो कुछ ऐसा ही होता है...पर तभी तो अतिथी कहलवाने का सौभाग्य मिलता है ..हाहा
मैं आपके पास बताकर आउंगी....तब आप जगह तय कर के रखेंगे कहाँ कहाँ घूमना है ...:)) वैसे यही आदत में भी शुमार है ..
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ekdam seedhee aur sachchee baat,likhi hain .ho sakta hai kuch logon par iska asar bhi pade.
.
Nirmala ji,
welcome back home !
आप बीच बीच में कहाँ चली जाती हैं हम लोगों को तनहा छोड़कर। ज्यादा दिन दूर मत रहा कीजिये। याद आने लगती है।
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अनुवाद हमें निश्चय ही पंख लगा देता है. सुंदर रचना पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार.
...आप से बधाई मिली ...मन प्रसन्न हुआ!...जैसे ही कोई खुश-खबर मिलेगी, मै अवश्य सूचित करुंगी निर्मलाजी!...वैसे लड्डू मेरे यहां तैयार ही होते है....आप बस पधारने का कष्ट करें!
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