दोहरे मापदंड --कहानी
*देख कैसी बेशर्म है? टुकर टुकर जवाब दिये जा रही है।भगवान का शुक्र नहीं करती कि किसी शरीफ आदमी ने इसे ब्याह लिया है। छ: महीने मे ही इसके पर निकल आये हैं। सास को जवाब देने लगी है।* दादी न जाने कब से बुडबुडाये जा रही थी।
*ठीक है दादी,किसी बात की हद होती है! उस बेचारी का क्या दोश?जरा सी बात पर उसकी सास इसके अतीत के गडे मुर्दे उखाडने लगती है।* मुझे दादी की बात पर गुस्सा आ गया था।
* तू चुप रह ।इस पढाई लिखाई ने लडकियों का दिमाग खराब कर दिया है।तभी तो ऐसे हादसे होते हैं! *
* दादी भला ये क्या बात हुई? मै उस से कितना अधिक पढ गयी मगर मेरे साथ तो ऐसा हादसा नहीं हुया है।वो तो बेचारी गाँव की सीधी सादी लडकी थी।ाउरतों की इज्जत से खेलना मर्दों का शुगल है ये आज ही नहीं हुया उगों युगों से होता आया है ।मुझे एक बात बताओ कि उस दिन तुम ने महाभारत की कहानी सुनी थी तो दुर्योधन को कैसे गालियाँ निकाल रही थी। द्रोपती के लिये दुख था तो आज अगर रिचा के साथ हादसा हुया है तो इस के लिये दुख क्यों नहीं? क्यों कि औरत के आधे दुखों का कारन ही औरत है। कोई एक भी औरत उठी रिचा के हक मे ?किसी माँ बहन बेटी ने आवाज़ बुलन्द कि रिचा के साथ दुश्कर्म करने वालों को सजा होनी चाहिये? येहीं तक नहीं बल्कि उस पर कटा़क्ष करने मे सब से आगे औरतें ही हैं। और मर्द तो जैसे ये मान बैठे हैं कि ऐसा तो होता ही रहता है ।*
मै अपनी दादी से बहुत प्यार करती थी उनसे कभी ऊँची आवाज़ मे बात नहीं की थी।बात बात मे उनके गले लगना रूठना,शरारतें करना लाड आये तो उनके हाथ से ही खाना खाना।पर आज मुझे दादी पर गुस्सा आगया था।
* बिन्दू ये तुम्हें क्या हो गया तुम क्यों भरी बैठी हो?मैने तुझे तो कुछ नहीं कहा।* दादी हैरान सी मेरे सिर पर हाथ फेरने लगी।
* दादी मुझे औरत का यही रूप अच्छा नहीं लगता। आपके जमाने और थे ौरतें घुट घुट कर जीना सीख लेती थी़, अत्याचार सह लेती थी, और आने वाली अपनी संतानो को यही सहन करने की शिक्षा देती थी। तब अनपढता थी आज नारी पुरुश के कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है तो क्यों अत्याचार सहे?वो भी समाज के दरिँदों का, बदमाशों के घृणित कुकर्म का?* मैने देखा दादी चुप कर गयी थी।शायद बात के मर्म को जान गयी थी।
* दादी आपने उसे एक बार जवाब देते तो सुन लिया, क्या उस के अन्दर जो लावा जल रहा है उसे कभी देखने, महसूस करने की कोशिश की? ये आज उसका जवाब देना उस लावे का धुँअँ है ।जिसे एक दिन फटना ही था । मैं तो चाहती हूँ कि एक दिन ये फटे ताकि वो जी सके कब तक घुट घुट कर मरती रहेगी उस बात के लिये ताने सुनती रहेगी जो उस ने की ही नहीं?। दादी प्लीज़ उसे जी लेने दो।, अगर कुछ कहना है तो उस की सास को समझाओ कि उस की दुखती रग पर हाथ न रखा करे।उसे अतीत का ताना न दे।* कहते कहते मै रोने लगी थी। और भाग कर अन्दर अपने कमरे मे चली गयी।
रिचा मेरी स्कूल की सहेली थी।वो इस शहर के साथ लगते गाँव रायेपुर से पढने आती थी।शरीफ खानदान से थी। घर अधिक अमीर नही था मगर बच्चों को पढाने के लिये पिता ने काफी मेहनत की। वो पढने मे भी लायक थी। ऊँचे ऊँचे सपने थे उसके। मगर उसके साथ ऐसा खौफनाक हादसा हुया कि सब सपने बिखर गयेपतझड के पत्तों की तरह अब उसे सिर्फ समाज और घर वालों के रहम पर जीना था।
