25 June, 2009

क्या ये सज़ा कम है (कविता )

इस हद तक जाना
तुम्हारी मौत को
शब्दों मे भुनाना
और
वाह वाह लूट कर
खुद को खुद की
नज़रों मे गिराना
क्या कहते हो
क्या ये सज़ा कम है
कागज़ की काली कँटीली
पगडँडियों पर चलने की व्यथा
क्या कम है
नित नये शब्द घडने की कथा
क्या कम है
खुद को टीस दे कर
दिल सताने की अदा
क्या कम है
मगर ये सज़ा पाना चाहती हूँ
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ

23 June, 2009

एक साँस का फासला

ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था
अपनी ज़िन्दगी से
शायद तुम सही थे
तुम इस फासले के
घोर सन्नाटे का
एहसास करवाना चाहते थे
और जीने वालों के लिये
छोड जाना चाहते थे
कुछ नमूने कि
तुम भी जी कर दिखाओ
मेरी तरह जी कर
देना चाहते थे एक टीस
जो मौत से भी असह है
देखना चाहती हूँ मै भी
इस सन्नाटे का एक एक पल
तुम कैसे जीये
हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना

21 June, 2009

मेरा हमसफर (कहानी )

उसके उपर ओढी हुई सफेद चद्दर के एक कोने से अपनी आँखें पोंछती हूँ-------पता नहीं इन्हें मुझ से इतना प्यार क्यों है-----जब भी देखते हैं मै अकेली हूँ चले आते हैं--- बरसाती बादलों की तरह----शायद लिये Align Centreकि कोई इन्हें अपने आँचल मे समेटने वाला है -----हाँ ये मेरे आँसूओं को भी अपने मे आत्मसात कर लेता है ----मेरे सुख दुख संवेदना क्षोभ सब का साथी है -----मेरा हमसफर है --------जानती हूँ अब तक इसने ही तो मेरा-----मेरे आँसूओं का साथ निभाया है-------दिल से इसे चाहती हूँ -------क्यों कि इसने कभी भी मुझे धोखा नहीं दिया--- मेरा साथ नहीं छोडा-----मैं चाहे दिन भर की भाग दौड मे दुनिया की भीड मे खोई रहूँ मगर ये हर वक्त मेरे लिये पलकें बिछाये रहता है-------काम करते हुये भी मुझे लगता है कि इसकी बेताब आँखें मुझे ही ढूढ रही हैं-------रात को जब थकी हारी इसके पास आती हूँ तो मुझे बाहों मे समेट लेता है------- और् ले जाता है सपनों की ठँडी छाँव मे-------मेरे अंदर कल्पनाओं के इतने पँख फैला देता है कि उन्हें कागाज़ों मे समेटते समेटते थक जाती हूँ--------- नित नयी उडान-------नित नये क्षितिज--------कितने इन्द्रधनुष ------ और् इसके साथ कुछ ही पलोँ मे कितने जीवन जी लेती हूँ--------क्या आज कोई इतना प्यार किसी से करता है----मैं इसी लिये इसे चाहती हूँ------अब तो मुझे इससे इतना लगाव हो गया है कि इसी के साथ खाना-- पीना-- उठना-- बैठना--टी वी देखना------सब इसके साथ है------ और् तो और् इसके बिना तो भगवान का नाम लेने मे भी मन नहीं लगत--- कोई कितना भी मना करे कि
ये जगह भगवान का नाम लेने के लिये शुध नहीं होती मगर मगर मैं नहीं मानती जब भगवान हमारे गंदगी से भरे शरीर मे होते है तो इसमे क्यों नहीं हो सकते मेरा तो इसके बिना ध्यान लगता ही नहीं-------ये साथ हो तो जैसे ही आँखें बँद करूँ--मुझे अनन्त आकाश की गहराईओं मे ले जाता है जहाँ के अद्भुत प्रकाश मे मेरा अपना अस्तित्व विलीन हो जाता है ------शाँती---परम आनँद------फिर भगवान ये तो नहीं देखते कि आदमी कहाँ है कैसे भक्ती करता है वो तो केवल आत्मा को देखते हैं-------ये भी मुझे इसने ही समझाया-----------क्या आज की दुनिया मे ऐसा कोई इन्सान है जो मुझ से इस तरह प्यार करे-------तो फिर क्यों सभी मुझे रोकते हैं क्यों मुझे क्यों नही उन्हें अच्छा लगता इससे मेरा लगाव-----------काश कि आदमी को भी इस तरह इन्सानों से प्यार करना आ जाये---------- जब मै इसके आगोश मे होती हूँ तो एक अजीब सा सकून मिलता है ------- और मन मे कविता बहने लगती है-------------
जन्म लेते ही मुझे इसका आभास हो गया था-------कि मेरा इससे उम्र भर का नाता है -----माँ ने दूध पिलाने के बाद मुझे अपने साथ लिटाया तो इशारे से ही समझा दिया था कि मैं भी ताउम्र तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊँगी------मुझे लेट कर बहुत सकून मिला------मुझे लगता कि कहीं आस पास ही माँ के आँचल की सुगन्ध है----पिता के प्यार का एहसास है----ये तो बडी होने पर पता चला कि ये मेरा प्यारा बिस्तर है----
हाँ ये मेरा प्यारा बिस्तर है यही मेरा दोस्त है यही मेरे दुख सुख का गवाह है जिसे माँ ने बडे प्यार से अपनी फटी चिथडे साडी से और पिता की कालर घसी कमीज से भर कर बनाया था------उपर से पुरानी रेशमी साडी से इसका कवर सिला था-----तभी तो ये मुझे अकेलेपन का एहसास नहीं होने देता था-------बचपन के मीठे सपनों की लोरियाँ इसके गिलाफ के नीचे की तहों मे अब भी मुझे कई बार बचपन की याद दिला देती हैं-------इसके साथ खेल कूद उठा पटक आज भी मन मे चचंचलता भर देती है ---------
फिर जवान होते होते---कितने हसीन ख्वाब देखे मैने इसके साथ -----कितने सपने बुने----आज भी उन्हें निकाल कर देखती हूँ तो आँख नम हो जाती है वो सपने सपने ही रह गये- ----- और उस दिन------- जब मुझे रोते विलखते डोली मे बिठा दिया गया था------कितना रोई थी इससे लिपट कर------इसका सारा बाजू मतलव तकिया भिगो दिया था रोते रोते---------कैसे सो पाऊँगी इसके बिना------कितना असह होता है अपनों से बिछडने का दर्द --------टीस देता है किसी अपने से दूर जाना--------
नया घर----- कई आकाँक्षायें---- कई डर------- अनजाने लोग --कैसे रह पाऊँगी इसके बिना नीँद नहीं आयेगी---------मगर जब मुझे अपने कमरे मे ले जाया गया तो मन खुशी से झूम उठा-------मेरा बिस्तर मेरे सामने नयी सजधज मे मौज़ूद था--------खिल रहा था--------दहेज के पलँग पर माँ के हाथ की कढाई की हुई रेशमी चद्दर-------शनील की कोमल रजायी-------बस फिर तो सब अपना लगने लगा था---------पराये लोग भी अपने बन गये थे इसके कोमल एहसास से-------- और्र इस तरह ये मेरे कुछ सुहाने पलों का साथी भी बन गया ------जिन्हें आज तक मेरे लिये संजोये बैठा है--------- कभी कभी याद दिला देता है --------
लेकिन दुनिया मे सुख के पल तो बिलकुल थोडे से होते हैं ------यथार्थ मे तो जीवन एक संघर्ष है--------इतनी जल्दी मेरे सिर पर फर्ज़ों की पेटली रख दी गयी कि जिसे ढोते ढोते ये दिन आ गये-------12 जनों के परिवार का कर्ज चुकाते चुकाते शरीर भी साथ छोडने लगा मगर इस बिस्तर ने मेरा बहुत साथ दिया----दिन भर की थकान मेरे शिकवे शिकायतें परेशानिया सब इसी से तो कहती थी-------क्यों की तब मैं बोलती बहुत कम थी--------किसी के आगे दुख रोना मुझे अच्छा नहीं लगता था------ तो इससे कह कर मन हलका कर लेती-----सब अपने अपने दायरे मे बंधे दूसरे की कहाँ सुनते हैं--- वैसे भी एक घर को पहले औरत के शरीर की जरूरत होती है ------रिश्ता चाहे कोई भी हो ----हर एक की जरूरत के हिसाब से-------- दिल देखने की नौबत तो तब आये जब किसी के पास समय हो-------- और ऐसे मे कोई तो साथी चाहिये ना--------तो मैने इसे ही अपना सथी बना लिया--------
अब मुझे किसी की परवाह नहीं थी ये शरीर घर के लोगों के लिये और दिल अपने इस दोस्त के लिये---- मै जब बहुत बिमार हुई तो भी इसी ने मेरा साथ दिया------- इसने समझाया कि देखो तुम अपने शरीर का ध्यान नहीं रखती हो ----इस दुनिया मे कोई किसी का नहीं है--- अगर तुम्हारे हाथ पाँव चलते हैं तो ही सब तुम्हारे अंग संग हैं अगर तुम केवल मेरे साथ ही चिपकी रही तो सब तुम्हें छोड कर चले जायें गे ----हाँ ऐसा एहसास मुझे होने लगा था---- मेरी बिमारी मे वो सब साथ छोड गये थे जिन्हें मैने यशोधा की तरह पाला था ------ अगर मैं ठीक ना हुई तो मेरे बच्चों को कौन पालेगा और मैने अपनी सेहत की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया-----इसकी तहों मे उस टीस का एक एक पल कैद है जो मुझे रिश्तों ने दी--------
अब जीवन का एक लम्बा सफर इसके सहारे निकल गया है ----इसने मुझे जीने का सलीका दिया क्यों कि जब मैं इसके साथ होती हूँ तो अक्सर खुद मे लौट आती हूँ-------- और खुद मे लौट आना एक बडी घटना होती है--------
आज कल मुझे एक चिन्ता हर पल घेरे रहती है--------इससे भी बाँटना नहीं चाहती------अब जीवन के कुछ पल ही तो बचे हैं---------मेरे बाद इसका क्या होगा------- क्योंकि इसके साथ मेरा प्रेम किसी को एक आँख नहीं सुहाता--------मेरे जाते ही इसे किसी कूडे के ढेर पर फेँक दिया जायेगा------ और् उस पर ये मेरे गम मे औँधे मुँह पडा आँसू बहाता रहेगा----- ---काँप जाती हूँ ------- मगर इन्सान क्या किसी से वफा कर सका है------चुपके से छोड देता है अपने चाहने वालों को ------- नहीँ ----नहीँ----- मैं ऐसा नहीं होने दूँगी------जिस ने मेरा हर दुख सुख मे साथ दिया मेरे आँसू पोँछे-------मेरे बोझ को ढोया------ मेरी सिस्कियों को सहा------बचपन से अब तक मेरे साथ वफा की----मेरी कलम को स्याही दी कागज़ों को शबद दिये उसे मै ऐसे कैसे छोड सकती हूँ--------मैने सब से कह दिया है कि इसे मेरी अर्थी के साथ ही जलाया जाये-------चाहे हमारे शास्त्र कुछ भी कहें सारी उम्र शास्त्रों की ही तो मानी है तभी तो इतने कश्ट सहे हैं लेकिन मरने के बाद मेरी सब बेडियाँ तोड दी जायें बस मै मरना अज़ादी से चाहती हूँ अपने इस दोस्त के साथ एक चिता मे---------
शायद इसे आभास हो गया है कि मै क्या लिख रही हूँ--------चद्दर का एक कोना उड कर कलम के आगे बिछ जाता है जैसे कह रहा हो प्रिय मरने की बात मत करो-------- अब छोडो कलम मेरे पास आओ---------जीने के चार पल क्यों सोचने मे खो दें--------- और्र मैं आँखों मे आये आँसूओं को इसी कोने मे छिपा देती हूँ------- और इसके आगोश मे सिमट कर सोने का प्रयास करती हूँ-------- आज दोनो की आँखों से नीँद कोसों दूर है ------फिर भी दोनो को एक सकून है एक दूसरे के अपना होने का---- साथ होने का-------मगर ये अपनी आदत से बाज़ नहीं आता--- फिर ले जा रहा है मुझे एक और क्षितिज पर-------नये पँखों के साथ-----------

