21 June, 2009

मेरा हमसफर (कहानी )

उसके उपर ओढी हुई सफेद चद्दर के एक कोने से अपनी आँखें पोंछती हूँ-------पता नहीं इन्हें मुझ से इतना प्यार क्यों है-----जब भी देखते हैं मै अकेली हूँ चले आते हैं--- बरसाती बादलों की तरह----शायद लिये Align Centreकि कोई इन्हें अपने आँचल मे समेटने वाला है -----हाँ ये मेरे आँसूओं को भी अपने मे आत्मसात कर लेता है ----मेरे सुख दुख संवेदना क्षोभ सब का साथी है -----मेरा हमसफर है --------जानती हूँ अब तक इसने ही तो मेरा-----मेरे आँसूओं का साथ निभाया है-------दिल से इसे चाहती हूँ -------क्यों कि इसने कभी भी मुझे धोखा नहीं दिया--- मेरा साथ नहीं छोडा-----मैं चाहे दिन भर की भाग दौड मे दुनिया की भीड मे खोई रहूँ मगर ये हर वक्त मेरे लिये पलकें बिछाये रहता है-------काम करते हुये भी मुझे लगता है कि इसकी बेताब आँखें मुझे ही ढूढ रही हैं-------रात को जब थकी हारी इसके पास आती हूँ तो मुझे बाहों मे समेट लेता है------- और् ले जाता है सपनों की ठँडी छाँव मे-------मेरे अंदर कल्पनाओं के इतने पँख फैला देता है कि उन्हें कागाज़ों मे समेटते समेटते थक जाती हूँ--------- नित नयी उडान-------नित नये क्षितिज--------कितने इन्द्रधनुष ------ और् इसके साथ कुछ ही पलोँ मे कितने जीवन जी लेती हूँ--------क्या आज कोई इतना प्यार किसी से करता है----मैं इसी लिये इसे चाहती हूँ------अब तो मुझे इससे इतना लगाव हो गया है कि इसी के साथ खाना-- पीना-- उठना-- बैठना--टी वी देखना------सब इसके साथ है------ और् तो और् इसके बिना तो भगवान का नाम लेने मे भी मन नहीं लगत--- कोई कितना भी मना करे कि
ये जगह भगवान का नाम लेने के लिये शुध नहीं होती मगर मगर मैं नहीं मानती जब भगवान हमारे गंदगी से भरे शरीर मे होते है तो इसमे क्यों नहीं हो सकते मेरा तो इसके बिना ध्यान लगता ही नहीं-------ये साथ हो तो जैसे ही आँखें बँद करूँ--मुझे अनन्त आकाश की गहराईओं मे ले जाता है जहाँ के अद्भुत प्रकाश मे मेरा अपना अस्तित्व विलीन हो जाता है ------शाँती---परम आनँद------फिर भगवान ये तो नहीं देखते कि आदमी कहाँ है कैसे भक्ती करता है वो तो केवल आत्मा को देखते हैं-------ये भी मुझे इसने ही समझाया-----------क्या आज की दुनिया मे ऐसा कोई इन्सान है जो मुझ से इस तरह प्यार करे-------तो फिर क्यों सभी मुझे रोकते हैं क्यों मुझे क्यों नही उन्हें अच्छा लगता इससे मेरा लगाव-----------काश कि आदमी को भी इस तरह इन्सानों से प्यार करना आ जाये---------- जब मै इसके आगोश मे होती हूँ तो एक अजीब सा सकून मिलता है ------- और मन मे कविता बहने लगती है-------------
जन्म लेते ही मुझे इसका आभास हो गया था-------कि मेरा इससे उम्र भर का नाता है -----माँ ने दूध पिलाने के बाद मुझे अपने साथ लिटाया तो इशारे से ही समझा दिया था कि मैं भी ताउम्र तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊँगी------मुझे लेट कर बहुत सकून मिला------मुझे लगता कि कहीं आस पास ही माँ के आँचल की सुगन्ध है----पिता के प्यार का एहसास है----ये तो बडी होने पर पता चला कि ये मेरा प्यारा बिस्तर है----
