रिटायरी कालोनी
शायद अपना घर सब का ही सपना होता है। फिर जब आदमी अपने जीवन का सुनहरी समय सरकारी मकान मे रह कर गुज़ार दे तो उसके लिए तो अपना घर और भी अहम बात हो जाती है। फिर जब आदमी रिटायर होने के करीब आता है तो लोग अक्सर ये सवाल करने लगते हैं * अपना घर बना लिया *--- कहाँ बना रहे हैं अपना घर?* आदि आदि
मुझे भी जब एक साल रिटायर होने मे रह गया तो हम ने भी अपना घर बनाने की सोची। नंगल शहर मे तकरीबन पूरी जमीन भाखडा ब्यास मैनेजमेन्ट बोर्ड ने आकुपाई कर रखी है ,बस एक आध प्राईवेट आबादी है| बाकी प्राईवेट आबादियां साथ लगते गाँवों से जमीन ले कर बनाई जा रही हैं साथ ही नया नंगल की पूरी जमीन नेशनल फर्टेलाईजेशन कम्पनी ने ले रखी है। वहां भी आस पास के गाँवों से जमीन ले कर ही आबादियां बन रही हैं। नंगल मे जो कुछ वर्ष रह लिया उसका नंगल से जाने का मन नही होता। हम ने भी सोच लिया कि नया नंगल के पास जो कालोनी बनी है,वहीं घर बनायेंगे बडी साफ सुथरी है और रेल्वे स्टेशन , बस स्टैंड आदि की बडी सुविधा है।
जब मुझ से कोई पूछता कि घर कहाँ बना रहे हो तो मैं बडे गर्व से कहती शिवालिक एवन्यू मे। क्यों की वहाँ घर बहुत अच्छे बने हुये हैं। सुनते ही उनके चेहरे का रंग बदल जाता * अच्छा वो रिटायरी कालोनी मे* और मुस्कुरा देते, कई तो यहाँ तक कह देते वहाँ मत बनाओ आपका दिल नही लगेगा।। मुझे समझ नही आती कि उस कालोनी मे ऐसा क्या है? आखिर रिटायर हुये लोग भी कहीं तो रहेंगे ही। भाखडा डैम से और एन. एफ. एल. से ही रिटायर लोग वहाँ अधिकतर रहते हैं। रिटायर होते होते बच्चे पढने या नौकरी करने बाहर निकल जाते हैं। बहुत तो अभी कही पर्मानेन्ट सेट नही हुये होते इस लिये माँ बाप को अपना बसेरा बनाना ही पडता है। खैर मैने किसी की बात पर कभी अधिक ध्यान नही दिया। जब अपना घर बन गया तो वहाँ शिफ्ट हो गये। नंगल मे अपना पास पडोस बहुत अच्छा था। लगभग हर उम्र के लोग उस कालोनी मे थे। ाक्सर ही किसी न किसी के घर कोई न कोई उत्सव आदि होते रहते। बच्चों के जन्म दिन ,किसी की शादी की वर्षगाँठ, किसी के मुन्डन, कभी किट्टी पार्टी कुछ न कुछ चला ही रहता।अगर और कुछ नही तो सब मिल कर पिकनिक का प्रोग्राम बना लेते। इस कालोनी मे जब आये तो सभी लगभग अकेले पति पत्नि किसी किसी के साथ बच्चे रहते थे। यहाँ हाल ये है कि आये दिन किसी की मौत हो गयी, किसी की बारखी है किसी के चवर्ख है ,कोई बिमार है। मतलव कहीं न कहीं अफसोस पर जाना ही पडता है। या अधिक से अधिक हुया तो कीर्तन आदि होता है। इन लोगों के लिये मनोरंजन केवल कीर्तन या धार्मिक उत्सव ही है। हर घर का एक अलग गुरू है मतलव बाबाओं की खूब चाँदी है। उन मे से कुछ एक दो ऐसे बाबा हैं जिनकी बाबा बनने से पहले की कुछ करतूतें अस्पताल मे नौकरी के दौरान देख चुकी थी। इन के बारे मे एक अलग पोस्ट मे लिखूँगी।बहुत लम्बी लिस्ट है। 2 साल से उपर हो गये केवल गली मे एक समारोह, हमारी बेटी की शादी हुयी। मगर पुराने शहर से अब भी शादी व्याह आदि के बहुत निमन्त्रण आते हैं।