19 June, 2009

आजकल छुट्यों मे मेरी बेटी और नाती आये हुये हैं उनके साथ मस्त और व्यस्त हूँ कुछ नया लिख नहीं पा रही फिर उपर से नाती की सिफारश कि नानी मेरे लिये कुछ लिखो ना 1 तो अपने प्यारे से नाती के लिये एक कविता जो कई साल पहले लिखी थी प्रस्तुत कर रही हूँ1

मेरा बचपन वापिस लाओ ना (कविता )

मम्मी से सुनी उसके बचपन की कहानी
सुन कर हुई बडी हैरानी
क्या होता है बचपन ऐसा
उडती फिरती तितली जैसा
मेरे कागज़ की तितली मे
तुम ही रँग भर जाओ ना
नानी जल्दी आओ न

अपने हाथों से मुझे झुलाना
बाग बगीचे पेड दिखाना
सूरज कैसे उगता है
कैसे चाँद पिघलता है
परियाँ कहाँ से आती हैं
कैसे गीत सुनाती हैं
मुझ को भी समझाओ ना
नानी जल्दी आओ न
लोरी दे कर मुझे सुलाना
गोदी मे ले मुझे खिलाना
नित नये पकवान बनाना
अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझ को भी स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना

खेल कूद का समय नहीं है
मुझ को दुनिया की समझ नही है
बस्ते का भार उठा नहीं सकता
पढाई का बोझ बता नहीं सकता
मम्मी पापा रहते परेशान
मैं छोटा सा बच्चा नादान
उनका प्यार भी लगता झूठा है
मेरा बचपन क्यों रूठा है
तुम मुझ को समझाओ ना
मेरी नानी प्यारी नानी
मा जैसा बचपन वापिस लाओ ना
नानी जल्दी आओ ना


17 June, 2009

आपका क्या कहना हैAlign Centre
यूँ तो किसी की डायरी पढना बुरी बात है मगर एक दिन मैने अर्श ( अपका प्यारा प्रकाश सिह अर्श(
की डायरी चुरा ही ली 1 माँ हूँ तो बेटे पर नज़र रखनी ही पडती है1वो डायरी मे इतना कुछ लिखे बैठा है अपने ब्लोग पर पोस्ट ही नहीं करता 1 मै हैरान रह गयी1 मेरी नज़र उसकी प्रेम रस मे डूबी एक कविता पर गयी 1 समझ गयी मेर बेटा अब बडा हो गया है 1 कहा कि इसे अपने ब्लोग पर पोस्ट कर दो तो बोला कि नहीं1 शायद अपनी माँ से शरमाता है 1 तो मैने सोचा कि आपको उसका ये रँग भी दिखा ही दूँ चाहे वो मुझे डाँटे तो पढिये उसकी ये कविता और दीजिये उसे आशीर्वाद1 kaहाँ ये भी बताईये कि क्या अब बेटे की शादी कर देनी चाहिये?



साजन साजन मोरनी गाये
नाचत नाचत मोर सताये

बादल बरसे रुनझुन रुनझुन
साजन अब भी क्यूँ तडपाये

सुर्ख है चेहरा गाल गुलाबी
मिलन सजन से असर दिखाये

बूंदें टिप टिप पायल छन छन
मदहोशी का राग सुनाये

बादल जब ले गया बचपना
चंचल अखियाँ होठ थर्राए

किस आहाट् पे चाटकी कलियाँ
मुई कोयलिया बिरहा गाये

मेरा दुपट्टा जवां हुआ तो
शर्म आँख से छलका जाये ...





16 June, 2009

ये कविता मेरे शहर के गौरव मेरे पडोसी के बेटे और मेरेहाथों मे खेले शहीद कैप्टन अमोल कालिया की शहादद पर उनके माता पिता के लिये लिखी गयी थी1उनके शहादत दिवस पर आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ1

कैसे गाऊँ (कविता )

दो पँछी अन्जान दिशा से आये
एक डाल पर बैठ सपने सजाये
सुन्दर सा इक महल बनायेंगे
इसमे प्यार के फूल खिलायेंगे
दोनो का सपना पूरा हुआ
इक डाल पे महल सजा लिया
दोनो इक दूजे मे खो गयी
दुनियाँ से बेखबर हो गये
प्यार के गुलशन महक उठे
आशियाँ मे नन्हें चहक उठे
जैसे ही उनका प्यार बढा
वैसे ही घर संसार बढा
खुशी खुशी बच्चों को पाला पढाया
फिर सरहद पर जा बिठाया
दोनो खुश थे खुश था देश
मन मे कभी ना आया खेद
पर दुश्मन को उनकी खुशी ना भायी
कारगिल से इक आँधी आयी
दुश्मन उनकी सरहद मे था आया
दानवता का नंगा नाच दिखाया
सर पे बाँध कफन बच्चे दुश्मन पर टूट पडे
सीने पर गोली खाकर भी ना पीछे हटे
दुश्मन को सरहद से मार भगाया
खुद शहीद हुये अमरत्व पाया
जब माँ बाप ने देखी थीं लाशें
दुख से बरस पडी थीं आँखे
उनके आशियाँ की महक ना रही
उनके नन्हों की चहक ना रही
दोनो के दुख का अन्त ना कोई
बाप भी रोया माँ भी रोई
कहो शहादत या कुर्बानी
उनकी आँख से छलके पानी
कौन सुनेगा बातें उनके दुख की
फिर किसी ने ना उनकी सुध ली
दोनो को अब कुछ ना भाये
भाग्य की लिखी को कौन मिटाये
कैसे कुरबानी के गीत सुनाउँ
कैसे विजय अभियान मनाऊँ

14 June, 2009

अच्छा लगता है (कविता )

कभी कभी
क्यों रीता सा
हो जाता है मन
उदास सूना सा
बेचैन अनमना सा
अमावस के चाँद सी
धुँधला जाती रूह
सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास
अजीब सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीज़ों से बतियाना
अच्छा लगता है
आँसूओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों मे
दिल के चिथडों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
मेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तर
मेरी कलम और ये कागज़
और
मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना

