इन्सानियत के किस दौर मे इन्सान है
आज आदमी से आदमी परेशान है
लम्हा लम्हा है बेहाल जिन्दगी
बन गयी है इक सवाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी इक सवाल जिन्दगी
गरीब का हक हडपती है जिन्दगी
तंदूर मे सुलगती तड्पती है जिन्दग
कचरे के ढेर पर तरसती है जिन्दगी
दरिण्दगी से हुई हैमलाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी--
नोट पर रख के खाते हैं हीरोइन
वाँदी के गिलास मे परोसते हैं"जिन"
बिन साँप नही कोई भी आस्तिन्
ऐश परस्ती बनी है चाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी--
ना संस्कार ही रहे ना दीन और धर्म
ना रिश्तों की मर्यादा नआँख की शर्म
प्रधान बनता है जो कर बुरे कर्म
दौलत की भूख रह गयी खयाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी---
15 comments:
behaal zindagi ki chitra ko badi khubsoorati se ukera hai aapne.. :)
ना संस्कार ही रहे ना दीन और धर्म
ना रिश्तों की मर्यादा नआँख की शर्म
प्रधान बनता है जो कर बुरे कर्म
दौलत की भूख रह गयी खयाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी---
bahut sundar likha hai
अच्छी रचना। बधाई।
बेहतरीन रचना!!
marvellous.....
(Just added few lines...):
Hoti thi kabhi multiplex mein bikri,
kharchne ki thi tab ajab si befikri.
aaj kyun laga hai job mein gharan,
socho zara kharche kaise honge vahan?
kisi recession ki hartaal zindagi
Behal.....
लम्हा लम्हा है बेहाल जिन्दगी
बन गयी है इक सवाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी इक सवाल जिन्दगी
सही कहा .सुंदर रचना लगी आपकी यह
जीवन का सच बयान करती रचना, बधाई!
netaoon ki, kursi ki ladai zidangi,
management ki,balance sheet ki kamai zindagi.
tele caller ki sale ka target zindagi,
sophesticated ki calori,figure or weight zindagi,
garibon ki bas patli si daal zindagi....
behal zindagi....
आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
दूसरा भाग | पहला भाग
अच्छे भाव हैं। सुन्दर।
निर्मलाजी, बहुत खूब लिखा है लेकिन मुझे लगता है आप हेरोइन कहना चाह रही हैं गलती से शायद हीरोइन टाईप हो गया है। इससे उस लाईन का मतलब ही कुछ और निकल सकता है इसीलिये कहने की गुस्ताखी कर रहा हूँ।
लम्हा लम्हा है बेहाल जिन्दगी
बन गयी है इक सवाल जिन्दगी
बेहाल जिन्दगी इक सवाल जिन्दगी...
"सवाल और बेहाली का ही नाम है जिन्दगी ..."
Regards
पहली बार आपके ब्लाग पर आया, कविता बहुत अच्छी है. लेकिन कहानी अभी नहीं पढ़ सका हूं.
आदमी का विश्व में बाजार गन्दा हो रहा,
आदमी का आदमी के साथ धन्धा हो रहा।
आदमी ही आदमी का भूलता इतिहास है,
आदमी को आदमीयत का नही आभास है।
जिन्दगी का गीत रोटी में छिपा है,
प्यार और मनमीत रोटी में छिपा है।
बेहतरीन रचना। बधाई।
Post a Comment