09 November, 2010

gazal

 दीपावली पर श्री पंकज सुबीर जी के ब्लाग पर {   http://subeerin.blogspot.com/2010/11/blog-post_02.htmlयहाँ तरही मुशायरा हुया जिस पर मेरी ये गज़ल कुछ लोगों ने पढी। बाकी सब भी पढें। धन्यवाद।
गज़ल
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
आयें उजाले प्यार के चलती रहे ये ज़िन्दगी

इक दूसरे के साथ हैं खुशियाँ जहाँ की साजना
तेरे बिना क्या ज़िन्दगी मेरे बिना क्या ज़िन्दगी

अब क्या कहें उसकी भला वो शख्स भी क्या चीज़ है
दिल मे भरा है जहर और  है बात उसकी चाशनी

है काम दुनिया का बिछाना राह मे काँटे सदा
सच से सदा ही झूठ की रहती ही आयी दुश्मनी

बातें सुना कर तल्ख सी यूँ चीर देते लोग दिल
फिर दोस्ती मे क्या भली लगती है ऐसी तीरगी

जब बात करता प्यार सेलगता मुझे ऐसे कि मैं
उडती फिरूँ आकाश मे बस ओढ चुनरी काशनी

सब फर्ज़ हैं मेरे लिये सब दर्द हैं मेरे लिये
तकदीर मे मेरे लिखी है बस उम्र भर आज़िजी

उसने निभाई ना वफा गर इश्क मे तो क्या हुया
उससे जफा मै भी करूँ मेरी वफा फिर क्या हुयी

जीना वतन के वास्ते मरना वतन के वास्ते
रख लें हथेली जान, सिर पर बाँध पगडी केसरी

 आदमी के लोभ भी क्या कुछ ना करायें आजकल
जिस पेड से छाया मिली उसकी जडें ही काट ली

45 comments:

Udan Tashtari said...

वहाँ पढ़्कर आनन्द लिया...अब यहाँ पढ़कर आनन्द लिया/ आभार यहाँ प्रस्तुत करने का.

Asha Joglekar said...

जब बात करता प्यार सेलगता मुझे ऐसे कि मैं
उदती फिरूँ आकाश मे बस ओढ चुनरी काशनी
kitana romantic !

शिक्षामित्र said...

अच्छी ग़ज़ल है। कहीं भी छप सकने योग्य। जीवन के अनुभवों पर आधारित। निष्ठा और उम्मीद से लबरेज़।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ek nitaant vyaktigat anubhav sesaraabor ghazal, nimmo di!!

सदा said...

आदमी के लोभ भी क्या कुछ न करायें आजकल
जिस पेड से छाया मिली उसकी जडें ही काट ली !

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

vandana gupta said...

जब बात करता प्यार सेलगता मुझे ऐसे कि मैं
उदती फिरूँ आकाश मे बस ओढ चुनरी काशनी

सब फर्ज़ हैं मेरे लिये सब दर्द हैं मेरे लिये
तकदीर मे मेरे लिखी है बस उम्र भर आज़िजी

ये गज़ल तरही मुशायरे मे भी पढी थी और आज भी ……………बेहद शानदार गज़ल है ………………उस दिन कापी नही कर पायी थी नही तो वहीं कमेंट मे लगाती कुछ शेर जो मुझे बहुत पसन्द आये थे……………गज़ब के भाव भरे है आपने………।बधाई।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल रही आपकी. बधाई.

दिगम्बर नासवा said...

इस ग़ज़ल का हर शेर कुछ न कुछ बात लिए है ... कहीं प्यार ... कहीं सामाजिक सरोकार .... पहले भी पढ़ा है और आज भी पढ़ रहा हूँ .. वाही ताजगी और लाजवाब खुशबू लिए हुवे है ...

Kunwar Kusumesh said...

आपकी ग़ज़ल "न तो रिश्ते न कोई दोस्त......" सुनी और "जलते रहें दीपक सदा ......."ब्लॉग पर पढ़ी भी.ग़ज़ल के मामले में आपके ब्लॉग पर जाना और सुनना दोनों वाक़ई अच्छा लगा

रचना दीक्षित said...

बेहद शानदार गज़ल है, बहुत गहरी सोच, लाजवाब

डॉ टी एस दराल said...

है काम दुनिया का बिछाना राह मे काँटे सदा
सच से सदा ही झूठ की रहती ही आयी दुश्मनी

बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है ।
आनंद आया हमें भी ।

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी रचना .. पढना सुखद रहा !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत शानदार गज़ल ...हर शेर बहुत अच्छा लगा

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यूं तो पूरी गज़ल ही उम्दा है, लेकिन अन्तिम शेअर मुझे अधिक अच्छा लगा...

उस्ताद जी said...

