28 May, 2009

तुम थे हम हैं
जीत उसकी नहीं जिसने किसी को ठुकराया
जीता वो जिसने हार कर भी ना इमान भुलाया

वो तुम थे जो मेरी नज़र से दुनिया देखा करते थे
अज मेरे सामने हो कर भी दुनिया को देख रहे हो

वो तुम थे जो मेरी जरा सी चुभन से रो देते थे
आज भी तुम हो जो जिगर मे तीर चुभो कर हंसते हो

वो तुम थे जो मेरी साँस से अपनी नब्ज़ देखा करते थे
आज भी तुम हो जो मेरी टूटी साँसों से राहत ले रहे हो

इस फर्क को समझो तो जीत इमान की हुई
तुम कभी हुअ करते थे हम अब भी वहीं हैं

14 comments:

अजय कुमार झा said...

kya baat hai nirmala jee....tum the ham hain....sheershak hee sab kuchh kah gaya....dumdaar hai...kisi punch line kee tarah....

Udan Tashtari said...

बहुत खूब..रचना पसंद आई!!

रंजन (Ranjan) said...

इस फर्क को समझो तो जीत इमान की हुई
तुम कभी हुअ करते थे हम अब भी वहीं हैं..

बहुत अच्छा..

रावेंद्रकुमार रवि said...

अंतिम पंक्ति इस कविता का आधार है!
कविता शानदार और जानदार है!

अनिल कान्त said...

bahut sahi baat kahi aapne

Vinay said...

अच्छी रचना,

साधुवाद!

vandana gupta said...

bahut hi khoobsoorat rachna.

P.N. Subramanian said...

"तुम कभी हुआ करते थे आज हम अब भी वही हैं" गजब की अभिव्यक्ति. आभार.

admin said...

तुम और हम के बहाने जज्बातों की सुंदर अभिव्यक्ति।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर ढंग से आप सच्चे प्यार का, ओर अहंकार का अंतर अपनी इस कविता मै प्रकट किया.
तुम कभी हुआ करते थे आज हम अब भी वही हैं.. सच मै यह पंक्ति बहुत कुछ कह रही है.
धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

वो तुम थे जो मेरी जरा सी चुभन से रो देते थे
आज भी तुम हो जो जिगर मे तीर चुभो कर हंसते हो

ये तो जीवन का सत्य है................... अक्सर लोग ऐसा ही करते हैं............प्रभावी रचना है आपकी

Yogesh Verma Swapn said...

nirmalaji, antim do panktiyon men to jaan daal di hai. badhai sweekaren.

Girish Kumar Billore said...

आप तक पहुँचने में कठिनाई को देखते हुए विनम्र सलाह है की आप पोस्ट का शीर्षक देव नागरी में लिखिए
ये प्रभावी है
वो तुम थे जो मेरी जरा सी चुभन से रो देते थे
आज भी तुम हो जो जिगर मे तीर चुभो कर हंसते हो
इसमें वर्तनी सुधार हो जाए तो मज़ा आ जाएगा
इस फर्क को समझो तो जीत इमान की हुई
तुम कभी हुअ करते थे हम अब भी वहीं हैं
हुअ=हुआ

Anonymous said...

वो तुम थे जो मेरी साँस से अपनी नब्ज़ देखा करते थे
आज भी तुम हो जो मेरी टूटी साँसों से राहत ले रहे हो

.....बहुत सुन्दर

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