13 June, 2009

रुबरु
नया नंगल पँजाब के आनँद भवन क्ल्ब के प्राँगण मे 11 -6-2009 को अक्षर चेतना मँच नया नँगल की ओर से एक साहित्यक समारोह का आयोजन किया गया1 इस समारोह का केन्द्र -बिन्दु पँजाब गज़लकारी के नामवर हस्ताक्षर श्री जसविन्दर् जी से इलाके के सहित्यकारोँ व बुद्धीजीवियोँ से रु -ब- -रु करवाना था1
समारोह की शुरुआत मे सभी उपस्थित जनोंने प्रसिद्ध रँगकर्मी स्व- श्री हबीब तनबीर एवं तीन हास्य कवियों स्व- श्र ओमप्राकाश् आदित्य- दिल्ली नीरज पुरी -दिल्ली एव स्व- श्री लाड् सिह गुर्जर -भोपल के आसामयिक निधन पर अफसोस प्रकट किया एवं दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये1
समारोह का आयोजन अक्षर चेतना मंच के संरक्षक श्री राकेश नैयर जी की अध्यक्षता मे हुआ1 श्री देविन्दर शर्मा कार्यवाहक प्रधान अ़क्षर चेतना मँच दुआरा स्वागत भाशण के उपराँत कुछ कवियों श्री सुरजीत गग्ग - श्रीमति निर्मला कपिला-श्री देविन्दर शर्मा-श्री संजीव कुरालिया श्री राकेश वर्मा-श्री अजय शर्मा एवं श्री बलबीर सैणी दुआरा सँ क्षिप्त कविता पाठ किया गया1
इलाके के मशहूर गायक जो पंजाबी फिल्मों के लिये भी गाते हैं श्री पम्मी हँसपाल जी नेश्री जसविन्दर जी की मह्सहूर गज़लें गा कर आत्म विभोर किया जिनके बोल थे उनका साथ स- हरभजन जी ए- पी- आर-ओ ने तबला बजा कर दिया1
मनुखाँ च मोह कणी ना् रह ताँ दरख्ताँ नू दुखडे सुणाया कराँगे
इसके बाद डा- शमशेर मोही जी -रोपड व श्री सुनील चँदियाणवी-फरीदकोट ने गज़ल लेखन व लेखकों के बारे मे विद्धतापूर्ण भाषण दिया1 डा-शमशेर मोही जी ने गज़ल के उदगम एवं मैज़ूदा स्वरूप पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने के इलावा जसविन्दर के लेखकीय जीवन एवं लेखन स्तर के बारे में श्रोताओँ को अवगत करवाया1
तदोपराँत श्री जसविन्दर जी नी अपनी गज़लें सुनाई जिन मे प्रमुख थीं
सिरलत्थाँ दी भीड सी मोड कसूता आ गया
सियाणे सियाणे मुड गये झल्ले झल्ले रह गये

थाई खडी उडीकदी यात्रियाँ दी भीड
लीहाँ छड असमान ते दौड रही है रेल्

मेरी थावें लेक जो भुगतण सजावाँ कौण ने
फेर वी मेरे वास्ते करदे दुआवाँ कौण ने

असीं दिल छड गये होईये अजिहा वी नहीँ लगदा
पता नहीं फेर क्यों साडा किते वी दिल नहीं लगदा

श्री जसविन्दर जी से श्रोताओं ने गज़ल लेखन विद्या की बारीकियों-सहित्य सभाओं के दुआरा निभाये जाने वाले रोल उनकी गज़लों के भाव इत्यादि के बारे मे सवाल जवाब किये जिनका जसविन्दर जी ने बाखुअबी उत्तर दिया1कोई उपनाम ना रखने के सँदर्भ मे उनका जवाब था कि शुरू मे वो छोटी उमर से ही जसविन्दर के नाम से लिखते आये हैं और उन्होँने कभी तखल्लुस लगाने की आवश्यकता महसूस नहीं की
अक्षर चेतना मँच के पदाधिकारियों ने श्री जसविन्दर जी और डा- शमशेर मोही जी को समृति चिन्ह भेँट किये1 मँच संचालक्की भूमिका का निर्वाह राकेश वर्मा दुआरा किया गया1
इस समारोह मे अन्य उपस्थित्त जनो मे दिल्ली युनिवर्सिटी से रिटायर प्रोफेसर व संपादक समाज धर्म पत्रिका श्री भोला नाथ कश्यप प्रोफेसर योगेश सूद रंगकर्मी श्री फुलवँत मनोचा श्री जसविन्दर सिह प्रबन्धक उपकरन श्री विजय शर्मा नंगल श्री अमृतपाल धीमान श्री अमर जीत भल्लडी कवंर देव सिह एवं अमर पोसवाल अमृत सैणी ललित मित्तल अमरजीत बेदाग श्री गुर्प्रीत गरेवाल श्री एम एम कपिला अम्बिका दत्त एस डी शर्मा गुलशन नैयर व श्रीमति सुधा नैयर संजय सनन अजय भाटिया सी एल विर्दी मोहेन्द्र सिह परमजीत महराल राजीव ओहरी इसके अतिरिक्त प्रेस से आये सदस्य आदि उपस्थित थे धन्यवाद प्रस्ताव श्री अजय शर्मा दुआरा पेश किया गया1
आज पहली बार हुआ कि महिला सदस्यों की उपस्थिती कम रही 1
राकेश वर्मा1

अक्षर चेतना मँच नंगल ही नहीं पूरे पंजाब मे अपने भव्य आयोजनों के लिये जाना जाता है 1इस बात पर भी विचार किया जा रहा है कि इसकी पहचान् पूरे भारत से करवाई जायेगी1 इसकी स्थापना मे सब से अधिक योगदान डा. डी पी सिंह प्रोफेसर फिज़िक्स शिवालिक कालेग नंगल का है जो आजकल कैनेडा गये हैं उनके बाद श्री दविन्द्र शर्मा जी- राकेश् वर्मा जी और संजीव कुरालिया जी बडी कुशलता और लगन से चला रहे हैं1 ये मंच अब तक पंजाब के कई जाने पहचाने सहित्यकारों को सम्मानित कर चुका है1
आने वाले दिनों मे शायद ये भारत का सब से बडा साहित्यिक आयोजन मंच होगा1

12 June, 2009

छोटी सी बात (कविता )

कई बार
जब हो जाते हैं
हम
मैं और तू
छोटी छौटी बातों पर
कर देते हैं रिश्ते
कचरा कचरा
तर्क---वितर्क
तकरारें--
आरोप--प्रत्यारोप
छिड जाता है
महाँसंग्राम
अतीत की डोर से
कटने लगती है
भविश्य की पतंग
और खडा रह जाता है
वर्तमान
मौन निशब्द
पसर जाता है
एक सन्नाटा
उस सन्नाटे मे
कराहते हैं
छटपटाते हैं
और दम तोड देते हैं
जीवन के मायने
ओह!
रह जाते हैं
इन छोटी छौटी बातों से
जीने से
जीवन के बडे बडे पल



10 June, 2009

बुलबुला (कहानी )

