01 March, 2011

गज़ल --gazal

यूँ तो आज बेटे का जन्मदिन होता है 29 फरवरी। लेकिन 3 साल तो 1 मार्च को ही मनाते थे,बस लीप के साल मे ही 29 फरवरी को मनाया जाता था। शायद उस ने पहले ही आदत डाल दी थी जन्मदिन न मनाने की। \अभी पहले गये हुये भूले नही थे कि ये भी हमे छोड कर चला गया।ये गज़ल उन 7 अपनो के नाम है जो भरी जवानी मे हमे छोड कर चले गये । एक का कोई जन्मदिन या अन्तिम विदाई का दिन आता है तो सब की याद ताज़ा हो जाती है। उन्हें याद करते हुये ये गज़ल लिखी है।

गज़ल
उसकी अर्थी को उठा कर रो दिये थे
रस्म दुनिया की निभा कर रो दिये थे

नाज़ से पाला जिसे माँ बाप ने था
 आग पर उसको लिटा कर रो दियेथे

थी उम्र शहनाइयाँ बजती मगर अब
मौत का मातम मना कर रो दिये थे

दी सलामी आखिरी नम आँखों से जब
दिल के ट्कडे को विदा कर रो दियेथे

यूँ सभी अरमान दिल मे रह गये थे
राख सपनो की उठा कर रो दिये थे

थी बडी चाहत कभी घर आयेगा वो
लाश जब आयी सजा कर रो दिये थे

था चिरागे दिल मगर मजबूर थे सब
अस्थियाँ गंगा बहा कर रो दिये थे

वो सहारा ले गया जब छीन हम से
सिर दिवारों से सटा कर रो दिये थे

रोक लें आँसू मगर रुकते नही अब
दर्द का दरिया बहा कर रो दिये थे

माँ ग ली उसने रिहाई क्यों  खुदा से
कुछ गिले शिकवे सुना कर रो दिये थे

83 comments:

Anupam Karn said...

मार्मिक गज़ल !
सचमुच रोने को मजबूर हो गया!

संजय कुमार चौरसिया said...

BAHUT BADIYA GAZAL LAGI AAPKI

इस्मत ज़ैदी said...

didi ,
kaleja cheer kar rakh diya ap ki is ghazal ne
ap ke apnon ki kami to koi poori nahin kar sakta lekin ap ke dukh men ham ap ke sath hain ,halanki aj apne hi shabd khokhle lag rahe hain ,ap ke man ki vyatha hamen bhi vyathit kar gai
aur kya kahoon mujhe to samjhana bhi nahin ata

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मैं आपकी संवेदना को नमन करता हूँ !
बहुत ही भावपूर्ण ग़ज़ल है !
हर शेर जैसे ज़िन्दगी की दास्ताँ बयाँ कर रहें हैं !
आभार !

प्रवीण पाण्डेय said...

ईश्वर आपको संबल दे, 7 स्वजनों को यौवन में कालकवलित होते देखना अन्दर से चीर देने वाला कारण है।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अपनों से बिछुड़ने का दर्द शब्दों में उतर आया है। इस दारुण दु:ख में मुझे भी सहभागी समझिए।

सादर नमन

Shah Nawaz said...

आँखों को नाम और दिल को छू गई आपकी यह ग़ज़ल...

Satish Saxena said...

दर्दनाक ....शुभकामनायें आपको !

Er. सत्यम शिवम said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी गजल.....दिल रो दिया अंदर तक....।

साहित्य प्रेमी संघ

Mithilesh dubey said...

ओह , बहुत ही मार्मिक रचना माँ जी , आँखे भर आई

क्या सच में तुम हो???---मिथिलेश

Sushil Bakliwal said...

बेहद दर्दनाक...
लगता है जैसे कुछ कहने की गुंजाईश ही नहीं है ।

Swarajya karun said...

मन विचलित सा हो गया इसे पढ़कर . जीवन में ऐसे हादसे क्यों होते हैं ? अगर भगवान सामने होते तो उनसे ज़रूर पूछना चाहता. आपके दुखों में मुझे भी सहभागी मानिए . ग़ज़ल में व्यक्त आपकी मार्मिक भावनाएं मन को छू गयी. दिल की गहराइयों से निकली आवाज़ है इसमें, जिसे हम सबको महसूस करने की ज़रूरत है.

sonal said...

