11 February, 2024

गज़ल

 कागजों से भी क्या दोस्ती हो गयी

शायरी ही मेरी ज़िंदगी हो गयी

जब खुदा ने करम ज़िन्दगी पर्किया

बंदगी से गमी भी खुशी हो गयी

दिल की बंजर जमीं पर उगा इक खियाल

आँखें' बहने लगीं फिर नदी हो गयी

एक जुगनू ने देखा अँधेरा वहां

फूस के घर में भी रोशनी हो गयी

दर्द सहते हुए ढल गयी उम्र ये

ज़िंदगी इस लिए अनमनी हो गयी

4 comments:

rana said...

Lajawab

yashoda Agrawal said...

दिल की बंजर जमीं पर उगा इक खियाल
आँखें' बहने लगीं फिर नदी हो गयी
व्वाहहहहहहह
सादर

शुभा said...

वाह! लाजवाब!

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

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