इतना गहरा सन्नाटा ! कमरे मे अजीब सी विरानी! वो समझ नहीं पा रहा था कि ये क्या है----क्यों है---आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि जो शब्द बडे शौक से अपनी गज़लों को दिया करता था लिखा करता था--- उनका वज़ूद इतना असह होता है--- वो तो इन शब्दों से कितनी तालियॉ बटोरा करता था-----इनको लिख कर कितना खुश होता था-----ओह कितना खौफज़दा है इन शब्दों को जीना----1 उसने खिडकी से बाहर नज़र डाली----सामने वाले पेड पर आज चिडिया भी उदास बैठी है-- आगे इतना चहचहाती थी------सडक सुनसान पडी थी----लोग कहाँ गये ----क्या रोज़ ऐसे ही सुनसान हुआ करती थी------शायद----उसे तो सारी दुनिया हंसती खेलती खिलखिलाती दिखती थी् ---- उसका ये कमरा किसी के ना होते भी किसी के होने का एहसास देता था--------इसमे अपने सपनों को हरदम मुस्कराते देखता था----तो क्या वो खुद ही इन्हें तोडने नहीं जा रहा-------हाँ इस सारी दुनिया के सन्नाटे के लिये वो ही जिम्मेदार है------पर क्या करे------ अपनी मजबूरी पर उसकी आँख मे एक कतरा ेआँसू भर आया --पर उसने उसे समेट लिया-- नहीं नहीं इसे बहने नहीं देगा-----कहीं दिल की परतों मे सहेज लेगा----और उस मे डूब कर उसके दर्द को महसूस किया करेगा------अभी तो वो अपने ही दर्द को महसूस कर रहा है जब उसकी टीस इसमे मिलेगी तो क्या वो जी पायेगा-----शायद------नहीं----शायद इससे आगे वो अभी सोचना नहीं चाहता था------आज वो सिर्फ उन पलों को टूट टूट कर जीना चाहता था जो कल उसका अतीत बनने जा रहे थे पर क्या वो अतीत बन पायेंगे ये भी सोचना नहीं चाहता था------
आज वो खुद अर्चना -को गाडी मे बिठा कर आया था 1अपनी एम बे ए पूरी कर वो घर जा रही थी-------वो उसके साथ आखिरी पल क्या वो भूल पायेगा---- कितनी देर चलती गाडी मे भी उसके हाथ को नहीम छोडा था भागता रहा था-----ओह !कितनी गहरी टीस उठी थी जेसे कोई उसका दिल काट कर ले जा रहा हो---- --उस समय उसके मन मे क्या था वो नही जानती थी----उस की आँखो मे तो वही चमक थी जो दोनो के साथ होने पर होती है-- और एक विश्वास कि वो जल्दी उसका हाथ माँगने उसके घर आयेगा ----------उसे क्या पता कि अपनी दी हुई रोशनी को वो खुद मिटा देगा ------जब पहली बार उसे देखा था---- कितनी सहमी---डरी सी मासूम होती थी वो-------कोई उसके सामने आ जाता तो उसकी दिल की धडकन रुकने लगती -----सहम जाती ----उसने ही तो उसके दिल को सुरताल दिये-----उसे बेखौफ धडकना सिखाया----अपने प्यार से उसके रोम रोम मे बस कर उसके सपनों को पंख दिये----आज उन्हीं पँखों को वो काटने जा रहा है1कल ये प्यारे से पँख उसका भी अतीत बनने जा रहे हैं-------ेआसमान पर बादल छा रहे थे-------ऐसे पलों का दोनो को कितना इन्तज़ार रहता था झ्ट से एक दूसते को फोन किया कि वो अपने हास्टल से सीधे वही उस दरिया के किनारे पहुँच जाती उसे सब पता होता था कि किस समय पर कहाँ जाना है-------इस शहर के चप्पे चप्पे मे उन दोनो की धडकने सुनाई देती थीं-------- वो जल्दी से उठ कर तैयार हुया और चल पडा-------
आज वो उस दरिया के किनारे बैठ कर उन हसीन पलों को याद कर दिल की गहरी परतों मे छुप लेना चाहता था------ताकि जब कभी जीवन से थक जाये तो इन से बात कर अपने मन को बहला सके-----आज उसे ये सारा शहर ही विरान नज़र आ रहा था-------सब नज़ारे उसके साथ ही चले गये थे ---------दरिया के किनारे उस पत्थर पर बैठ गया जिस पर कभी दोनो बैठा करते थे जो उनके प्यार के पलों का गवाह था---वर्षा की छोटी छोटी बूँदें गिरने लगी थी1 तन का तो उसे होश नही था मगर मन भीग गया था1---ऐसा ही एक दिन था जब उसने उसे छूआ था------जाने क्या था उस पहली छुअन मे -----उसका रोम रोम झँकृ्त हो गया था-----
प्यार की गहराईयों मे डूबे ना जाने कितनी देर वो आसमान मे उडते रहे थे----और फिर अचानक उसने अपना सिर उसके कन्धे पर रख दिया था-------कितना विश्वास और प्यार था उसकी आँखों मे------ और फिर वो ये हाथ पकड कर कितनाेआगे तक बढ गये थे-------उसके मन मे एक टीस उठी और उसका हाथ अपने कन्धे को सहलाने लगा----एक आँसू बरखा की बूँदोँ के साथ बह गया---दरिया की अथाह गहराईयों मे-----काश ! वो कहीं से निकल कर सामने आ जाये---वो उसे बाहों मे कैद कर लेगा ---कभी नहीं जाने देग--अपनी ज़िन्दगी से दूर् -----कभी नहीं-------- बेबसी से सिहर उठा वो---नही जी पायेगा उसके बिना-----------
धुँधली सी आँखों से देख रहा है---उन बुलबुलों को---- आकाश से गिरती वर्षा की वो बूँद दरिया मे गिरते ही कितनी उछलती है मचलती है--------उपर उठ कर बुलबुला बन जाती है -----कितनी हसरतें-----कितने सपनों से लवारेज़------खिलखिलाती-------नहीं जानती ---कि बेदर्द हवा के झोँके कहाँ पनपने देंगे उन ख्वाबों के फूल ------मसल देंगे------उसकी हसरतों की कलियाँ------एक पल मे मिटा देंगे वो उस का आशियाना-------ये बुलबुला बेचारा---जान ही नहीं पायेगा कि कब कैसे वो लील लिया गया--------उसका प्यार भी तो एक बुलबुला था--------बना और मिट गया---------
आज वो अपने सारे आँसू इस दरिया को सौंप जाना चाहता था-------ताकि कभी गलती से भी वो कहीं जीवन के किसी मोड पर मिल गयी तो वो इन आँसुओ के आईने मे उसके दिल की टीस को ना देख ले-------नहीं तो वो भी नहीं जी पायेगी----
क्यों वो ऐसा करने जा रहा है------क्यों उसे दर्स देने जा रहा है------खुद को मिटाने जा रहा है--ाखिर क्यों---लेकिन वो क्या करता---उसी ने तो कहा था----हमारी राह मे आने वाली हर अडचन को वो ही दूर करेगा -----वो जमाने के साथ लड नहीं पायेगी-------उसे लगता था कि वो सब ठीक कर लेगा-------कोई उनकी राह मे नहीं आ पायेगा---------लेकिन एक हाथ की लकीर भी नही लाँघ पाया वो-------ये प्यार होने से पहले कुछ नहीं सोचता------अपनी मज़बूरियों को दोनो ने नहीं सोचा-------इतना आगे बढ गयी थे ------ उसे छू कर कितने इन्द्रधनुष बुन लिये थे----ानजाने मे----बिना सोचे कि ये तो क्षण भँगुर हैं---
फिर भी उसने बहुत कोशिश की थी----------- वो एक ऐसे दोराहे पर खडा हो गया था जहाँ एक तरफ उसकी ज़िन्दगी थी और दूसरी तरफ उसके जीवन की कुछ मान्यतायें जिनके बिना भी जीवन के कोई मायने नहीं होते------वो परँपरायें जिन के बिना ये समाज दिशाहीन हो कर अपनी मर्यादा और सुन्दरता खो देता है ----दरिया के किनारों को भी अगर बाँधा ना जाये तो वो उन्मुक्त बह कर तबाही मचाता हैं-------मगर अपनी उमँगों मे वो कहाँ सोच पाया था ये सब ---फिर वो भी तो ऐसे ही सोचती थी------
अर्चना के पिता उसके गुरू थे कितने वर्ष वो उसे पढाते रहे उसे किसी मुकाम पर पहुँचने के लिये कितने प्रयत्न किये उन्हों ने---बिना कसी लालच के---बिना किसी रिश्ते के------तभी तो वो अपने पिता से भी बढ कर उन्हें मानता था-------तब नहीं जानता था कि गुरू के लिये कभी इतनी बडी गुरुदक्षिणा भी देनी पडेगी--------
और उसके गुरू ने दक्षिणा मे माँग लिया उसका हँसता खेलता ये संसार-------बहुत तडपा बहुत सोचा मगर वो एक्लव्य को भी शर्मिन्दा नहीं करना चाहता था------उसका तो एक सपना था मगर जो सिर्फ उसका अपना था ---बाकी कितने जीवन इससे जुडे थे किसी माँ के --बाप के-- भाई- बहन के---- और ना जाने कितने-----उसे क्या हक है कि अपने लिये वो इतने लोगों को दुख दे------- और उनके कहने पर वो जा रहा था उनकी बेटी के जीवन से दूर -------एक इन्सान को अगर दुनिया मे जीना है तो इसकी मर्यादा मे रह कर ही जीना पडेगा---
अच्छा होना भी कई बार कितनी पीडा देता है ----अच्छाई त्याग माँगती है---- और् इसकी राह हमेशा काँटो. भरी होती ह------फिर भी इसकी सुन्दरता को नकारा नहीं जा सकता-------
वो उसे कुछ नहीं बतायेगा-------अच्छा होगा उसे बेवफा समझ कर भूल जायेगी---- शायद कभी नहीं जान पायेगी उसकी मजबूरियाँ ------ और वो कभी नहीं भूल पायेगा उसे----- फिर एक आँसू------
बारिश कुछ तेज होने लगी थी-----मगर वो आँख बन्द कर उसकी पीडा को खुद मे जीनी की कोशिश कर रहा था ---काश कि वो उसके आँसूओं को अपनी आँखों से बहा सकता------उसे बाहों मे समेट कर -----उसे बहला सकता-------- और आँखें बन्द कर पता नही कब तक सहेजता रहा कुछ यादों को दिल की परतों मे--------


09 June, 2009

गताँक से आगे----------प्रेम सेतु

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हेडन तो खुश था -मगर टास कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था1 असमंजस की स्थिति मे कुछ बोला नहीं1 अमेरिकन लोग दूसरों पर आश्रित होना अपना अपमान समझते हैंदादी ये जानती थीइस लिये उस ने टास को कहा कि वो ऐस कुछ भी महसूस ना करे ये गिव एन्ड टेक समझ ले1 हेडन हमरे बेटे जैसा है और विदेश मे हमारा है भी कौन्1 फिर हमारे बुरे वक्त मे तुम ने भी तो हमारी सहायता की थी1 टास ने भी साधिकार कह दिया कि ठीक है1 मै भी सुगम को अपनी बेटी जेसी मानता हूँ1 आज से इसकी पढाई लिखाई का पूरा दायित्व मेरा होगा1 आब दोनो परिवारों के प्यार और सौहार्द्रसे दोनो के बुरे दिन कट चुके थे1 ये भारतीय संस्कारों की ही सुगँध थी जो महक रही थी !

टास सुबह खुद नाश्ता बना लेता फिर शाम को सीधािआफिस से सुगम के घर आ जाता वहीं दोनो बच्चों को पढाता और फिर सब इकठे खाना खाते1 टास फिर दोनो बच्चों को पढाता और रात को हेडन के साथ अपने घर चला जाता1
अब टास को भी जीने का बहाना मिल गया था1 इस प्रेम सेतु ने दो घरों की दूरियाँ स्माप्त कर दी थी1 वो मैगी को दोबारा अपने जीवन मे लाना नहीं चाहता था1इस लिये उसने तलाक का फैसला कर लिया था1 उसने भी सुगम से हिन्दी सीख ली थी और अपने बीच भाषा की इस अडचन को भी दूर कर दिया था !

दिन पँख लगा कर उडने लगे 1हेडन और सुगम को मेडिकल मे दाखिला मिल गया ! वृ्न्दा और शालिनी टास की कृ्तग्य थीं उनमे सुगम को इस मुकाम पर पहुँचाने की सामर्थ्य नहीं थी ! पूरी काऊँटी मे दोनो परिवारों का आपसी सेहयोग और प्यार मिसाल बन गया था ! डिगरी के बाद दोनो ने मास्टर डिगरी मे दाखिला ले लिया था1 अब तक दोनो समझ गये थे कि वो दोनो एक दूसरे के लिये बने हैं और प्यार करने लगे हैं !

इधर कुछ दिनो से टास की तबियत ठीक नहीं रहती थी1 जब पेट दर्द बढ गया तो उसे अस्पताल मे भरती करवाना पडा ! वहाँ पता चला कि उसे कैंसर है1मगर अभी पहली स्टेज़ है ! ठीक हो सकता है1 सब घबरा गये थे पर हेडन और सुगम ने हिम्मत नहीं हारी थी !

