कविता--- पंखनुचा
उसके अहं में छिपा विष
उसकी मैं में,
तू की अवहेलना,
शोषण की बुभुक्शा,
कामुक्ता कि लिप्सा,
अभिमान की पिपासा,
कर देती है आहत
तर्पिणी का अनुराग,
सहनशीलता,सहिश्णुता,त्याग
पंखनुचा की आहों से
सिसकता है
घर की दिवारों का
हर कण
क्योंकी
उन दिवारों ने
घुटते देखा है
उस आम औरत को
उस नाम की अर्धांगिनी को
जिसकी पहचान होती है
"बेवकूफ, गंवार औरत,
तुझे अकल कब आयेगी "
हाँ सच है,
उसे अभी अकल नही आयी
और सदियों से सहेजे खडी है
इस घर की चारदिवारी को
पर
जब कभी
अतुष्टी का भावोद्रेक
अत्याचार की अतिमा
हर लेगी
उसकी सहनशीलता
जगा देगी उस के
स्वाभिमान को
तो वो मीरा की तरह
इस विष को
अमृ्त नहीं बना पायेगी
सतयुग की सीता की तरह
धरती मे नहीं समायेगी
ये कलयुग है
क्या नहीं सुन रहा
दंडपाशक का अनुनाद
तडिताका निनाद
बनादेगी तुझे निरंश,पंगल
कर देगी सृ्ष्टी का विनाश
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी
44 comments:
Bahut hi sundar shabdo me sundar tarike se khub abivyakt kiya aapne strijaati ke dard ko ...Aabhar!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहेतरीन प्रस्तुति ....नारी कि व्यथा व्यक्त करती हुई ये ....खूबसूरत रचना .
बहुत खूब माँ जी , क्या कहूं , आज तो शब्द ही नहीं मिल रहें कुछ कहने को, बस लाजवाब ।
nice
बहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.
रामराम.
आज के समाज के दोहरे मापदंड के बीच से निकलती एक नारी की गाथा..बहुत बढ़िया भाव पिरोया है आपने और शब्द तो इतने बेहतरीन है की क्या कहने ...कुल मिलकर कविता लाज़वाब....प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद माता जी..
बेहद सुन्दर प्रस्तुती.....
regards
सत्य वचन।
Badhiyaa kavitaa Nirmalaji
bahut sundar rachna.
हिन्दीकुंज
bahut sunder sandesh detee rachana .
Badhai
behad sundar bhaw .........badhaai
नारी है इस देश की राष्ट्रपति.
क्या चंपा का घर में बंद अपमान हो गया है,
क्या आदमी वाकाई इनसान हो गया है...
जय हिंद...
मम्मा....बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति..... बहुत अच्छी लगी यह कविता...
gazab ki prastuti.............kya kahun ..........nishabd hun.
नारी के भूत और भविष्य पर बढ़िया टिपण्णी करती रचना , निर्मला जी।
निसंदेह नारी अब जाग्रत हो रही है।
Nari tum kewal shraddha ho.. vishwas rajat pag tal me
आज की कविता तो बहुत "नाईस" है जी, बहुत सुंदर.
धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार ।
truely awesome.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
सुन्दर प्रस्तुति..
आदरणीय निर्मला दी,
अभी अभी आपकी सौंवी पोस्ट के लिंक को पढ़ आया हूँ...आपने आपनी ब्लॉग यात्रा कैसे आरम्भ की और अब कहाँ पहुँच गयी...आश्चर्य होता है..आपकी यह कविता मन में उथल पुथल मचा देती है...आप गजल में भी कमाल कर रही है..वाकई शक्ति की तरह से अपार उर्जा से ओत प्रोत है आप...बधाई!
स्पष्ट चेतावनी .. बहुत सार्थक लिखा है ... नारी का सम्मान सच में बहुत ज़रूरी है ... समय पर जागना बहुत ज़रूरी है अगर घर और अपने आने वाले कल की चिंता करनी है तो ...
सटीक बात..सुन्दर अभिव्यक्ति!
दुख तो यही है कि नवदुर्गा में जिसे पूजते हैं, बाकी दिनों उसी पर जुल्म ढ़ाते हैं.
मन को झिंझोड़ने वाली रचना.... एक चेतावनी देती हुई...बहुत अच्छी लगी
akath mohakata hai in panktiyo me
ये कलयुग है
क्या नहीं सुन रहा
दंडपाशक का अनुनाद
तडिताका निनाद
बनादेगी तुझे निरंश,पंगल
कर देगी सृ्ष्टी का विनाश
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी
bahut sunder abhivyakti, behatareen.
आपने बहुत ही सुंदर लिखा है
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी
कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है , मगर ना कहना पाप...
एक शे'र
माँ मेरी जब से आगई घर में
पास मेरे गलतियां नहीं आती
आपका
अर्श
बहुत बढिया कविता!
आपने इस कविता में शब्दों का चयन बहुत खूब किया है!!!
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
नारी की वेदनाओं की पराकाष्ठा का परिणाम क्या होगा बखूबी भावपूर्ण और ओजपूर्ण ढंग से आपकी रचना में दिखलाई दे रहा है.
सुन्दर और सार्थक रचना
चारदीवारी में कैद नारी की व्यथा को खूब व्यक्त कर दिया है आपने ....
मुझे अपनी एक कविता याद आ रही है ...
स्त्रियाँ आज भी होती है सीता सी ..
महल के भोगविलास त्याग कर
वन गमन को तत्पर
मगर अब नहीं देती हैं
वे कोई अगिन परीक्षा
अब नहीं सजाती हैं
वे स्वयं अपनी चिता ...
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! बधाई!
वाकई एक बेहतरीन प्रस्तुती, क्या शब्द, क्या शब्द संयोजन, भाव और उसकी अभिव्यक्ति सब बेमिसाल
बेहतरीन शब्दों से सजी खूबसूरत कविता । आभार ।
Naari man ke antardwand ki vyatha ko bahut gahre shabd sanyojan se prastut kiya hai aapne...
Bahut shubhkamnayne...
सुन्दर, अतिसुन्दर.
Aap nari vyatha ko bahad bareekee se uker detin hain !!naman
bahut adbhut kavita hai Nirmla di
naari ka sammaan bahut zaruri hai
ek ek shabad .........
meera ki tarah amrut nahi kar paayegi
kya kahun nishabd hun
सत्य वचन!
वाह....इसे केवल सुन्दर गीत नहीं कह सकती...यह तो सोचने को विवश करती प्रेरनादायी सत्य का सुन्दर उद्घाटन है....
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