कुछ ग़ज़लों पर टिपण्णी नहीं दी जा सकती ... आपके दुःख में आपके साथ हूँ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पीड़ा में मन से निकले उदगार।
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ईश्वरसे प्रार्थना है की आपको हिम्मत दे इस मार्मिक ग़ज़ल के शब्द आपका दर्द बयां कर रहे हैं.....

रश्मि प्रभा... said...

aapki gazal ...kya kahun, thi badi chahat kabhi ghar aayega ... bahut khoob

अन्तर सोहिल said...

॥….……………॥मौन हूँ॥

संध्या शर्मा said...

मन विचलित सा हो गया.. जीवन में ऐसे हादसे क्यों होते हैं ? यदि भगवान को उन्हें छीनना होता है, तो उन्हें इस दुनिया में भेजा ही क्यूँ ? आपके दुखों में मुझे भी सहभागी मानिए . ये दिल की गहराइयों में छुपा दर्द है, जो शब्द बनकर ग़ज़ल में ढल गया है. ईश्वरसे प्रार्थना है कि आपको हिम्मत दे.

vijai Rajbali Mathur said...

निश्चय ही यह गजल दुखद अनुभूति की है.आपकी हिम्मत कायम रहे और आप स्वास्थ्य एवं दीर्घायुष्य को प्राप्त कर सामान्य -जन के कल्याण में जुटी रहें ,हम यही कामना करते हैं.

vandana gupta said...

दी
सचमुच रुला दिया ……………हर शब्द आंसुओ मे डुबाकर लिखा है …………कैसे लिखा होगा समझ सकती हूँ और क्या महसूस कर रही होंगी आप इसका तो कोई अन्दाज़ा भी नही लगा सकता…………आप हिम्मत बनाए रखें सिर्फ़ यही कह सकती हूँ लेकिन सोच रही हूँ जब ये पढकर मै रो पडी तो आप पर क्या बीत रही होगी?

वाणी गीत said...

इस दुःख को सिर्फ महसूस किया जा सकता है ...किसी भी शब्द से सांत्वना नहीं दी जा सकती !
दर्दनाक !

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक ... आँख से आंसू निकल आते हैं पढ़ते पढ़ते ... आपका गम समझ सकता हूँ ...

उस्ताद जी said...

दर्द और आंसू मिलकर जब शब्दों का रूप अख्तियार करते हैं तो ऐसी ग़ज़ल सामने आती है.

आपके दुःख को साफ़ महसूस कर पा रहा हूँ.
इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न ....

rashmi ravija said...

बहुत ही मार्मिक ग़ज़ल है...

shikha varshney said...

आंसू रुक ही नहीं सकते इतनी मार्मिक गज़ल पढकर.आपका दुःख समझ सकती हूँ.पर कहा कुछ नहीं जा रहा.

केवल राम said...

यूँ तो कोई बहाना होता है रोने का अक्सर
हम भी इस गजल को पढ़कर रो दिए

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी गजल!

Unknown said...

Oh! MAA!! God help you!!

डॉ टी एस दराल said...

आपके दुःख को समझ सकते हैं ।
अत्यंत मार्मिक ।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

................

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अन्दर का दर्द छलक रहा है निर्मला जी इस गजल में !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इस पर किसी का बस नहीं चलता.. इस दुख को व्यक्त करना भी बड़े साहस का कार्य है..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इस पर किसी का बस नहीं चलता.. इस दुख को व्यक्त करना भी बड़े साहस का कार्य है..

ताऊ रामपुरिया said...

कुछ बाते ऐसी होती हैं जो वश के बाहर होती हैं. बहुत दुखद.

रामराम.

vijaymaudgill said...

अच्छा किया आपने अपने दर्द को शब्दों में ढाल दिया। कुछ तो दर्द शब्दों ने भी झेला होगा और कुछ आपकी कलम ने और कुछ सफ़ेद कोरे काग़ज़ ने। संवेदनशील लोगों के पास यही एक ज़रिया है अपना दर्द कम करने का। लिखते रहिए, कभी छोड़िएगा मत। भगवान आपको हर परिस्थिति से लड़ने का बल प्रदान करे।
माफ़ी चाहता हूं इस ग़ज़ल पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। अंदर ही अंदर कुछ टूट रहा है।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

..अचानक से रूला दिया आपने।

Kailash Sharma said...