मुझे भी जब एक साल रिटायर होने मे रह गया तो हम ने भी अपना घर बनाने की सोची। नंगल शहर मे तकरीबन पूरी जमीन भाखडा ब्यास मैनेजमेन्ट बोर्ड ने आकुपाई कर रखी है ,बस एक आध प्राईवेट आबादी है| बाकी प्राईवेट आबादियां साथ लगते गाँवों से जमीन ले कर बनाई जा रही हैं साथ ही नया नंगल की पूरी जमीन नेशनल फर्टेलाईजेशन कम्पनी ने ले रखी है। वहां भी आस पास के गाँवों से जमीन ले कर ही आबादियां बन रही हैं। नंगल मे जो कुछ वर्ष रह लिया उसका नंगल से जाने का मन नही होता। हम ने भी सोच लिया कि नया नंगल के पास जो कालोनी बनी है,वहीं घर बनायेंगे बडी साफ सुथरी है और रेल्वे स्टेशन , बस स्टैंड आदि की बडी सुविधा है।
जब मुझ से कोई पूछता कि घर कहाँ बना रहे हो तो मैं बडे गर्व से कहती शिवालिक एवन्यू मे। क्यों की वहाँ घर बहुत अच्छे बने हुये हैं। सुनते ही उनके चेहरे का रंग बदल जाता * अच्छा वो रिटायरी कालोनी मे* और मुस्कुरा देते, कई तो यहाँ तक कह देते वहाँ मत बनाओ आपका दिल नही लगेगा।। मुझे समझ नही आती कि उस कालोनी मे ऐसा क्या है? आखिर रिटायर हुये लोग भी कहीं तो रहेंगे ही। भाखडा डैम से और एन. एफ. एल. से ही रिटायर लोग वहाँ अधिकतर रहते हैं। रिटायर होते होते बच्चे पढने या नौकरी करने बाहर निकल जाते हैं। बहुत तो अभी कही पर्मानेन्ट सेट नही हुये होते इस लिये माँ बाप को अपना बसेरा बनाना ही पडता है। खैर मैने किसी की बात पर कभी अधिक ध्यान नही दिया। जब अपना घर बन गया तो वहाँ शिफ्ट हो गये। नंगल मे अपना पास पडोस बहुत अच्छा था। लगभग हर उम्र के लोग उस कालोनी मे थे। ाक्सर ही किसी न किसी के घर कोई न कोई उत्सव आदि होते रहते। बच्चों के जन्म दिन ,किसी की शादी की वर्षगाँठ, किसी के मुन्डन, कभी किट्टी पार्टी कुछ न कुछ चला ही रहता।अगर और कुछ नही तो सब मिल कर पिकनिक का प्रोग्राम बना लेते। इस कालोनी मे जब आये तो सभी लगभग अकेले पति पत्नि किसी किसी के साथ बच्चे रहते थे। यहाँ हाल ये है कि आये दिन किसी की मौत हो गयी, किसी की बारखी है किसी के चवर्ख है ,कोई बिमार है। मतलव कहीं न कहीं अफसोस पर जाना ही पडता है। या अधिक से अधिक हुया तो कीर्तन आदि होता है। इन लोगों के लिये मनोरंजन केवल कीर्तन या धार्मिक उत्सव ही है। हर घर का एक अलग गुरू है मतलव बाबाओं की खूब चाँदी है। उन मे से कुछ एक दो ऐसे बाबा हैं जिनकी बाबा बनने से पहले की कुछ करतूतें अस्पताल मे नौकरी के दौरान देख चुकी थी। इन के बारे मे एक अलग पोस्ट मे लिखूँगी।बहुत लम्बी लिस्ट है। 2 साल से उपर हो गये केवल गली मे एक समारोह, हमारी बेटी की शादी हुयी। मगर पुराने शहर से अब भी शादी व्याह आदि के बहुत निमन्त्रण आते हैं।
