24 August, 2009

आना मेरी रूह के शहर

अर्धांगिनी
आधेपन की साक्षी
Align Centreफिर भी चाहते हो
सात जन्मों का बन्धन?
अगर चाहते हो
तो बनाओ
पूर्णागिनी ,पूर्णाक्षरी।
केवल जिस्म नही
अपनी रूह के साथ ।
आना मेरी रूह के शहर।
तुम आते हो
आधेपन मे और
टाँग जाते हो
कीली पर कुछ आपेक्षाओं की
गठरियाँ कुछ बन्धन कुछ सवाल
जिन्हें हल करते हुये
रह गयी हैं
मेरी कुछ कल्पनायेंअनव्याही
कुछ सपने अधूरे
तुम चाहते हो
जन्म जन्म का साथ
सम्पूर्ण समर्पण
तो आना
मेरी रूह के शहर
मगर आना एक एहसास ले कर
कुछ अरमान ले कर
एक उन्मुक्त भाव ले कर
सिर्फ मेरे लिये
और
बरस जाना
बादल बन कर
मेरे हृदय की धरा पर
मैं समा लूंगी तुझे
और बुझा लूँगी
जन्मों की प्यास
और व्याह दूँगी
अपनी कुंवारी कल्पनायें
तुम्हारी रूह के साथ
जन्म जन्म के लिये
कभी आना
हवा का झोँका बन कर
उडूँगी तुम्हारे पाँव की धूल बन कर
तुम्हारे साथ साथ्
और सजा लूँगी अपने सब सपने
कभी बहना झरना बन कर
मैं आऊँगी प्यासी बन कर
और बुझा लूँगी अपनी
जन्मों की प्यास
मगर आना एक एहसास बन कर
मत लाना अपनी आपेक्षायें साथ
आना मेरी रूह के शहर
व्याह दूँगी अपनी कुंवारी कल्पनायें
तुम्हारी रूह के साथ्
कर दूँगी सम्पूर्ण समर्पण
और बन जाऊँगी
सम्पूर्णाक्षरी
सम्पूर्णांगिनी
जन्म जन्म के लिये
आना मेरी रूह के शहर

27 comments:

Urmi said...

बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना बहुत अच्छा लगा! आपकी हर एक रचना बहुत ही सुंदर है!
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन उम्दा अभिव्यक्ति. आननद आ गया.

श्यामल सुमन said...

कोमल भाव की खूबसूरत, आपकी इस रचना ने मन मोह लिया। हमेशा की तरह एक बिशिष्ट अंदाज बात संप्रेषित करने का निर्मला जी। आपको पढ़ना सुखद लगता है।

Unknown said...

वाह !
बहुत ख़ूब !
उम्दा रचना.............

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बेहतरीन उम्दा अभिव्यक्ति.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लाजवाब प्रस्तुति।
बधाई!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aana ek ehsaas ke saath
bahut he achhi rachna...

Anonymous said...

आना मेरी रूह के शहर.... झकझोर गयी मन को कविता की भावनाएं. नारी की चाहत क्या है और मिला क्या, उसकी कामना-आकांक्षा, मन का सजीव चित्रण करने में आप शत-प्रतिशत सफल रही हैं. एक अमर रचना को जन्म देने के लिए बधाई. मेरे शब्द याद रखियेगा--- अमर रचना.

विनोद कुमार पांडेय said...

आना मेरी रूह के शहर..
सुंदर भावनाओं का लहर,
अपनी रचना मे आप ने पिरोया है,
खूबसूरत लफ़्ज़ों को कविता मे संजोया है..

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर भाव .. अच्‍छी रचना लिखी है आपने !!

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब शानदार व लाजवाब रचना। बधाई

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना और शानदार भावाभिव्यक्ति के साथ. शुभकामनाएं.

रामराम.

Alpana Verma said...

