14 May, 2009


क्या पाया


ये कैसा शँख नाद
ये कैसा निनाद
नारी मुक्ति का !
उसे पाना है अपना स्वाभिमान
उसे मुक्त होना है
पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या
स्वाभिमान पाया क्या
हाँ मुक्ति मिली
बँधनों से
मर्यादायों से
सारलय से
कर्तव्य से
सहनशीलता से
सहिष्णुता से
सृ्ष्टि सृ्जन के
कर्तव्यबोध से
स्नेहिल भावनाँओं से
मगर पाया क्या
स्वाभिमान या अभिमान
गर्व या दर्प
जीत या हार
सम्मान या अपमान
इस पर हो विचार
क्यों कि
कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच
दिखा रही हैँ
मदिरोन्मुक्त
जीवन को
धूयें मे उडा रही हैं
पारिवारिक मर्यादा
भुला रही हैं
देवालय से मदिरालय का सफर
क्या यही है तेरी उडान
डृ्ग्स देह व्यापार
अभद्रता खलनायिका
क्या यही है तेरी पह्चान
क्या तेरी संपदायें
पुरुष पर लुटाने को हैँ
क्या तेरा लक्ष्य
केवल उसे लुभाने मे है
उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद्

13 comments:

"अर्श" said...

MAHILA VISHESH PE LIKHI IS KAVITA PE AAPKO TATHAA AAPKE LEKHANI KO SALAAM... SAMAAJ ME CHAL RAHE VARTAMAAN KI BAAT KO BAHOT HI SARALATA AUR BADHIYA TEWAR KE SAATH PRASTUTI HAI.....SAADAR PRANAAM


ARSH

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना करती, पाठ-पढ़ाती,
आदि-शक्ति ही नारी है।
फिर क्यों अबला बनी हुई है,
क्या ऐसी लाचारी है।।
प्रश्न-चिह्न हैं बहुत,
इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा।
खोये हुए निज अस्तित्वों को,
भूतल पर लाना होगा।।

संध्या आर्य said...

मयंक जी की बातो से पूर्ण सहमत हूँ.अगर कुछ करना है तो महिलाओ को ही कुछ करना होगा

Vinay said...

सशक्त रचना

Yogesh Verma Swapn said...

wah ek naari ki lekhni se nikli is rachna ko padh kar bahut achcha laga, aajkal ke nari ke haalaat ko bahut spasht aur sashakt shabdon men piroyahai. aapko bahut bahut bahut mubarak.

दिगम्बर नासवा said...

नारी मुक्ति के नाम पर आज जो भी समाज में हो रहा है..............उसका सही रूप रक्खा है आपने.......सही आइना दिखलाने का प्रयास किया है............लाजवाब

रंजना said...

क्या कहूँ .....आपने तो nishabd कर दिया....yahee prashn nirantar mujhe bhi aahat kiya karta hai.

vartmaan dasha और paridrishy को बड़े ही sarthak dhang से इस सुन्दर rachna में uthaya है आपने...

सचमुच यदि यह नहीं सोचा गया तो stree sahee mane में स्वतंत्रता और garima नहीं bacha payegee.

पूनम श्रीवास्तव said...

उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद्

आदरणीय निर्मला जी ,
बहुत ही सुन्दर और अर्थपूर्ण ,समसामयिक तथा प्रेरानापद कविता है आपकी .इसे आज की हर युवती को पढना चाहिए.
पूनम

Anonymous said...

कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच
दिखा रही हैँ
आपकी रचना के इन अंशों ने अपने उद्देग को शब्द दिये हैं

Udan Tashtari said...

रचना बहुत अर्थपूर्ण और सशक्त बन पड़ी है.

Science Bloggers Association said...

सत्य की परछाई जैसी लगी आपकी यह रचना, बधाई।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

शोभना चौरे said...

पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या
स्वाभिमान पाया क्या
हाँ मुक्ति मिली
बँधनों से
मर्यादायों से
सारलय से
कर्तव्य से
bhut shi kha apne pta nhi ye tthakthit aadunik nari kis mukti ki khoj me hai .
bhut sargrbhit abhivykti.

vandana gupta said...

bahut hi sashakt tarike se aapne aaj ke satya ko ujagar kiya hai..........har nari ko ye samajhna hoga,tabhi vastvik utthan hoga.

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