अब मुझे पता चला है कि लोग इसे रिटायरी कालोनी कह कर क्यों नाक मुँह चढाते थे। दूसरा सभी उम्र के आखिरी पडाव पर हैं अपना खाना ही मुश्किल से बनता है अगर पडोसी बिमार हो जाये तो कौन उसकी मदद करे। वहां जरा सा बुखार भी हुया कि सभी देख भाल मे लग जाते थे। आपस मे मिलने जुलने का भी कम ही रिवाज है, किसी के घुटने दर्द कर रहे हैं तो किसी को कोई न कोई बिमारी है। वैसे सभी एक ही शहर के होने के नाते एक दूसरे को जानते हैं। भगवान का शुक्र है कि मेरा पडोस बहुत अच्छा है। आस पास दोनो घरों मे बेटे बहुयें हैं उनकी। बाकी पूरी दोनो गलियों मे केवल बूढे पति पत्नि रहते हैं । ये तो भला हो इस ब्लागिन्ग का कि मुझे व्यस्त रहने के लिये एक काम मिल गया है । खूब दिल लगा हुया है । अगर रिटायरी कालोनी मे बिना ब्लागिन्ग के रहना पडता तो शायद मैं भी अब तक बिमार हो जाती। वैसे मेरी कालोनी बहुत अच्छी है। हर जगह का अपना अपना महत्व होता है। सोच मे पड जाती हूँ कि कैसा समय आ रहा है जहाँ आज माँ बाप को अकेले रहने को मजबूर होना पड रहा है । शायद हर छोटे शहरों मे जहाँ बच्चों के लिये अच्छी नौकरियाँ नहीं हैं वहाँ ऐसी ही रिटायरी कालोनीस जगह जगह बन जायेंगी। तो ब्लागवुड की जय बोलिये। कहीं यहाँ ही कोई रिटायरी कालोनी तो नही़ बन जायेगी? हम बुढों के ब्लाग जरूर देख लिया कीजिये उत्साह बना रहता है। कम से कम ये तो नही लगेगा कि हम रिटायरी कालोनी मे रहते हैं।
42 comments:
आपका चिंतन सार्थक है ...मगर आप बूढी हैं ...आपकी लेखन ऊर्जा को देखते हुए मैं ये मानने को बिलकुल तैयार नहीं हूँ ...
जब तन मन ऊर्जा से सराबोर हो .. तो कहीं भी खामी नहीं दिखाई पडती .. क्यूंकि सारा का सारा कहीं भी गलत नहीं होता .. गलतफहमी को दूर किया जाना चाहिए .. व्यस्त लोगों का बुढापा भी कष्टकर नहीं होता !!
एकदम सही बात कही निर्मला जी आपने ! यह ब्लॉग्गिंग का चस्का बुढापे के लिए एक सहारे की तरह है, बशर्ते आँखे धोखा न दे तो !
aap baat kar rahee hai blog par aate rahane kee aapne itana saaf suthara varnan kiya hai khulke apanee colonee ka ki aapse milne ko jee ho aaya hai......
hum sab sath hai jee.......bujurg :)
इस को पढ़ने के बाद पहले तो एक खबर बनती नजर आई। बूढों की कालोनी। फिर सोचा जाकर देखा होगा..क्या पता उनमें कोई युवा भी हो, युवा से मतलब नौजवान नहीं। मतलब वो है जो आज और अभी का आनंद ले रहा है। जो हजारों काँटों पर ध्यान न दे..एक गुलाब के फूल को देखता है। जो मृत्यु के करीब तो है, लेकिन जिन्दगी से दूर नहीं। जो कल के डर में आज नहीं गँवा रहा। आपकी इस कलोनी को नजर न लगे..बस बाबावाद दे छुटकार मिल जाए और युवा हों जाए जब रिटायर्ड बुजुर्ग।
tareef ke liye shabdon ka abhaav hai...////
bahut he badhiya..
