15 September, 2009

मेरा ये तीसरा गीत भी मेरे गुरूदेव श्रद्धेय प्राण जी को समर्पित है । इसे भी उनके कर कंमलो़ ने सजाया संवारा है।


मैं बदली सी लहराती हूँ
मैं लतिका सी बल खाती हूँ

मंद पवन का झोंका बन कर
साजन के मन बस जाती हूँ

बन धन दौलत माया ठगनी
मैं मानव को भरमाती हूँ

फूल कली बन कर जब आऊँ
मैं गुलशन को महकाती हूँ

रंग विरंगी तितली बन कर
बच्चों को यूँ बहकाती हूँ

मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ

मत खेलो मेरी अस्मत से
मैं घर की दीया बाती हूँ

छोड विदेश गये जब साजन
तन्हा मैं अश्क बहाती हूँ

35 comments:

Prem said...

सुंदर सी गुनगुनाती रचना

Sudhir (सुधीर) said...

मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ

वाह !! अच्छी अभिव्यक्ति हैं.....सुन्दर

seema gupta said...

मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ
बेहद उर्जावान पंक्तियाँ सुन्दर गीत...
regards

Arvind Mishra said...

मन को छूती सहज सरल अच्छी रचना !

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर रचना है। गीत लेखन का अभ्यास अब पूर्णता प्राप्त कर रहा है।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत उम्दा रचना. शुभकामनाएं.

रामराम.

mehek said...

मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ

मत खेलो मेरी अस्मत से
मैं घर की दीया बाती हूँ
lajawa,behtarin rachana

ओम आर्य said...

एक सुन्दर गीत .......बिल्कुल ही सत्य वचन .....और दिल के बहुत ही करीब लगी यह पंक्तियाँ....
छोड विदेश गये जब साजन
तन्हा मैं अश्क बहाती हूँ

बहुत ही सुन्दर....

सदा said...

दिल को छूते हुये शब्‍द, सत्‍य के बेहद करीब, भावयुक्‍त रचना, आभार

विनोद कुमार पांडेय said...

निर्मला जी..सर्वप्रथम मैं कल हिन्दी दिवस का आपको बधाई देता हूँ..क्षमा करें देर हो गया बधाई कहने में..
और हाँ आज आपकी गीत नारी के उपर जो आपने लिखी है बहुत सुंदर है..पढ़ने के बाद मन गुनगुनता भी है..भावों को समाहित करके आपने कविता में चार चाँद लगा दिए...बहुत प्रेरणा मिलती है चाहे शब्दों और भावों की बात करें चाहे विचारों की..

बहुत बढ़िया कविता...धन्यवाद..

अनिल कान्त said...

dil ko chhoone wali rachnayein padhi maine...achchha laga

Mithilesh dubey said...

वाह लाजवाब अभिव्यक्ति। सुन्दर रचना। बहुत-बहुत बधाई, हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब रचना...नमन है आपके और मेरे सांझे गुरुदेव को...
नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मत खेलो मेरी अस्मत से
मैं घर की दीया बाती हूँ

छोड विदेश गये जब साजन
तन्हा मैं अश्क बहाती हूँ

वाह....।
कितना सुन्दर गीत है।
गुनगुनाते हुए अच्छा लग रहा है।
बधाई!

संगीता पुरी said...

क्‍या सुंदर रचना है निर्मला जी .. मन खुश हो गया !!

रंजू भाटिया said...

मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ वाह बहुत खूब कहा ..शुक्रिया

दिगम्बर नासवा said...

बहूत सुन्दर शब्दों और एहसास से सजी रचना है ............. अछे भावाव्यक्ति ........

vandana gupta said...

waah waah waah waah!kya khoob geet racha hai........itna pyara laybaddh geet ki gungunaane ke man kare..........badhayi.

Arshia Ali said...

बहुत ही प्यारा गीत है।
{ Treasurer-S, T }

रंजना said...

वाह !! बहुत ही सुन्दर !!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! सुन्दर सी इस रचना के लिए आपका आभार्!!

Ashish Khandelwal said...

बहुत सुंदर रचना .. हैपी ब्लॉगिंग

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ओर उम्दा रचना
मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ
वाह क्या बात है

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन...... वाह..

दर्पण साह said...

मैं बदली सी लहराती हूँ
मैं लतिका सी बल खाती हूँ

aapki ue upma pasanad aaiye...

बन धन दौलत माया ठगनी
मैं मानव को भरमाती हूँ
accha 'guru gyan'

ye kavita( ya get) bhi pasand aaiya...

Pranam.

P.N. Subramanian said...

शब्दों का जादू. बहुत सुन्दर. आभार.

Asha Joglekar said...

मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ ।
नारी के मनोभावों को खूबसूरती से दर्शाती कविता ।

Kusum Thakur said...

"मैं नारी कमज़ोर नहीं हूँ
बस थोडी सी जज्बाती हूँ"
बहुत सुन्दर मन को छू लेने वाले भाव हैं । निर्मला जी,
आपको इस सुंदर भाव पूर्ण कविता के लिए आभार।

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

मत खेलो मेरी अस्मत से
मैं घर की दीया बाती हूँ

छोड विदेश गये जब साजन
तन्हा मैं अश्क बहाती हूँ



बहुत ही सुन्दर....

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

बहुत दिनों बाद मेरा प्रणाम ...................कई दिनों से छुटी हुयी जॉब को पाने की असफल कोशिश करता रहा ................खैर नारी के मन की बाते जब नारी सुनाती हैं ...................तभी ये दुनिया बराबरी पर आती हैं .....................

अर्चना तिवारी said...

बहुत सुंदर रचना...मन को छूने वाली रचना

पूनम श्रीवास्तव said...

मैं बदली सी लहराती हूँ
मैं लतिका सी बल खाती हूँ
मंद पवन का झोंका बन कर
साजन के मन बस जाती हूँ

बहुत खूबसूरत पन्क्तियां……हृदय को स्पर्श करने वाली।
पूनम

Kulwant Happy said...

हर पंक्ति अद्भुत...हर शब्द कुछ कहता है।

वाणी गीत said...

मैं नारी कमजोर नहीं ..बस थोडी जज्बाती हूँ..
बिलकुल सही है..नारी के जज्बात को उसकी कमजोरी मन जाता रहा है..मगर ये जज्बात ही है जो उसे प्रकृति की अनमोल रचना बनाते हैं ..
कविता तो पहले पढ़ ली थी..टिपण्णी देने से चूक गयी..बहुत शुभकामनायें..!!

Urmi said...

बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! आपकी हर एक रचनाएँ इतनी सुंदर है की दिल को छू जाती है!

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