सुखान्त दुखान्त --3
पिछली किश्त मे आपने पढा कि बाजी शुची को अपने अतीत की कहानी सुना रही थी कि किस तरह उसने किसी अमीर परिवार मे शादी के सपने देखे थी जब उसकी शादी अमीर परिवार मे हुयी तो उसे अमीरी का सच पता चला। जितना उजला अमीरी का उजाला बाहर से लगता है उतना ही अन्दर अन्धेरा होता है। उसके शराबी कबाबी पति को जब डाक्टर ने टी बी की बीमारी बताई तो घर के लोग तो खुश थे कि बला टली लेकिन बाजी को भविश्य की चिन्ता सताने लगी।-- अब आगे"सच कहूँ शुचि मुझे अपने भविश्य की चिन्ता थी। पति से वो दिल का रिश्ता तो जुड नही पाया था लेकिन फिर भी पति धर्म निभाने को मैने खुद को कभी पीछे नही रखा। मुझे तो जीने की भी चाह नही थी लेकिन जीवन दर्शन के कुछ सूत्र सहेज रखे थे। मेरे पिता जी कहा करते थे "-बेटा जब कभी सब ओर से निराश हो जाओ तो सब कुछ प्रभु पर छोड दो\ मन मे एक विश्वास रखो कि वो जो भी करेगा तुम्हारे भले के लिये करेगा।" वो तो हमे राह दिखाता है मगर हम ही अपने स्वार्थ और कामनाओं की पूर्ती के लिये आँखें मूँद रखते हैं।। आज रह रह कर मन मे एक ही बात आ रही थी कि मेरी ज़िन्दगी मे कोई नया मोड आने वाला है। एक बात की मुझे मन ही मन खुशी भी थी कि मै इन्हें सेनिटोरियम ले जाने के बहाने कम से कम इस नर्क से दूर तो रहूँगी। अपने बारे मे नये सिरे से सोचने का एक अवसर मिलेगा। जब अचानक कोई मुसीबत आती है तो आदमी सोचता है कि भगवान मुझे ही क्यों दुख देता है लेकिन वही दुख हमारे लिये जीनी की राह तलाशता है,जीना सिखाता है।
" मुझे पति के साथ कसौली भेज दिया गया।साथ मे इनका निज़ी नौकर भी भेजा था।मेरे कसौली जाने पर ही मेरे माँ बाप को मेरी व्यथा का पता चला था। मेरी दीदी के पति शिमला के एक सकूल मे अध्यापक थे। वो सब लोग कसौली आ गये थे। वहीं एक घर किराये पर ले लिया था। नौकर जा कर कुछ जरूरी सामान ले आया था। इलाज शुरू हो गया। धीरे धीरे मेरे जीजा जी ने मेरे पति को समझाया कि , अपनी पत्नि के भविश्य के बारे मे सोचो। भगवान न करे अगर उस पर कोई विपत्ति आ गयी तो उसे कौन रोटी देगा? उसे अपने पाँव पर खडा होने की अनुमति दो। मेरे पति की आधी अधूरी स्वीकृति मे ही मुझे से मेरे जीजा जी ने नर्स दाई की ट्रेनिन्ग के फार्म भरवा लिये तब नर्स दाई की नौकरी बहुत आसानी से मिलती थी वो चाहते थी कि अगर इन लोगों ने नौकरी न भी करने दी तो हाथ मे ऐसा हुनर तो होगा कि मुश्किल मे घर बैठे भी चार पैसे कमा सकोगी। मेरे पिता तो वापिस चले गये लेकिन माँ मेरे पास रही।"
: मेरी धन दौलत की मृग त्रिष्णा तो टूट चुकी थी।सोने चाँदी के ताले तोड कर मैं आत्मनिर्भर बन अपने पँखों परआअपने आसमां पर उडना चाहती थी। दो माह बाद मुझे दाखिला मिल गया और पढाई भी शुरू हो गयी।रोज़ इनको नहलाने धुलाने और दवाई आदि देने के बाद मै अपनी क्लास एटेन्ड करने चली जाती थी। इनके भाई हर महीने इन्हें आ कर पैसे आदि दे जाते। वैसे मेरी पढाई से वो अन्दर ही अन्दर इस लिये खुश थे कि चलो एक जिम्मेदारी और टलेगी। इस लिये पैसे की उन्होंने कभी कमी नही होने दी। वैसे भी 6 महीनी इनका यहाँ ईलाज चलना था। नौकर सारा दिन इन्बके पास ही रहता।"