हा हा निर्मला जी आज तो आपने हमारी बात ही छीन ली। एक बार हमारे मित्र ने हमसे कहा कि मैं ओल्ड ऐज कॉलोनी में मकान लेना चाहता हूँ। मैंने कहा कि क्या होगा, रोज ही किसी के मरण-मौत में जाना होगा और प्रतिदिन ही डिप्रेशन का शिकार बनना पड़ेगा कि आज इसका नम्बर आया और कल मेरा आएगा। अरे युवाओं के बीच रहो तो तुम्हारी सेवा करने वाला भी कोई मिलेगा। आदि आदि। मैं स्वयं इस विषय पर पोस्ट लिखने की सोच रही थी।
सभी को इस दौर से गुज़रना है...मैं भी आपके साथ हूँ....और ये तो बिलकुल सही है कि यदि ये आभासी दुनिया ना होती तो हम जैसों का क्या होता? ब्लोग्स पर कैसे वक्त निकल जाता है पता ही नहीं चलता....मन के भावों को बहुत खूबसूरती से लिखा है....बधाई
ye waqt to sab par aata hai magar mera manna hai ki insaan dil se hi jawaan ya boodha hota hai aur aapko dekhkar to nhi lagta ki aap is shrni mein hain balki aap to hum sabki prernastrot hain........bahut hi sundar lekh hai sochne ko majboor karta huaa.
ब्लागिंग तो बुढापे की लाठी की तरह लगती है. पर सही में आंखों मे जलन होती है.
रामराम.
badhiya prastuti...
बहुत सटीक, सीधी बात शत प्रतिशत सत्य बात. सबके साथ यही होना है .पर अगर ये सोंचे की अगर मन जवान है तो तन भी वैसा ही रहेगा पर ऐसा हो नहीं पाता किसी की मदद करना भी चाहो पर शरीर ही साथ नहीं देता. अपने ही घरों में अपने ही रिश्तेदारों को इसी स्थिति में देखती हूँ तो तकलीफ होती है पर ये भी सत्य है की अपने हिस्से का दुःख दर्द अपने आप को ही उठाना पड़ता है
niramla ji,jindagi ko jindadili se jine wala kabhi boodha nahi hota aur aap uski jiti jagti misaal hai :)
ईश्वर न करे कि किसी को बुढ़ापे में किसी का मोहताज होना पड़े. यदि शरीर स्वस्थ रहे तो फिर उम्र कितनी भी हो, चलेगा. दिक्कत होती है जब शरीर साथ देना छोड़ देता है.
सार्थक चिंतन है आपका ... पर मेरी माने तो कभी अपने आप को रिटायर्ड नही समझना चाहिए ... आशा और जीवन का जज़्बा बना रहना चाहिए ... हर काम का उत्साह बना रहे तो जीवन आसान हो जाता है ...
Maasi ji, sansmaran padh kar aur jana aapke bare me.. abhi jaldi lab jana hai.. laut ke ata hoon sham ko.. :)
charan sparsh
एकदम सही बात कही आपने .सार्थक चिंतन है,शत प्रतिशत सत्य
आखिरी लाइन ने आँखें नम कर दी , देर तक तो यही सोचता रहा के रित्यारी कोलोनी और एक आम सी कोलोनी इन दोनों के महोत्सवों में भी कितना फर्क हो जाता हिया ... ऐज्ब सी बेकली में इसे पढ़ने के बाद ...
अर्श
मातातुल्य पूज्यनीया
आप ऐसा कैसे कह सकते हैं कि "हम बूढों का ब्लाग देख लिया कीजिये, उत्साह बना रहता है"
आप लोगों से ही तो हम हैं। वृद्धावस्था में बहुत खूबसूरती होती है, एक आभा होती है, एक प्रकाश होता है, ढेर सारा अनुभव होता है और दुनिया जहां का प्यार होता है। और यही सब हमारे सरवाईवल के लिये जरुरी है।
आशा है आपका आशिर्वाद इसी तरह बना रहेगा।
प्रणाम स्वीकार करें
जिंदगी की यही विडंबना है।
जब बच्चों की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है, उस वक्त वो अपने काम धंधे पर निकल जाते हैं।
और घर में रह जाते हैं, बूढा- बुढिया ।
खैर स्वास्थ्य सही रहना चाहिए, बाकी सब चलता है।
ब्लोगिंग अच्छा सहारा है , सेवा-निवृत लोगों का।
बहुत सटीक, सीधी बात शत प्रतिशत सत्य बात. सबके साथ यही होना है .पर अगर ये सोंचे की अगर मन जवान है तो तन भी वैसा ही रहेगा पर ऐसा हो
parnaam mummy ji
जय हो ब्लॉगवुड की..अच्छा सहारा बना रिटायर कालोनी में. :)
आप तो मेरी प्यारी मम्मा हैं..... मम्मा....बहुत सार्थक और अच्छी कहानी.....
