गज़ल
यह गज़ल भी अपने बडे भाई साहिब आदरणीय प्राण शर्माजी के आशीर्वाद
और गलतियाँ निकालने के बाद ही सजी संवरी है ।
मैं उन की शुक्रगुज़ार हूँ कि अपना इतना कीमती समय निकाल कर
मुझे गज़ल सिखा रहे हैं।उनका धन्यवाद् कह कर इस ऋण से मुक्त
नहीं होना चाहती, उनकी चिरायू और सुख समृद्धि के लिये दुआ करती हूँ।
अपको कैसी लगी?
और गलतियाँ निकालने के बाद ही सजी संवरी है ।
मैं उन की शुक्रगुज़ार हूँ कि अपना इतना कीमती समय निकाल कर
मुझे गज़ल सिखा रहे हैं।उनका धन्यवाद् कह कर इस ऋण से मुक्त
नहीं होना चाहती, उनकी चिरायू और सुख समृद्धि के लिये दुआ करती हूँ।
अपको कैसी लगी?
सुनहरे हर्फों को दिल पर मेरे आकर सजाये कौन
मेरी किस्मत मेरे माथे पे खुशियों की बनाये कौन
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
उठे ऊपर अगरचे लौ बुझाने को लगे सब ही
मगर बढती हुई उसकी पिपासा को बुझाये कौन
बनाया स्वार्थ को तूने मुकाम अपना बता क्योंकर
दया, करुणा,मुहब्बत और सच्चाई पढाये कौन
कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन
चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को सुनाये कौन
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
47 comments:
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
गजल स्वयं से शुरू करके देश तक ले जाना, वाह उत्कृष्ट विचार हैं। आप ऐसी ही लिखती रहें, मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
haan! yahi to sabse badi problem hoti hai ki kaum pahle manaye........
bahut achchi lagi yeh ghazal......
"बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"
यहीं तो सारी कशमकश है....."बेहद उम्दा और सरल शब्दों में..".
गजलें आपकी ताकत हैं....बधाइयाँ...
बहुत नाराज हो तुम भी बहुत नाराज हूँ मैं भी..
चलो छोडो सभी शिकवे ..मगर पहले मनाये कौन ..
हम तो जी सब शिकवे शिकायत छोड़ कर पहले मन ही लेते हैं ...अब कोई हमें इमोशन फूल कहे तो कहे ...की फरक पैंदा है ...!!
सुंदर ग़ज़ल!बधाई!
निर्मला दी, कई दिनों की व्यस्तता के चलते आज दिवाली के बाद आराम से बैठकर चिठ्ठों का पाठन कर रहा हूँ....शुरुआत आपकी इस ग़ज़ल से करने से और आनंद आ गया और वाह दो शेरों की अभिव्यक्ति बड़ी ही प्यारी हुई है...
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
क्या प्यारी बात है...और भाव भी सुन्दर जहाँ यह शेर दिल की बात कहता हैं वहीँ दूसरा तत्कालीन हालातों पर टिपण्णी है ...
चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को सुनाये कौन
वाह!!
माँ जी
आपकी लेखनी से मै काफी समय से परिचित हूँ ,आपकी लेखनी का दायरा बहुत ही विशालकाय है
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
एक पाक ख्याल है ........बहुत ही सुन्दर!
कल जब आपने ये शे'र मुझे पढाया तो मैं यही समझा था के ये किसी और का है और उसके बराबर का शे'र देने के लिए मैंने किसी और का वो शे'र कहा था मगर वो भी उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाया था .. और आज जब आपके ब्लॉग पे आया तो पढ़ कर अव्वाक रह गया और शर्मिंदगी भी ... मतला जिस तरह से आपने कहा है वो अपने आप में कबीले तारीफ़ है खडा और बेलेलान होकर दाद मांग रहा है और ये नाजुक शे'र जो वाकई बहुत दूर तलक और दिल में उतर कर कोट करने वाला शे'र बन जाने वाला है ... हर बार आपकी ग़ज़ल बढ़िया से बढ़िया होती जा रही है ... पिछली दफा आपकी ग़ज़लों पर किसी ने कहा था के मैं तो हतप्रभ हूँ के वो इतनी जल्दी इतनी उम्दा शे'र कह रही हैं...सुन कर ख़ुशी हुई थी , कमाल कर दिया है अपने और हो भी क्यूँ नहीं आपको गुरु जी ही ऐसे मिले है ,...
बहुत नाराज हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे मगर पहले मनाये कौन ...
मान गए आप मेरी माँ हो .. और माँ तो माँ ही होती है ... सादर चरणस्पर्श..
आपका
अर्श
बहुत अच्छी गजल .. धन्यवाद !!
"... .पहले मनाये कौन" यह तो वाही सुन्दर लखनवी अंदाज़ हुआ. ग़ज़ल अच्छी लगी. आभार.