टास हैरान होता कि ये लोग इतने अच्छे कैसे हैं उनके देश मे तो माँेअपने बच्चों को नहीं पूछती1 पर यहाँ तो सब उसे खुश रखने की कोशिश मे लगे रहते हैं !
टास चाहता था कि अब हेडन और सुगम की शादी हो जाये1एक दिन जब सभी बैठे थे तो उसने कह दिया कि
मै मरने से पहले दोनो को पती पत्नी के रूप मे देखना चाहता हूँ !--
डैड अगर आप ऐसी बात करेंगे तो मै आप से नहीं बोलूँगी-------सुगम नाराज़ होते हुये बोली1 आप ऐसा क्यों सोचते हैं मुझे पूरा विश्वास है कि आप जल्दी ठीक हो जायेंगे !
तो तुम मेरी इच्छा पूरी करना नहीं चाहती------
डैड आप जानते हैं न कि मै आपसे और हेडन से कितना प्यार करती हूँ अगर ना भी करती होती तो अपने प्यारे डैड के लिये फिर भी उसी से शादी करती1---
----तो ठीक है मै तभी ठीक होऊँगा जब तुम दोनो शादी कर लोगे1---
सब झट से मान गये1 टास और हेडन चाहते थे कि शादी भारतीय रिती रिवाज़ से हो1 सब खुश थे1
शादी के मँडप पर वो बडे ध्यान से दोनो को अग्नि के चारो ओर फेरे लेते हुये देख रहा था1 टास की आँखों मे आँसू आ गये1अज उसे अपनी पहली पत्नी की याद आ रही थ मगर् इस एक पल ने उसके जीवन की सारी खुशियाँ लौटा दी थीं1
सुगम की विदाई हो गयी1 टास खुद गाडी चला रहा था1 जैसे ही गाडी एक बडे से घर के सामने जा कर रुकी सुगम और हेडन के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा1 वो गाडी से उतरे-------
---सुगम दिस इस युअर पैराडाईज़ --अ गिफ्ट् फ्रोम युअर फादर------टास ने दुलहन की तरह सजे घर की ओर इशारा करते हुये कहा1
---ओ पापा यू आर ग्रेट-----लेकिन मेरा स्वर्ग तो आपकेचरणों मे है1
---बेटा अमेरिका मे जब बच्चे बडे हो जाते हैँ तो अपना अलग घर बसा लेते हैं1 माँ बाप के पास कहाँ रहते हैँ---
---पर पापा मै भारतीय हूँ ना इस लिये हम लोग आपके पास रहेंगे1 आपको अकेला नहीं रहने देंगे-------
----अगर् तुम दोनो कहो तो मै एक फैसला करूँ--------हेडन जो चुप खडा था बोल उठा-------हम दोनो परिवार ही इकठे रहेंगे-------------
-------मगर दादी माँ नहीं मानेंगी-----हमारे यहाँ लडकियों के ससुराल का पानी भी नहीं पीते----- सुगम ने हेडन की ओर देखते हुये कहा---
------वो सब मेरा जिम्मा------जब मैने अपने देश के रिती रिवाज़ को नहीं माना तो जो मुझे वहाँ का अच्छा नहीं लगेगा वो भी नही मानूँगा-----मै तो एक बात मानता हूँ कि जो चीज़ मानवता के मापदंम्ड पर खरी उतरती है अच्छी है वो चाहे किसी देश या धर्म की है उसे अपना लो बाकी भूल जाओ1ाउर मै कल ही जा कर उन लोगों को ले आऊँगा1--------
पाँच वर्ष हो गये हैं----सब को एक घर मे रहते---टास की बिमारी आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो चुकी है--हेडन के एक बेटा हो गया है 1ापने परिवार की खुशियाँ देख कर अक्सर सोचता है कि अगर ऐसा ही प्रेम सेतु हर घर मे निर्मित हो सके तो सारी दुनिया एक हो जाये-----नस्ल जाति-पाति--हर भेद भाव मित जाये उन दोनो परिवरों के प्रेम से उसे लगता कि दोनो देशों की दूरियां कितनी सिमट गयी थीं---ाब उसे दोनो की छुट्टियों का इन्तज़ार रहता भारत जाने के लिये ---जेसे वो भी उसका अपना देश हो----कितना आसान है सारी दुनिया को एक करने का ये रास्ता ------ये प्रेम सेतु----1

