बचपन की कोई याद
मखमली खेतों पर
सुसज्जित हिमकिरणों की
अरुणाइ ने फिर
लालसा जगाई है
पावन पवन
निर्मल मधुर
झरनों की कलकल
केसर की भीनी महक
मुझे फिर खींच लायी है
बचपन की कोई याद
आज गाँव की देहरी पर आई है
शरद पूर्णिमा मे
ठिठुरते हंसते होंठ
आँखों की चंचलता पर
पलकों ने रोक लगायी है
मुझे देख तेरेगालों पर
लालिमा सी छाई है
बच्पन की कोई याद आज
गाँव की देहरी पर आई है
कुचालें उन्मुक्त हिरणी जैसी
रिमझिम बूँदों से भीगा
बदन लिये
मेरे सामने आयी है
तेरी काली जुल्फें देख
कली घटा शरमाई है
बच्पन की कोई याद आज
गाँव की देहरी पर आई है
मुझे देख शर्माना
छलावा बन छुप जाना
कभी तिड बगीचे से
आम अम्रुद जामुन खाना
मुझे लग पेड के पीछे से
निकल मेरे सामने आई है
फिर अपनी कल्पना पर
आँख मेरी भर आई है
बच्पन की कोई याद
आज
गाँव की देहरी पर्
आई है
आज
अतीत और वर्तमान में
समन्वय नही बिठा पाऊँगा
एक अभिलाषा एक लालसा
फिर वैसे ही ले जाऊँगा
शायद फिर ना आ पाऊँगा
तुझे क्यों नहीं आज्
याद मेरी आयी ह
जीवन संध्या मे
ये कैसी
रुसवाई ह
वचपन की कोई याद
आज गाँव की देहरी पर आई है !!
10 comments:
बच्पन की कोई याद आज
गाँव की देहरी पर आई है
bahut sundar....
bahut sundar...
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http://merastitva.blogspot.com
बेहतरीन.ऐसी कितनी यादें संजोये रहते हैं हम.सब. आभार.
बचपन में स्मृति पर अक्षर,
जब अंकित हो जाते हैं ।
उन यादों को ताजा कर,
तन-मन झंकृत हो जाते हैं।
so very nostalgic...
thanks for making us read this....
बच्पन की कोई याद आज
गाँव की देहरी पर आई है !!!
वाह !!!!!!
अतिसुन्दर ! लाजवाब ! ......पढ़कर मन मुग्ध हो गया....
बहुत ही सुंदर यादे ले कर आई आप की यह कविता.
धन्यवाद
मुझे देख शर्माना
छलावा बन छुप जाना
कभी तिड बगीचे से
आम अम्रुद जामुन खाना
मुझे लग पेड के पीछे से
निकल मेरे सामने आई है
" वाह बचपन की सुंदर याद .........यूँ लगा बचपन जैसे सामने ही आ कर खडा हो गया"
Regards
बचपन की यादें होती ही ऐसी है.....कभी भी दिल और दिमाग का दरवाजा खटखटा देती है.....पर इतनी सुंदर रचना सब थोडे ही कर पाते हैं ......बहुत सुंदर।
bahut achchhi kavita hai. aapki yah kavita dil ko chhu gayi.
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