पाँचवीं कक्षा से ही हम दोनो साथ थी दसवीं तक पहुँचते -2 हमारी दोस्ती पक्की हो गयी। एक दूसरे के बिना एक दिन भी दूर रहना अच्छा न लगता था।
उस दिन गर्मियों की छुट्टियाँ हो रही थी। कितने दिन मिलना ना हो सकेगा । उसे मेरी कापी से कुछ नोट्स भी उतारने थे। हम दोनो क्लास रूम मे ही बैठ गयी।15 20 मिनट मे सभी बच्चे जा चुके थे। हम ने भी काम खत्म होते ही अपने बैग सम्भाले और अपने अपने रास्ते चल दी।
उसका गाँव दो तीन कि, मी, की दूरी पर था गाँव वालों के लिये ये रास्ता कोई दूर नहीं था।बच्चे अक्सर पैदल या साईकलों पर ही आते थे।गाँव का स्कूल प्राईमरी तक ही था इस लिये उन्हें शहर के स्कूल आना पडता था।
उस दिम चूँकि हम क्लास्रूम से 15-20 मि, लेट निकली थी तो उस्के गाँव के सब बच्चे जा चुके थे। रोज़ का रास्ता था दिन मे डर की कोई बात नहीं थी।
गर्मी के दिन थे।दोपहर की चिलचिलाती धूप मे रास्ता एकदम सुनसान था। मगर वो रोज़ की तरह बेपरवाह चली जा रही थी। अचानक पीछे सीक गाडी उसके पास आ कर रुकी, इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती गाडी मे से दो हट्टे कट्टे लदके उतरे और उसे गाडी मे धकेल कर अन्दर किया और तीसरे ने गाडी स्टार्त कर दी।
जब छुट्टी से दो तीन घन्टे बाद तक भी वो घर नहीं पहुँची तो उसकी खो शुरू हुई।स्कूल जा कर देखा उसकी सहेलियों और सब जगह पता किया मगर उसका कुछ पता न चला।
घर वालों का घबराहट से बुरा हाल था जितने मुह उतनी बातें।। माँ के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।पिता किसी अनजान शंका से सहम गये थे।भाई इधर उधर मारा मारा फिर रहा था । लोगों को बातें बनाने का अवसर मिल गया था। कहाँ खोजें लडकी की इज़्जते का सवाल था। ेआस पास खबर हुई तो किसी ने सलाह दी कि पुलिस मे जाना चाहिये।मगर उसके पिता इतनी जल्दी कोई फैसला लेना नहीं चाहते थे।--- क्रमश:
*ठीक है दादी,किसी बात की हद होती है! उस बेचारी का क्या दोश?जरा सी बात पर उसकी सास इसके अतीत के गडे मुर्दे उखाडने लगती है।* मुझे दादी की बात पर गुस्सा आ गया था।
* तू चुप रह ।इस पढाई लिखाई ने लडकियों का दिमाग खराब कर दिया है।तभी तो ऐसे हादसे होते हैं! *
* दादी भला ये क्या बात हुई? मै उस से कितना अधिक पढ गयी मगर मेरे साथ तो ऐसा हादसा नहीं हुया है।वो तो बेचारी गाँव की सीधी सादी लडकी थी।ाउरतों की इज्जत से खेलना मर्दों का शुगल है ये आज ही नहीं हुया उगों युगों से होता आया है ।मुझे एक बात बताओ कि उस दिन तुम ने महाभारत की कहानी सुनी थी तो दुर्योधन को कैसे गालियाँ निकाल रही थी। द्रोपती के लिये दुख था तो आज अगर रिचा के साथ हादसा हुया है तो इस के लिये दुख क्यों नहीं? क्यों कि औरत के आधे दुखों का कारन ही औरत है। कोई एक भी औरत उठी रिचा के हक मे ?किसी माँ बहन बेटी ने आवाज़ बुलन्द कि रिचा के साथ दुश्कर्म करने वालों को सजा होनी चाहिये? येहीं तक नहीं बल्कि उस पर कटा़क्ष करने मे सब से आगे औरतें ही हैं। और मर्द तो जैसे ये मान बैठे हैं कि ऐसा तो होता ही रहता है ।*
मै अपनी दादी से बहुत प्यार करती थी उनसे कभी ऊँची आवाज़ मे बात नहीं की थी।बात बात मे उनके गले लगना रूठना,शरारतें करना लाड आये तो उनके हाथ से ही खाना खाना।पर आज मुझे दादी पर गुस्सा आगया था।
* बिन्दू ये तुम्हें क्या हो गया तुम क्यों भरी बैठी हो?मैने तुझे तो कुछ नहीं कहा।* दादी हैरान सी मेरे सिर पर हाथ फेरने लगी।