08 June, 2009

गताँक से आगे------------------------------------प्रेम सेतु
सुगम की मम्मी ने सब के लिये गर्म गर्म पकौडे बनाये1 हेडन ने बडे स्वाद से खाये1 फिर वो सुगम से बातें करने लगा1 उसे उस घर मे आ कर बहुत अच्छा लग रहा था1 रात का खाना भी उसने उनके साथ ही खाया1 हेदन के लिये ये सब अनोखा स था1 सुगम के पापा ने भी हेदन को प्यार किया मगर उनके यहाँ तो कोई अपने बच्चों से भी इतना प्यार नहिं करता1 वो लोग बातें कर ही रहे थे कि काल बेल बज उठी1 सामने टास खडा था1 हेडन ने उसे सब कुछ बता दिया1 टास शर्मिन्दा भी था-कि उसे बच्चे को इतनी देर अकेला छोड कर नहीं जाना चाहिये था1 उसने पटेल परिवार का धन्यवाद किया और हेडन को घर ले आया1
देर रात तक हेडन टास को पटेल परिवार के बारे मे बताता रहा1 कैसे दादी माँ ने उसे गोद ले कर चुप कराया और क्या क्या खिलाया 1 टास ने महसूस किया किहेडन आज बहुत खुश था उसे अपनी चोट भी भूल गयी थी1 अपनी माँ की मौत के बाद वो पहली बार इतना खुश दिखा था1 अब वो रोज़ शाम को गार्डन मे जाता सुगम से खेलता मगर दादी माँ से चाहते हुये भीभाषा कि वजह से बात नहीं कर सकता था1उसने सुगम से कहा कि मुझे हिन्दी सीखनी है1 दादी माँ बहुत खुश हुई1 अब वो रोज़ एक घँटा वो दोनो को हिन्दी पढाने लगी1 हेडन मेधावी था बहुत जल्दी ही वो काफी कुछ सीख गया1
अब हेडन खुश रहता था 1 मैगी की डाँट खा कर भी1 उदास नहीं होता था1 जब टास अकेला होता तो उस से दादी माँ और सुगम की बातें करता रहता1 टास हैरान था कि छ महीने मे ही हेडन हिन्दी भी काफी सीख गया था1 सुगम और हेडनीक ही स्कूल मे पढते थे1 हेडन उसके साथ ही उसके घर आ जाता दोनो वहीं पे होम वर्क करते1 अब वो भी दादी से कहानियाँ सुनने लगा था1 जब दादी श्री राम कृ्ष्ण और गणेशजी की कहानियाँ सुनाती तो वो बडी उत्सुकता से सुनता1 जो उसे समझ ना आता वो सुगम समझा देती1 इस तरह हेडन अब खुश था1 मन लगा कर पढने भी लगा था1
उधर टास और मैगी मे अक्सर झगडा रहने लगा था1मैगी आज़ाद पँछी थी1 और टास सँज़ीदा-सीधा सादा इन्सान था1 मैगी अक्सर अपने दोस्तों के साथ होटल कल्बों मे व्यस्त रहती1 एक छत के नीचे रहते हुये भी वो दोनो अलग अलग जीवन जी रहे थे1 दो साल मे ही दोनो ने जान लिया था कि वो दोनो एक दूसरे के लिये बने ही नहीं1 अब हेडन भी मैगी की परवाह नहीं करता1सुगम और हेडन ने अब तक तीसरी क्लास पास कर ली थी1
अगली क्लास मे अभी दाखिला ही लिया था किसुगम के पिता दिल का दौरा पडने से चल बसे1
कैसे टूटा दुखों का पहाड 1घर मे वो ही कमाने वले थे1 विदेश मे उनका कोई भी नहीं था1
यूँ तो भारतीय वहाँ एक दूसरे की सहायता करते हैं1 मगर ये तो सारी उम्र का रोना पड गया था 1 दादी माँ बडे जीवट से सब को सहारा देती1
सब से दुखी तो हेडन था1 सब को रोते देख वो भी रो देता1 वो भी स्कूल नहीं जा रहा था1 कभी दादी के तो क्भी सुगम की माँ के आँसू पोँछता रहता था1 उनसब की बातें सुन कर वो सम्झ रहा था कि चुँकि घर मे कोई कमाने वाला नहीं रहा तो शायद वो लोग वापिस भारत चले जायें1 ये सोचते वो और भी उदास हो जाता1 उसका पटेल परिवार के प्रति ऐसा अनुराग देख कर उसके अमेरिकन दोस्त उसका मजाक उडाते1 मगर उसे किसी की परवाह नहीं थी1 उसे पता था कि इस परिवार ने उसे वो प्यार दिया है जो उसकी माँ के बाद किसी ने नहीं दिया1मगर ये लोग कैसे समझ सकते हैं1ागर उस प्यार की फुहार का एक छीँटा भी इन पर पड जाता तो वो भी हेडन की तरह इनके रँग मे रँग जाते1ुस जेसे लावरिस के लिये जाति धर्म या देश के क्या मायने हैं 1उसे तो जो जिन्दगी दे रहा है वही उसका अपना है1
हेडन का दुख देख कर टास भी दुखी था1वो ये सोच कर भी चिन्तित हो जाता कि अगर वो लोग भारत वापिस चले गयी तो हेडन सह नहीं पायेगा1 बडी मुश्किल से वो हंसने लगा है1 उसने सोच लिया था कि चो पटेल परिवार की सहायता करेगा1 सुगम की मम्मी को कहीं नौकरी दिलवा देगा ताकी वो परिवार का पेट पाल सके और वो भारत जाने का विचार त्याग दें1
एक दिन उसने अवसर देख कर दादी माँ से बात की उसे हिन्दी नहीं आती थी मगर हेडन था उसका ट्राँसलेटर1 वैसे सुगम की मम्मी पढी लिखी थी वो इन्गलिश जानती थी1 टास ने उस से कहा कि वो मुझे अपने भाई की तरह ही समझे1 आप ये मत समझें कि यहाँ आप अकेले हैँ मै आपकी कहीँ न कहीं नौकरी भी लगवा दूँगा ये सही है कि मै मि- पटेल को तो वापिस नहीं ला सकता मगर और जिस भी सहायता की आपको जरूरत होगी वो मै जरूर करूँ
दादी भी जानती थी कि भारत जा कर भी उन्हें कौन पूछेगा रोटी कौन देग1 अगर यहाँ ही रोटी रोज़ी का प्रबन्ध हो जाये तो ठीक रहेगा1 फिर हेडन रोज़ उनको यही कहता कि मै आप लोगोँ को नहीं जाने दूँगा1
दो महीने बाद ही टास ने सुगम के मम्मी शालिनी की नौकरी एक बडे शो रूम मे लगवा दी1 पगार भी अच्छी थी घर की गाडी चल सकती थी1 अब दोनो बच्चे भी स्कूल जाने लगे थे1 टास की चिन्ता कुछ कम हो गयी थी1 वो जानता था कि हेडन उस परिवार से कितना प्यार करता हैअगर वो लोग चले जाते तो वो जी ना सकता 1इस परिवार ने उसे इतना प्यार दिया था कि हेडन एक समझदार बच्चा बन गया था अमेरिकन बच्चों की तरह लापरवाह और असभ्य नहीं था 1 शायद अपने माहौल मे वो उसे इतना अच्छा ना बना पाता1 भारतीय सँस्कृ्ति के प्रति उसके मन मे भी लगाव सा उत्पन हो गया था1
अब तो हेड्न को यही लगने लगा था कि वो इसी परिवार का अँग है1वो भारर्तिय रहन सहन ्रीति रिवाज़ सब जान गया था1 वो अक्सर सोचता कि काश! वो किसी भारतीय माँ की कोख से जन्म लेता1 पटेल परिवार भी उसे अपने बेटे की तरह चाहता था1 हेडन को तो अब अपने घर जाना भी अच्छा नहीं लगता था मगर अपने पिता की खातिर वो रात को घर जाता था1
टास मैगी के आवारा दोस्तों व उसके शराब पीने से बहुत दुखी था1उस दिन मैगी घर मे ही अपने दोस्तों को ले आयी1 सब ने जम कर शराब पी और हँगामा करने लगे1 टास ने गुस्से मे आ कर उन्हें -गेट आउट- कह दिया1 मैगी को गुस्सा आ गया और वो अपना अटैची ले कर दोस्तों के साथ ही घर से चली गयी1 टास ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की1
ज़िन्दगी के भी अजीब खेल हैँ! कुछ लोग एक ज़िन्दगी भी पूरी तरह नहीं जी पाते और कुछ लोग एक ही जीवन मे कितनी ज़िन्दगियाँ जी लेते हैं1 वो पल पल मे घटित सुख दुख मे अपनी सूझबूझ और सँवेदनायों से जीवन के अर्थ खोज लेते हैं1 टास जीवन से हार गया था1 पर पटेल परिवर के प्यार और परिस्थितियों से जूझने की कला ने दोनो के जीवन को बदल दिया था दादी माँ के वात्सल्य् और हेडन के बाल सुलभ प्रेम ने दो परिवारोम के बीच देश धर्म जाति की दिवार को तोड दिया था1
उस दिन हेडन स्कूल नहीं आया था1 सुगम के घर खेलने भी नहीं आया तो दादी माँ को चिन्ता हो गयी1 वो शाम को ही सुगम के साथ हेडन के घर गयी1 हेडन ने दरवाज़ा खोला------
दादी माँ आप------कम इन----
-हेडन क्या बात आज तुम स्कूल नहीं गये1 और घर भी नहीं आये!-----दादी ने पूछा
वो कुछ नहीं बोला उसकी आँखें भर आयी---दादी ने उसे अपनी बाहोँ मे ले कर प्यार से पूछा तो हेडन ने बताया कि पापा को रात से पेट दर्द था और वोमिट आ रही थी1 मम्मी भी के हफ्ते से घर नहीं आयी1--- दादी माँ एक दम दूसरे कमरे मे गयी तो टास निश्चेष्ट सा बिस्तर पर लेटा था नीचे फर्श की मैट पर उल्टी के निशान थे1 हेडन बेचारे से जितना साफ हो सका था कर दिया था मगर पूरी तरह नहीं कर पाया था1
---बेटा भी कहते को और दुख भी नहीं बताते-----दादी ने प्यार भरी झिडकी दी1जो हेडन ने इन्गलिश मे उसे समझा दी1दादी ने जल्दी से शालिनि को गाडी लाने के लिये कहा1 टास के मना करने पर भी वो उसे डाक्टर को दिख कर लायी -उसके लिये खिचडी बनायी फिर हेडन के साथ मिल कर सारा घर साफ किया और हफ्ते भर के कपडे लाँड्री मे साफ करवाये1 और रात को वो अपने घर लौटी
टास हैरान तोथा ही कृ्तग्य भी था1 अपने भाई बहनों और रिश्तेदारों को उसकी बिल्कुल चिन्ता नहीं थी1उसने अपने भाई बहन को फोन भी किया था पर उनके पास समय ही कहाँ था 1
यूँ भी अमेरिकन लोग केवल अपने लिये ही जीते हैं जब कि भारतीय पूरा जीवन ही रिश्तेनातों के नाम कर देते हैं1लेकिन अमेरिकन रिश्तों का बोझ ढोने मे विश्वास नहीं करते1 लेकिन पटेल परिवार ने कोई रिश्ता ना होते हुये भी टास और हेडन को अपना बना लिया था1 इस लिये उसे ये सब अजीब भी लगता था 1
दादी माँ सुबह भी नाश्ता ले कर आ गयी1 और साथ हे ऐलान भी कर दिया कि अब रोज़ उनका खाना वही बनायेगी1
क्रमश:

07 June, 2009

प्रेम सेतु (कहानी )

