17 June, 2009

आपका क्या कहना हैAlign Centre
यूँ तो किसी की डायरी पढना बुरी बात है मगर एक दिन मैने अर्श ( अपका प्यारा प्रकाश सिह अर्श(
की डायरी चुरा ही ली 1 माँ हूँ तो बेटे पर नज़र रखनी ही पडती है1वो डायरी मे इतना कुछ लिखे बैठा है अपने ब्लोग पर पोस्ट ही नहीं करता 1 मै हैरान रह गयी1 मेरी नज़र उसकी प्रेम रस मे डूबी एक कविता पर गयी 1 समझ गयी मेर बेटा अब बडा हो गया है 1 कहा कि इसे अपने ब्लोग पर पोस्ट कर दो तो बोला कि नहीं1 शायद अपनी माँ से शरमाता है 1 तो मैने सोचा कि आपको उसका ये रँग भी दिखा ही दूँ चाहे वो मुझे डाँटे तो पढिये उसकी ये कविता और दीजिये उसे आशीर्वाद1 kaहाँ ये भी बताईये कि क्या अब बेटे की शादी कर देनी चाहिये?



साजन साजन मोरनी गाये
नाचत नाचत मोर सताये

बादल बरसे रुनझुन रुनझुन
साजन अब भी क्यूँ तडपाये

सुर्ख है चेहरा गाल गुलाबी
मिलन सजन से असर दिखाये

बूंदें टिप टिप पायल छन छन
मदहोशी का राग सुनाये

बादल जब ले गया बचपना
चंचल अखियाँ होठ थर्राए

किस आहाट् पे चाटकी कलियाँ
मुई कोयलिया बिरहा गाये

मेरा दुपट्टा जवां हुआ तो
शर्म आँख से छलका जाये ...





25 comments:

Udan Tashtari said...

तुरंत कर दिजिये शादी.लछ्छन ठीक नहीं हैं...बिना डिले!! :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

किसी की डायरी पढना बुरी बात है,
अगर बेटे की डायरी पढ़ ही ली है तो
उसका सारा साहित्य ब्लॉग पर लगा ही दो।
साहित्यकारा के बेटे में भी तो
माँ के गुण आयेंगे ही।

Vinay said...

बहुत अच्छा किया यह कविता उड़ा हमें पढ़वा दी, हमें भी उनके मन के कुछ नये भाव समझने को मिले...

---
तख़लीक़-ए-नज़र

ओम आर्य said...

कविता है या गीत ........पूरी तरह से लय और ताल से भरपूर .......बहुत सुन्दर....

P.N. Subramanian said...

"अर्श" की कविता तो बहुत सुन्दर है. यदि आप मानती हैं कि शादी उसकेसृजनात्मकता को प्रभावित नहीं करेगी, तो कर ही दीजिये

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

प्रकाश से थोडी बहुत पहचान मेरी भी है, ब्लॉगिंग की वजह से। एक नया रूप ही देखने को मिला। प्रस्तुत गीत जैसे जैसे आगे बढता है तो लगता है कि गीतकार भी जवां हो रहा है गीत के साथ, बानगी देखियेगा :-


बादल जब ले गया बचपना
चंचल अखियाँ होठ थर्राए

किस आहाट् पे चाटकी कलियाँ
मुई कोयलिया बिरहा गाये

मेरा दुपट्टा जवां हुआ तो
शर्म आँख से छलका जाये ...


सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Unknown said...

chori ka maal dadhne ka maza hi kuchh aur hai !

रंजू भाटिया said...

बिलकुल जी शादी जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी कर दे :) कविता तो यही कह रही है .सुन्दर बहुत प्यारी लगी यह रचना शुक्रिया

अनिल कान्त said...

:) :)
koi achchhi si ladki dekh kar shadi kar dijiye...warna arsh ji se khud poonchh lijiye kahin koi pasand ho to bata dein :)

vijay kumar sappatti said...

aadarniya nirmala ji ,

neki aur pooch pooch .. main to kab se kah raha hoon ki bhai shaadi kar le ......war ka daan main kar hi doonga ... ladki ke gharwaalon se main baate kar hi loonga ...


ab dekhiye na... kaisa kaisa likhta hai chora...