एक दिन डाक्टर ने कहा कि मुझे एक बात की समझ नही आयी कि पाँच महीने के ईलाज मे उतना फर्क नही पडा जितना पडना चाहिये था।इनके साथ के बाकी मरी इनसे स्वस्थ हो गये थे। उन्होंन्बे अभी छ: महीने और रखने के लिये कहा।"
मै भी चि9न्तित थी कि फर्क क्यों नही पड रहा। ये भेद खुला जा कर 8-9 महीने बाद । वो भी एक दिन एक औरत के कारण।
" एक दिन मै जैसे ही क्लास से बाहर आयी तो एक औरत को अपने इन्तजार मे खडे पाया।
"कृष्णा बहन ये बहिन जी आपसे मिलने आयी हैं।: बूढी चपडासिन ने उस औरत की ओर इशारा किया।
"नमस्ते।" वो औरत मेरे पास आते हुइये बोली।
:" नमस्ते। मैने आपको पहचाना नही?"
" आप मुझे नही जानती लेकिन मै आपको पहचानती हूँ। मैं आपसे एक जरूरी बात करने आयी हूँ। क्या हम कहीं अकेले मे बैठ सकते हैं?"
क्यों नही , चलो।" मै उसे बाहर ग्राऊँड मे ले गयी। हम दोनो एक बृक्ष के नीचे छाँव मे एक बैंच पर बैठ गयी। मैं हैरान थी कि ये औरत कौन है और मुझ से क्या जरूरी बात करना चाहती हैं? वो लगभग मेरी उम्र की सुन्दर औरत थी। उसका सादा लिबास और आवाज मे शह्द जैसी मिठास थी जिसने मुझे प्रभावित किया।
"आप हैरान मत होईये। मै आपको सब कुछ बता दूँगी। मुझे कुछ दिन से ही महसूस हो रहा था कि मुझे आपसे मिलना चाहिये और आपको एक सच बताना चाहिये। ैसी लिये आज चली आयी।" क्रमश:
44 comments:
utsukta badh chali hai , anumaan ke kadam tivra ho chale hain
वाकया धीरे धीरे और रोचक बनते जा रहा है ...
आगे का इंतज़ार है ...
निर्मला जी आप तो उत्सुकता बढ़ाती जा रही हैं और कथासूत्र को ऐसे मोड़ पर छोड़ा है कि तुरंत अगली किस्त पढ़ने की इच्छा हो रही है। जल्दी दीजिए।
काफी रोचक कहानी लगती है, आगे की कड़ियों का इंतज़ार रहेगा...
प्रेमरस.कॉम
आपने तो सस्पेंस पर लाकर छोड़ दिया।
क्या कहानी नया मोड लेगी...?
जानने की उत्सुकता है.
कहानी काफ़ी रोचक चल रही है अब तो अगले मोड का इंतज़ार है…………
सधा हुआ प्रस्तुतीकरण, जारी रखिये ..
बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत है इसकी हर कड़ी ..अगली कड़ी की प्रतीक्षा में ..।
Jigyasa badh rahee hai!
... .... ... aapke saath chal rahe hain !!!
आज इस काहानी की तीनों कड़ियाँ पढ़ीं ....जीवन की सत्यता से परिचित अच्छी कहानी ..रोचक मोड़ पर ला कर छोड़ा है ...अब आगे का इंतज़ार है ...
बेहद मार्मिक कहानी चल रही है
आदरणीया निर्मला जी
दिलचस्प लग रही है,कहानी.
कहानी में कई रोचक पहलू हैं..बांधे रहती है ये...
आगे का इंतज़ार है ...
:)...........jaldi se aage ka post kar hi do di:)
कहानी बहुत ही रोचक बनती जा रही है..लगता है अब नया मोड आने वाला है....निर्मला जी! कहानी ह्रदयस्पर्शी है....अगली कडी क इन्तजार है!