जीना तो कोइ पटेल परिवार से सीखे1 जीवन रूपी पतँग को प्यार की डोर से गूँथ कर ऐसा उडाया कि आसमान छूने लगी1 ऐसी मजबूत डोर को देश धर्म जाति की पैनी छुरी भी नही काट् सकी1 वृ्न्दा अक्सर कहती है कि उसने पिछले जन्म मे जरूर कोई बडा पुण्यकर्म किया है जो भगवान ने बैठे बिठाये हेडन को उसकी झोली मे डाल दिया1 आज हेडन अपने सगे बेटे से भी बढ कर है1 अपना खून नहीं तो क्या हुआ1 कितने माँ बाप हैं जो अपने बच्चों से दुखी हैं1 अब मि- मुरगेसन को ही ले लो उनके बच्चो ने उनका जीना हराम कर रखा है1 हेडन ने खून धर्म जाति का रिश्ता ना होते हुये भी उन्हें सर आँखों पर बिठाया1
कैसा गोरा चिट्टा-धीर गम्भीर - मेहनती मेधावी और संवेदनशील लडका है1 ऐसा कौन सा गुण् है जो उसमे नहीं है! वो अकसर हेड्न से कहती --
हेडन! तुम सोलह कला सँपूर्ण हो कृ्ष्ण की तरह-
माँ आप भी तो यशोधा से कम नहीं हो- और दोनो मुस्कुरा देते 1
हेडन 7 वर्ष का था जब से वो उसे जानने लगी है1 उसके पिता टास और माँ मैसी की अपनी कोई औलाद नहीं थी उन्हों ने हेडन को एक अनाथालय से गोद लिया था1 तब वो केवल दो वर्ष का था1 वो नये घर मे आ कर बहुत खुश था1 पैसे की कोई कमी नहीं थी1 वो किसी राजकुमार की तरह ठाठ बाठ से पलने लगा1 मगर भगवान की माया कुछ और ही ताना बाना बुन रही थी1 वो अभी 6 वर्ष का ही हुया था कि उसकी माँ मैसी एक कार ऐक्सीडेण्ट मे मर गयी1 हेडन और टास पर जेसे वज्रपात हुआ था1 वो निराश हो गया उसे घर मे कुछ भी अच्छा नहीं लगता1 टास उसे बहलाने की बहुत कोशिश करता उसे बच्चों के साथ खेलने पार्क मे भेज देता पर वहाँ भी वो गुमसुम सा अकेले ही बैठा रहता1 बच्चों को अपने मा-बाप के साथ हंसते खेलते देखता तो उसे माँ की बडी याद आती1 वो उदास हो कर घर लौट आता1
टास ने चार महीने बाद दूसरी शादी कर ली उसे हेडन की भी चिन्ता थी1 मैगी उसकी नयी माँ उसे पसंद नही करती थी मगर फिर भी वक्त गुजरने लगा1 धीरे धीरे मैगी को हेडन से चिढ सी होने लगी1 क्यों की शाम को जेसे ही टास और मैगी घर आते हेड्न भी नर्सरी से आ चुका होता1 टास उसे बहुत प्यार करता था इस लिये शाम को अधिक से अधिक समय हेडन के साथ गुज़ारना पसंद करता था1 लेकिन मैगी का आम अमेरिकन की तरह एक ही फँडा था --
--ईट ड्रिन्क ऐँड बी मैरी --
वो किसी पराये बच्चे के लिये अपनी खुशियाँ क्यों बरबाद करे! वो टास के साथ अकेली घूमना फिरना पसंद करती1 ऐसे मे हेडन का साथ होना उसे एक आँख ना सुहाता1
धीरे धीर टास और मैगी मे खटपट होने लगी1 हेडन बेशक बच्चा था मगर समय के थपेडों ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था1 उसे धीर गम्भीर बना दिया था1 इसलिये वो शाम को कई बार खेलने का बहाना कर गार्डन मे चला जाता ताकि मैगी और टास अकेले कहीं जा सकें1
टास ग्रोव ड्राईव मेन्शन-- साँटा कलारा के एक फलैट् मे रहता था1 और उसके सामने ही एक फ्लैट मे भारतीय परिवार रहता था1 उसमे मि- राजीव पटेल उनकी चार वर्ष की बेटी पत्नी और माँ रहते थे पटेल एक कम्पनी मे जाब करता था1परिवार खुश हाल था1
उनकी माँ वृ्न्दा अपनी पोती सुगम को बहुत प्यार करती थी 1 वो शाम को रोज़ उसे घुमाने गार्डन मे ले जाती1 अमेरिकन बच्चे अकसर आपस मे ही खेलते1 सुगम भारतीय बच्चो के साथ खूब शरारते करती1 वृ्न्दा सब बच्चों की प्यारी दादी बन गयी थी1 बच्चे उनसे कई कहानियाँ सुनते1 सुगम कई बार दादी की गोद मे बैठ कर गले मे बाहें डाल लेती और खूब प्यार करती1 हेडन कई बार दूर खडा हो कर उन्हें ताकता रहता उसे ये सब बहुत अच्छा1 लगता उसे अपनी मांम की याद आ जाती 1 वो हिन्दी भाषा नहीं जानता था मगर इन्सान् की संवेदनायें तो एक होती हैं1 उसे सुगम और दादी को देखना सुनना बहुत अच्छा लगता1 उस दिन टास और मैगी एक पार्टी मे जाने वाले थे1 वो मैगी के साथ कहीं जाना ही नहीं
चाहता था1 उसने खेलने का बहाना बनाया और गार्डन मे आ गया घर की एक चाबी उसके पास रहती थी1
वो गार्डन मे एक खाली बैंच पर बैठ गया1 सामने दादी और सुगम हँस रही थीं1 वो उत्सुकता से उन्हें देखने लगा1 उसे अपनी माँ याद आ गयी और आँखें भर आयी1 वो उठ कर घर की ओर बढने ही लगा था कि सामने से आते बच्चे से टकरा कर गिर गया1 दादी ने देखा तो भाग कर उसे गोदी मे उठा लिया और पुचकारने लगी1 उसे चुप करवाते हुये अपने घर ले आयी1उसका जख्म साफ कर उस पर बेडेड लगा दी1 हेड्न अभी भी दादी की गोद मे था1--
-बेटा नेम -- अब दादी को इन्गलिश तो आती नहीं थी पर ये पता था कि नाम को नेम कहते हैं अब सुगम ट्रान्सलेटर का काम करने लगी
-शी इज़ आस्किन्ग युयर नेम-- सुगम ने हेड्न को बताया1
हेडन -- हेडन धीरे से बोला
फिर सुगम दुआरा ही दादी ने उसके घर का पता पूछा ताकि उसे घर छोड दे1
घर पर कोई नहीं था दादी ने उसे अकेले छोडने से मना कर दिया 1 मन ही मन हेडन भी खुश था उसे दादी की गोद मे अच्छा लग रहा था1 सुगम की माँ ने टास के लिये वाईस मेसेज छोड दिया कि जब भी वो घर आयें हेडन को उनके घर से ले लें एक कागज़ पर लिख कर घर के दरवाजे पर लगा दिया1
क्रमश

06 June, 2009

Align Centerजहाँ सिर्फ मै हूँ (कविता )

कितनी बेबस हो गयी हूँ
क्यों इतनी लाचार हो गयी हूँ
जब से गया है
वो काट कर् मेरे पँख्
ले गया यशोधा होने का गर्व
जानती हूँ कभी नहीं आयेगा
कभी माँ नहीँ बुलायेगा
फिर भी खींचती रहती हूँ लकीर
जानते हुये कि
नहीं बदला करती तकदीर्
और ढूँढने लगती हूँ उधार के
कुछ और कृ्ष्ण
फिर सहम जाती हूँ
दहल जाती हूँ
कि आखिर कब तक
अपनी तृ्ष्णा को बहकाऊँगी
और जब वो भी खो जायेगा
दुनिया की भीड मे तो
क्या और दुख उठा पाऊँगी
एक दिन उसे ना देख कर
सहम जाती हूँ
दहल जाती हूँ
नहीं नहीं
मुझे इन तृ्ष्णाओं से
दूर जाना है बहुत दूर
और चली जा रही हूँ
अपने अंतस की गहराईयों मे
जहाँ बस मै हूँ
और मेरे जीवन का अंधकार है
कुछ भी तो नहीं उधार


05 June, 2009

पेडों से सीखो (कविता )

वो आदमी से शिकायत नहीं करते
होती हैं उनको भी कुछ परेशानियाँ
मगर आपस मे बाँट लेते हैं जब
सडक के दोनो तरफ मिलती हैं
पेडों की टाहनियाँ
अगर चाहो तो सडक से पूछो
उनके धैर्य की कहानियाँ
देते हैं अपनी छाँव मे
मुसाफिरों को आसरा
फल फूल ताज़गी का
देते हैं वास्ता
ना कोई करे उन को
बे वजह से हानियाँ
रास्ते से पूछो
उन के धैर्य की कहानिया
शाखाओँ मे ले कर जज़वात
कर लेते हैं आपस मे बात
क्या कहे आदमी से
करता है उनसे नादानियाँ
उस रास्ते से पूछो
इन के धैर्य् की कहानिया
तुम और मै ये और वो
सब से वो करते हैं प्यार
फल फूल और धान वो
देते हैं हमे अपार
जलाने को ईँधन देते
करते हैं धरती का शिँगार
बस पतझड मे माँगतेहैं
थोडी सी मेहरबानियाँ
उस रास्ते से पूछो उनके
धैर्य की कहानियाँ

तुम भी फर्ज़ों को जड बना लो
जज़्बातों को टाहनियाँ
प्रेम भाव की छाँव मे
छोड जाओ निशानियाँ


04 June, 2009

क्या कहूँ (कविता )

मेरे प्यार मे ना रही होगी कशिश
जो वो करीब आ ना सके
हम रोते रहे तमाम उम्र
वो इक अश्क बहा ना सके
पत्थर की इबादत तो बहुत की
पर उसे पिघला ना सके
जो उन्हें भी दे सकूँ जीने के लिये
वो एहसास दिला ना सके
बहुत किये यत्न हमने
पर उनको करीब ला ना सके
पिला के जाम कर दो मदहोश मुझे
उस बेदर्दी की याद सता ना सके

03 June, 2009

यह कविता मै पहले भी लिख चुकी हूँ मगर आज ये सिर्फ मै विनिता यशस्वी के लिये विशेष तौर पर लिख रही हूँ1जीवन को एक चुनौती की तरह स्वीकार करो और इन अंधेरों से बाहर आ कर अपनी राहें खुद तलाश करो1फिर देखो जिन्दगी कैसे तुम्हारे कदम चूमती है1ये भी याद रखो कि दुनिया कभी किसी पर रहम नहीं करती बल्कि तुम्हारी कमज़ोरियों का लाभ उठाने से नहीं चूकती1सुख दुख दोनो के बिना जीवन के मर्म को जाना ही नहीं जा सकता !

कुन्दन बनता है सोना जब भट्टी मे तपाया जाता है
चमक दिखाता हीरा जब पत्थर से घिसाया जाता है
श्रममार्ग के पथिक बनो अवरोधों से जा टकराओ
मंजिल पर पहुँचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढते जाओ

बदल जायेगी तकदीर

श्रम और आत्म विश्वास हैं ऐसे संकल्प
मंजिल पाने के लिये नहीं कोई और विकल्प

पौ फटने से पहले का घना अँधेरा
फिर लायेगा इक नया सवेरा
देखो निराशा मे आशा की तस्वीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर

बस दुख मे कभी भी ना घबराना
जीवन के संघर्षों से ना डर जाना
युवा शक्ति पुँज बनो तुम कर्मभूमी के वीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर

नयी सुबह लाने को सूरज को तपना पडता है
धरती कि प्यास बुझाने को बादल को फटना पडता है
मंजिल तक ले जाती है आशा की एक लकीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर्



02 June, 2009

(कविता )

याद आये
फिर देख आये उन गलियों को
कुछ घाव पुराने याद आये

बीते हुये कल के झरोखों से
कुछ ख्वाब सुहाने याद आये

पहले भी ना भूले थे वो कभी
अब रोने के बहाने याद आये

अपने ही घर से बेघर जो किया
अपनो के नज़राने याद आये

उन भूले बिखरे रिश्तों के
दिलखौफ विराने याद आये

दिल मे इक हसरत बाकी है
उन्हें पिछले जमाने याद आये

कभी खून से खून जुदा न हो
फिर मिलने के बहाने याद आये



01 June, 2009

काश्! कि ये मेरी कहानी होती

समीर जी की पोस्ट पढी तो घबरा गयी कि कहीं हमारी पोस्ट भी पहेली तो नहीं बन गयी बस फटा फट खुद ही जवाब देने चले आये 1कहीं समीर जी को भनक लग गयी तो कहीं अपनी पोस्ट ही ना हटानी पड जाये1
कल किसी ने मेरी पिछली पोस्ट् (एक हवा का झोंका( पर् एक सवाल पूछा था कि ये कहानी मेरी कहानी तो नहीं!पढ कर अच्छा लगा पता नहीं क्यों1मगर वो शायद इस कहानी की नायिका को भूल गये कि उसने तो शादी ही नहीं की 1 मेरा भगवन की दया से एक हँसता खेलता परिवार है मेरे पती-तीन बेटियां तीन दामाद दो नाती और एक नातिन1 मेरे मन मे तब एक ख्याल आया कि क्या हर अभिव्यक्ति लेखक की अपनी ज़िन्दगी की होती है 1ागर ऐसा है तो वो इतनी रचनायें लिखता है हर रँग कि हर विषय पर वो केसे लिख लेता है !