तुम चाहते हो
जन्म जन्म का साथ
सम्पूर्ण समर्पण
तो आना
मेरी रूह के शहर
मगर आना एक एहसास ले कर
कुछ अरमान ले कर
एक उन्मुक्त भाव ले कर
सिर्फ मेरे लिये
--
वाह! बहुत खूब!

एक चाहत- एक अहसास लिए हुए भावपूर्ण कविता.

vandana gupta said...

is prastuti ke liye to shabd kam hain........na jaane kitne dard ki uapaj hai ye..........sare jahan ka dard jaise kavita mein simat aaya hai..........har lafz khud bol raha hai dard ki dastan..........lajawaab prastuti.

Razi Shahab said...

behtareen

सदा said...

तुम चाहते हो
जन्म जन्म का साथ
सम्पूर्ण समर्पण
तो आना
मेरी रूह के शहर
मगर आना एक एहसास ले कर
कुछ अरमान ले कर
एक उन्मुक्त भाव ले कर
सिर्फ मेरे लिये

बहुत ही गहरे भावों के सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, आभार.

Anonymous said...

Kya baat hai.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

प्यार के सम्पूर्ण चक्र को किस खूबसूरती से शब्दों में ढाला है, जहाँ सम्पूर्णता की चाहत भी सम्पूर्ण समर्पण चाहती है।

भावों से भरी एक नायाब रचना, स्त्री के भोग्या होने को नकारती हुई।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

aati sundar rachana badhi

अर्चना तिवारी said...

बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना ...

Riya Sharma said...

मगर आना एक एहसास बन कर
मत लाना अपनी आपेक्षायें साथ
आना मेरी रूह के शहर

ये अपेक्षाओं की गठरियाँ,बंधन और कुछ सवाल ...हमेशा ही साथ चले आते हैं...:((

औरत तो सम्पुर्ण समर्पण करके भी सम्पूर्णाक्षरी
सम्पूर्णांगिनी नहीं बन पाती...काश !!!!!!!

नमन है आपकी कलम की गहराई को
सादर !!

hem pandey said...

'आना एक एहसास बन कर
मत लाना अपनी आपेक्षायें साथ'

'ब्याह दूँगी अपनी कुंवारी कल्पनायें
तुम्हारी रूह के साथ्
कर दूँगी सम्पूर्ण समर्पण
और बन जाऊँगी
सम्पूर्णाक्षरी
सम्पूर्णांगिनी
जन्म जन्म के लिये'

-सुन्दर.

हरकीरत ' हीर' said...

निर्मला जी ,

लाजवाब अभिव्यक्ति ....हर शब्द सार्थक ....एक औरत और क्या चाहती है ....जब अपेक्षाएं साथ हो तो सम्पूर्णांगिनी कहाँ बन पाती है वह .....बहुत ही सधे शब्दों से भावो को उकेरा है आपने .....!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्!
बहुत ही सुन्दर तथा लाजवाब भावाभिव्यक्ति!!!
आभार्!

अनिल कान्त said...

इस रचना की जितनी भी तारीफ की जाए वो कम है...एक स्त्री की अंतरात्मा को आपने आवाज़ दी है....या यूँ कहूँ कि शब्द दिए हैं

गौतम राजऋषि said...

amazing...ज्यादा समय नहीं दे पाता मैम ब्लौग को...तो आपकी कई पोस्ट छूट जाती हैं इस चक्कर में..

इस अद्‍भुत कविता के छूटने का मलाल रह जाता!

दर्पण साह said...

accha prashna...
सात जन्मों का बन्धन?
अगर चाहते हो
तो बनाओ
पूर्णागिनी ,पूर्णाक्षरी।


aur phir uska badhiya uttar...
व्याह दूँगी अपनी कुंवारी कल्पनायें
तुम्हारी रूह के साथ्
कर दूँगी सम्पूर्ण समर्पण
और बन जाऊँगी
सम्पूर्णाक्षरी
सम्पूर्णांगिनी

Sundar hamesha ki tarah.

Pranam.

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