बहुत दुखद ..इतना मार्मिक कि आँख के आंसू नहीं रुकते...ईश्वर आपको शक्ति दे..आभार

शूरवीर रावत said...

जयशंकर प्रसाद जी की यह पंक्तियाँ याद आ रही है:
"जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तिष्क में स्मृति सी छाई,
दुर्दिन में आंसू बनकर आज बरसने आयी." ....... गला भर आया है यह ग़ज़ल पढ़कर ......... ईश्वर आपको दर्द सहने की ताक़त दे यही कामना है.

Patali-The-Village said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी गजल|

Kunwar Kusumesh said...

दुखदाई बात. शुभकामनायें.

संजय @ मो सम कौन... said...

निर्मला दी,
कुछ बातों पर मौन रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। हम मौन हैं।

rachana said...

ek ek shabd aansun bah meri aankhon se bahta raha .
aur kya kahun shabd nahi hain pas
saader
rachana

Sunil Kumar said...

मार्मिक गज़ल !आपके दुःख को साफ़ महसूस कर पा रहा हूँ!

devendra gautam said...

इस ग़ज़ल को पढने के बाद जी भारी हो गया. मुझे सुल्तान अख्तर साहब के दो शेर याद आ गए---
कासा -ए-दिल से लहू आँखों से पानी ले गया.....अपना किस्सा कह के वो मेरी कहानी ले गया.....वक़्त से पहले ही अख्तर थक गयी है जिंदगी....मौसमों का कहर अह्सासे-जवानी ले गया.

kshama said...

Aah! Rula diya aapne...

Bharat Bhushan said...

अत्यधिक गंभीर और उदासी भरी ग़ज़ल. लिख दिया अच्छा किया.

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही मार्मिक गज़ल, पढकर मन उदास हो गया, धन्यवाद

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

निम्मो दी!
मैं तो बस अपनी पिछली पोस्ट पर आपके दुबारा दिये गये कमेंट को याद कर रहा हूँ... आपने अपनी वेदनओं के बीच मुझे याद किया, मेरी आँखों को सजल करने के लिये वो काफी था!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या कहूं? ये ग़ज़ल तो सिर्फ़ महसूस करने के लिये है. आपके दुख में हम सब साथ हैं.

Anonymous said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

Smart Indian said...

दुखद! कुछ कह नहीं सकता, निःशब्द हूँ!

रचना दीक्षित said...

मैं तो कोई टिपण्णी करने में भी असमर्थ हूँ यह पढकर. आपने तो इसे झेला है. बस और कुछ नहीं.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आह्! बेहद मार्मिक....

vijay kumar sappatti said...

nirmala ji , main kya kahun ,

apno ko kho dene ka duh ham hi jaan sakte hai , meri maa nahi hai , aaj bhi mujhe lagta hai ki maiin adhura hoon .

meri aaknhe nam hai aapki gazal ko padhkar, iswar sab ko shaanti de .

pranaam

-----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय

सु-मन (Suman Kapoor) said...

marmik gazal.....
dil ki gahraiyon m utar gai

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह एक सुंदर रचना के लिए धन्यवाद.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही मार्मिक गज़ल है,प्रस्तुति हेतु आभार.

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक संवेदनायें..!! संबल और धैर्य रुपी आभूषण सदैव आपके साथ रहें.!!

Arun sathi said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, दिल को छू कर निकल गई, आभार।

Udan Tashtari said...

मर्मस्पर्शी....

Asha Joglekar said...

रुला गई आपकी ये गज़ल निर्मला जी ।

ZEAL said...

बहुत ही भावुक कर देने वाली ग़ज़ल ।

विशाल said...

बहुत ही दर्द भरी ग़ज़ल है.
सलाम.

mridula pradhan said...

marmsparshi.....dard hai....udaas kar gayee.

Swaarth said...

जीवन जब ऐसे भीषण दर्द से रुबरु करा दे तो संवेदना के शब्द भी सहारा नहीं दे पाते। साहस भी नहीं होता कि ऐसे दो बोल बोले भी जायें। वे सब कागजी लगते हैं।
बस प्रार्थना ही एकमात्र सहारा बचती है।
परम शक्त्ति आपको संबल प्रदान करे और दिवंगत आत्माओं को शांति।

मनोज कुमार said...

