गज़ल
हाज़िर जी कह कर फिर गैर हाज़िर हो गयी जिसके लिये क्षमा चाहती हूँ । आप सब की दया से अब ठीक हूँ।एक आध घंटा रोज़ बैठने की कोशिश करूँगी। बहुत समय से कुछ लिखा भी नही है लगता है जैसे कुछ लिख ही नही पाऊँगी। एक हल्की सी गज़ल प्रस्तुत कर रही हूँ। --- हाँ कोई अगर बता सके तो बहुत आभारी हूँगी कि मेरे ब्लाग पर पोस्ट का कलर अपने आप बदल जाता है कमेन्त्स आदि का भी रंग बदल जाता है टेम्प्लेट भी बदला लेकिन अभी भी वही हाल है क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?
गज़ल
आज रिश्ते कर गये फिर से किनारा
और कितना इम्तिहां होगा हमारा
ज़ख़्म उसने ही हमें बेशक दिये पर
आह जब निकली उसे ही फिर पुकारा
हम झुके दुनिया ने जितना भी झुकाया )
जान कर लोगों से सच खुद को सुधारा
कौन पोंछेगा ये आंसू बिन तुम्हारे
है घड़ी दुख की तुम्हीं कुछ दो सहारा )
दांव पर लगता रहा जीवन सदा ही )
मौत से जीता मगर तुमसे ही हारा )
मोह ममता के परिंदे उड़ गये सब )
किस तरह मां बाप का होगा गुज़ारा )
चल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
दुख में समझो है ये कुदरत का इशारा
हाथ से अपने सजा दूं आज तुमको
लाके बिंदिया पर लगा दूं कोई तारा
चांदनी से जिस्म पर ये श्वेत चूनर
ज्यों किसी ने चांद धरती पर उतारा
65 comments:
आज रिश्ते कर गये फिर से किनारा
और कितना इम्तिहां होगा हमारा
ज़ख़्म उसने ही हमें बेशक दिये पर
आह जब निकली उसे ही फिर पुकारा
हम झुके दुनिया ने जितना भी झुकाया )
जान कर लोगों से सच खुद को सुधारा
कौन पोंछेगा ये आंसू बिन तुम्हारे
है घड़ी दुख की तुम्हीं कुछ दो सहारा )
दांव पर लगता रहा जीवन सदा ही )
मौत से जीता मगर तुमसे ही हारा )
मोह ममता के परिंदे उड़ गये सब )
किस तरह मां बाप का होगा गुज़ारा )
चल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
दुख में समझो है ये कुदरत का इशारा
हाथ से अपने सजा दूं आज तुमको
लाके बिंदिया पर लगा दूं कोई तारा
चांदनी से जिस्म पर ये श्वेत चूनर
ज्यों किसी ने चांद धरती पर उतारा
bahut hi sundar gajal .......... swagat hai aapka .......bahut dino se intjar tha aapke lekhan ka
sundar gajal ,
bahut dinon baad aapki rachna padne ko mili
सुंदर गजल। बहुत दिनों बाद ब्लॉग अपडेट देखकर खुशी हुई।
♥
आदरणीया निर्मला कपिला जी
सादर प्रणाम !
सर्वप्रथम तो यही कहूंगा कि स्वास्थ्य का ध्यान रखें … आपके अपने लिए न सही लेकिन आपके अपनों के लिए ! हमारे लिए !!
देर से पोस्ट लगाई आपने लेकिन भरपाई हो गई … बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है ।
शृंगार विशेष रुचि से रचने-पढ़ने वाला रचनाकार हूं …
आपके इन दो शे'र ने लुभा लिया है मुझे -
हाथ से अपने सजा दूं आज तुमको
लाके बिंदिया पर लगा दूं कोई तारा
चांदनी से जिस्म पर ये श्वेत चूनर
ज्यों किसी ने चांद धरती पर उतारा
सुब्हानअल्लाह ! मुबारकबाद !
हार्दिक शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
.
…और ब्लॉग संबंधी कई समस्याओं से मैं स्वयं दो-चार हूं …
किसी अनुभवी गुणी की मदद लें
आपका पुनः स्वागत है, बहुत ही सुन्दर रचना है।
लम्बे अंतराल के बाद आपको देखना अच्छा लगा !
मन को छूते शब्दों का संगम है यह प्रस्तुति...
आपके स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं ... आभार
सबसे पहले तो आपका स्वागत है... एक लम्बा अंतराल आपके बगैर ! इतने अच्छे ग़ज़ल के साथ आकर आपने बहुत कुछ दे दिया
दर्द में डूबी गज़ल।
मोह ममता के परिंदे उड़ गये सब
किस तरह मां बाप का होगा गुज़ारा.
