21 December, 2008


ब्च्चो मै हूं तुम्हारी दादी मेरा नाम है आजादी,
अपनी फरियाद सुनाने आई हूं,मैं तुम्हें जगाने आई हूं,
जब देशभक्त परवानों ने आजादी के दिवानों ने,
दुशमन से मुझे छुडाया था तो अपना लहू बहाया था,
मुझे अपने बेटों को समर्पित कर वो चले गये,
कुछ ही वर्शों में मेरे बेटे भी बदल गये,
देश को बोटी बोटी कर खा रहे हैं, मुझे पतिता बना रहे हैं,
अपना हाल सुनाने आई हूं, मै तुम्हें जगाने आई हूं
बडे बडे नेता अधिकारी बन गये हैं,
सिर से पाँव तक भृ्श्टाचार में सन गये हैं,
संविधान की धज्जियां उडा रहे हैं,
स्वयं हित भाई से भाई लडा रहे हैं,
वीरों की कुर्वानी भूल गये हैं,
आदर्श इतिहास सब धूल गये हैं,
इनके घोटालों का बसता भारी है,
कोने कोने मे शड्यंन्त्रकारी है,
देश की ताजा तस्वीर दिखाने आई हूँ, मैं तुम्हें ज्गाने आई हूँ.
बच्चो ये भारत देश तुम्हारा है,
इस पर अब हक तुम्हारा है,
तुम्हारे अविभावक कर देंगे इसे निलाम,
तुम फिर से बन जाओगे गुलाम,
अपनी संस्कृ्ति को तुम पेह्चान लो,
अपने कर्तव्य को भी जान लो,
इन भृ्श्टाचारियों से देश बचाओ,
प्यार से ना माने तो अर्जुन बन जाओ,
तुम्हे़ खबर्दार बनाने आई हूं, मैं तुम्हें जगाने आई हूँ

9 comments:

Lalit Suri said...

Bahut hi Badiya Likha hain aapne.
पड कर ऐसा लगा की आप बहुत देश की सेवा कर्ते है.!!

शोभा said...

अपनी संस्कृ्ति को तुम पेह्चान लो,
अपने कर्तव्य को भी जान लो,
इन भृ्श्टाचारियों से देश बचाओ,
प्यार से ना माने तो अर्जुन बन जाओ,
तुम्हे़ खबर्दार बनाने आई हूं, मैं तुम्हें जगाने आई
वाह! क्या बात है । बहुत अच्छी और सच्ची बात कही है। बधाई स्वीकारें।

दिगम्बर नासवा said...

सार-गर्भित सुंदर रचना
आज़ादी बयान करती

संगीता पुरी said...

प्यार से ना माने तो अर्जुन बन जाओ,
तुम्हे़ खबर्दार बनाने आई हूं, मैं तुम्हें जगाने आई हूँ
आपने बहुत ही सही समय पर यह रचना पेश की है.....बहुत अच्‍छी रचना....बधाई।

Hiteshita Rikhi said...

It's a great patriotic poem I have read after a long time.Hats off to you!I salute you.

नीरज गोस्वामी said...

निर्मला जी
बच्चो ये भारत देश तुम्हारा है,
इस पर अब हक तुम्हारा है,
तुम्हारे अविभावक कर देंगे इसे निलाम,
तुम फिर से बन जाओगे गुलाम,
आपकी रचनाएँ बहुत प्रेरक हैं...आज आप के ब्लॉग पर आकर आपको पढने और जानने का मौका मिला...आप के जज्बे की मैं तहे दिल से तारीफ करता हूँ...आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं...बधाई..
नीरज se

निर्मला कपिला said...

नीरज जी आप जेसा अच्छ तो नहीं लिख सकती मगर एक कोशिश है अभी कम्पूतर भी अच्छ तरह ओपरेट करना नही आतआप्की ये पन्क्तियां मेरे लिये प्रेरणा स्त्रौत हैं धन्यबाद शोभा,दिगम्बर, संगीता पुरी, हितेशिताजी की भी धन्यबादी हूं अभी सब के बलौग पूरे नहीं पढ पाई जल्दी हीपढ लूँगी

ताऊ रामपुरिया said...

तुम्हारे अविभावक कर देंगे इसे निलाम,
तुम फिर से बन जाओगे गुलाम,
अपनी संस्कृ्ति को तुम पेह्चान लो,
अपने कर्तव्य को भी जान लो,


लाजवाब रचना ! बहुत धन्यवाद और बधाई !

रामराम !

rajendras said...

यकीनन, आपकी रचनाएँ बेहद खुबसूरत तो हैं ही, साथ ही दिल को छूने वाली हैं। बहुत अच्छा लिखा आपने ... इसी तरह अपनी कलम को विराम दिए बिना लिखते रहिए...
आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत हैं...
http://rajendras.mywebdunia.com

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