28 October, 2009

गज़ल

यह गज़ल भी अपने बडे भाई साहिब आदरणीय प्राण शर्माजी के आशीर्वाद
और गलतियाँ निकालने के बाद ही सजी संवरी है ।
मैं उन की शुक्रगुज़ार हूँ कि अपना इतना कीमती समय निकाल कर
मुझे गज़ल सिखा रहे हैं।उनका धन्यवाद् कह कर इस ऋण से मुक्त
नहीं होना चाहती, उनकी चिरायू और सुख समृद्धि के लिये दुआ करती हूँ।
अपको कैसी लगी?



सुनहरे हर्फों को दिल पर मेरे आकर सजाये कौन
मेरी किस्मत मेरे माथे पे खुशियों की बनाये कौन

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

उठे ऊपर अगरचे लौ बुझाने को लगे सब ही
मगर बढती हुई उसकी पिपासा को बुझाये कौन

बनाया स्वार्थ को तूने मुकाम अपना बता क्योंकर
दया, करुणा,मुहब्बत और सच्चाई पढाये कौन

कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन

चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को सुनाये कौन


जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन


47 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
गजल स्‍वयं से शुरू करके देश तक ले जाना, वाह उत्‍कृष्‍ट विचार हैं। आप ऐसी ही लिखती रहें, मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

haan! yahi to sabse badi problem hoti hai ki kaum pahle manaye........

bahut achchi lagi yeh ghazal......

Dr. Shreesh K. Pathak said...

"बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"

यहीं तो सारी कशमकश है....."बेहद उम्दा और सरल शब्दों में..".

गजलें आपकी ताकत हैं....बधाइयाँ...

वाणी गीत said...

बहुत नाराज हो तुम भी बहुत नाराज हूँ मैं भी..
चलो छोडो सभी शिकवे ..मगर पहले मनाये कौन ..
हम तो जी सब शिकवे शिकायत छोड़ कर पहले मन ही लेते हैं ...अब कोई हमें इमोशन फूल कहे तो कहे ...की फरक पैंदा है ...!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर ग़ज़ल!बधाई!

Sudhir (सुधीर) said...

निर्मला दी, कई दिनों की व्यस्तता के चलते आज दिवाली के बाद आराम से बैठकर चिठ्ठों का पाठन कर रहा हूँ....शुरुआत आपकी इस ग़ज़ल से करने से और आनंद आ गया और वाह दो शेरों की अभिव्यक्ति बड़ी ही प्यारी हुई है...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

क्या प्यारी बात है...और भाव भी सुन्दर जहाँ यह शेर दिल की बात कहता हैं वहीँ दूसरा तत्कालीन हालातों पर टिपण्णी है ...

चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को सुनाये कौन

वाह!!

ओम आर्य said...

माँ जी
आपकी लेखनी से मै काफी समय से परिचित हूँ ,आपकी लेखनी का दायरा बहुत ही विशालकाय है

जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
एक पाक ख्याल है ........बहुत ही सुन्दर!

"अर्श" said...

कल जब आपने ये शे'र मुझे पढाया तो मैं यही समझा था के ये किसी और का है और उसके बराबर का शे'र देने के लिए मैंने किसी और का वो शे'र कहा था मगर वो भी उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाया था .. और आज जब आपके ब्लॉग पे आया तो पढ़ कर अव्वाक रह गया और शर्मिंदगी भी ... मतला जिस तरह से आपने कहा है वो अपने आप में कबीले तारीफ़ है खडा और बेलेलान होकर दाद मांग रहा है और ये नाजुक शे'र जो वाकई बहुत दूर तलक और दिल में उतर कर कोट करने वाला शे'र बन जाने वाला है ... हर बार आपकी ग़ज़ल बढ़िया से बढ़िया होती जा रही है ... पिछली दफा आपकी ग़ज़लों पर किसी ने कहा था के मैं तो हतप्रभ हूँ के वो इतनी जल्दी इतनी उम्दा शे'र कह रही हैं...सुन कर ख़ुशी हुई थी , कमाल कर दिया है अपने और हो भी क्यूँ नहीं आपको गुरु जी ही ऐसे मिले है ,...
बहुत नाराज हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे मगर पहले मनाये कौन ...

मान गए आप मेरी माँ हो .. और माँ तो माँ ही होती है ... सादर चरणस्पर्श..

आपका
अर्श

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी गजल .. धन्‍यवाद !!

P.N. Subramanian said...

"... .पहले मनाये कौन" यह तो वाही सुन्दर लखनवी अंदाज़ हुआ. ग़ज़ल अच्छी लगी. आभार.

रामकुमार अंकुश said...

एक संवेदनशील गजल.... पूर्ण भावाभियक्ति के साथ ...
आभार..

सदा said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"

पूर्ण भावाभियक्ति के साथ,आभार !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
बहुत सुंदर !

vandana gupta said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

bahut hi kamaal ka sher gadha hai..........badhayi..........vaise har sher lajawaab hai.