दीदी,
इसी ग़ज़ल के शे’र में कहूं तो
रोक लें आंसू मगर रुकते नहीं अब
दर्द का दरिया बहा कर रो दिये थे
शब्दों से इस क्षति की पूर्ति तो नहीं ही की जा सकती, फिर भी अपने इस दर्द और दुख में हमें भी अपने साथ समझिए।

Pratik Maheshwari said...

शुरू की दो-तीन पंक्तियाँ पढ़ कर ही सिहरन सी उठ गयी..
मन और दिल से दर्द को लिखा है आपने..

Sadhana Vaid said...
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Sadhana Vaid said...
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कविता रावत said...

Maa-baap ke liye jawan bete kee maut ka gam sabse dukhdayee hai.... Maa ji aapne use gajal ke roop mein prastut kiya... padhkar aansu roke nahi ruke..... is dukh kee ghadi mein ham bhi aapke saath hai mahsus kijiyega...saadar

Dr (Miss) Sharad Singh said...

स्मृतियों भरी मार्मिक गज़ल.....

आपके दुख में सहभागी हूं...
पूरा ब्लॉग परिवार आपके साथ है....

M. Afsar Khan said...

mere paas shabd nahi hain.

bas aashirwad chahiye mujhe.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मार्मिक गज़ल ....सच ही आँख नम हो आई ..

ज्योति सिंह said...

aapki vyatha ko padhte huye gala rundh gaya . kya kahoon is gahri peeda par ,hum aapke saath hai aur aapki taklif mahsoos kar sakte hai .aakhri sher me har dard simat gaya .

aarkay said...

एक भुक्तभोगी द्वारा मार्मिक प्रस्तुति !
----आगे शब्द नहीं हैं !

rafat said...

बहुत मार्मिक और द्रवित करती गज़ल .गए थे जी बहलाने उस महफ़िल में हम /वहाँ भी ज़ख्मों की चोट खा कर रो दिये. इस जिंदगी में अब बचा क्या है/जिंदगी में जिंदगी को मिटा कर रो दिए.
काश ये अदना शेर आपका दर्द कुछ कम कर सकें .अन्यथा तो हम सभी नियति के हातों बेबस हैं.

VIVEK VK JAIN said...

nihshabd

दर्शन कौर धनोय said...

Sunder abhivykti --aansu nhi rukate jab aapne juda hote haae ---

abhi said...

:(

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Really Kapilaji,you have a big heart and courage to face such calamities.I salute yr this brave approach .
What a tragic Gazalthis is.Keep coming on my blog.Yr words really analyse my shortcommings and inspire me to do better.my heartiest thanks.
dr.bhoopendra
rewa
mp

Anonymous said...

ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਭਰਿਆ ਹੋਇਆ...
ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੇ ਤਾਂ ਦਿਲ ਨੂੰ ਵਿੰਨ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ...
ਮਾਂਗ ਲੀ ਉਸਨੇ ਰਿਹਾਈ ਕਿਓਂ ਖੁਦਾ ਸੇ......
ਸਾਰੇ ਕਹਿ ਤਾਂ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ਕਿ ਹੌਸਲਾ ਰੱਖੋ....ਪਰ ਕਿਥੋਂ ਲਿਆਵੇ ਕੋਈ ਇਹ ਹੌਸਲਾ ਏਸ ਦੁੱਖ ਦੀ ਘੜੀ 'ਚ ?

Anonymous said...

ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਭਰਿਆ ਹੋਇਆ...
ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੇ ਤਾਂ ਦਿਲ ਨੂੰ ਵਿੰਨ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ...
ਮਾਂਗ ਲੀ ਉਸਨੇ ਰਿਹਾਈ ਕਿਓਂ ਖੁਦਾ ਸੇ......
ਸਾਰੇ ਕਹਿ ਤਾਂ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ਕਿ ਹੌਸਲਾ ਰੱਖੋ....ਪਰ ਕਿਥੋਂ ਲਿਆਵੇ ਕੋਈ ਇਹ ਹੌਸਲਾ ਏਸ ਦੁੱਖ ਦੀ ਘੜੀ 'ਚ ?
ਹਰਦੀਪ

anilraj said...

mai ise padhane ke bad kafi arse bad khul kar ji bhar kar roya hu man kuchh halka sa lag raha hai leki man ke kisi kone me yah baten chipak gayin hain shayad ta-umr ke liye

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