मै जब भी कोई कहानी लिखती हूँ तो अक्सर मुझे मेल आती हैं कि ये कहनी मेरे जीवन से सम्बन्धित तो नहीं मैने आज तक लगभग 70 कहानियाँ लिखी हैं क्या 70 ही मेरी हो सकती हैं तो मैं स्पश्ट करना चाहूँगी कि मैं अधिकतर आत्मकथानक मे कहानी लिखती हूँ वो मेरी कहनी नहीं होती मेरे दुआरा लिखित जरूर होती है क्यों कि मैने अस्पताल जैसे स्थान पर नौकरी की है जहाँ ज़िन्दगी को बहुत ही करीब से देखने का अवसर मिला है और मुझे जिस जीवन मे कुछ लिखने योग्य मिला उस पात्र के बहुत करीब गयी हूँ उसे दिल से महसूस किया और उनकी भावनाओं को कागज़ पर उतारा मात्र है इनमे बहुत से पात्र मेरे दिल के करीब अब भी हैं जानती हूँ उनके दुख सुख बाँटती हूँ जिसमे फिर से एक नयी कहानी मिल जाती है इस लिये जिसके साथ कहानी लिखा हो वो केवल कहानी होती है ----हाँ अपने जीवन से संमबन्धित कुछ प्रसंगों को भी कहानी का रूप दिया है उन्हें भी आपके सामने रखूँगी और जरूर बताऊँगी कि ये मेरी कहानी है
अपने बारे मे --अपनी रचनाओं के बारे मे स्वयं कुछ लिखना कठिन भी है और रोचक भी कारण कि अपनी निन्दा करना खुद को बुरा लगता है और प्रशंसा करना पाठक को------ वास्तव मे अपनी निगाह मे अपने को देखना असम्भव जैसा है क्यों कि हम उसे केवल अपने नज़रिये से देखते हैं लेकिन भावुक और संवेदनशील व्यक्ति स्वयं को अभिव्यक्त किये बगैर रह भी नहीं सकता
साहित्य हृदय की पुकार है--मनुष्य के आन्तरिक मनोभावों का बाह्म चित्रण है --साहित्यकाए समाज के आन्दर निवास करता है और समाज के अन्याय और् प्रिस्थितियों से प्रभावित होता है इस लिये वो समय की धारा और परिवेशगत प्रभावों से अछूता नहीं रहता--कहना ना होगा कि साहित्य का मूल तत्व जीवन हैऔर उसे साकार करने वाली शक्तियाँ प्रिस्थितियों मे होती हैं कोई भी रचना बादल से गिरी हुई बून्द नहीं होती रचना तो हृदय की उर्वर्क भूमि मे ही अँकुरित होती है और बुद्धि इस की परवरिश करती हैमेरा मानना है कि मनुष्य़ अपने सुख दुख से ही प्रभावित नहीं होता दूसरों के दुख सुख भी उसे प्रभावित करते हैंइस निगूढ्रहस्य को हृदयंगम कर कोई भी रचनाकार कल्पना के सहारेअपने भावों को प्रकट कर सकता हैसंवेदना ही इस कल्पना की जननी है लेकिन कल्पना भी एक शक्तिशाली सत्य होती है क्यों की ये मानसिक अनुभूतियों वेदनाओं और रंग विरंगेसामाजिक और परिवेशगत प्रभावों का अद्भुत प्रतिफल है चूँकि मैअपने पारिवारिक और सामाजिक परिवेश एवं उसके प्रभावों की साक्षी रही हूँ जिसे मैने अन्य लोगों के साथ अपनी रचना प्रक्रिया के जरिये बाँटना चाहा है कहानी किसी की भी हो मगर जो बात ज़िन्दगी की रेत पर कई सवाल छोड जाये वो कहानी समाज की कहानी बन जाती है सो मेरी कहानियां समाज की कहानियां हैं मुझे ज़िन्दगी के बारे मे लिखना पढना जानना और चिन्तन करना बहुत अच्छा है
22 comments:
अच्छा लगा आपकी लेखनी को नज़दीक से जानकर
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70 कहानियां....बाप रे!
वैसे, सच कहा आपने हर लेखक अपने आस-पास के परिवेश, खुद अपने जीवन की घटनाओं से प्लाट ढूंढ़ता है और अपनी कल्पना से उसे बुन कर आगे बढ़ाता है...
सही कहा आपने...कहानी को समझने के बजाय हम सब उसे लिखने वाले से जोड़ने में लग जाते हैं...उस कहानी के सच के बजाय लिखने वाले के सच को खोजने में लग जाते हैं. लेकिन एक बात तो है...जो भी लिखा जाता है, अनुभवों पर ही लिखा जाता है...कभी अपने कभी दूसरों के
मौजूदा हालत को जब तंग और बारीक नज़र से देखी जाए और उसे कलम से कोरे कागजो पे उकेरा जाये तो वो वक्त खुद ठहर के देखने लगता है और फिर आवाज़ आती है के क्या आपकी अपनी है .... ???? मगर सच में आप जिस तरह से कहानियों को लिखती है अपनी बारीक नज़र से और उसमे ताज़र्बाकारी की नियति होती है उससे कोई भी ये सवाल पूछने के लिए आतुर हो जाये मगर सही तो यही है के कहानियाँ अगर लिखी जाये तो ऐसी हो के वो जीवंत हो जाये कहानियाँ कहानियाँ ना रहे जिन्दगी बन जाये .... कहानियों के इस महारानी को मेरा सादर चरण स्पर्श .... इतने कहानियां लिखने पे अचंभित नहीं हूँ क्युनके आपका रास्ता और लंबा है और मुकाम कहीं और इतनी कहानियाँ आपके लिए छोटी बात है .... जितने कम समय से आप कहानियाँ लिख रही है और जिस मुकाम को आपने हासिल किया है उसपे कुछ कहाँ मेरे बूते के बाहर है ....सलाम
अर्श
आपकी बात से - और विवेक की टिप्पणी से भी - सहमत हूँ. कविता हो या कहानी, हम में से कुछ पठान के स्थान पर खोजी-पत्रकारिता करने लगते हैं. यदि किसी कहानी में वर्णित प्रत्येक घटना शत-प्रतिशत सच ही हो तो भी उस कहानी को रचनाकार के अपने जीवन की सच्चाई समझना तो थोड़ी नासमझी भी होगी और थोड़ी ज्यादती भी. उपेन्द्रनाथ अश्क जी ने मुझे एक पात्र में लिखा था की जो कहानियां सच पर आधारित न होकर पूरी तरह कल्पना पर आधारित होती हैं उनकी चूलें कहीं न कहीं ढीली रह ही जाती हैं.
