जिन्दगी आदमी से सवाल करने लगी है
नये दौर पे मलाल करने लगी है
खो गयी वो हंसी खो गयी चाहतें
रोजी रोटी बेहाल करने लगी है
चलने लगी हवस की आन्धियां
बेटी डर बाप से फिलहाल करने लगी है
घर में बंट गये बेटों के कमरे
मैं किसके हिस्से मे हूं
मां सवाल करने लगी है
जिन्दा इन्सान को मुर्दा साबित कर दे
ये रिश्वत क्माल करने लगी है
दौलत की भूख से परेशान दुनिआ
आदमी के गुर्दे हलाल करने लगी है
कौन किस से किस की शिकायत करे
जिन्दगी खुद पर मलाल करने लगी है
नये दौर पे मलाल करने लगी है
खो गयी वो हंसी खो गयी चाहतें
रोजी रोटी बेहाल करने लगी है
चलने लगी हवस की आन्धियां
बेटी डर बाप से फिलहाल करने लगी है
घर में बंट गये बेटों के कमरे
मैं किसके हिस्से मे हूं
मां सवाल करने लगी है
जिन्दा इन्सान को मुर्दा साबित कर दे
ये रिश्वत क्माल करने लगी है
दौलत की भूख से परेशान दुनिआ
आदमी के गुर्दे हलाल करने लगी है
कौन किस से किस की शिकायत करे
जिन्दगी खुद पर मलाल करने लगी है
14 comments:
bahut badhiya blog hai aapka.
lage rahiye.
njoyyyyyyyyyy
मैं गजल के सबसे अच्छे शेर को उद्धृत करना चाहता था. लेकिन सारे ही शेर अच्छे लगे और सबसे अच्छा छांटना मुश्किल हो गया. वैसे सारी गजल का सार पहले ही शेर में आ गया है:
जिन्दगी आदमी से सवाल करने लगी है
नये दौर पे मलाल करने लगी है
- एक और अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद.
कौन किस से किस की शिकायत करे
जि मलाल करने लगी है न्दगी खुद पर
sundar...
बहुत ही सामयिक और प्रासंगिक प्रश्न उठाए हैं आपने।
बधाई।
bahut acchi lagi gazal .........
word verification hata den...comment karne main aasaan ho jaayega..
"जिंदगी आदमी से सवाल करने लगी है" आदमी ही अपनी ज़िंदगी को हलाल करने पे तुला है. बहुत खूब लिखी. आभार.
एक बात और कहनी थी. आपके ब्लॉग पर टिप्पणी देने के लिए "वर्ड वेरिफिकेशन" का प्रावधान बना हुआ है. यह अनुत्पादक है. इससे लोगों को परेशानी होती है. कृपया अपने सेट्टिंग्स में जाकर इस प्रावधान को हटा दें.
चलने लगी हवस की आन्धियां
बेटी डर बाप से फिलहाल करने लगी है
घर में बंट गये बेटों के कमरे
मैं किसके हिस्से मे हूं
मां सवाल करने लगी है
आप ने बिलकुल सच लिख दिया है अपनी इस कविता मै, बहुत सुंदर.
धन्यवाद
बहुत सुन्दर और सटीक लिखा आपने. शुभकामनाएं.
रामराम.
अच्छी रचना है बस कृपया शीर्षक में gajal के स्थान पर gazal कर दे तो उच्चारण की दृष्टि से सही हो जाएगा.
ये रिश्वत क्माल करने लगी है
दौलत की भूख से परेशान दुनिआ
आदमी के गुर्दे हलाल करने लगी है
....bahut khub.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, अलविदा २००८ और
2009 के आगमन की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करे,
Welcome to the Cg Citizen Journalism
The All Cg Citizen is Journalist"!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, अलविदा २००८ और
2009 के आगमन की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करे,
Welcome to the Cg Citizen Journalism
The All Cg Citizen is Journalist"!
sundar chintan.
yakinan roshni ki jarurat hai aaj samaj koo
aapke vichar roshn karenge andhere raston ko
रिश्तों की यही है कहानी
कभी चेहरे पे मुस्कुराहट
कभी आंखों में पानी!!
(रिश्तों के इसी झंझावात को आप मेरी कविता ‘रिश्ते’ में भी महसूस कर सकते हैं)
सादर सहित
........... अतुल
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