हाँ ये मेरा प्यारा बिस्तर है यही मेरा दोस्त है यही मेरे दुख सुख का गवाह है जिसे माँ ने बडे प्यार से अपनी फटी चिथडे साडी से और पिता की कालर घसी कमीज से भर कर बनाया था------उपर से पुरानी रेशमी साडी से इसका कवर सिला था-----तभी तो ये मुझे अकेलेपन का एहसास नहीं होने देता था-------बचपन के मीठे सपनों की लोरियाँ इसके गिलाफ के नीचे की तहों मे अब भी मुझे कई बार बचपन की याद दिला देती हैं-------इसके साथ खेल कूद उठा पटक आज भी मन मे चचंचलता भर देती है ---------
फिर जवान होते होते---कितने हसीन ख्वाब देखे मैने इसके साथ -----कितने सपने बुने----आज भी उन्हें निकाल कर देखती हूँ तो आँख नम हो जाती है वो सपने सपने ही रह गये- ----- और उस दिन------- जब मुझे रोते विलखते डोली मे बिठा दिया गया था------कितना रोई थी इससे लिपट कर------इसका सारा बाजू मतलव तकिया भिगो दिया था रोते रोते---------कैसे सो पाऊँगी इसके बिना------कितना असह होता है अपनों से बिछडने का दर्द --------टीस देता है किसी अपने से दूर जाना--------
नया घर----- कई आकाँक्षायें---- कई डर------- अनजाने लोग --कैसे रह पाऊँगी इसके बिना नीँद नहीं आयेगी---------मगर जब मुझे अपने कमरे मे ले जाया गया तो मन खुशी से झूम उठा-------मेरा बिस्तर मेरे सामने नयी सजधज मे मौज़ूद था--------खिल रहा था--------दहेज के पलँग पर माँ के हाथ की कढाई की हुई रेशमी चद्दर-------शनील की कोमल रजायी-------बस फिर तो सब अपना लगने लगा था---------पराये लोग भी अपने बन गये थे इसके कोमल एहसास से-------- और्र इस तरह ये मेरे कुछ सुहाने पलों का साथी भी बन गया ------जिन्हें आज तक मेरे लिये संजोये बैठा है--------- कभी कभी याद दिला देता है --------
लेकिन दुनिया मे सुख के पल तो बिलकुल थोडे से होते हैं ------यथार्थ मे तो जीवन एक संघर्ष है--------इतनी जल्दी मेरे सिर पर फर्ज़ों की पेटली रख दी गयी कि जिसे ढोते ढोते ये दिन आ गये-------12 जनों के परिवार का कर्ज चुकाते चुकाते शरीर भी साथ छोडने लगा मगर इस बिस्तर ने मेरा बहुत साथ दिया----दिन भर की थकान मेरे शिकवे शिकायतें परेशानिया सब इसी से तो कहती थी-------क्यों की तब मैं बोलती बहुत कम थी--------किसी के आगे दुख रोना मुझे अच्छा नहीं लगता था------ तो इससे कह कर मन हलका कर लेती-----सब अपने अपने दायरे मे बंधे दूसरे की कहाँ सुनते हैं--- वैसे भी एक घर को पहले औरत के शरीर की जरूरत होती है ------रिश्ता चाहे कोई भी हो ----हर एक की जरूरत के हिसाब से-------- दिल देखने की नौबत तो तब आये जब किसी के पास समय हो-------- और ऐसे मे कोई तो साथी चाहिये ना--------तो मैने इसे ही अपना सथी बना लिया--------