* दादी मुझे औरत का यही रूप अच्छा नहीं लगता। आपके जमाने और थे ौरतें घुट घुट कर जीना सीख लेती थी़, अत्याचार सह लेती थी, और आने वाली अपनी संतानो को यही सहन करने की शिक्षा देती थी। तब अनपढता थी आज नारी पुरुश के कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है तो क्यों अत्याचार सहे?वो भी समाज के दरिँदों का, बदमाशों के घृणित कुकर्म का?* मैने देखा दादी चुप कर गयी थी।शायद बात के मर्म को जान गयी थी।
* दादी आपने उसे एक बार जवाब देते तो सुन लिया, क्या उस के अन्दर जो लावा जल रहा है उसे कभी देखने, महसूस करने की कोशिश की? ये आज उसका जवाब देना उस लावे का धुँअँ है ।जिसे एक दिन फटना ही था । मैं तो चाहती हूँ कि एक दिन ये फटे ताकि वो जी सके कब तक घुट घुट कर मरती रहेगी उस बात के लिये ताने सुनती रहेगी जो उस ने की ही नहीं?। दादी प्लीज़ उसे जी लेने दो।, अगर कुछ कहना है तो उस की सास को समझाओ कि उस की दुखती रग पर हाथ न रखा करे।उसे अतीत का ताना न दे।* कहते कहते मै रोने लगी थी। और भाग कर अन्दर अपने कमरे मे चली गयी।
रिचा मेरी स्कूल की सहेली थी।वो इस शहर के साथ लगते गाँव रायेपुर से पढने आती थी।शरीफ खानदान से थी। घर अधिक अमीर नही था मगर बच्चों को पढाने के लिये पिता ने काफी मेहनत की। वो पढने मे भी लायक थी। ऊँचे ऊँचे सपने थे उसके। मगर उसके साथ ऐसा खौफनाक हादसा हुया कि सब सपने बिखर गयेपतझड के पत्तों की तरह अब उसे सिर्फ समाज और घर वालों के रहम पर जीना था।
पाँचवीं कक्षा से ही हम दोनो साथ थी दसवीं तक पहुँचते -2 हमारी दोस्ती पक्की हो गयी। एक दूसरे के बिना एक दिन भी दूर रहना अच्छा न लगता था।
उस दिन गर्मियों की छुट्टियाँ हो रही थी। कितने दिन मिलना ना हो सकेगा । उसे मेरी कापी से कुछ नोट्स भी उतारने थे। हम दोनो क्लास रूम मे ही बैठ गयी।15 20 मिनट मे सभी बच्चे जा चुके थे। हम ने भी काम खत्म होते ही अपने बैग सम्भाले और अपने अपने रास्ते चल दी।
उसका गाँव दो तीन कि, मी, की दूरी पर था गाँव वालों के लिये ये रास्ता कोई दूर नहीं था।बच्चे अक्सर पैदल या साईकलों पर ही आते थे।गाँव का स्कूल प्राईमरी तक ही था इस लिये उन्हें शहर के स्कूल आना पडता था।
उस दिम चूँकि हम क्लास्रूम से 15-20 मि, लेट निकली थी तो उस्के गाँव के सब बच्चे जा चुके थे। रोज़ का रास्ता था दिन मे डर की कोई बात नहीं थी।
गर्मी के दिन थे।दोपहर की चिलचिलाती धूप मे रास्ता एकदम सुनसान था। मगर वो रोज़ की तरह बेपरवाह चली जा रही थी। अचानक पीछे सीक गाडी उसके पास आ कर रुकी, इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती गाडी मे से दो हट्टे कट्टे लदके उतरे और उसे गाडी मे धकेल कर अन्दर किया और तीसरे ने गाडी स्टार्त कर दी।
जब छुट्टी से दो तीन घन्टे बाद तक भी वो घर नहीं पहुँची तो उसकी खो शुरू हुई।स्कूल जा कर देखा उसकी सहेलियों और सब जगह पता किया मगर उसका कुछ पता न चला।
घर वालों का घबराहट से बुरा हाल था जितने मुह उतनी बातें।। माँ के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।पिता किसी अनजान शंका से सहम गये थे।भाई इधर उधर मारा मारा फिर रहा था । लोगों को बातें बनाने का अवसर मिल गया था। कहाँ खोजें लडकी की इज़्जते का सवाल था। ेआस पास खबर हुई तो किसी ने सलाह दी कि पुलिस मे जाना चाहिये।मगर उसके पिता इतनी जल्दी कोई फैसला लेना नहीं चाहते थे।--- क्रमश:
25 comments:
बहुत बढिया, आगे की कडी का इंतजार है.