बहुत ही जबरदस्त शेर हुए हैं. तबीयत फड़क उठी. हमारी गुजारिश है कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए ही रचना धर्म का निर्वहन करें.
Bahut Sunder ....Kaisi Hain Aap....?
beautiful...aunty jee kaisee hain aap?
कल 16/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
...'' मातृ भाषा हमें सबसे प्यारी होती है '' ...
SABSE PAHLE AAPKE POORN SWASTH HONE
KEE KAAMNA KARTA HUN .
AAPKEE GAZAL KO MAIN BADE MANOYOG SE
PADH GAYAA HUN . ADHIKAANSH SHER
ACHCHHE LAGE HAIN .
KAUN PAUNCHHEGA YE AANSU
BIN TUMHAARE
HAI GHADEE DUKH KEE TUMHEE
DO KUCHH SAHARA
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत खूबसूरत गजल ....
ध्यान नहीं आ रहा कि इतने गहरे अर्थ लिए इतनी सरल पंक्तियां हाल-फिलहाल कहीं पढ़ी हो।
ham bhi dekh rahe the aur soch rahe the ki hazir ji ka naam ab badal hi diya jaye...lekin kudrat ka karishma ki aap hazir ho gayi. khuda aap par nazre inayat rakhe.
gazel bahut gehre bhaav liye hai.
चल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
दुख में समझो है ये कुदरत का इशारा
ye prayog bilkul naya aur behad lajawaab laga.
badhayi.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है निर्मला जी। आपका गैर-हाज़िर रहना दिल को दुखाता है। कृपया उपस्थिति बनाये रखें। अपनी सुन्दर गजलों से हमें महरूम न रखें। प्रणाम।
शानदार गजलों के उपहार के साथ आपका स्वागत है।
आपका स्वास्थ्य अब पूर्णरूपेण ठीक होगा। शुभकामनाएँ
सीधे सीधे संवाद करती हुई ग़ज़ल स्वागत कथन से आगे निकलके बात करती सी लगती है यह ग़ज़ल .बला का सारल्य और बिंदास भाव लिए हुए यथार्थ भी काव्यात्मक रूप लिए है झर्बेरियाँ नहीं है यहाँ यथार्थ की . .....कृपया यहाँ भी पधारें -
बृहस्पतिवार, 17 मई 2012
कैसे करता है हिफाज़त नवजात की माँ का दूध
कैसे करता है हिफाज़त नवजात की माँ का दूध
http://veerubhai1947.blogspot.in/
मोह ममता के परिंदे उड़ गये सब )
किस तरह मां बाप का होगा गुज़ारा )
चल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
दुख में समझो है ये कुदरत का इशारा
...
जीवन के कटु अनुभव की बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ..
माँ जी सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का विशेष ख्याल रखना जी ....स्वास्थ्य ठीक रहने पर ही सबकुछ अच्छा लगता है ..
बहुत दिन बाद आपको पढ़कर मन को बहुत अच्छा लगा...
सादर
सुन्दर ग़ज़ल... बहुत दिनों के बाद आपकी रचना पढने मिली बहुत अच्छा लगा...सादर
इस ग़ज़ल के एक से ज्यादा शैर बहुत ला -ज़वाब बन पड़ें हैं .एक दम से ज़ज्बातों को कुरेदते से उसी ज़मीन से पाठक को जोड़ देतें हैं जहां खड़े होकर इन्हें रचा गया है .
daav par lagata raha jivan sada hi ..
mout se jita raha magar tumse hi hara ..
bahut subsurat .....der se hi sahi ..par bahut badiyan rahi yah gazal ...badhai !
दीदी,
बहुत दिनों के बाद आपके दर्शन हुए। बहुत अच्छा लगा।
पूरी ग़ज़ल एक मीठी भावुकता से भरी है। बदलते समय का प्रभाव भी आजकल हमारे संवेदना को डंसने लगा है। इसका भी छाप इस ग़ज़ल पर दिख रहा है। खास कर इस शे’र में
मोह ममता के परिंदे उड़ गए सब।
किस तरह मां बाप का होगा गुजारा।
लेकिन आशा की किरण भी आपने जगा ही दिए हैं यह कह कर --
च्ल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
बहुत बहुत आभार!
bahut badhiya gazal..
सब से पहले तो आपको स्वास्थ्यलाभ के लिए हार्दिक शुभकामनाएं |आप बहुत समय बाद ब्लॉग पर आईं है पर सुन्दर गजल के साथ |यह बहुत अच्छी लगी |अब मेरे ब्लॉग पर रचना आपकी प्रतीक्षा कर रही है |
बहुत ही बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत सुंदर गजल,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
वाह निर्मला जी ये आपकी एक सुंदर रचना है. अपने स्वास्थ्य का ख़्याल रखें.