अब मुझे किसी की परवाह नहीं थी ये शरीर घर के लोगों के लिये और दिल अपने इस दोस्त के लिये---- मै जब बहुत बिमार हुई तो भी इसी ने मेरा साथ दिया------- इसने समझाया कि देखो तुम अपने शरीर का ध्यान नहीं रखती हो ----इस दुनिया मे कोई किसी का नहीं है--- अगर तुम्हारे हाथ पाँव चलते हैं तो ही सब तुम्हारे अंग संग हैं अगर तुम केवल मेरे साथ ही चिपकी रही तो सब तुम्हें छोड कर चले जायें गे ----हाँ ऐसा एहसास मुझे होने लगा था---- मेरी बिमारी मे वो सब साथ छोड गये थे जिन्हें मैने यशोधा की तरह पाला था ------ अगर मैं ठीक ना हुई तो मेरे बच्चों को कौन पालेगा और मैने अपनी सेहत की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया-----इसकी तहों मे उस टीस का एक एक पल कैद है जो मुझे रिश्तों ने दी--------
अब जीवन का एक लम्बा सफर इसके सहारे निकल गया है ----इसने मुझे जीने का सलीका दिया क्यों कि जब मैं इसके साथ होती हूँ तो अक्सर खुद मे लौट आती हूँ-------- और खुद मे लौट आना एक बडी घटना होती है--------
आज कल मुझे एक चिन्ता हर पल घेरे रहती है--------इससे भी बाँटना नहीं चाहती------अब जीवन के कुछ पल ही तो बचे हैं---------मेरे बाद इसका क्या होगा------- क्योंकि इसके साथ मेरा प्रेम किसी को एक आँख नहीं सुहाता--------मेरे जाते ही इसे किसी कूडे के ढेर पर फेँक दिया जायेगा------ और् उस पर ये मेरे गम मे औँधे मुँह पडा आँसू बहाता रहेगा----- ---काँप जाती हूँ ------- मगर इन्सान क्या किसी से वफा कर सका है------चुपके से छोड देता है अपने चाहने वालों को ------- नहीँ ----नहीँ----- मैं ऐसा नहीं होने दूँगी------जिस ने मेरा हर दुख सुख मे साथ दिया मेरे आँसू पोँछे-------मेरे बोझ को ढोया------ मेरी सिस्कियों को सहा------बचपन से अब तक मेरे साथ वफा की----मेरी कलम को स्याही दी कागज़ों को शबद दिये उसे मै ऐसे कैसे छोड सकती हूँ--------मैने सब से कह दिया है कि इसे मेरी अर्थी के साथ ही जलाया जाये-------चाहे हमारे शास्त्र कुछ भी कहें सारी उम्र शास्त्रों की ही तो मानी है तभी तो इतने कश्ट सहे हैं लेकिन मरने के बाद मेरी सब बेडियाँ तोड दी जायें बस मै मरना अज़ादी से चाहती हूँ अपने इस दोस्त के साथ एक चिता मे---------
शायद इसे आभास हो गया है कि मै क्या लिख रही हूँ--------चद्दर का एक कोना उड कर कलम के आगे बिछ जाता है जैसे कह रहा हो प्रिय मरने की बात मत करो-------- अब छोडो कलम मेरे पास आओ---------जीने के चार पल क्यों सोचने मे खो दें--------- और्र मैं आँखों मे आये आँसूओं को इसी कोने मे छिपा देती हूँ------- और इसके आगोश मे सिमट कर सोने का प्रयास करती हूँ-------- आज दोनो की आँखों से नीँद कोसों दूर है ------फिर भी दोनो को एक सकून है एक दूसरे के अपना होने का---- साथ होने का-------मगर ये अपनी आदत से बाज़ नहीं आता--- फिर ले जा रहा है मुझे एक और क्षितिज पर-------नये पँखों के साथ-----------

