27 May, 2009

( बाल कविता )

बिटिया रानी
आसमान से उतरी है वो
ज्यों परियों की रानी
ठुमक ठुमक कर चलती है वो
जैसे गुडिया जापानीAlign Center

छोटी सी वो गोल मटोल
प्यारे मीठे उसके बोल्
बातें करते तुतलाती है
फिर मँद मँद मुस्काती है

हँसे खेले धूम मचाये
है वो बडी सयानी
जब खाने की बारी आये
तो करती है मनमानी

दाल भात उसे ना भाये
फल सब्जी से मुँह चुराये
जब देखे वो दूध की बोतल
झट से पुस्सी कैट बन जाये

हँसती है वो फूलों जैसे
कलियों जैसे मुस्काती है
नयी शरारत कर के वो
बुलबुल से इतराती है

नेट पर देख के नाना नानी
उसकी प्यारी सी अदायें
सात समन्दर पार वो बैठे
देख उसे बहुत हर्षायेँ

मम्मी की वो लाडली
पापा की है मानो जान
ऐसी प्यारी से बेटी को
सब खुशियाँ देना भगवान

बच्चो दूध मलाई खाओ
फल सबजी से ना मुँह चुराओ
अगर अच्छा होगा खान पान
तभी बनोगे तुम महान

14 comments:

Vinay said...

बहुत ख़ूब, कपिला जी ऐसी सुन्दर कविता पढ़वाने का धन्यवाद!

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ही मीठी, प्यारी और ख़ूबसूरत कविता लिखने के लिए बधाई!

श्यामल सुमन said...

एक सहज एवं भावपूर्ण रचना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

रंजन (Ranjan) said...

बहुत प्यारी कविता... मजा आया..

vandana gupta said...

bitiya rani ki tarah bahut hi mithi kavita.

अनिल कान्त said...

bahut bahut bahut pyari kavita hai

राज भाटिय़ा said...

कपिला जी बहुत ही सुंदर कविता, बिटिया रानी जब बडी हो कर इस कविता को पढेगी तो जरुर मुस्कुरायेगी

रंजीत/ Ranjit said...

आदर्णीय कपिला जी, मेरे ब्लाग परआने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने कोशी के कुसहा तटबंध के मरम्मत-कार्य के बारे में मेरे आलेख पर जो टिप्पणी छोड़ी है, वह निश्चित रूप से विचार करने योग्य है। आपकी टिप्पणी का जवाब देना मुझे आवश्यक लग रहा है। हालांकि इसे मैं मेल के माध्यम से देना चाहता था, लेकिन तकनीकी कारण से इस सुंदर कविता के नीचे ही इसे रखने के लिए बाध्य हूं।
कपिला जी, सैद्धांतिक तौर मैं आपकी बात से सहमत हूं। प्रजातंत्र में जैसी जनता होती है वैसी ही सरकार होती है(गवर्मेंट यू गेट दैट यू डिजर्व)। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकते। लेकिन इस बात से आप कैसे इनकार कर सकती हैं कि जनता और सरकार की भूमिका अलग-अलग है। दोनों एक दूसरे के प्रति जिम्मेदार है, लेकिन एक-दूसरे के विकल्प नहीं हैं। जनता और सरकार का सबंध कमांड और कंम्प्यूटर जैसा नहीं हो सकता। ऐसी व्यवस्था नहीं बनायी जा सकती। जो काम जनता कर सकती है वह सरकार नहीं कर सकती और जो सरकार का काम है उसे जनता चाहकर भी पूरा नहीं कर सकती। कुसहा मामले को ही लीजिए। यह अंतरराष्ट्रीय मामला है। इसे यथोचित तरीके से पूरा करने के लिए द्विराष्ट्रीय बातचीत की आवश्यकता महसूस की गयी, जिसे सरकार ने कुशलता से पूरा नहीं किया। ऐसी स्थिति में जनता क्या करे ? क्या वह विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले ? यह संभव है ? आप इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकती कि सरकारें अपनी भूमिका नहीं निभा रही। क्या भारत में जनता ने सरकारें नहीं बदली ? दर्जनों सरकारें बदलीं, लेकिन क्या उनकी कार्य-संस्कृति में व्यापक बदलाव आये? इस पर भी विचार की आवश्यकता है। सधन्यवाद
रंजीत

संध्या आर्य said...

really it is too good.............
i do not have any word for comment

Science Bloggers Association said...

बिटियारानी बडी सयानी।
कविता पढकर मजा आ गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Udan Tashtari said...

बहुत प्यारी भावपूर्ण रचना.

Anonymous said...

बहुत ही खूबसूरत कविता...

नानी जी, मैंने आपकी लिखी पंक्तिया अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है. आपने देखी क्या ??

Yogesh Verma Swapn said...

god bless her. pyari si bachchi jaisi hi bahut cute si kavita ke liye dheron badhai sweekaren.

"अर्श" said...

KHUBSURAT BHAV KE SAATH PURI TARIKE SE DHUN PE SAJI HAI YE KAVITAA... BAHOT HI KHUBSURATI SE KAHI GAYEE HAI..


ARSH

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