आप की ब्लोगिंग बोले तो अनुभव की ब्लागिंग-
शब्द,भाव कभी बूढ़े होते हैं क्या?
कैसे कह दिया आपनें .
आप लिखती रहें हम पढ़ते रहें यही कामना है....
आप ने आज के और भविष्य के यथार्थ को उड़ेल दिया है। आप चाहें तो इस रिटायरी कालोनी के अपने अनुभवों से एक उपन्यास को आकार दे सकती हैं। एक नीरस जीवन। सब लोग कष्ट पाते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा में समय काट रहे हैं। ऐसे जीवन में कैसे रस भरा जा सकता है। इस नीरस जीवन को रसमय बना देने वाले एक दो जवान पात्रों का सृजन कर अच्छा उपन्यास लिखा जा सकता है। और लाखों का आइडिया है। इस विषय पर फिल्म भी बनाई जा सकती है, एक अवार्ड विनर फिल्म। मैं तो अभी से सपना देख रहा हूँ कि फिल्म अवार्ड के लिए समारोह हो रहा है और फिल्म की कहानी के लिए निर्मला जी को आवाज लगाई जा रही है। आप नीचे बैठे दर्शकों में से निकल कर अवार्ड लेने जा रही हैं। मैं और बहुत से ब्लागर जोरों से तालियाँ बजाते हुए चीख रहे हैं।
निर्मला जी जहा बच्चे मां बाप के साथ रहते है, वहा भी बुजुर्गो का बुरा हाल है, बहुत कम बच्चे है जो अपने मां बाप की देख भाल करते है, बाकी तो चहते है कि कब यह मरे ओर कब मकान बेचे.... बाकी आप के लेख से सहमत हुं, ओर ब्लागिंग सच मै एक बहुत बडा सहारा है
रिटायरमेंट ? अरे ये तो विभागीय उम्र है. जब तक जीवन है तब तक रिटायर कहां से होना है?
रिटायर होना बस एक नाम है आदमी जब तक है तब तक रिटायर नही है और रही बात ब्लॉग की तो यहाँ तो आपको और भी ढेर सारे बेटें, बेटियाँ, भाई सब मिल गये एक अनोखा रिश्ता सा बन जाता है ऐसे में भला कोई अपनों से दूर कहाँ है...अब तो यह ब्लॉग भी एक परिवार सा लगता है ..बेटे का प्रणाम स्वीकारें माता जी..
वृ्द्धावस्था के एकांकी जीवन का आपने तो यथार्थ चित्रण कर डाला...वाकई ये सच है कि ब्लागिंग इस नीरसता को समाप्त करने में बहुत अच्छा साधन सिद्ध हो रहा है।
कैसी बात कह दी,निर्मला जी...हमें तो आपसे इतना सीखने को मिलता है..इतनी स्फूर्तिमय हैं आप...जहाँ भी कमेन्ट देने जाओ...आपका कमेन्ट पहले लिखा हुआ होता है...एक मैं इतनी आलसी हूँ....बस पढ़ती ही जाती हूँ..आराम से कमेन्ट करुँगी और कितने ब्लोगर साथी नाराज़ हो जाते हैं..छूट ही जाते हैं कई ब्लोग्स.
रिटायारी कालोनी की बात पते की कही....पर हमलोग क्या करें ...रिटायर करते ही हमारी बिल्डिंग का भी यही हाल होगा...सब हमउम्र ही हैं ..:(
रिटायर...यह एक ऐसा शब्द है कि यदि यह दिमाग पर चढ़ जाए तो आदमी को कहीं का नहीं छोड़ता...बिलकुल जैसे जिजीविषा समाप्त कर देता है...
हम सब तो उसी और जा रहे हैं,पर इसे दिमाग पर कभी भी चढ़ने न दें तभी जीवन को सार्थक सकारात्मक प्रयासों में लगा सकते हैं....