23 comments:

Anonymous said...

फिर ले जा रहा है मुझे एक और क्षितिज पर-------नये पँखों के साथ-----------
bahut sunder
मै तो इसे कविता ही कहून्गा

Anonymous said...

आपको पढना एक सुखद अनुभूति देता है.

कभी दिल्ली आना हुआ तो मैं और लवी आपसे जरूर मिलना चाहेंगे. आशा है आप अवसर अवश्य देंगी.

ओम आर्य said...

haa ek kawita jaisa hi hai.............
--हाँ ये मेरे आँसूओं को भी अपने मे आत्मसात कर लेता है ----मेरे सुख दुख संवेदना क्षोभ सब का साथी है -----मेरा हमसफर है --------जानती हूँ अब तक इसने ही तो मेरा-----मेरे आँसूओं का साथ निभाया है-------दिल से इसे चाहती हूँ -------

bahut hi dil ke karib hai......ye panktiya lagi ........yah rachana dhara prawaah jaise ek kawita hai .........achchhi rachana ke liye badhaee.

दिगम्बर नासवा said...

कितने रचनात्मक तरीके से अपने भावों को उतारा है आपने................ सहज ही कही हुयी कविता की तरह..........

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत सुन्दर दृश्य काव्य है. सुखद अनुभूति

परमजीत सिहँ बाली said...

अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने की कला मे आप माहिर हैं। बहुत ही बढिया ढंग से अपने भावो को शब्द दिए हैं आपने।आप की यह शैली काव्यात्मक लगी।बहुत अच्छा लगा पढ कर।बहुत बहुत बधाई।

mehek said...

mann ko chu gaye saare bhav,bahut sunder.

vandana gupta said...

dil ke komal bhavon ko ujagar karta kavymay lekh.

Yogesh Verma Swapn said...

bejod kavita.

राज भाटिय़ा said...

आप ने मन के भावो को कविता के रुप मै उतार दिया, बहुत सुंदर.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

P.N. Subramanian said...

दिल को छू लेने बाते आपने दिल खोल कर लिखीं हैं. आभार.

www.dakbabu.blogspot.com said...

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति....सुन्दर रचना...बधाई !!
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें !!

Ram Shiv Murti Yadav said...

आपकी अद्भुत सृजनशीलता का कायल हूँ....वाकई आपकी रचना तमाम रंग बिखेरती है...साधुवाद.***
"यदुकुल" पर आपका स्वागत है....

Vinay said...

सुन्दर सृजन

"अर्श" said...

SAADAR PRANAAM,
AAPKI AAJ KI LEKH MAIN PADH KE MAIN NISHABD HO JAAGAYA HUN...KUCHH BHI KAHNE KE LIYE LAAYAK NAHI RAHA GAYA HUN... DHERO BADHAAYEE


AAPKA
ARSH

नवनीत नीरव said...

aapko padhkar aisa lagta hai manon kisi ne apne jivan ki kitab khuli rakh chhodi hai, hawaon se jiske ek ek lamhone ke panne ulatte ja rahe hain aur aap us kshan ko mahsoos kar rahe hon.Bahut khule man se likha hai aapne.Ab kya kahoon......
Navnit Nirav

शोभना चौरे said...

बहुत ही सुन्दर और मार्मिक पोस्ट कभी किसी ने नही सोचा बिस्तर हमारा हमदर्द बने सकता है |बहुत खूब फिर आपकी लेखनी हो तो पोस्ट में चार चाँद लग गये |बधाई

Vinay said...

आपको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...

---

चाँद, बादल और शाम | गुलाबी कोंपलें

दर्पण साह said...

haan verma8829 aur digambar ji se sehmat hoon...

ye to kavita ki tarah hai....


...behti chali jaati hai !!!


ये जगह भगवान का नाम लेने के लिये शुध नहीं होती मगर मगर मैं नहीं मानती जब भगवान हमारे गंदगी से भरे शरीर मे होते है तो इसमे क्यों नहीं हो सकते मेरा तो इसके बिना ध्यान लगता ही नहीं-------

नीरज गोस्वामी said...

बेहद खूबसरत समन्वय है आपकी इस पोस्ट में भाषा और भाव का....आप बहुत अच्छा लिखती हैं...
नीरज

Unknown said...

waah ji waah !
aapka jawab nahin
sachmuch nahin ...................

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

निर्मला जी सादर प्रणाम इसे कविता कहूँ या या फिर जीवन की सहज सहजता और और निर्मल भावो के साथ रिश्तो की अमूल्य अनुभूति कराती जीवन की सच्चाई ,भावो को जिस तरह से आपने व्यक्त किया है वो अतुलनीय है इतनी भावना प्रधान रचना सायद कभी पढ़ी हो

सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

NIRMALAJI XAMA PRARTI HUN MAI AAJ YEK NAYI KAVITA LIKHI HAI MAI CHAT HUN AAP USE PADHE AUR COMMENT DE

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