बहुत कुछ कहता सा यह अमीरी का सच।
रोचक कहानी है, आगे का क्या होगा ?
ह्रदयस्पर्शी कहानी ....
रोचकता से आगे बढ़ रही है कहानी.
ओह ...उत्सुकता चरम पर पहुंचा दी आपने...
अगली कड़ी का इन्तजार लग गया....
बहुत ही खूबसूरत और रोचक कहानी हैँ । अगली कढ़ी को जानने की लगातार उत्सुकता बनी हुई है। आभार जी।
आपका भी ब्लोग पर स्वागत हैँ।
कितनी बेज़ार है ये दुनियाँ..........गजल।
शानदार धारावाहिक कथा,
लिखती रहें आप, पढते रहें हम।
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प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
कथा को लेकर सभी के मन में संघर्ष बढ़ा है. किस्तें बना कर आपने अच्छा नहीं किया :) प्रतीक्षा है....
utsukta bani rahegi...aage ke kadi ka itzaar hai.... aane mein der ho jaati hai.....
कहानी बहुत बढिया तरीके से आगे बढ रही है....अगला भाग जरा जल्दी प्रकाशित कीजिएगा.
उत्सुकता बढ़ रही है
काफी सस्पेंस create हो गया है...आगे का बेसब्री से इंतज़ार है।
पिछली पोस्ट भी पढ़ डाली ....स्त्री मन की गहन विवेचना है कहानी में ....
मन का रिश्ता न होते हुए भी तन का रिश्ता निभाती है औरत .....
बहुत कुछ याद दिला दिया आपने .....
यह नयी ओरत कही......बहुत रोचक मोद कर आ कर आप ने ब्रेक मारा, अगली कडी का इंतजार हे, धन्यवाद
अच्छी कहानी के लिए आभार-आगे भी है इंतजार
एंजिल से मुलाकात
आज कहानी बहुत ही रोचक मोड पर छोड़ी है आपने ! जिज्ञासा को बहुत अधिक बढ़ा दिया है ! अनुरोध है अगली कड़ी जल्दी दीजियेगा ! वरना मन में उथल-पुथल होती रहेगी !
निर्मला जी !! यह कथा काफी उत्सुकता बढ़ा रही है ..आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया
बहुत दुखद कहानी , आपका लेखन काबिले तारीफ है , इस वक्त कहानी को बहुत ही जिज्ञासा वाले मोड़ पर ला खड़ा किया है ..
बड़े ही रोचक मोड़ पर आपने क्रमश :लगा कर छोड़ दिया!
आगे जानने की उत्सुकता अगली कड़ी तक बनी रहेगी!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ओह!! उत्सुकता इतनी बढ़ गयी है...और क्रमशः आ गया...
जल्दी अगली किस्त डालिए
अच्छी और रोचक कहानी पढ़ने को मिल रही है...
कहानी कहने का आपका अंदाज़ निराला है।
....गज़ब की रोचकता।
पिछली सारी कड़ियाँ पढ़ ली.. और अब तो आगे जानने की उत्कंठा बढ़ सी गयी है....
पिछले ३ भाग भी आज ही पढ़े ...इस कहानी के माध्यम से जीवन की एक और कटु सच्चाई का अनावरण करने जारही है आप . कहानी बहुत अच्छी चल रही है ....रोचकता बनी हुई है .
कथा में दुख तो है मगर उत्सुकता और बढ़ रही है।
निर्मला जी आप के लेखन और आपकी तस्वीर में आपके व्यक्तित्व का पूरा परिचय झलकता है । अभी आपकी ब्लॉग पर जाकर आप का लेखन पढ़ा बहुत अच्छा लगा । आपका स्नेह और मार्ददर्शन मिलता रहेगा ये कहने की मुझे ज़रूरत ही नहीं है . आप के स्वभाव में वो है ये मैं दावे के साथ कह सकती हूं । मेरी मौसेरी बहन के बारे में आपकी संवेदनाओं के लिए धन्यवाद । स्नेह सहित , सर्जना शर्मा
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