सुर्ख है चेहरा गाल गुलाबी
मिलन सजन से असर दिखाये

बूंदें टिप टिप पायल छन छन
मदहोशी का राग सुनाये

in fact ek deewani thi arsh ki ..wo kahani phir kabhi ...

ab bina ruke shadi kar hi dijiye aur mujhe bulana na bhoole..

vijay
pls read my new sufi poem : http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/06/blog-post.html

vandana gupta said...

sare lakshan shadi ke hi hain .........bina der kiye shadi kar hi dijiye ab to........vaise rachna bahut hi badhiya likhi hai.

दिगम्बर नासवा said...

ठीक किया आपने कविता पढ़वा दी............... अब खोजना शुरू करिए जीवन संगिनी को...........सोंदर्य रस कूट कूट कर नज़र आ रहा है इस कविता में........... आप बस मतलब समझिये

डॉ .अनुराग said...

सौ टका समीर जी से सहमति मेरी भी .....

Aadarsh Rathore said...

जय हो

राज भाटिय़ा said...

आप तो मां है हम से ज्यादा बेटे की भावना जानती है, अब जल्दी से कॊई लडकी ढुढे ताकि हमे भी मिठाई मिले ... आप का विचार बुरा नही.

Yogesh Verma Swapn said...

neki aur poochh poochh, nirmala ji , saare sanyog mil rahe hain , ab der nahin honi chahiye, bus hamen bulana mat bhoolna. rachna poori romantic hai.

Arvind Kumar said...

aap log shadi pe etna zor kyo de rahe hai mujhe to samajh hi nahi aa raha....mujhe to ye bhi samajh nahi aa raha ki wo hamesha se etna achha likhte hai ya phir.....................? batao ji

"अर्श" said...

इस कविता पे ऐसी टिप्पणियाँ मिलेंगी मुझे अंदेसा ना था मैं तो चुप हूँ और कुछ कहने के लायक नहीं हूँ... ये कविता मेरे जीवन से किसी तरह से जुडी हुई नहीं है ... बस एक खयालात है और ख्याल एक लड़की के लिए है के जब वो जवानी के दहलीज पे शुरुयाती दौर में चढ़ती है तो उसके मन में क्या तरंगे आती है ... कौन कौन सी चीजे उसे याद आती है .... बस उसकी नजाक उसकी अठखेलियाँ... उसकी अदाएं उसका अल्हडपण, बस यही सारी चीजे मैंने इसमें नाजुकता से रखने की कोशिश करी है ... मैं तो अभी बच्चा हूँ शादी की उम्र होते ही मेरी माँ मेरी शादी करा देगी हा हा हा हा ... सच कहूँ तो ये कविता अपने माँ के लिए ही लिखी थी और कहा भी था के आप अपने नाम से ही लगाना मगर वो शर्म से नहीं लगाई और फिर........ यहाँ तक है ये कविता....

आप सभी का प्यार मिला इसके लिए दिल से बधाई aur आभार....

आपका
अर्श

निर्मला कपिला said...

अरे बेटाजी इतना क्यों शर्मा रहे हो सब जानते हैं कि ये कविता मा के लिये लिखी य किसी लडकी के लिये लिखी है हाँ इतना जरूर है कि मेरे लिये तो हमेशा बच्चे ही रहोगे पर आज खुश बहुत हूँ कि अब मुझे सब से इज़ाजत मिल गयी है कि तुम्हारी शादी की तयारी शुरू कर दूँ सदा खुश रहो आशीर्वाद्1 हाँ अगली बार अपनी डायरी लाकर मे रख देना मै जल्दी दिल्ली आ रही हूँ नहीं तो एक और भेद खोल दूँगी हा हा हा

शेफाली पाण्डे said...

एंगेज तो कर ही दीजिए ....

Anonymous said...

बहुत ही प्यारी रचना है..

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत सुंदर रचना ....बेटे की कामयाबी पर आपको बधाई ....II

रानी पात्रिक said...

आप माँ बेटे की नोकझोंक पसन्द आई। बस सदा आप में ऐसा प्यार बना रहे।

admin said...

यह चोरी तो खुशखबरी लेकर आई।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Prakash Badal said...

देखिये ये बच्चे भी कितने शरारती होते हैं? ठीक ढंग से पैदा हुए नहीं कि चले शादी रचाने अब तो अल्लाह ही मालिक है अर्श भाई का! एक बार मुझे प्यार हुआ था आज तक पछता रहा हूँ। मेरा प्यार मेरी बीवी में बदल गया। हा हा हा हा, प्रकाश भाई का प्यार हरा रहे ! आमीन!

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