4.5/10

काम चलाऊ - ठीक ठाक ग़ज़ल
तीसरा और अंतिम शेर ही याद रह जाता है.

Riya Sharma said...

उसने निभाई ना वफ़ा गर इश्क में ........वफ़ा फिर क्या हुयी

उम्दा शेर रहा ये निर्मला जी !

उपेन्द्र नाथ said...

bahoot sahi bat kahi app.... ek sunder gazal ke sath

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुन्दर गज़ल...........

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सन्देश देती हुई सुन्दर रचना!

केवल राम said...

है काम दुनिया का बिछाना राह मे काँटे सदा
सच से सदा ही झूठ की रहती ही आयी दुश्मनी
एकदम सटीक बात कही है आपने ....शुक्रिया
मार्गदर्शन के लिए
चलते -चलते पर जरुर आयें ...स्वागत है

Bharat Bhushan said...

बहुत अच्छी रचना है. दो-तीन शे'र तो बहुत ही बढ़िया हैं, इरशाद के काबिल.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

हर शे'र apne आप में नायाब है... बहुत सुंदर ग़ज़ल...

प्रवीण पाण्डेय said...

वहाँ भी पढ़ी थी, यहाँ भी पढ़ी, आनन्द द्विगुणित हो गया।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aafareen!

Sadhana Vaid said...

बहुत उम्दा गज़ल है निर्मला दी ! है शेर लाजवाब है और हर भाव गहन ! बहुत सुन्दर !

arvind said...

vaah...bahut badhiya gajal..padhakar majaa aa gayaa.

rashmi ravija said...

ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है...बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल

महेन्‍द्र वर्मा said...

आदमी के लोभ भी क्या कुछ ना कराएं आजकल
जिस पेड़ से छाया मिली उसकी जड़ें ही काट ली।

बेहतरीन ग़ज़ल।

daanish said...

जब बात करता प्यार सेलगता मुझे ऐसे कि मैं
उडती फिरूँ आकाश मे बस ओढ चुनरी काशनी

jb , jahaaN ,
itnaa pyara aur kaamyaab sher
keh diyaa gayaa ho
wahaa taareef ke liye
shabd
dhoondne hi padte haiN...

waah - waa !!

bahut khoob ... !!!

bahut bahut mubarakbaad .

अजय कुमार said...

सुंदर गजल ,बधाई ।

priyankaabhilaashi said...

बहुत सुंदर..!!

Sunil Kumar said...

सब फर्ज़ हैं मेरे लिये सब दर्द हैं मेरे लिये
तकदीर मे मेरे लिखी है बस उम्र भर आज़िजी
सुंदर गजल ,बधाई ।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

..इतनी लम्बी गज़ल भावों को सहेजना कठिन काम है। आपकी कोशिश काबिले तारीफ है।

DR.ASHOK KUMAR said...

पूरी गजल ही बहुत ही लाजबाव हैँ। बधाई जी।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आदमी के लोभ भी क्या कुछ न करायें आजकल
जिस पेड से छाया मिली उसकी जडें ही काट ली !
बहुत सही...खूब
बेहतरीन ग़ज़ल

रानीविशाल said...

बहुत ही कमल की ग़ज़ल है ....हर एक शेर यथार्थ के धरातल से सटा है !
आभार

mark rai said...

सब फर्ज़ हैं मेरे लिये सब दर्द हैं मेरे लिये
तकदीर मे मेरे लिखी है बस उम्र भर आज़िजी

बहुत सुंदर......

ज्योति सिंह said...

सब फर्ज़ हैं मेरे लिये सब दर्द हैं मेरे लिये
तकदीर मे मेरे लिखी है बस उम्र भर आज़िजी
behad sundar gazal .tyohaaro aur mehmaano ke vazah se bani vyasta me aa na saki .

Girish Kumar Billore said...

बेहद अच्छी ग़ज़ल
आपको रामायण से सम्बन्धित भी लिंक दे रहा हूं
raamacarit-maanas
मिसफ़िट पर ताज़ातरीन

वीरेंद्र सिंह said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल.

सहज साहित्य said...

अनुभव की आ>न्च में तपी आपकी गज़ल दिल को छू गई ।

ZEAL said...

आदमी के लोभ भी क्या कुछ ना करायें आजकल
जिस पेड से छाया मिली उसकी जडें ही काट ली..

waah waah waah !!

A bitter truth, presented so beautifully.

.

अरुण चन्द्र रॉय said...

सुन्दर ग़ज़ल ... सभी शेर सार्थक सन्देश दे रहे हैं..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सार्थक एवं प्रेरक गजल।

---------
मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।

अनामिका की सदायें ...... said...

आनंदित कर दिया आपकी प्रस्तुति ने.

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