aapki kalam huyi nirantar chalti rahe yahi dua.
mujhe intezar rahega aapki apni kahanio ka... mujhe lagta hai vyakti apni kahaniyan jitni shiddat se likh sakta hai, utni aur koi kahani nahi... par haan kai baar aag se gujarne ki taakat ki jaroorat hoti hai...
"अपने बारे मे --अपनी रचनाओं के बारे मे स्वयं कुछ लिखना कठिन भी है और रोचक भी कारण कि अपनी निन्दा करना खुद को बुरा लगता है और प्रशंसा करना पाठक को------ "
निर्मला जी!
यह आपने बिल्कुल सही लिखा है। हर पाठक और साहित्यकार की कमोबेस यही स्थिति है।
आभार!
बहुत ही सही कहा आपने, हर लफ्ज दिल को छूता हुआ, सच्चाई बयान कर रहा है, आभार्
कहानी को कहानी न समझ कर लोग अगर सच समझ रहे है और उसे आपकी ज़िंदगी के से जोड़ कर देख रहे हैं तो इसमे गलती उनकी नही आपकी है।आप अगर दिल से लिखेंगी और अच्छा लिखेंगी तो लोग तो उसे अच्छा समझेंगे ही ना।ये आपकी कलम का ज़ादू है ईश्वर करे ये ज़ादू जारी रहे,70 700 70……………।
सही कहा आपने कोई भी लेखक वही लिखता है जो वो देखता, समझता और महसूस करता है ...उसके आस पास जो घटित होता है ...आपकी रचनायें जीवन से जुडी होती हैं
हम जोअपने आस पास देखते बूझते है.....वही कागजो में उतारते है .मै तो बचपन से किताबो संग बड़ा हुआ हूँ....मेरा मानना है एक अच्छी किताब आपको जीवन की बहुत बड़ी शिक्षा देती है ओर एक अच्छा ओर बेहतर इन्सान बनने में आपकी मदद करती है
वास्तव में साहित्य ह्दय की पुकार है और मनुश्य के आन्तरिक मनोभावों का वाहय चित्रण भी । आपकी कविताएं समाजिक भी हैं ।
संवेदनाओं को समझकर व्यक्त करना ही सबसे बड़ा और दुष्कर कार्य है.
mere dost mujh se aksar ye swal karte hain ki main itna sab kuch kaise likhta hoon ...zaroor koi baat hai jabki main to bas kisi ko mahsoos karta hoon aur kuch sabdon ko jod kar ik post banane ki koshish karta hoon jaise aaj hi jab main ne isi par kuch likha aur baad mein main ne aap ka comment padha ... aur aap ki post padhi to apne ahsas mein kamyab hone ka khayal aaya ... aap ne mere post par mujhe badhai di bhut achcha laga ...kionki main to abhi seekh raha hoon aap sabhi ki duaein shayad mujhe kamyab karein...
जीवन का सच ही कहानी का जीवन हो तभी तो एसी कहानी गहरे तक ज़रूर उतर जाएगी.
अगर लेखक के लिखे को पाठक उसकी निजी जीवन से जुडी घटनाए मान बैठते हैं तो यह लेखक की उपलब्धि ही कहलायेगी. कारण जब लेख किसी रचना को लिख रहा होता है उस समय उस पात्र को मानसिक रुप से जी रहा होता है. और अगर नही जिये तो वो बात नही आती जो आपकी रचनाओं मे होती है.
हां यह बस लिखने तक का साथ होता है. आपको बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
jyadatar pathak yahi sochte hain ki lekhak ne jo likha hai wo uski kahaani hai agar aisa hota to bechare lekhak ka kya haal hota............aapne bilkul sahi kaha lekhak sirf aapne aas paas ke paridrishya se prabhavit hokar apni samvednaon ko kagaz par ukerta hai..........aur vaise bhi ye bhi aapki uplabdhi hi hai ki padhne walon ko aisa lagta hai ki ye aapke jeevan ka prasang hai..........sochiye kitna deeply jud jata hoga aur aapki rachnaon mein kho jata hoga................aap bas aisa hi likhti rahiye.badhayi.
सत्तर कहानियों के लिए बधाई! यूं ही अनवरत लिखें शुभकामनाएँ।
यह हमारे समाज का चलन है ... । आपकी कहनियों की जीवंतता है जो ऐसा सोचा जा रहा है।
70 कहानियां लिखने के लिए कितना कुछ नज़दीक से अनुभव किया होगा आपने..
आपमें फ्लोरेंस nightangale की रूह बसी है. आपको बधाई.
कहानिया समाज का आइना होती हैं............ आप बहूत ही अछा लिखती हैं.......... दिल को छूते हुवे लिखती हैं........ अछा लगा आपकी लिखने की प्रेरणा को जान कर
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