मैं किसी की बात नहीं करूँगी अपनी बात पर आती हूँ मेरी अधिकतर रचनायें औरत पर हैं उसकी ज़िन्दगी के हर सुख दुख हर संवेदना पर है क्या मै इतने जीवन एक जनम मे जी सकती हूँ1 मेरे दो कहानी संग्रह छप चुके हैं उनमे तकरीबन् पचास कहानियाँ होंगी तो क्या मेरी हैं1 नहीं न ! लेखक वो लिखता है जो समाज मे रोज़ देखता है1 उसे वो किस नज़र से देखता है वो उसकी अभिव्यक्ति है उसकी अपनी संवेदना है1 कई बार वो जो देखता है उसे उसका रूप सही नहीं लगता उसे वो अपने नज़रिये से एक रूप देता है कि इस भाव को वो कैसे देखना चाहता है बस अपनी रचना मे वो उस भाव की छाप छोडना चाहता है1 उसका लिखना भी तभी सार्थक है अगर उसकी रचना समाज को कोई संदेश देती हो1 जीने का ढंग सिखाती हो1 यूँ तो लेखक कई रचनायें लिखता है लेकिन कालजयी वही रचनायें होती हैंजिनमे वो जीने के मायने देता है1 हम रोज़ देखते हैं कि लोग प्यार पर कितना कुछ लिखते हैं जिसमे काफी तो रोना धोना ही रहता है जो शायद मेरी भी बह्त सी रचनायों मे है वो हर आदमी की कहानी है1 मगर कुछ किरदार आम जीवन से हट कर होते हैं मै बस उन किरदारों की कलपना करती हूँ----दुनियाँ से हट् कर कुछ देखती हूँ समझती हूँ और चाहती हूँ कि समाज ऐसा ही हो मेरे सपनों जेसा !

मैने ऐसे लोग देखे हैं जो भ्रश्टाचार पर डट कर लिखते हैं मगर खुद पैसे के लिये कुछ भी करते हैं1 कुछ लोग जात् पात पर डट कर लिखते हैं जब अपनी बेटी प्रेमविवह दूसरी जाति मे करना चाहती है तो घोर विरोध करते हैं कुछ ऐसे लोग जो प्यार पर लिखते हैं मगर जीवन मे पता नहीं कितने साथी बनाते हैं ऐसे लोग जो मा पर बडी बडी कवितायें लिखते हैं मगर मा को अनाथ आश्रम मे छोड् आते है1प्यार पर बहुत लोग लिखते हैं1 मगर क्या सभी प्यार के सही मायने को जीते हैं1 जीते ना सही हों मगर क्या प्यार के रूप को सही जानते हैं1 मेरा मनना है कि नहीं1ा दिन पर दिन प्यार के मायने बदल रहे हैं1 तो मुझे लगता है कि इन बदलते हुये मूल्यों को आगे बदलने से रोकना चाहिये1 जब ये विचार आया तो ऐसी रचना रच पाना आसान हो गया !

हाँ बहुत सी रचनायं लेखक की अपनी ज़िन्दगी से जुडी हो सकती हैं मगर हर रचना नहीं मेरी कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्हें लिखते हुये मै कई कई दिन रोती रही हूँ1रचना लिखते हुये उसके किरदार को खुद अपनीआस्था और सोच के अनुरूप अपनी कलपनाओं मे जीना पडता है1पाठ्कों के रहन सहन और आज के परिवेश का भी ध्यान रखना पडता है1 इस लिये मैने इसमे ब्लोग्गिं का जिक्र किया है1 प्रश्न करता को तभी पता चल सकता है अगर वो लेखक् को व्यक्तिगत रूप से जानता है1 या फिर कहानी विधा को जानता है1 1इस रचना के लिये मै इतना कह सकती हूँ काश! कि मुझे ये किरदार जीने का अवसर मिल पाता और मै शान से कह सकती कि हाँ ये मेरी कहानी है !

31 May, 2009

हवा का झोंका - कहानी
(गताँक से आगे)

--- आज मै तुम्हें बताऊँगी की मै कैसे अब् तक तुम से इतना प्यार करती रही हूँ एक पल भी कभी तुम्हें अपने से दूर नहीं पाया---जानते हो----------


जब भी खिडकी से कोई हवा का झौका आता है मै आँखें बँद कर लेती हूँ और महसूस करती हूँ कि ये झोंका तुम्हें छू कर आया है-----तुम्हारी साँसों की खुशबु साथ लया हैऔर मै भावविभोर हो जाती हूँ-----मेरे रोम रोम मे एक प्यारा सा एहसास होता है----कभी कभी इस झोंके मे कवल मिट्टी की सोंधी सी खुशबू होती है मै जान जती हूँ आज तुम घर पे नहीं हो कई बार इसमे तुम्हारी बगीची के गुलाब की महक होती है----मेरे होठों पर फूल सी मुस्कराह्ट खिल उठती है और अचानक मेरा हाथ अपने बालों पर चला जाता है जहाँ तुम अपने हाथ से इसे लगाया करते थे------फिर मुझे एह्सास होता कि तुम मेरे पास खडे हो-----तुम्हारा स्पर्श अपने कन्धे पर मेह्सूस करती--------इसी अनुभूति का आनन्द महसूस करने के लिये अपना हाथ चारपाई पर पडी अपनी माँ के माथे पर रख देती हूँ-------माँ की बँद आँखों मे भी मुझे सँतुश्टि और सुरक्षा का भाव दिखाई देता है------यही तो प्यार है-------जिसे हम एक जिस्म से बाँध दें तो वो अपनी महक खो देता है-----और अपँग भाई के चेहरे को सहलाती हूँ तो उसके चेहरे पर कुछ ऐसे भाव तैर उठते हैँ जो तुम्हारे होने से मेरे मन मे तैरते थे---------सच कहूँ तो तुम से प्यार करके मैने जीना सीखा है-----------मै तुम से शादी कर के इस प्यार के एहसास को खोना नहीं चाहती थी---तुम अपने माँ बाप के इकलौते बेटे थे वो कभी नहीं चाहते कि मै अपनी बिमार माँ और अपंग भाई का बोझ ले कर उनके घर आऊँ-----तुम्हें ले कर उनके भी कुछ सपने थे--------इला के जाने का गम अभी वो भूल नहीं पाये थे---------इस लिये मै चुपचाप दूसरे शहर चली आयी थी बिना तुम्हें बताये--------हम दोनो को कोई हक नहीं था कि हम उन लोगों के सपनो की राख पर अपना महल बनायें जिन से इस दुनिया मे हमारा वज़ूद है फिर प्यार तो बाँटने से बढता है---------हर दिन इन झोंकों के माध्यम से मै तुम्हारे साथ रहती हूँ---------मैने शादी नहीं की क्यों कि मै अपने प्यार के साथ जीना चाहती हूँ----------सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ---------इसे किसी जिस्म से बाँधना नहीं चाहती ------मै तो तुम्हारे एक एक पल का हिसाब जानती हूँ-----क्यों कि मेरी रूह ने मन की आँखो से तुम्हें मह्सूस किया है

मै अब भी महसूस कर सकती हूँ कि मेरी मेल् पढ कर तुम्हारी आँखोँ मे फिर वही चमक लौट आयेगी-------और इस मेल मे तुम्हें अपनी कविता------जो कविता ना रह कर शिकायत का पुलन्दा बन गयी थी मिल जायेगी-------तुम्हारी आँखों मे आँसू का कतरा मुझे यहाँ भी दिखाई दे रहा है--------फिर तुम कई बार मेरी मेल पढोगे------बार बार------ मुझे छू कर आया हवा का एक झोंका तुम्हें प्यार की महक दे जायेगा---- आँख बंद करके देखो महसूस करो-----मै तुम्हारे आस पास मिलूँगी-------मेरा प्यार तुम्हारी आत्मा तक उतर जायेगा--------अब तुम्हारे चेहरे पर जो सकून होगा उसे भी देख रही हूँ मन की आँखों से------ बस यही प्यार है--------यही वो एहसास है जो अमर है शाश्वत है------इसके बाद तुम एक कविता लिखने बैठ जाओगे मुझे पता है कि कविता वही जीवित रहती है जिसे महसूस कर जी कर लिखा जाये-------ये अमर कविता होगी
लिख कर नहीं जीना तुम्हें जी कर लिखना है--------इन झोंकों को जी कर -------देखना ये आज के पल हमारे प्यार के अमर पल बन जायेंगे--------चलो जीवन सँध्या मे इन पलों को रूह से जी लें-----जो कभी मरती नहीं है-------
देख तुम्हारा चेहरा केसे खिल उठा है जैसे मन से कोई बोझ उतर गया हो---------घर जाने को बेताब -------देखा ना इस हवा के झोंके को --------बस यही हओ प्यार--------जीवन को हँसते हुये गाते हुये इस के हर पल को हर रंग को खुशी से जीना------

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