आदरणीया निर्मला जी
चल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
दुख में समझो है ये कुदरत का इशारा
हाथ से अपने सजा दूं आज तुमको
लाके बिंदिया पर लगा दूं कोई तारा
चांदनी से जिस्म पर ये श्वेत चूनर
ज्यों किसी ने चांद धरती पर उतारा
आदरणीया निर्मला जी बहुत सुन्दर जज्बात ....सुन्दर कल्पना ...प्रभु आप को शीघ्र स्वस्थ करे ....हार्दिक शुभ कामनाएं ......भ्रमर ५
बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ........आशा जी जैसा आप से भी योगदान की उम्मीदें होंगी
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच पर ...बताइयेगा ...जय श्री राधे आप का आशीष भी बना रहे ..भ्रमर ५
बेहतरीन ग़ज़ल!
चल पड़ा है खुद अंधेरा सुब्ह लाने
दुख में समझो है ये कुदरत का इशारा
खूबसूरत गज़ल ।
बहुत बढ़िया!
आभार आपका...!
बहुत दुनों बाद बलॉग आपकी सक्रियता देख कर बहुत अच्छा लगा!
बहुत सुंदर रच्ना ...अंतस तक उतर गयी ...!!
शुभकामनायें
सुन्दर,भावप्रवण ग़ज़ल। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए,यथासंभव सक्रियता बनाए रखें।
सुंदर प्रस्तुति..आभार
पढ़े इस लिक पर
दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में जिला बाडमेर राजस्थान में बना हुआ है!
....
यह ग़ज़ल दिल के साथ दिमाग पर भी असर डालती है।
bahut sundar gajal..
maa ji apna khayal rakhiyega..
saadar!
बहुत ही सुन्दर रचना है।
बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर - मन को डुबो देने वाली!
कामना करती हूँ कि आप स्वस्थ रहें औऱ अपनी लेखनी का प्रसाद बाँटती रहें !.
bahut sunder gazal hai
Badhayee!
ਬਹੁਤ ਦੇਰ ਬਾਦ ਆਪ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਹੜੇ ਫੇਰੀ ਪਾਈ। ਬਹੁਤ-ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦ !
ਆਪ ਦੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹੀ ਲਾਜਵਾਬ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ।
ਵਧਾਈ ਦੇ ਪਾਤਰ ਹੋ।
ਹਰਦੀਪ
शुभकामनायें आपकी सेहत के लिए !
सुन्दर, निर्मल शानदार.
सकारात्मक सार्थक चिंतन से
तन और मन भी स्वस्थ रहता है.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी दर्शन दीजियेगा जी.
बहुत खूबसूरत गजल ....!!!
बहुत दुनों बाद बलॉग आपकी सक्रियता देख कर बहुत अच्छा लगा!अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए,यथासंभव सक्रियता बनाए रखें।
बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
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P.S.Bhakuni
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बहुत ही बढिया ... प्रस्तुति ... आभार
ज़ख़्म उसने ही हमें बेशक दिये पर
आह जब निकली उसे ही फिर पुकारा
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत खूबसूरत गजल .
Bahut dinon baad aapko padh rahee hun....idhar meri bhee tabiyat kharab chal rahee hai,isliye na lekhan karne ka jee karta hai na padhne ka.
Aapkee rachana behtareen hai.
bahut hi sundar ghazal:)
aadarniya di
jivan ke khatte -meethe anubhvo ki marmik prastuti .
bahut bahut hi sundar gazal padhne ko mili--apne blog par bahut dino ke baad aapko paakar behad prasnnta ho rahi hai---
sadar naman
poonam
बार बार आपके ब्लॉग पर आकर लौट जाना पड़ता था। आज आपकी गज़ल देख मन खुश हो गया।
घुघूती बासूती
बेहतरीन रचना, हम दुबारा आ गए शुभकामनाएं देने।
मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।
हर शेर सधा हुआ,
पढ़कर अच्छा लगा
हर शेर सधा हुआ,
पढ़कर अच्छा लगा
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति....
अपनी पसंदीदा गजलों में शुमार क्र लूं इससे ?
बहुत सुंदर
क्या कहने
बहुत सुन्दर. आप २००% स्वस्थ हो जाएँ.
Bahut khoobsurat ghazal ke liye didi daad Mubarakbad..
Aor template colour change ho rahe hai to. Aap apna pasaward reset kar de... Security questions badal de....
Ye kar de pehle..
Very nice...
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