रामराम.
आपका लिखा हुआ पढना हमेशा से दिलचस्प होता है और सदैव एक सीख देता है
आगे का इंतजार रहेगा
sundar prstuti..aapki kahani bandh deti hai kadi dar kadi abhi bilkul jaldi me padhata gaya hoon par dil kahata hai abhi ek baar aur aaram se padhunga...
dhanywaad..
आपके शब्दों का चयन बड़ा सुरुचिपूर्ण रहता है. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
लावे का फ़ुट्ना ही जरुरी होता है नही तो घुट-घुट के जीना पडेगा,आपकी कहानी बहुत ही बढिया है,आपको दशहरे की शुभकामनाये,हा द्शहरे पे मैने ललित डाट काम पर वि्श्व प्रसिद्ध बस्तर के दशहरे की फ़ोटो गैलरी लगाई हुई है आप अवश्य ही आनन्द ले,
बहुत ही अच्छी शुरूआत, अगली कड़ी की प्रतीक्षा में हैं ..
विजयादशमी पर्व की शुभकामनाये
विजयादशमी पर्व की शुभकामनाये
कहानी की शुरूआत तो बढिया रही....आगामी कडी की प्रतीक्षा है।
एक विनम्र सलाह है कि कृ्प्या बहुभागों में विभाजित कहानी के साथ ही लघुकथा भी लिखा करें...वर्ना हमारे जैसे भुलक्कड आदमी तो अगली कडी तक यही भूल जाते हैं कि पहले भाग में क्या पढा था!!!
सधी हुई प्रवाहमयी भाषा पढ़कर अच्छा लगा. पूरी कहानी एक साथ पढ़ सकता तो बेहतर होता. इन्तिज़ार का भी अपना मज़ा है.
आपकी तो कहानी बहुत ई सटीक होती है बधाई और आगे का इंतज़ार
शिर्षक के अनुरूप कहानी.........बहुत ही सुघडता से आगे बढ रही है ..............आपकी कहानियो मे असल जिन्दगी देखने को बहुत ही जगहो पर मिलता है .....अगली कडी का इंतजार रहेगा..........
जोरदार कहानी है, जारी रखिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कहानी के अगले अंश को जानने की उत्सुकता हो गयी है ..!!
इस कहानी का प्रवाह इतना अच्छा है कि
मन में इसका आगे का भाग पढ़ने की इच्छा
बलवती हो गई है।
अरे मेरी टिपण्णी ्किथे गई ?
बेचारा लडकी का बाप है जग हंसाई ना हो इस लिये पुलिस मै जाते भी डरता है इज्जत के मारे, यह कहानी आज से काफ़ी समय पहले की लगती है.. कहानी ने बंधे रखा अगली कडी का इंताजार है
धन्यवाद
बहुत बढिया कहानी है, आगे की कडी का इंतजार है.
हिन्दीकुंज
bahut sundar..
agle ank ki pratiksha hai ab to..
ਲਾਜਬਾਬ ਹੈ ਕਹਾਨੀ ਸਮੇਂ ਦੇ ਸੱਚ ਨੂੰ ਪਕੜਿਆ ਹੈ ਤੁਸੀ
ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਹੈ ਅਗਲੀ ਕਿਸ਼ਤ ਦਾ ਬੇ-ਸਬਰੀ ਨਾਲ
बढ़िया चल रही है कहानी और एक उत्सुक्ता जगा गई अगली कड़ी के लिए. सफल रही अब तक. बधाई.
वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने!कहानी की अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है मुझे! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढिया, इंतजार है........
माँ प्रणाम देरी के लिए माफ़ी चाहूंगा बहुत दिन बाद आप के ब्लॉग पर आ रहा हूँ ,, कारण आप खुद जानती है ,,,आप की कहानियों में कुछ येसा होता है जो शुरू से आखिर तक बाधे रखता है ,,, और जब तक कहानी खत्म नहीं हो जाती उत्सुकता बरकरार रहती है ,,,, अगली कड़ी के इन्तजार में
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
मानवीय संवेदनाएं उकेरकर रख देती हैं आपकी कहानी...अगली कड़ी के इंतज़ार में...
achhi khni chal rhi hai ak uddeshy ko lekar aage ki kdi ka intjar rhega
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