09 January, 2009


श्रम-मार्ग


जीवन को संघर्श मान जो चल पडते हैं बाँध कफन,
नहीं डोलतेहार जीत से,नहीं देखते शीत तपन.
न डरते कठिनाईयों से न दुश्मन से घबराते हैं,
वही पाते हैं मंजिल देश का गौरव बन जाते हैं
नन्हीं जलधारा जब अदम्य् साहस दिखलाती है,
चीर पर्वत की छाती वो अपनी राह बनाती है,
बहती धारा डर से रुक जाती तो दुर्गंध फैलाती,
पीने को न जल मिलता कितने रोग फैलाती
नन्हें बीज ने भेदी मिट्टी अपना पाँव जमाया,
पेड बना वो हरा भरा फल फूलों से लहराया.
न करता संघर्ष बीज तो मिट्टी मे मिट्टी बन जाता
कहाँ से मिलता अन्न शाक पर्यावर्ण कौन बचाता.
कुन्दन बनता सोना जब भट्ठी मे तपाया जाता है,
चमक दिखाता हीरा जब पत्थर से घिसाया जाता है,
श्रम मार्ग के पथिक बनो, अवरोधों से जा टकराओ,
मंजिल पर पहुंचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढ्ते जाओ

20 comments:

Tapashwani Kumar Anand said...

bahut hi sahi likha hai ki bina mehanat ke kuch bhi nahi milta par kya karen aadat se lachar ho gaye hai ham sab..

मैं यार समंदर के तल पर ,
कुछ मोती ढूँढा करता हूँ |
मैं यार आलसी दुनियाँ मे ,
मेहनत करने से डरता हूँ |

Udan Tashtari said...

एक सुन्दर विश्वास जगाती रचना. बधाई.

श्यामल सुमन said...

सबका होता अपना अपना जीवन में संघर्ष।
ये भी सच कि उसीसे मिलता जीवन को उत्कर्ष।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

समयचक्र said...

नन्हें बीज ने भेदी मिट्टी अपना पाँव जमाया,
पेड बना वो हरा भरा फल फूलों से लहराया.
सटीक रचना जो कुछ कहती है .
आभार

Reetesh Gupta said...

श्रम मार्ग के पथिक बनो, अवरोधों से जा टकराओ,
मंजिल पर पहुंचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढ्ते जाओ

अच्छी लगी आपकी रचना ...बधाई

Hiteshita Rikhi said...

Well said maa!It's a wonderful poem and somebody has rightly said that-"Genius is one percent inspiration and ninety-nine percent perspiration."
Regarding word verification,I understand it's little bit of effort when posting your comments using this facility.However,it avoids spam on the website.Such spams sometimes block access to a website.So in a way it is a good feature.

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत सुन्दर।बहुत प्रेरक।

राज भाटिय़ा said...

श्रम मार्ग के पथिक बनो, अवरोधों से जा टकराओ,
मंजिल पर पहुंचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढ्ते जाओ
बहुत ही सुंदर ओर प्रेरण्ण्क कविता.
धन्यवाद

daanish said...

"nanhi jaldhara jb adamya saahas dikhlaati hai, cheer parvat ki chhaati wo apni raah bnati hai..."
aapki iss prernadayak kavita meiN
kaii mahatvapoorn sandesh chhipe haiN...
badhaaee svikaareiN .
---MUFLIS---

"अर्श" said...

बहोत ही सुंदर कविता सुंदर भाव के साथ बेहतर करने को उत्प्रेरित करती हुई,,....ढेरो बधाई आपको ..


अर्श

विवेक सिंह said...

बेहतरीन रचना !

( वर्ड वेरीफिकेशन हटाएं तो कृपा होगी )

Dileepraaj Nagpal said...

bahut hi khoobsoorta aur umda rachna. badhayi

Ashutosh said...

aap ne mera follower ban kar jo prem dikhya hai,uske liye dhanyawaad,aap ka sneh isi tarah milta rahe,isi asha me.

Smart Indian said...

बहुत खूब. नींव के इन पत्थरों को मेरा नमन!

cg4bhadas.com said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, अलविदा २००८ और
2009 के आगमन की हार्दिक शुभकामनायें स्‍वीकार करे,
Welcome to the Cg Citizen Journalism
The All Cg Citizen is Journalist"!

Harshvardhan said...

bhav gahre hai man ko sukoon mila aapko is sundat kavita ke liye badhayi

Vinay said...

आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

अवाम said...

बहुत ही सुंदर और खुबसूरत रचना है आपकी. नव वर्ष की शुभकामनायें. नया साल आपको शुभ हो, मंगलमय हो.

पूनम श्रीवास्तव said...

Respected Nirmalaji,
Apke blog par apkee bahut bhavpoorna,sahaj,bodhgamya rachnayen padhee.Badhai evam shubhkamnayen.
Poonam

कडुवासच said...

नन्हीं जलधारा जब अदम्य् साहस दिखलाती है,
चीर पर्वत की छाती वो अपनी राह बनाती है,
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

पोस्ट ई मेल से प्रप्त करें}

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner