29 March, 2009



( भारतीय संस्कृ्ति )


मेरे मन मे जाने क्य आया
ये जानने का मन बनाया
कि देखें
भारत की संस्कृ्ति
किस मुकाम पर खडी है
लोगों पर उसकी
क्या छाप पडी है
गये घर घर मे
स्कूल ,कालेज परिसर मे
बाज़ार,क्लब,खेल के मैदान मे
सब जगह नज़र दौडाई
मगर भारतीय संस्कृ्ति
नज़र नही आई
मै बडा चकरायी
सोचा शायद मुझे ही
पता नही है
फिर एक बुकस्टाल पर
नज़र दौडाई बोली
:भाई सहिब-मुझे
भारतीय संस्कृ्ति पर कोई
पुस्तक दिखा दो
:नहीं है" वो बोला
पर कहाँ मिलेगी
इतना तो बता दो
उसने उपर से नीचे तक
मुझे निहारा और बोला
आप कवि या लेखक तो नहीं?
पर देखने मे लगते आउट डेटड नहीं
अजी किसी साधू महात्मा के पास जाईये
वहीं से जानकारी पाईये
एक आश्रम की राह पर निकल पडे
गेट पर थे दो संतरी खडे
मैं बोली;हम स्वामी जी के
दर्शन करना चाहते हैं
भारतीय संस्कृ्ति का
अवलोकन करना चाहते हैं
संतरी बोला;स्वामी जी नेट पर्
चैट कर रहे हैं
आप बैठ जाईये
लोग भी वेट कर रहे हैं
दो घंटे बाद स्वामी जी आये
आँखों पर धूप का चश्मा चढाये
हमने
अपने आने का मन्तव बताया
स्वामी जी हंसे और बोले
बेटी हम बार बार बता कर थक गये हैं
भारतीय संस्कृ्ति सुन लोगों के कान पक गये हैं
हम साधूओं ने भी
जीने का ढंघ अपना लिया है
अपना इस प्रोजैक्ट को ले कर
एक विदेशी टूर बना लिया है
हम ने जान लिया है
जब तक हमारी संस्कृ्ति
विदेश हो कर नहीं आयेगी
तब तक भारतीय जनता
इसे नहीं अपनायेगी
क्योंकि विदेशी लेबल बिना
भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं

18 comments:

P.N. Subramanian said...

इम्पोर्टेड वाला जब दिखे सूचित कीजियेगा. बहुत सुन्दर व्यंग. आभार.

इरशाद अली said...

अच्छी जानकारी, इतने सुन्दर और सटीक लेखन के लिये। बहुत-बहुत बधाई

दर्पण साह said...
This comment has been removed by the author.
दर्पण साह said...

भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं

satya hei didi, apka ye 'Sarcasm'
...aur aap dono!

शेफाली पाण्डे said...

हम ने जान लिया है
जब तक हमारी संस्कृ्ति
विदेश हो कर नहीं आयेगी
तब तक भारतीय जनता
इसे नहीं अपनायेगी........
sateek vyangya hai....badhaai aapko

Unknown said...

निर्मला जी , आपकी रचनाएं लीक से हट कर होती है । कम शब्दों में संपूर्ण समाहित होता यह । यही रचना की प्रधानता है ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

जब तक हमारी संस्कृ्ति
विदेश हो कर नहीं आयेगी
तब तक भारतीय जनता
इसे नहीं अपनायेगी
क्योंकि विदेशी लेबल बिना
भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं...............
बहुत गहरी बात कह दिया आपने .यही यथार्थ भी है .

अजित वडनेरकर said...

अच्छा व्यंग्य है...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत ही उम्दा व्यंग्य....आपने बिल्कुल सच कहा है कि हम लोग पश्चिमी प्रभाव में इतना ज्यादा रम चुकें हैं कि अपनी संस्कृ्ति,संस्कार हमें ढोंग लगने लगे है.

संगीता पुरी said...

क्योंकि विदेशी लेबल बिना
भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं
वाह ! वाह ! बहुत सुंदर व्‍यंग्‍य ...

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर व्यंग, ओर सच भी.
धन्यवाद

InConvincible said...

Andhaa Anukaran karne walon ke shownk naye, par dimaag baasi hain;
Is bheed mein bache hain ab keval kuch hi Bhartiya, baaki sirf Bharatwasi hain.

Ria Sharma said...

निर्मला जी
क्या करार व्यंग है..:)
हर विधा में सक्षम है आपकी लेखनी
आप की लेखनी को शत् शत् नमन है
सादर !!

बाल भवन जबलपुर said...

Zari rahe
saadar

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

जब तक हमारी संस्कृ्ति
विदेश हो कर नहीं आयेगी
तब तक भारतीय जनता
इसे नहीं अपनायेगी
क्योंकि विदेशी लेबल बिना
भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं
आदरणीय निर्मला जी ,
बहुत अच्छा व्यंग्य किया है अपने इस कविता में ...
हेमंत कुमार

हरकीरत ' हीर' said...

इसे नहीं अपनायेगी
क्योंकि विदेशी लेबल बिना
भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं

अच्छा व्यंग्य है...!!

आशीष कुमार 'अंशु' said...

अच्छा है...

रवीन्द्र दास said...

kya sachmuch aisa hi hai!

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