अपने नसीब पर खडी रोती है इन्सानियत
भूखे पेट अनाज बोती है इन्सानियत
मां का आन्चल भी दागदार हो गया
कचरे में भ्रूण पडी रोती है इन्सानियत
आसमां की बुलन्दियों को छूती इमारतें
फिर भी फुटपाथ पर पडी सोती है इन्सानियत
घर की लक्ष्मी घर की लाज है वो
सडक पर कार में रेप होती है इन्सानियत
रिश्ते नाते धन दौलत में बदल गये
भाई की गोली से कत्ल होती है इन्सानियत
यथा राजा तथा प्रजा नहीं कहा बेवजह
नेताओं की नीचता पर शर्मसार होती है इन्सानियत
भूखे पेट अनाज बोती है इन्सानियत
मां का आन्चल भी दागदार हो गया
कचरे में भ्रूण पडी रोती है इन्सानियत
आसमां की बुलन्दियों को छूती इमारतें
फिर भी फुटपाथ पर पडी सोती है इन्सानियत
घर की लक्ष्मी घर की लाज है वो
सडक पर कार में रेप होती है इन्सानियत
रिश्ते नाते धन दौलत में बदल गये
भाई की गोली से कत्ल होती है इन्सानियत
यथा राजा तथा प्रजा नहीं कहा बेवजह
नेताओं की नीचता पर शर्मसार होती है इन्सानियत
5 comments:
सच है , इंसानियत अब है कहां ?
sahi baat kahi, bahut khub
कचरे में भ्रूण पडी रोती है इन्सानियत
एक कटु सत्य....अच्छी रचना...
नीरज
अच्छा िलखा है आपने । भाव, िवचार, संवेदना और िशल्प के समन्वय ने रचना को प्रभावशाली बना िदया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
sab ka shukria
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