Retire to wo log hoten hain jo kahate hain ki koi kaam hi nahi hai....
blog ke madhayam se kitne baaten ho jaaten hai, apna ghar pariwar jaisa ho gaya hai...
Mere manana hai ki retire ko life se retire kar dene mein hi sabki samjhdaari hai
आदरणीया निर्मला जी, बहुत ही सामयिक और सार्थक लगी आपकी पोस्ट । आश्चर्य की बात है कि जो लोग ऐसे वृद्ध लोगों के रहने की जगह को रिटायरी कालोनी कह रहे हैं----उन्हें क्या बिल्कुल यह पता नहीं कि वो भी एक दिन बूढ़े होंगे---रिटायर होंगे? पूनम
आपका लेख पढ़कर दिल थोड़ा उदास हुआ । मेरे माता - पिता भी लखनऊ मे रहते और मैं मुम्बई में नौकरी करता हूँ । वाकई मे, मन कभी कभी उदास रहता है । पुरानी एक गज़ल की पन्क्तिया मुझे छू जाती है -- " मैं रोया परदेस में, भीगा माँ क प्यार । दुख़ ने दुख़ से बात की, बिन चिट्ठी, बिन तार ॥"
पर, ये हकीकत है, ये ब्लागिंग की दुनिया भी, एक परिवार जैसा है, और हम सब उस परिवार के सदस्य ।
bahut hi bhavpurn likha hai aapne...or ye blogs vakai sahara hai..par aap budhi hain ismen to sandeh hai.
एक बड़ी मानवीय समस्या की और ध्यान दिलाया आपने. विकास के साथ-साथ हमें इस तरह के मुद्दों से जूझना ही पडेगा. लगभग सभी विकसित देशों में वृद्धों की जनसंख्या युवाओं को पीछे छोड़ रही है. अभी भारत की स्थिति उतनी खराब नहीं हुई है परन्तु नंगल की स्थिति को हमें भविष्य के लिए एक चेतावनी की तरह समझना पडेगा.
निर्मला जी,
कैसी बात कर रही हैं आप...आप के पास अनुभव का वो खजाना है जिससे हर कोई मालामाल हो सकता है...पूरा ब्लॉगवुड आपमें ममतामयी मां को देखता है...हां...ये तो आप भी जानती हैं कि कामकाजी ब्लॉगरों के लिए प्रतिस्पर्धा के इस माहौल में काफी वक्त खपाना पड़ता है...इसलिए हो सकता है कि कभी कोई अति व्यस्तता के चलते आपके ब्लॉग पर न आ पाए, लेकिन आप सब के दिल में हमेशा बनी रहती है...और बेटे समझे न समझे, मां तो बच्चों का हर हाल बिना कहे ही समझ लेती हैं...
जय हिंद...
आदरणीया निर्मला जी
भावुक कर दिया आपने........
सब इसी नाव में सवार हैं...लोग भूल जाते हैं सबको बूढा होना है...रिटायर भी होना है......!
रिटायर लोगों की व्यथा वाजिब है
आभार
घरों में जहां रिटायर्ड लोग अपने कुटुम्ब के साथ रहते हैं, वहां भी वृद्धों को धीरे धीरे उपेक्षित और कोने में जाते देखा है। कई जगह बच्चे उनसे किनारा करते हैं। उनकी बातों को पुराना बता मजाक उड़ाते हैं। और यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
उसे देखते हुये रिटायर्ड कालोनी का कॉंसेप्ट ज्यादा ठीक है।
मेरे आदर्श तो मैनेजमेण्ट गुरू पीटर ड्रकर हैं - जो ९६ वर्ष तक जिये और अन्त तक बौद्धिक रूप से जीवन्त रहे। हर वर्ष एक नये विषय का चयन कर अपना ज्ञानार्जन करते रहे।
[maroon]Respected Madam,Apki poetry mein jayada tar practical baaton ke barey mein bataya gaya hai....aap kum shabadon mein hi bht kuch beyan kar dete hai....[:)]
Regards
[red]Sunil Singh Dogra[/red]
[navy]Gazal Singer[/navy]
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