अजय कुमार said...

दुविधा और बहुत सारे सवाल , कमाल की प्रस्तुति

mehek said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"
kaisi kashmash hai ye,bahuthi lajawab gazl rahi sunder.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

कभी कभी इस बात की पहल कोई नही कर पता और पूरा जीवन ऐसे ही निकल जाता है ..... बहुत अच्छा लगा ये शेर ......

कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन

आज के माहोल में सब जगह हैवान ही नज़र आते हैं ...... ये सवाल बहुत बाधा है की इनको इंसान कैसे बनाया जाये .....

बहुत ही पकी हुयी ग़ज़ल है ... हालत और समाज का आइना .........

Unknown said...

हाय हाय हाय हाय .........

ये हुई न बात,,,,,,,,,,

ग़ज़ल की महक
ग़ज़ल की रंगत
ग़ज़ल की ताज़गी
और
ग़ज़ल की खुशनुमाई

सब एक ही जगह हासिल हो गई...........

प्राण शर्मा जी को प्रणाम
आपका अभिनन्दन !

Kusum Thakur said...

"जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन"

बहुत ही सुन्दर गजल है ,बधाई !!!

rashmi ravija said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
हज़ार राहें मुड कर देखीं...कहीं से कोई सदा ना आई....ख़ूबसूरत ग़ज़ल है..अलग अलग फलक को छूती हुई

rashmi ravija said...
This comment has been removed by the author.
नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"

..bahut sundar

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद.

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen/lajawaab rachna ke liye , nirmala ji badhaai sweekaren/

रंजना said...

Bhaavpoorn bahut hi sundar gazal !! Bada aanand aaya padhkar..aabhar.

Apanatva said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

bahut hee sunder gajal hai .
badhai .

Apanatva said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

bahut hee sunder gajal hai .
badhai .

Apanatva said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

bahut hee sunder gajal hai .
badhai .

Manav Mehta 'मन' said...

नमस्कार निर्मला जी, कैसे हैं आप??????
सब लोगों ने इस ग़ज़ल के दूसरे शे'र की ज्यादा तारीफ़ करी है मैं कहना चाहूँगा की उसके साथ-साथ ये शे'र भी लाजवाब हैं..........

कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन

जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन

गौतम राजऋषि said...

"चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को सुनाये कौन"
क्या बात है...क्या बात है !!!

मैम, कमाल की बंदिश। ग़ज़ल आपकी दिन-ब-दिन ऊंचाईयां छूती जा रही हैं, इतनी कि हमारी हैसियत नहीं रही तारीफ़ करने की और ये बात मैं दिल से कह रहा हूं। प्राण साब की सरपरस्ती का जादू तो है ही, लेकिन आपकी लेखनी का चमत्कार भी शामिल है इसमें।

M VERMA said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
छू गयी यह गजल. करीब से गुजरती भावनाएँ शब्द पाकर क्या नही कह रहे है.
जो खुद तारीफ हो तो तारीफ कैसे की जा सकती है.

Chandan Kumar Jha said...

बहुत ही ओजपूर्ण रचना । आभार

पूनम श्रीवास्तव said...

बनाया स्वार्थ को तूने मुकाम अपना बता क्योंकर
दया, करुणा,मुहब्बत और सच्चाई पढाये कौन
कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन

आदरणीया निर्मला जी,
वैसे तो पूरी गजल ही बहुत सुन्दर लगी---पर ऊपर लिखी पंक्तियों ने दिल को छू लिया ।
पूनम

विनोद कुमार पांडेय said...

हर एक पंक्ति बेहतरीन...लाज़वाब ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई

अर्कजेश Arkjesh said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन

बहुत बढिया !

मनोज कुमार said...

संवेदना का सार है फूल का उपहार है । रस, लय से सजी-संवरी हुई काव्य का श्रृंगार है ।
यह ग़ज़ल

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन ।।

बहुत ही बढिया लगी ये गजल....
आभार्!

जोगी said...

"जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन"
waah ji waah :)

दीपक 'मशाल' said...

star me ye gazal bahut badi hai aur main bahut chhota....
bas nishabd hoon...

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने ! आपकी लेखनी को सलाम!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

दिल के जज्बों को बहर में बहुत खूबसूरती से सजाया गया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Kulwant Happy said...

बहुत शानदार हैं। सच कहूं जानदार हैं।

सचमुच निर्मला मां हम ईमानदार हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
आभार!

Ashutosh said...

बहुत सुंदर कविता.
हिन्दीकुंज

Asha Joglekar said...

हर एक शेर बेहतरीन और जब आपके गुरु प्राण साहब हों तो क्यूं न हो । ये वाला तो मंदिर का कलश है ।
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन .

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

ek umda aur behtarin ghazal....

शरद कोकास said...

अच्छी गज़ल के लिये बधाई और प्रान शर्मा जी का आभार ।

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