एक संवेदनशील गजल.... पूर्ण भावाभियक्ति के साथ ...
आभार..
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"
पूर्ण भावाभियक्ति के साथ,आभार !
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
बहुत सुंदर !
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
bahut hi kamaal ka sher gadha hai..........badhayi..........vaise har sher lajawaab hai.
दुविधा और बहुत सारे सवाल , कमाल की प्रस्तुति
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"
kaisi kashmash hai ye,bahuthi lajawab gazl rahi sunder.
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
कभी कभी इस बात की पहल कोई नही कर पता और पूरा जीवन ऐसे ही निकल जाता है ..... बहुत अच्छा लगा ये शेर ......
कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन
आज के माहोल में सब जगह हैवान ही नज़र आते हैं ...... ये सवाल बहुत बाधा है की इनको इंसान कैसे बनाया जाये .....
बहुत ही पकी हुयी ग़ज़ल है ... हालत और समाज का आइना .........
हाय हाय हाय हाय .........
ये हुई न बात,,,,,,,,,,
ग़ज़ल की महक
ग़ज़ल की रंगत
ग़ज़ल की ताज़गी
और
ग़ज़ल की खुशनुमाई
सब एक ही जगह हासिल हो गई...........
प्राण शर्मा जी को प्रणाम
आपका अभिनन्दन !
"जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन"
बहुत ही सुन्दर गजल है ,बधाई !!!
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
हज़ार राहें मुड कर देखीं...कहीं से कोई सदा ना आई....ख़ूबसूरत ग़ज़ल है..अलग अलग फलक को छूती हुई
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन"
..bahut sundar
बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद.
behatareen/lajawaab rachna ke liye , nirmala ji badhaai sweekaren/
Bhaavpoorn bahut hi sundar gazal !! Bada aanand aaya padhkar..aabhar.
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
bahut hee sunder gajal hai .
badhai .
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
bahut hee sunder gajal hai .
badhai .
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
bahut hee sunder gajal hai .
badhai .
नमस्कार निर्मला जी, कैसे हैं आप??????
सब लोगों ने इस ग़ज़ल के दूसरे शे'र की ज्यादा तारीफ़ करी है मैं कहना चाहूँगा की उसके साथ-साथ ये शे'र भी लाजवाब हैं..........
कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
"चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को सुनाये कौन"
क्या बात है...क्या बात है !!!
मैम, कमाल की बंदिश। ग़ज़ल आपकी दिन-ब-दिन ऊंचाईयां छूती जा रही हैं, इतनी कि हमारी हैसियत नहीं रही तारीफ़ करने की और ये बात मैं दिल से कह रहा हूं। प्राण साब की सरपरस्ती का जादू तो है ही, लेकिन आपकी लेखनी का चमत्कार भी शामिल है इसमें।
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
छू गयी यह गजल. करीब से गुजरती भावनाएँ शब्द पाकर क्या नही कह रहे है.
जो खुद तारीफ हो तो तारीफ कैसे की जा सकती है.
बहुत ही ओजपूर्ण रचना । आभार
बनाया स्वार्थ को तूने मुकाम अपना बता क्योंकर
दया, करुणा,मुहब्बत और सच्चाई पढाये कौन
कहे इन्सान खुद को तू मगर हैवान लगता है
बता इन्सानियत के गुर तुझे कुछ भी सिखाये कौन
आदरणीया निर्मला जी,
वैसे तो पूरी गजल ही बहुत सुन्दर लगी---पर ऊपर लिखी पंक्तियों ने दिल को छू लिया ।
पूनम
हर एक पंक्ति बेहतरीन...लाज़वाब ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन
बहुत बढिया !
संवेदना का सार है फूल का उपहार है । रस, लय से सजी-संवरी हुई काव्य का श्रृंगार है ।
यह ग़ज़ल
बहुत नाराज़ हो तुम भी बहुत नाराज़ मैं भी हूँ
चलो छोडो सभी शिकवे,मगर पहले मनाये कौन ।।
बहुत ही बढिया लगी ये गजल....
आभार्!
"जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन"
waah ji waah :)
star me ye gazal bahut badi hai aur main bahut chhota....
bas nishabd hoon...
बहुत ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने ! आपकी लेखनी को सलाम!
दिल के जज्बों को बहर में बहुत खूबसूरती से सजाया गया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत शानदार हैं। सच कहूं जानदार हैं।
सचमुच निर्मला मां हम ईमानदार हैं।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
आभार!
बहुत सुंदर कविता.
हिन्दीकुंज
हर एक शेर बेहतरीन और जब आपके गुरु प्राण साहब हों तो क्यूं न हो । ये वाला तो मंदिर का कलश है ।
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन .
ek umda aur behtarin ghazal....
अच्छी गज़ल के लिये बधाई और प्रान शर्मा जी का आभार ।
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